9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: तारापिठ मंदिर

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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

तारापिठ मंदिर

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में बंगाल के प्रसिद्ध मंदिर मां तारापिठ के बारे में चर्चा करेंगे। यह हिन्दू धर्म के अनुयायियों का एक प्रसिध्द धार्मिक स्थल है। इस ब्लाग में हम इस मंदिर के निर्माण के पिछे के मुख्य कारण के बारे में बात करेंगे,इसके साथ ही हम इस मंदिर के हिन्दू धर्म से सम्बन्धित धार्मिक तथ्यों के बारे में चर्चा करेंगे।. इसके अलावा हम देवघर से तारापिठ की दूरी तथा कलकत्ता से तारापिठ की दूरी,मंदिर तक पहुंचाने वाले साधनों की सम्पुर्ण चर्चा करेंगे।.
तारापीठ मंदिर पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल और सिद्धपीठ है।. यह महानगर कोलकाता से लगभग 222 किलोमीटर की दूरी पर है।. बीरभूम जिले को शक्तिपीठों का स्थान कहा जाता है, जहाँ 51 शक्तिपीठों में से पांच स्थित हैं, जिनमें बकुरेश्वर, नालहाटी, बन्दीकेश्वरी, फुलोरा देवी और तारापीठ शामिल हैं।.

पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार

माँ तारा देवी के मंदिर की स्थापना बामाखेपा संन्यासी द्वारा की गयी थी। मान्यताओं के अनुसार माँ तारा देवी ने साधु बामाखेपा को साक्षात दर्शन दिये थे,जिसके बाद ही सन्यासी बाबा ने यहां पर मन्दिर की नींव रखी।. हिन्दू धर्म में इस मंदिर की मान्यता माता सती के 51 शक्तिपिठों में की जाती है। कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया, तो उनके पैर  यहाँ गिरें थे।. बंगाली में नेत्रगोलक को "तारा" कहते हैं, इसलिए इस जगह का नाम तारापीठ पड़ा।.
 यह मंदिर शिव जी के विनाशकारी स्वरुप के रुप में माँ काली के भंयकर रुप को दर्शता है। हिंदू परंपराओं के अनुसार, माँ तारा को ज्ञान की 10 देवियों में दूसरे स्थान के रुप में माना जाता है और उन्हें कालिका, भद्रकाली और महाकाली के नाम से भी जाना जाता है।.

विशेषताएँ-
   तारापीठ मंदिर तंत्र साधना के लिए एक विशेष स्थान है और यहाँ पर स्थित श्मशान का विशेष महत्व है।. यह स्थान अघोरियों के लिए भी बहुत पवित्र माना जाता है।.कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस की तरह सिद्ध संत वामाखेपा को माँ महाकाली ने यहीं पर दर्शन और दिव्य ज्ञान दिया था, जब वे केवल 18 वर्ष के थे।.तारापीठ में माँ तारा बाघ की खाल पहने हुए, एक हाथ में तलवार, एक हाथ में कमल का फूल, एक हाथ में कंकाल की खोपड़ी और एक हाथ में अस्त्र लिए हुए प्रकट हुई थीं।.मंदिर में प्रसाद के रूप में शराब और मछली भी पेश की जाती है, जिसे तांत्रिक साधु न केवल माता को चढ़ाते हैं बल्कि स्वयं भी पीते हैं।. यहाँ बकरे की बलि भी दी जाती है।.मंदिर के निकट स्थित प्रेत-शिला में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करते हैं।. मान्यता है कि भगवान राम ने भी अपने पिता का तर्पण और पिंडदान इसी स्थान पर किया था।.तारापीठ मंदिर के सामने महाशमशान है, जहाँ द्वारिका नदी दक्षिण से उत्तर की दिशा में बहती है, जबकि भारत की अन्य नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं।.तारापीठ सड़क, रेल और वायु मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है।. यह पूर्वी रेलवे के रामपुर हाल्ट स्टेशन से चार मील की दूरी पर स्थित है।. हर दिन हजारों भक्त माँ तारा के दर्शन के लिए तारापीठ आते हैं।.

द्वारिका नदी

द्वारका नदी, जिसे बाबला नदी भी कहा जाता है, भारत के पश्चिम बंगाल और झारखंड राज्यों में बहने वाली एक महत्वपूर्ण नदी है। यह हुगली नदी की उपनदी है और इसकी कुल लंबाई लगभग 156.5 किलोमीटर है।

 भौगोलिक विवरण
 उत्पत्ति: द्वारका नदी की उत्पत्ति झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में होती है।
 प्रमुख क्षेत्र: यह नदी देऊचा, मयूरेश्वर और रामपुरहाट के क्षेत्रों से होकर बहती है और अंततः मुर्शिदाबाद जिले में  भागीरथी नदी में मिल जाती है।विशेषताएँ: यह एक मध्यम आकार की नदी है, जिसमें कई छोटी सहायक नदियाँ और जल निकाय शामिल हैं। इसका जल प्रवाह मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों से होता है, जहाँ इसके तल में कंकड़ और पीले मिट्टी की भरपूरता होती है।

 बांध और जलाशय
 देऊचा बांध: द्वारका नदी पर देऊचा में एक बांध स्थित है, जिसकी क्षमता 1,700,000 घन मीटर (लगभग 1,400 एकड़ फुट) है। यह बांध राष्ट्रीय राजमार्ग nh60 के पश्चिमी किनारे पर स्थित है।

 सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
 द्वारका नदी का उल्लेख स्थानीय संस्कृति और जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह आसपास के क्षेत्रों की कृषि और जल आपूर्ति के लिए आवश्यक है।द्वारका नदी न केवल एक प्राकृतिक संसाधन है, बल्कि यह क्षेत्र की पारिस्थितिकी और संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है।

देवघर से तारापीठ यात्रा

 1. रेल मार्ग
 सीधी ट्रेन सेवा- हाल ही में देवघर से तारापीठ के लिए सीधी रेल सेवा शुरू हुई है, जिससे यात्रा आसान हो गई है. 
 ट्रेन के माध्यम से यात्रा- देवघर से तारापीठ की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है और ट्रेन द्वारा यात्रा करने में लगभग 5 घंटे लगते हैं, खासकर डुमका के रास्ते।

 2. सड़क मार्ग
 बस सेवा- देवघर से तारापीठ के लिए बसें भी उपलब्ध हैं, जो यात्रियों को किफायती दरों पर यात्रा करने की सुविधा प्रदान करती हैं. बस यात्रा की लागत लगभग ₹200 होती है।.कैब या ऑटो- स्थानीय स्तर पर कैब या ऑटो रिक्शा भी किराए पर लेकर यात्रा की जा सकती है, विशेषकर जब आप रामपुर हाट या तारापीठ रोड स्टेशन से आगे बढ़ते हैं।

 3.यात्रा का समय
 ट्रेन या बस द्वारा यात्रा करते समय, यात्रा का समय सामान्यतः 5 से 6 घंटे के बीच होता है, जो मार्ग और ट्रैफिक पर निर्भर करता है।.इन साधनों का उपयोग करके श्रद्धालु आसानी से देवघर से तारापीठ पहुँच सकते हैं और माता तारा के दर्शन कर सकते हैं।.

कलकत्ता से तारापीठ यात्रा

कोलकाता से तारापीठ यात्रा के लिए कई साधन उपलब्ध हैं, जो यात्रियों को सुविधाजनक तरीके से इस प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तक पहुँचाते हैं-

 1. बस यात्रा
 बस टिकट की कीमत: कोलकाता से तारापीठ के लिए बस टिकट की न्यूनतम कीमत ₹190 है, जबकि अधिकतम किराया ₹230 तक हो सकता है।यात्रा का समय: बस द्वारा यात्रा करने में लगभग 6 घंटे 30 मिनट का समय लगता है, हालाँकि यह मार्ग और ट्रैफिक की स्थिति पर निर्भर करता है। बोर्डिंग पॉइंट: कोलकाता में प्रमुख बोर्डिंग पॉइंट Esplanade है, जहाँ से बसें संचालित होती हैं।

 2. रेल यात्रा
 ट्रेन सेवाएँ: कोलकाता से तारापीठ के लिए लगभग 2 ट्रेनें दैनिक चलती हैं, जैसे SDAH RPH EXPRESS और विश्वभारती पैसेंजर। इसके अलावा भी कई अन्य ट्रेने भी चलती है। निकटतम रेलवे स्टेशन: तारापीठ रोड रेलवे स्टेशन और रामपुरहाट रेलवे स्टेशन निकटतम हैं, जहाँ से आप टैक्सी या ऑटो लेकर मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

 3. कार यात्रा
 स्वयं की कार या टैक्सी: अगर आप अपनी कार से यात्रा कर रहे हैं, तो यह एक सुविधाजनक विकल्प हो सकता है। कोलकाता से तारापीठ की दूरी लगभग 222 किलोमीटर है, और यात्रा का समय लगभग 5 से 6 घंटे हो सकता है।

 4. वायु यात्रा
 निकटतम हवाई अड्डे: दुर्गापुर में काजी नजरुल इस्लाम एयरपोर्ट सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है, जो तारापीठ से लगभग 105 किलोमीटर दूर है. यहाँ से आप टैक्सी लेकर सीधे तारापीठ पहुँच सकते हैं।इन विकल्पों के माध्यम से आप आसानी से कोलकाता से तारापीठ की यात्रा कर सकते हैं और माँ तारा के दर्शन का लाभ उठा सकते हैं।

तारापिठ के समीप पाये जाने वाले धार्मिक स्थल

तारापीठ के समीप कई प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण स्थलों की जानकारी दी गई है-

 1. बकुरेश्वर
 स्थान- बीरभूम जिले में स्थित।विशेषता- यह भी एक शक्तिपीठ है, जहाँ देवी सती के शरीर का एक अंग गिरा था। यह स्थान तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है।

 2. नालहाटी
 स्थान- तारापीठ से लगभग 30 किलोमीटर दूर।
 विशेषता- यह भी एक शक्तिपीठ है और यहाँ देवी सती की पूजा की जाती है। नालहाटी में भी भक्तों की बड़ी संख्या आती है।

 3. बंदीकेश्वरी
 स्थान- बर्दवान जिले में स्थित।विशेषता- यह मंदिर देवी दुर्गा का एक रूप है और यहाँ भी भक्तों की भीड़ रहती है। इस स्थान को शक्ति के रूप में पूजा जाता है।

 4. फुलोरा देवी
 स्थान- तारापीठ के निकट।विशेषता- यह मंदिर देवी फुलोरा को समर्पित है और यहाँ विशेष पूजाअर्चना होती है। 

 5. एकचक्र धाम
 स्थान- तारापीठ से लगभग 20 किलोमीटर दूर।
 विशेषता- यह स्थान भगवान नित्यानंद का जन्मस्थान माना जाता है और यहाँ भक्तों की संख्या अधिक होती है।

6.मुण्डा मालिनी माँ
माँ तारा देवी के मन्दिर से विपरीत दिशा में यह पवित्र स्थान स्थित है जो अपने-आप में एक विशेष महत्व रखता है।

इन धार्मिक स्थलों के अलावा, तारापीठ क्षेत्र में कई अन्य मंदिर और तीर्थ स्थल भी हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं। तारापीठ का क्षेत्र अपनी तंत्र साधना और देवी पूजा के लिए प्रसिद्ध है, जिससे यह स्थान विशेष महत्व रखता है।
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Good analysis about Tarapith Temple