प्रस्तावना
वे भारतीय भारतीय स्वयं सेवक संगठन विद्युत वाहिनी संगठन के पांचवे समुह की सदस्या थीं। मातंगिनी हाजरा एक प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी थीं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1869 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के होगला गाँव में हुआ था। वे एक गरीब किसान की बेटी थीं और उनकी शिक्षा नहीं हो पाई थी।
प्रारंभिक जीवन और विवाह
मातंगिनी का विवाह 12 वर्ष की आयु में ही अलीनान ग्राम के 62 वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया था। छह वर्ष बाद वे निःसन्तान ही विधवा हो गईं और अपने गाँव वापस लौट आईं। जैसा कि हमने आपको बताया कि वे मात्र 18 वर्ष की उम्र वे विधवा हो गयीं थी जिसके उन्हें उनके घर से निकाल दिया गया। वे अपने ससुराल के घर के बगल में खाली पड़ी जमीन पर कूटी बना कर रहतीं थीं। इसके बाद उन्होंने अपने समुदाय के लोगों की मदद करने में अपना समय बिताया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
20वीं शताब्दी के प्रारंभ में, जब गांधी जी ने राष्ट्रवादी आंदोलन की शुरुआत की, तो मातंगिनी हाजरा ने भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। वे गांधी जी के विचारों से इतनी प्रेरित थीं कि उन्हें "गांधी बूड़ि" कहा जाने लगा। 1930 में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और नमक सत्याग्रह में उनकी भूमिका के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1933 में सेरमपुर में एक उपखंड कांग्रेस सम्मेलन में भाग लेते समय पुलिस की लाठीचार्ज में वे घायल हो गईं।
शहादत
29 सितंबर 1942 को, मातंगिनी हाजरा ने तमलुक पुलिस स्टेशन पर कब्जा करने के लिए एक बड़े जुलूस का नेतृत्व किया। इस दौरान पुलिस ने उन पर गोलियाँ चलाईं, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को और भी मजबूती दी और उन्हें भारत की एक महान वीरांगना के रूप में याद किया जाता है।
विरासत
मातंगिनी हाजरा की शहादत के बाद, उनकी याद में कई स्कूलों, मोहल्लों, और सड़कों के नाम उनके नाम पर रखे गए हैं। कोलकाता में उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है। 2015 में तमलुक में शहीद मातंगिनी हाजरा सरकारी महिला कॉलेज की स्थापना की गई। मातंगिनी हाजरा की कहानी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो उनकी निर्भीकता और देशभक्ति को प्रदर्शित करती है।
उनके कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं
मातंगिनी हाजरा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं
- गांधीवादी आंदोलन में भागीदारी- मातंगिनी हाजरा महात्मा गांधी की शिक्षाओं से प्रेरित थीं और उन्होंने उनके गांधीवादी तरीकों को अपनाया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और सूत कातने का काम किया।.
- नमक सत्याग्रह में भूमिका- मातंगिनी हाजरा ने नमक सत्याग्रह में भी सक्रिय रूप से भाग लिया और नमक बनाने के लिए अलीनान में एक फैक्ट्री में काम किया। इस कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था, लेकिन जल्द ही रिहा कर दिया गया।.
- चौकीदारी कर के विरोध- उन्होंने चौकीदारी कर के विरोध में भी भाग लिया, जो ग्रामीणों पर लगाया जाता था ताकि पुलिसकर्मियों को जासूस के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।.
- सामाजिक सेवा- चेचक महामारी के दौरान, उन्होंने पीड़ितों की देखभाल की और गांव में मानवीय कार्यों में सक्रिय रहीं।.
- भारत छोड़ो आंदोलन में शहादत- 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, मातंगिनी हाजरा ने तमलुक में एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जहां उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गोली मार दी। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूती दी। इन कार्यों से मातंगिनी हाजरा को "गांधी बुढ़ी" के नाम से भी जाना जाता है और वे बंगाल की एक प्रमुख राष्ट्रवादी प्रतीक मानी जाती हैं।.
मातंगिनी हाजरा के जीवन के महत्वपूर्ण क्षण
मातंगिनी हाजरा के जीवन में कई महत्वपूर्ण क्षण थे जिन्होंने उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को परिभाषित किया। यहाँ कुछ प्रमुख क्षण हैं-
- गांधीवादी आंदोलन में प्रवेश- 1905 के आसपास, मातंगिनी गांधी जी के विचारों से प्रेरित हुईं और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गईं। उन्होंने सूत कातना, खादी पहनना और सामाजिक सेवा के कार्यों में भाग लिया।.
- नमक सत्याग्रह और गिरफ्तारी- 1932 में, मातंगिनी ने नमक सत्याग्रह में भाग लिया और अलीनान में नमक बनाया, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें जल्द ही रिहा कर दिया गया था।.
- चौकीदारी कर का विरोध- उन्होंने चौकीदारी कर के विरोध में भी सक्रिय रूप से भाग लिया, जो ग्रामीणों पर लगाया जाता था ताकि पुलिसकर्मियों को जासूस के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।.
- पुलिस लाठीचार्ज में घायल होना- 1933 में सेरामपुर में एक कांग्रेस सम्मेलन के दौरान पुलिस लाठीचार्ज में मातंगिनी गंभीर रूप से घायल हो गईं।.
- गवर्नर के विरोध में काला झंडा फहराना- 1933 में बंगाल के गवर्नर सर जॉन एंडरसन की यात्रा के दौरान, मातंगिनी ने उनके विरोध में काला झंडा फहराया, जिसके लिए उन्हें छह महीने की जेल हुई।.
- भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिका- 1942 में, मातंगिनी ने भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और तामलुक में एक समानांतर सरकार की स्थापना में शामिल रहीं।.
- शहादत- 29 सितंबर 1942 को, तमलुक पुलिस स्टेशन पर कब्जा करने के लिए एक जुलूस का नेतृत्व करते समय मातंगिनी हाजरा को पुलिस ने गोली मार दी, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूती दी।.
मातंगिनी हाजरा के जीवन में चुनौतियाँ
मातंगिनी हाजरा के जीवन में कई चुनौतियाँ आईं, जिन्होंने उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को प्रभावित किया। यहाँ कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं-
- आर्थिक चुनौतियाँ- मातंगिनी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, जिससे उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला। उनके पिता की आर्थिक स्थिति खराब थी, जिसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।.
- बाल विवाह और विधवापन- मातंगिनी का विवाह 12 वर्ष की आयु में हुआ और 18 वर्ष की आयु में वे विधवा हो गईं। उनके पति से उम्र में काफी बड़े थे, जिससे उनका जीवन और भी कठिन हो गया।.
- सामाजिक चुनौतियाँ- विधवा होने के बाद, मातंगिनी को समाज में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने पति के परिवार से भी अलगाव का सामना करना पड़ा।.
- राजनीतिक और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी- जब मातंगिनी ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना शुरू किया, तो उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया। 1933 में गवर्नर एंडरसन के विरोध में काला झंडा फहराने पर उन्हें छह महीने की जेल हुई।.
- शारीरिक चुनौतियाँ- 1933 में एक पुलिस लाठीचार्ज में मातंगिनी गंभीर रूप से घायल हो गईं। इसके बावजूद, उन्होंने अपने संघर्ष को जारी रखा।.
- अंतिम बलिदान- 29 सितंबर 1942 को, तमलुक पुलिस स्टेशन पर कब्जा करने के लिए एक जुलूस का नेतृत्व करते समय मातंगिनी को पुलिस ने गोली मार दी, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। यह उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी, जिसे उन्होंने निडर होकर स्वीकार किया।.
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