प्रस्तावना
प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम क्रांतिकारी नेता लाला हरदयाल के जीवन तथा उनके द्वारा किये गये महत्वपुर्ण कार्यों को बारे में चर्चा करेंगे।लाला हरदयाल सिंह माथुर का जन्म 14 अक्टूबर 1884 को हुआ।. भारतीय क्रांतिकारी विद्वान थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह दिल्ली में जन्मे थे और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैम्ब्रिज मिशन स्कूल और सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से प्राप्त की और बाद में पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर डिग्री प्राप्त कीं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन की।
क्रांतिकारी के रुप में
लाला हरदयाल ने गदर पार्टी की स्थापना की थी, जो 15 जूलाई 1913 में भारतीय प्रवासियों द्वारा अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में बनाई गई। इस क्रांतिकारी पार्टी मुख्य कार्य, ब्रिटिश साम्राज्य के कृत्रिम, अस्तित्व और आक्रमण की योजनाबद्ध हरकत पर नजर रखना था।. हरदयाल ने गदर पार्टी के माध्यम से प्रवासी भारतीयों को संगठित किया और उन्हें भारत की आज़ादी के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 'हिंदुस्तान गदर' नामक एक समाचार पत्र का संपादन भी किया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ लेख प्रकाशित करता था।. उन्होंने अंग्रेजो के ICS के बद को ठुकरा दिया जिसे वर्तमान समय में हम IAS के नाम से जानते है।.
व्यक्तिगत जीवन और शिक्षा
हरदयाल का परिवार न्यायिक पृष्ठभूमि से था,उनके पिता गौरी दयाल माथुर जिला अदालत में कार्यरत थे। उनकी पत्नी का नाम सुन्दर रानी था और उनके एक पुत्री भी थे।.लाला हरदयाल ने अपने जीवन के अधिकांश वर्ष विदेशों में बिताए,जहाँ उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कई भाषाओं में लेखन किया और अपने विचारों को फैलाने के लिए व्याख्यान दिए।.
बचपन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
इनका पुरा नाम लाला हरदयाल सिंह माथुर था। इनका का जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली में हुआ। उनका परिवार मध्यम वर्गीय था,और उनके माता-पिता ने उन्हें सदैव शिक्षा के महत्व को समझाया। बाल्यकाल से ही वह बुद्धिमान और जिज्ञासु स्वभाव के थे। उनके पिता,गोपाल सिंह,एक सरकारी कर्मचारी थे और माता भद्रवंती ने उन्हें नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी।
शिक्षा और बौद्धिक विकास
लाला हरदयाल सिंह ने प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में प्राप्त की। उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा और गहरी समझ के कारण अध्यापकों को प्रभावित किया। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में प्रवेश लिया,जहां उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इसके बाद,उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी,इंग्लैंड में पढ़ाई की,जहां उन्होंने अपनी बौद्धिकता को और विस्तार दिया।लाला हरदयाल का अध्ययन न केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित था,बल्कि उन्होंने विभिन्न विषयों में गहन ज्ञान अर्जित किया,जैसे कि दर्शन,राजनीति और इतिहास। उनका मानना था कि शिक्षा ही किसी भी समाज को बदलने का सबसे प्रभावी साधन है।
लेखन और बौद्धिक कृति
लाला हरदयाल सिंह ने कई लेख और किताबें लिखीं, जिनमें भारतीय संस्कृति,धर्म और राजनीति पर गहन विचार प्रस्तुत किए। उनकी प्रमुख कृतियों में "Hints for Self-Culture" विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसको अलावा उनकी लिखी किताबे संघर्ष और सफलता,आत्मसंस्कृति के संकेत,विश्व धर्म की झलक, बोध्दिसत्व सिद्धांत,युगांतर सर्कुलर,राजद्रोही प्रतिबंधित साहित्य,स्वाधिन विचार,अमृत में विष थी इसके साथ ही उनकी कुछ अंग्रेजी किताबों के संस्करण जैसे Thought's on Education, Social context of Hindu race, Writing on Hardayal, 44 month in Jrmani and Tarky, Hint's of the self culture प्रमुख थीं।.
विचारधारा और प्रेरणा
उनके लेखन का उद्देश्य लोगों को आत्मनिर्भरता,शिक्षा और राष्ट्रीयता के प्रति जागरूक करना था, उसी संदर्भ में न केवल उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया,कि कैसे वे समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकते हैं।.
विदेश में करी यात्रा और अमेरिका में योगदान
विदेशों में भारतीय समुदाय के बीच प्रभाव
मृत्यु
लाला हरदयाल का असामयिक निधन 4 March 1939, Philadelphia, अमेरिका में हुआ। उनकी मौत उनका दिल अचानक बंद होने से हुई,और उस समय उनकी उम्र मात्र 54 वर्ष ही थी। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके कार्यो के माध्यम से याद किया जाता है।.
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