प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम भारत के महान क्रांतिकारी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के बारे में बात करेंगे वे भारत के महान नागरिक होने के साथ ही सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजे गये है, जिन्हें आमतौर पर राजाजी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी, वकील और लेखक थे। वे भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल रहे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता थे।
प्रारंभिक जीवन
राजगोपालाचारी का जन्म जन्म10 दिसंबर 1878 को तमिलनाडु के सलेमपुर जिले के थोरापल्ली गांव में हुआ था। वे गांधी जी के समधी थे क्योंकि उनकी बेटी का विवाह,गांधी जी के बेटे देवदास गांधी से हुआ था। उनकी बेटी का नाम लक्ष्मी था। उनकी पत्नी का नाम अलामेलु मंगम्मा था। वे मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ दिक्षणी भारत में कांग्रेस पार्टी के मुख्य नेता थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा होसूर में प्राप्त की और बाद में बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने मद्रास (अब चेन्नई) के प्रेसिडेंसी कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की और सालम में अपने कानूनी करियर की शुरुआत की।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
1939 में ब्रिटीश सरकार और कांग्रेस पार्टी में मतभेद के चलते,कांग्रेस सरकार की हर क्षेत्र की सरकार के भंग कर दिया गया। बताते चले इसी समय द्वितीय विश्व युद्ध भी प्रारम्भ हुआ था। अतः सरकार गिरने के कारण राजगोपालाचारी को त्यागपत्र देना पड़ा। अतः ब्रिटीश सरकार ने भारत को आज़ाद करने के लिए भारतीयों से पुर्ण समर्थन की मांग की जिसके पक्ष में श्री राजगोपालाचारी जी थे वहीं कांग्रेस उन्हे से सिर्फ नैतिक समर्थन देना चाहती थी। अतः इस बात को लेकर गांधी जी भी राजगोपालाचारी के खिलाफ खड़े हो गये है। यह मतभेद इतने बढ़ गये की राजगोपालाचारी ने कांग्रेस से अपना त्यागपत्र दे दिया। अपने इस निर्णय से राजगोपालाचारी को काफी विरोध सहना पड़ा कांग्रेस ही नही बल्कि आम जनता ने भी उन्हे खरीखोटी सुनायी,मगर उन्होने इसका रत्ती भर भी न तो विरोध किया और न ही अफसोस किया।. राजाजी ने 1917 में सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में कई आंदोलनों में भाग लिया, जैसे कि रॉलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन,असहमति आंदोलन, वैकोम सत्याग्रह और सिविल नाफरमानी आंदोलन। उन्होंने 1930 में वेदरण्यम नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसके लिए उन्हें छह महीने की सजा सुनाई गई।1942 में भारत छोड़ो अन्दोलन के चलते सभी क्रांतिकारीयों के साथ जेल जाना पड़ा।.
संविधान निर्माण में भूमिका
राजाजी को संविधान सभा का सदस्य चुना गया, जहां उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता और नागरिकता जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
बाद के योगदान
1946 में ब्रिटीश सरकार की अंतरीम सरकार बनी जिसके चलते उन्हे भारत की केन्द्र सरकार ने उद्योग मंत्री बनाया।.1947 स्वतंत्रता के बाद भारत की स्वसंत्र सरकार ने पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया, राजाजी ने 1948 से 1950 तक भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया। इसके बाद, वे 1952 से 1954 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य भाषा बनाने का निर्णय लिया, जो विवाद का कारण बनी।राजाजी ने स्वातंत्र पार्टी की स्थापना की, जो नेहरू की नीतियों का आलोचनात्मक उत्तर देने के लिए बनाई गई थी। उन्होंने 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, से सम्मानित किया। उन्हे भारतीय राजनीति का चाणाक्य कहा जाता था।. वे भारत रत्न पाने वाले पहले व्यक्ति थे। 1958 में चक्रवर्ती तिरुमगन नामक (तमिल) रचना के लिए तामिल साहित्य आकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।.स्वराज्य नामक समाचार पत्र में उनके लेख सदैव प्रकाशित होते रहते थे।
लेखन और विचार
राजाजी एक महान लेखक थे और उनके कई महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिसमें महाभारत और रामायण का अंग्रेजी में पुनः लेखन शामिल है। उनका जीवन और विचार आज भी भारतीय राजनीति और समाज पर प्रभाव डालते हैं।राजाजी का निधन 94 वर्ष 25 दिसंबर 1972 को मद्रास में हुआ। उन्हें भारतीय राजनीति में उनके योगदान और विचारों के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
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