प्रस्तावना
प्रस्तुत
लेख में चौसा के युद्ध के बारे
में एवं इस घटना से सम्बन्धित
महत्वपुर्ण तत्थ्यों के बारे
में चर्चा करेंगे।.इसके
साथ ही हम जीटी रोड़ तथा इसके
इतिहास के बारे में एवं इस
घटना के मुख्य पात्र हुमायूं
और शेरशाह सूरी और इनकी याद
नें बाने हुमायूं के मकबरे
एवं शेरशाह सूरी के मकबरे के
निर्माण कर्ता के बारे में
चर्चा करेंगे।.
घटना से संबन्धित महत्वपुर्ण तथ्य
- 2011 में जब पुरात्व विभाग ने बिहार के बक्सर जिले खोदाई कि,खुदाई के दौरान 5000 वर्ष से भी पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले है।.खोदाई में मिले मृदभाण्ड,मुर्तीयों के अवशेषों का शोध करने पर पता चला कि यह जैल धर्म से सम्बधित है जोकि पालवंश से लेकर गुप्तवंश के समयकाल के हैं। इसके साथ ही गुप्तकाल के समय कि टेराकोटा की छोटी-बड़ी मूर्तियां प्राप्त हुई।
- इस युद्ध के बाद जलाल खाँ को शेरशाह ने बंगाल भेजकर बंगाल पर अधिकार कर लिया।
- चौंसा के युद्ध में शेरशाह कि मदत उज्जैनिया राजपुत भोजपुर,गौतम राजपुतों ने कि थी।
- चौंसा के युद्ध के पहले शेरशाह का नाम फरीद अलद्दीन था ताज पहने का बाद उसने शेरशाह कि उपाधि धारण की।
- चौंसा के युद्ध के बाद शेरशाह ने दिल्ली पर 1555 तक शासन किया। बताते चले कि शेर खाँ के बेटे शेरशाह एक अफगानी शासक था।
- वर्तमान समय चौंसा कि युद्ध स्थली पर शेरशाह मिनी म्युजियम गैलरी का निर्माण कराया गया है।.शेरशाह से बचने के लिए हुमांयू गंगा नदी ने कुद गया मगर पानी का बहाव तेज होने के कारण जब वह नदी में डूबने लगा था तब क्षेत्र के मूल निवासी भिस्ती निजामुद्दीन ने एक चमड़े के थैले कि सहायता से उसकी जान बचाई।.जिसके बदले में हुमांयू ने उसे एक दिन का नवाब बनाया था।.अजमेर में भिस्ती निजामुद्दीन सक्का की मजार है।.जिस पर आज भी भिस्ती अब्बासी समाज के लोग चदार पोशी करते है।.
चौसा का युद्ध
यह
युद्ध सुर साम्राज्य के शासक
शेरशाह सूरी और मुगल साम्राज्य
के शासक हुमायूं के माध्य 26
जून
1539
को
बिहार के बक्सर जिले के चौसा
नामक स्थान पर हुआ था।.यह
स्थान बक्सर से 10
मील
दक्षिण-पश्चिम
में स्थित है।.बताते
चले कि हुमायूं,मुगल
बादशाह बाबर का एकलौता बेटा
था।.वहीं
शेरशाह सूरी एक अफगानी शासक
था जिसे भौजपुर के उज्जैनीयां
राजपुत और गौतम राजपुतों ने
भारत बुलाया था इन्होंने ही
चौंसा के युद्ध में शेरशाह
सूरी की साहयता कि थी।.बताया
जााता है कि हुमायूं विलासिता
पुर्ण जीवन जीने का आदि था।
जिसके लिए उसने बंगाल प्रांत
को अपने उच्च अधिकारियों के
बीच जागीरों के रुप ने विभाजित
किया और स्वयं अपने ऐशों आराम
में लिप्त हो गया।.अतः
जल्द ही शेरशाह भारत आया और
भारत की देशी रियासतों पर अपना
अधिकार स्थापित करना प्रारम्भ
किया।.परिणामस्वरुप
शेरशाह ने आगरा पर अपना शासन
स्थापित किया और आगरा पर हुमायूं
के अधिकारों को समाप्त कर
दिया।.अतः
हुमायूं को जब इस घटना के बारे
में पता चला तो उसने जी.टी.
रोड़
के
माध्यम से आगरा को घेरने का
प्रयास किया।.
जी.टी. रोड़
इस
रोड़ का पुरा नाम Grand
Trunk Road हैं।.यह
एशिया महाद्विप कि सबसे प्रचीन
और लम्बी रोड़ है। इस सड़क को
शेरशाह सूरी मार्ग भी कहते
है।.यह
म्यांमार की सीमा पर टेकनाफ
से पश्चिम में अफगानिस्तान
के काबुल तक 3,655
किलोमीटर
तक फैला हुआ है।.यह
रोड़ मुख्यतः बांग्लादेश के
चटगाँव से लेकर ढाका,भारत
के कोलकत्ता,कानपुर,अलीगढ़,दिल्ली,आमृतसर
और पाकिस्तान और पेशावर से
होकर गुजरता है।.इस
प्राचीन राजमार्ग का निर्माण
तीसरी शताब्दी इसा पुर्व
उत्तरापथ नामक प्राचीन राजमार्ग
के रुप में किया गया था।.इस
सड़क के निर्माण में सम्राट
अशोक,शेरशाह
सुरी और महमूद शाह दुर्रानी
का महत्वपुर्ण हाथ रहा है।.अशोक
द्वारा इसका पुनः निर्माण
कराया गया। शेरशाह ने सड़क
का विस्तार करते हुए सोनारगाँव
और रोहतांस तक विस्तरित किया।
यही से रोहतांग दर्रा प्रारम्भ
होता है।.इसके
बाद ब्रिटीश सरकार ने इसका
पुनः निर्माण कराया था।.यह
रोड़ आज भी भारतीयों के विदेशी
व्यापार का महत्वपुर्ण अंग
है।.
अतः
हुमायूं के आगरा हमले के दौरान
शेरखान,'हुमायुं'को
गंगा नदी के उस पार दक्षिणी
तट पर ले जाने में सफल रहा।.दोनों
सेनाएं पुरे तीन महीने तक
आमने-सामने
डेरा डाल कर पड़ी रही।.
इसी
बीच बरसात का मौसम आ गया और
गंगा नदी में बाढ़ आ गयी।.मौके
का फायदा उठा कर शेरशाह की
सेना ने मुगलों पर आक्रमण कर
दिया।.गौरिल्ला
युद्ध प्रणाली के माध्य से
आक्रमण किया गया।.बाढ़
के कारण लगभग 5000
सैनिक
बाढ़ में बह गये और बाकी को
शेरशाह की सेना ने मौत के घाट
उतार दिया।.परिणामस्वरुप
हुमायूं कि युद्ध में हार
हुयीं।.अपनी
जान बचाने के लिए हुमायूं गंगा
नें कुद गया परन्तु अपनी जान
बचाने के प्रयास में गंगा में
बाढ़ आने के कारण नदी में डूबने
लगा।.अतः
चौसा निवासी निजामुद्दीन
भिस्ती ने नाव कि सहायता से
हुमायुं कि जान बचाई।.इसके
बाद हुमायूं हिन्दुस्तान की
सरहदों को छोड़कर ईरान भाग
गया।.दुसरी
तरफ शेरशाह सूरी ने दिल्ली
शासन पर आसित होते ही अपने
वफादार जलाल खाँ को बंगाल
भेजकर,बंगाल
पर अपना शासन स्थापित किया।.हुमायूं
ने शेरशाह कि मौत तक हिन्दुस्तान
की तरफ आने कि हिम्मत न कि मगर
शेरशाह कि बिमारी से मौत होने
के कारण हिमायूं भारत आया और
अपना शासन स्थापित किया।.शेरखान
का प्राचीन नाम शेरखान फरीद
अलद्दीन था मगर शासन पर अपना
अधिपत्य स्थापित करने के बाद
उसने शेरशाह सूरी की उपाधि
धारण कि।.हिमायूं
ने अपनी जान बचाने के बदले में
निजामुद्दीन भिस्ती को एक
दिन का नवाब घोषित किया था।
अपने शासन काल के दौरान
निजामुद्दीन भिस्ती ने अपने
नाम के चमड़े के सिक्के जारी
करवाये।.अजमेर
में आज भी निजामुद्दीन कि
सक्का कि मजार है जिस पर आज भी
भिस्ती अब्बासी समाज के लोग
चादरपोशी करते है।.
हुमांयू का मकबरा
भारतीय
मुुगल वास्तुकला सर्वप्रथम
उदाहरण है जिसके कारण यह
यूनेस्को कि विश्व धरोहर की
सूची में शामिल है जोकि दिल्ली
के दीनपाह यानि पुराने किले
के निकट निज़ामुद्दीन के पूर्व
क्षेत्र में मथुरा के निकट
स्थित है।.
इस
मकबरे में हमांयू की कब्र के
अलावां अन्य राजसी परिवार के
लोगों कि कब्रें भी है।.मकबरे
के निर्माण में चारबाग शैली
का प्रयोग किया गया है यह वहीं
शैली है जिसका प्रयोग ताजमहल
निर्माण कार्य में भी किया
गया था।.1562
में
इस मकबरे का निर्माण हमीदा
बानों बेगम के आदेश पर करवाया
गया था। हमीदा बानों हुमांयू
कि विधवा थी।.इतिहासकार
अब्द-अल-कादिर
बदांयुनी के अनुसार मकबरे के
निर्माण के लिए अफगानिस्तान
के हैरात शहर के मशहुर कारिगर
को बुलाया गया था।.
कारिगर
का नाम मिराक मिर्जा घुइयाथुद्दीन
था इन्होंने तथा इनके बेटे
मिराक घुइयाथुद्दीन ने अपने
कौशल का परिचय देते हुए,इस
मकबरे का निर्माण किया।.
भारत
में पहली बार किसी इमारत के
निर्मण में अधिक पैमाने पर
लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया
गया था।.1993
में
इसे यूनेस्कों की विश्व धरोहर
कि सूचि में शामिल किया गया।.बेगम
हमिदा बानों कि मौंत के बाद
उनकी भी कब्र इसी मकबरे में
बनाई गयी।.इन
दो कबरों के अलावा इस मकबरे
में शाहजहां के बड़े बेटे दारा
शिकोह,सम्राट
जहांदर शाह,फर्रुखशीयर
रफी,उल-दर्जत,रफी
उद-दौलत
एवं आलमगीर द्वितीय आदि की
कब्रे यहां स्थित है।.इतिहास
को खंगालने पर हमें यह पता चला
कि हुमांयू के मकबरे का निर्माण
हुमांयू के मकबरे का निर्माण
हुमांयू कि मौत के 9
वर्ष
बाद बेगन 1565
में
हमीदा बानों के आदेश पर करवाया
गया था उस समय काल में इसकी
लागत 15
लाख
रुपये आयी थी।.20
जनवरी
1556
में
हुमांयू कि मौत के बाद सर्वप्रथम
उसे दिल्ली में दफनाया गया
था। फिर 1557
में
खजंरबेग द्वारा उसे पंजाब के
सरहिंद में ले जाया गया।.1571
में
सम्राट अकबर ने अपने पिता कि
समाधि को देखा।.
मकबरे में कब्र बनाने कि परम्परा
मकबरे
में कब्र बनाने कि परम्परा
हुमांयू के पिता बाबर के समय
काल से अपनाई गयी।.इसी
समय काल में ही बाग में कब्र
बनाने कि परम्परा को भी चलन
में लाया गया।.इसका
चलन तैमुरलंग की कब्र से प्रारंभ
हुआ जोकि उज्बेकिस्तान समरकंद
में बनी है।.इस
प्रकार यह परम्परा ताजमहल के
निर्माण कार्य तक जारी रही।.बताते
चले कि ताजमहल में शाहजहां
कि प्रिय बेगम मूमताज बानो
की कब्र है।.ताजमहल
का निर्माण सफेद संगमरमर के
पत्थर से किया गया है ताजमहल
के वास्तुकार का नाम उस्ताद
अहमद लाहौरी था।.
शेरशाह सूरी का मकबरा
इसे
भारत का दुसरा ताजमहल भी कहा
जाता है यह बिहार के सासाराम
जिले में अवस्थित है।.सासाराम
में अवस्थीत यह मकबरा पर्यटकों
के लिए आर्कषण का मुख्य केन्द्र
है।.बताते
चले कि शेरशाह ने भारत में
मुगल साम्राज्य को हराया था
तथा उत्तर भारत में सूरी
साम्राज्य की स्थापना कि थी।
1998
में
इसे यूनेस्कों कि विश्व धरोहर
कि सूची में शामिल किया गया।.मकबरे
का निर्माण 13
मई
1545
ई0
को
प्रारम्भ हुआ इसी बिच कालिंजर
के किले में एक आकस्मिक बारुद
विस्फोट के कारण शेरशाह सूरी
कि मौत हो गई।.अतः
16्अगस्त
1545
में
मकबरे का निर्माण कार्य पुर्ण
होने के बाद इसमें शेरशाह कि
कब्र बनाई गयी। यह मकबरा
इंडों-इस्लामिक
वास्तुकला का एक उदाहरण है।.इस
मकबरे का निर्माण वास्तुकार
मीर मुहम्मद अलीवाल खान द्वारा
किया गया।.यह
मकबरा शेरशाह के बेटे इस्लाम
शाह के शासनकाल में बनाया गया
था।.अतः
कभी-
कभी
इतिहासकारों को भ्रम होता है
कि मकबरे का निर्माण इस्लाम
शाह ने किया था।.
मकबरे कि रुप रेखा
मकबरा
एक वर्गाकार पत्थर के किनारे
और चबूतरे के चारों ओर सीढ़ीदार
है।.यह
पत्थर के पुल के माध्यम से
मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है।
मुख्य मकबरे का निर्माण
अष्टकोणिय परियोजना के आधार
पर किया गया है। इस के बिच 22
मिटर
ऊंचा एक गुंबद है चारों ओर
सजावटी रुप में गुंबरदार टाईल
है जौ कभी रंगीन चमकदार टाइल
के रुप में शामिल थे।.यह
लाल बलुआ पत्थर जो लगभग 122
फुट
ऊंचा है जोकि कृत्रिम झील के
बीचो-बिच
एक वर्गाकार पत्थर के चबुतरे
पर झील के केन्द्र में खड़ा
है।.
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