प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम सिंधु घाटी सभ्यता बारे में जानने का प्रयास करेंगे तथा हाल ही में हुये इस सभ्यता पर शोध के बारे में जानकारी साझा करेंगे।.सिंधु घाटी सभ्यता (Sindhu Ghati Sabhyata)जो विश्व की सबसे प्राचीन शहरी सभ्यताओं में से एक थी,का पतन एक जटिल और विवादास्पद विषय है। इतिहासकार और पुरातत्व वैज्ञानिक इस सभ्यता के अंत के कारणों पर अभी भी शोध और चर्चा कर रहे हैं। लगभग 1900 ईसा पूर्व के आसपास इस अद्भुत सभ्यता के पतन को समझाने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं। हाल ही में कुछ वैज्ञानिकों ने यह दावा कि है कि इस सभ्यता का अन्त परमाणु विस्फोट के कारण हुआ था। अतः उपरोक्त दावों के कारण यह सभ्यता वर्तमान समय में चर्चा का विषय है।अब देखना यह है कि वैज्ञानिकों का यह दावा कितने प्रतिशत मानकों पर सही सिद्ध होता है।.हांलाकिं इससे पहले भी वैज्ञानिकों ने अपने बहोत से अनुमान प्रस्तुत किये परन्तु अभी तक कोई भी सही नतीजे पर नही पहुंच पाये। उनके द्वारा किये कुछ महत्वपुर्ण दावों को निम्नवत प्रस्तुत किया गया है।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय कारण
नदियों का मार्ग बदलना सरस्वती नदी,जिसे इस सभ्यता का मुख्य जल स्रोत माना जाता है, के सूखने से कृषि और प्रवास पर गहरा प्रभाव पड़ा। सूखा साक्ष्यों से पता चलता है कि लंबे समय तक सूखे और मानसून की कमी ने खेती और जल की उपलब्धता को बाधित किया। बाढ़ कुछ विद्वानों का मानना है कि अचानक और भीषण बाढ़ ने शहरों को नष्ट कर दिया और क्षेत्रों को रहने योग्य नहीं छोडा।सिंधु घाटी सभ्यता आंतरिक व्यापार और मेसोपोटामिया जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापार पर निर्भर थी। व्यापार मार्गों या संसाधनों में व्यवधान ने अर्थव्यवस्था को कमजोर किया और शहरी पतन को तेज किया।युद्ध या आक्रमण के प्रमाण बहुत कम हैं,लेकिन आंतरिक सामाजिक या राजनीतिक संघर्षों ने शहरी केंद्रों और प्रशासन को कमजोर कर दिया होगा।शुरुआती सिद्धांतों में यह कहा गया कि इंडो-आर्यन जातियों ने इस क्षेत्र में आकर या आक्रमण कर इस सभ्यता का पतन किया। हालांकि, यह विचार अब कम मान्य है,क्योंकि बड़े पैमाने पर आक्रमण या हिंसक संघर्ष के पर्याप्त पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिले हैं।
5. शहरी क्षय और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग,वनों की कटाई,और मिट्टी के क्षरण ने क्षेत्र को बड़ी आबादी के लिए अनुपयुक्त बना दिया होगा।1.मोहनजो-दड़ो और हड़प्पा जैसे शहरों का परित्याग। 2.मानकीकृत वजन,मुद्राएँ,और शहरी नियोजन का पतन। 3.शहरी क्षेत्रों से छोटे,ग्रामीण समुदायों में बदलाव।यह संभावना है कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन किसी एक कारण के बजाय इन सभी कारणों के संयोजन से हुआ। इसका अंत सभ्यता के शहरी चरण से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप में वैदिक संस्कृति के उदय की ओर संक्रमण को दर्शाता है।सिंधु घाटी सभ्यता पर हाल के समय में हुए विभिन्न शोध और तकनीकी अध्ययनों ने इस प्राचीन सभ्यता के बारे में नई और महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। वैज्ञानिक और पुरातात्विक तरीकों ने इसके उदय,विकास और पतन के कारणों को समझने में मदद की है। नीचे कुछ प्रमुख तकनीकी शोधों और उनके निष्कर्षों का विवरण दिया गया है
1.जैव-तकनीकी विश्लेषण (Bio-archaeology)डीएनए अध्ययन- हाल के डीएनए विश्लेषणों ने सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के आनुवंशिक इतिहास पर प्रकाश डाला है। यह पाया गया है कि इन लोगों का आर्यों के आगमन से पहले के स्थानीय निवासियों के साथ गहरा संबंध था।कृषि और खाद्य आदतें-अनाजों और बीजों के अवशेषों का अध्ययन करके पता चला है कि सिंधु घाटी के लोग जौ, गेहूं और चावल की खेती करते थे।2.पानी और पर्यावरण पर शोधनदी का प्रवाह- सैटेलाइट इमेजरी और भूवैज्ञानिक अध्ययन ने सरस्वती और घग्गर-हकरा नदी के सूखने की प्रक्रिया का अध्ययन किया। इसने पुष्टि की कि जल स्रोतों के सूखने ने इस सभ्यता को गंभीर रूप से प्रभावित किया।जलवायु परिवर्तन- वैज्ञानिक अनुसंधानों ने संकेत दिया है कि मानसून की कमी और लंबे समय तक सूखा सिंधु घाटी सभ्यता के पतन में एक प्रमुख कारण हो सकता है।3.शहरी संरचना का विश्लेषण सिंधु घाटी के शहरों की योजनाओं का अध्ययन आधुनिक तकनीकों जैसे 3D मैपिंग और लेजर स्कैनिंग से किया गया। इससे पता चला कि जल निकासी और शहरी नियोजन में ये लोग बहुत उन्नत थे।यह भी पाया गया कि इनके घरों और सड़कों का निर्माण प्राकृतिक आपदाओं (जैसे बाढ़) से बचाव के लिए किया गया था।
4.मुद्राओं और लेखन पर शोध सिंधु लिपि को डिकोड करने के लिए AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि अभी तक इसे पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है,लेकिन इसमें व्यापार और धार्मिक गतिविधियों का विवरण होने की संभावना जताई गई है।5.रेडियोकार्बन डेटिंग और भूवैज्ञानिक साक्ष्य-सिंधु घाटी के स्थलों पर मिली वस्तुओं की रेडियोकार्बन डेटिंग से पता चला कि यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व में शुरू हुई और 1900 ईसा पूर्व तक अपने शिखर पर थी।नए शोधों ने यह भी दिखाया कि इस सभ्यता का प्रभाव आसपास के क्षेत्रों जैसे गुजरात,राजस्थान और महाराष्ट्र तक फैला हुआ था।6.व्यापार और अंतरराष्ट्रीय संपर्क-हाल की खुदाइयों और समुद्री मार्गों के अध्ययन से यह पता चला है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मेसोपोटामिया,फारस,और मध्य एशिया के साथ व्यापार करते थे। उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली मुद्राएँ और वस्तुएं इन क्षेत्रों में भी पाई गई हैं।तकनीकी शोध ने यह स्पष्ट किया है कि सिंधु घाटी सभ्यता एक अत्यधिक उन्नत और जटिल समाज थी। इसका पतन एक ही कारण से नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन,आर्थिक संकट,और सामाजिक परिवर्तन जैसे कई कारकों के संयोजन से हुआ। इस पर शोध अभी भी जारी है,और नई तकनीकों के माध्यम से हमें और भी गहरी जानकारी मिलने की संभावना है।सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता एक ही सभ्यता के दो नाम हैं। इन दोनों में कोई अंतर नहीं है,बल्कि ये एक ही सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपरा का वर्णन करते हैं। इनके बीच का संबंध निम्नलिखित है।
सिंधु घाटी सभ्यता- यह नाम इस सभ्यता के प्रमुख स्थान, सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों (जैसे रावी,झेलम,सतलुज,चिनाब) के आस-पास विकसित होने के कारण दिया गया है।हड़प्पा सभ्यता-इसका नामकरण इस सभ्यता के पहले खोजे गए प्रमुख स्थल हड़प्पा (जो अब पाकिस्तान में है) के आधार पर हुआ है। 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खुदाई के दौरान इस सभ्यता के अवशे ष खोजे थे।2. स्थान और विस्तारयह सभ्यता केवल हड़प्पा तक सीमित नहीं थी, बल्कि सिंधु नदी के पूरे क्षेत्र और उसकी सहायक नदियों के आसपास फैली हुई थी।इसके प्रमुख स्थल हड़प्पा,मोहनजो-दड़ो,कालीबंगन,लोथल,धोलावीरा,राखीगढ़ी और चन्हुदड़ो थे।
शहरी नियोजन-दोनों नामों के तहत,इस सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता उन्नत शहरी नियोजन, पक्की ईंटों के घर,जल निकासी प्रणाली और सुव्यवस्थित सड़कें हैं।लेखन प्रणाली-हड़प्पा और सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को आज तक पूरी तरह से समझा नहीं गया है,लेकिन इनकी मुद्राओं पर यह लिपि देखी जाती है।कृषि और व्यापार-दोनों नामों के तहत इस सभ्यता में कृषि (गेहूं, जौ) और व्यापार (मेसोपोटामिया के साथ) को महत्वपूर्ण माना गया है।4.समय अवधिदोनों नाम एक ही समय अवधि को संदर्भित करते हैं,जो लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक फैली थी।इसे तीन चरणों में बांटा गया है- प्रारंभिक हड़प्पा काल,परिपक्व हड़प्पा काल और उत्तर हड़प्पा काल।.
ताज़ा खबर के मुताबिक
5 जून 2024 में प्रकाशित एक लेख रचयिता माइकल मोराह द्वारा इस खबर को प्रकाशित किया जाता है कि पाकिस्तान के दक्षिणी क्षेत्र में जब मोहनजोदड़ों सभ्यता के एक कंंकाल को निकाल कर,उसकी जांच कि गयी तो पता चला कि उस कंकाल में सामान्य मात्रा से भी अधिक रोडियो अक्टीविटी पायी गयी जीसने लोगो को चौंका दिया। जिसके चलते खुदाई में मिले अन्य कंकालों की भी जांच कि गई जिससे पता चला कि इन मानवो की मौत कुछ सेंकड में ही हुयी होगी इसके अलावा मिट्टी के कुछ ऐसे बिघले हुये बर्तन मिले है जो 4000 फरनहाइट तापमान के बिना संभव ही नही हो सकता। अतः वैज्ञानिक इस निष्कर्श पर पहुंचे है कि सिंधु घाटी सभ्यता पर परमाणु हमला हुआ था।.हालांकि उस समय तक परमाणु बम कि खोज नही हुयी थी जिसके कारण इसे एक परिग्रह जिवीयो के हमले के रुप में देखा जा रहा है।हलांकि भारत में इस घटना को पौराणिक रुप भी दिया गया है जिसमें विशेषयज्ञोंं द्वारा यह दावा किया गया है कि यह उस समय काल के बहुप्रचलित अस्त्र ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से हुआ विनाश हो।.
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