9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: मीर जाफर

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मंगलवार, 4 जून 2024

मीर जाफर

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 प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम बंगाल के नवाब के सेनापति मीर जाफर के बारे में चर्चा करने जा रहे है इसके साथ ही हम बंगाल में नवाब को लेकर हुए ग्रह युद्ध कि चर्चा करेंगे।.1756 में हुई The Block Hole Tragedy के प्रमाणन पर चर्चा करेंगे।.

मीर जाफ़र 

मीर जाफ़र का पुरा नाम मीर मोहम्मद जाफ़र खां बहादुर था।.इनका जन्म 1691 में हुआ था।. प्रारम्भ में यह अलीवर्दी खां कि सेना का कमांडर था।.British conquest and Dominion of India  किताब के लेखक Sir Penderel Moon अपनी किताब में लिखते है कि रोबर्ट क्लाइव 27 जून को मुर्शिदाबाद पहुंच जाना था लेकिन उन्हे मीर जाफर द्वारा अगाह किया गया की उन्हे जान से मारने की साज़ीश रची जा रही है जिसकी वजह से राबर्ट क्लाइव 29 जून को शहर में दाखिल हुआ।.किताब में यह भी दर्शाया गया है कि राबर्ट क्लाइव का स्वागत मीर जाफर ने शहर के मुख्य द्वारा पर ही किया।.रोबर्ट क्लाइव ने मीर जाफर को मस्तक पर बिठाया और कहां कम्पनी बंगाल पर मीर जाफर के शासन मे किसी तरह का हस्तक्षेप नही करेगी बस व्यापारीक मामलों पर कम्पनी की नजर रहेगी।.अपको बताते चले कि मीरजाफ़र बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था। जिसने 2 जून 1757 में प्लासी के युद्ध में अपने नवाब का साथ न देकर, नवाब के प्रतिद्वंदि राबर्ट क्लाइव का साथ दिया था मीर जाफ़र को भारत का गद्दार और देशद्रोही के नाम से भी जाना जाता है। भारत में कई वर्षो तक यह प्रथा रही की कोई भारत में अपने बच्चे का नाम जाफ़र नही रखता था। राबर्ट क्लाइव ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने वादा किया था।.

सैयद रजा अली मिर्जा

सोर्स new18 12/01/2024
मीरजाफर के वशंज सैयद रजा अली मिर्जा का कहना है कि अगर वे देश द्रोही होते तो शायद आज उस क्षेत्र में अन्य कोई नही रह पाता।.new18 लेख के मुताबिक बेशक उनके अन्दर गद्दी को पाने का लालच था मगर वो देश द्रोही नही थे। सैयद रजा अली मिर्जा वर्तमान समय में मुर्शीदाबाद में रहते है एक समय था कि जब मुर्शिदा बाद के नवाब शान-ओ-शौकत से रहते थे। वे जब कभी कही जाते तो सदैव हाथी,घोड़ा और सेना को साथ लेकर चलते थे लेकिन आज उनका एक मात्र साथी साइकिल है। उन्हे आज भी मुर्शीदाबाद के छोटे नवाब के नाम से जाना जाता है। नवाब साहब का जन्म लालबाग शहर के बेगम महल में हुआ था जो वर्तमान समय में खंडहर में तब्दील हो गया है।.एक समय था जब इन्हे नवाब होने के नाते सरकार भत्ता दिया करती थी जो कि वर्तमान समय में बंद हो गया है इनके बेटे एक हाई स्कूल में प्रधानअध्यापक पद पर कार्यरत है।.बताते चले कि मीर जाफर के बारे मेंं ज्यादा जानने केलिए हमें बंगाल के नवाब के बारे में तथा उनके आपसी ग्रह युद्ध के बारे में जानना होगा।.

बंगाल के नवाब

1707 से लेकर 1717 तक बंगाल में मुगल बादशाह फारुखसियर का दौर था। 1717 में मुर्शिद कुलीखान को बंगाल का सूबेदार बनाया गया।1719 तक उडिसा कि दीवानी भी मुर्शिद कुलीखान के हाथ नियंत्रीत होने लगी।.बंगाल के आंतरिक मामलों में मुगल प्रशासन समाप्त हो गया था जिसके परिणामस्वरुप मुर्शिद कुली खान अपने हिसाब से प्रशासन चलाने लगे।.सूबेदार ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को बंगाल में लगने वाले सिमा शुल्क से मुक्त दस्तक नामक मोहर उन्हे दी प्रदान करी।.1727 में मुर्शीदकुली खान की मौत हो गयी। सूबेदार की मौत के बाद सुजाउद्दीन मौहम्मद खान बंगाल का सूबेदार बना।.ये मुर्शीद कुली खान का दमाद  था जो कि बंगाल का सूबेदार बनने से पहले उड़ूीसा का सूबेदार था।.1732 को बिहार को बंगाल में मिला लिया गया और अलीवर्दी खां को बंगाल का उपसूबेदार नियुक्त किया गया।.1739 में सुज़ाउद्दीन की मौत हो गयी उसके बेटे सरफराज खान को गद्दी पर बिठाया गया। लेकिन अगले ही वर्ष अलीवर्दी खान ने विद्रोह कर दिया दोनों में जंग हुई सरफराज़ मारा गया।. जिसके परिणामस्वरुप अलीवर्दी खान बंगाल की गद्दी पर बैठा।.

गद्दी पर बैठते ही अलीवर्दी खान ने भारीभरक नज़राना मुगल बादशाह के दरबार में भिजवाया जिसके चलते बागशाह ने अधिकारिक तौर पर अलीवर्दी खान को बंगाल का नवाब नियुक्त किया।.1740 से 1751 तक अलीवर्दी खां का संघर्ष मारठों से चलता रहा।.मराठे हर बार अलीवर्दी खां को हरा देते जिसके परिणामस्वरुप अंत में अलीवर्दी खां को मराठों से संधि करनी पड़ी।.संधि मे हर वर्ष 12 लाख रुपयो का टैक्स और उड़ीसा वापिस देने की बात तय हुई इधर सैन्य ताकत कमजोर होने के कारण अलीवर्दी खां अंग्रेजो के आगे भी कमजोर पड़ने लगा।. अतः अलीवर्दी खां ने कम्पनी को बंगाल में व्यापार करने की अनुमति दे दी।.हालंकि अंग्रेजों को किले बंदी और सेना रखने का अधिकार अभी तक नही दिया गया था अलीवर्दी का लाड़ाला और सबसे प्रिय नाती सिराजुद्दौला था अलीवर्दी खां को कोई बेटा नही था इसलिए वे अपना वारिस तय करना चाहते थे।.नवाब साहब कि तीन बेटीया थी 1.घसीटी बेगम ये ढाका के नवाब कि बेगम थी और इसकी कोई औलाद नही थी अतः यह खुद बंगाल कि नवाब बनना चाहती थी। 2.बाकी दो बेटियों मे से एक के बेटे का नाम शौकत जंग था 3.सबसे छोटी बेटी के बेटे का नाम सिराजुद्दौला था।अतः इन दोनो भाईयों का पालन पोषण एक समान हुआ था दोनो भाईयों में सिराजुद्दौला ज्यादा काबिल था अतः उसे अलीवर्दी खां का वारिस नियुक्त किया गया।.

10 अप्रैल 1756 को अलीवर्दी खां चल बसे सिराजुद्दौला बंगाल का नया नवाब नियुक्त किया गया। सिराज के नवाब बनते ही बंगाल  घरेलु झगड़ों का आखाड़ा बन गया।.अंग्रेजो ने भी सिराज कि वेज्जती करने में कोई कसर नही छोड़ी।.उस समय काल के अनुसार नये नवाब को नज़रना पेश किया जाता था। क्षेत्र के सभी रयिस व्यापारी तथा अन्य लोग नवाब के लिए नज़राना लेकर आये मगर अंग्रेजो द्वारा किसी प्रकार का नज़राना नही पेश किया।.मुर्शीदाबाद में जब नवाब से अंग्रेजो से काम पड़ता तो नवाब के दरबारियों से वे अपना काम चला लेते।.इन सब के साथ हि कासिम नगर में अंग्रेजो कि कोठी में सिराज को घूसने से मना कर दिया गया।.इधर शौकत जंग और घसिटी बेगम हुहीं जले भूने बैठे थे।.मौके का फायद पाकर अंग्रेजो ने शौकत जंग को नवाब के खिलाफ भडकाया।.अन्ततः 1756 में शोकत और सिराज की बीच मनिहारी में लड़ाई हुई जिसमें शौकत की मौत हो गयी और सिराज की जी हुई।.बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को लगा कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन समाप्त हो गया है मगर यह उनकी भुल थी क्योंकि अंग्रेज अभी बाकी थे।.

नवाब के खिलाफ अगर कोई बगावत करता तो उसे कलकत्ता मे अंग्रेजो कि कोठीयों में शरण मिलती थी इस सभी कर्यों के पिछे तथा नवाब के सेनापति मीर जाफर का मुख्य रुप से हाथ था क्योंकि अंग्रेजो ने मीर जाफर से वादा किया था कि वे उसे बंगाल का नवाब बनायेंगे।.मीर जाफर के ही सहयोग से अंग्रेज बादशाह द्वारा मिली दस्तक मोहर का गलत इस्तेमाल किया करते थे।.इस मोहर के माध्यम से अंग्रेज बंगाल में सिमा शुल्क दिये बिने व्यापार किया करते थे जिसे वे अब दुसरे व्यापारियों को बेचना प्रारम्भ कर दिये थे अतः सिमा शुल्क न मिलने के कारण राजस्व कोष में घाटा होने लगा।.समस्या से निजात पाने के लिए नवाब ने सभी व्यापारियों के लिए सिमा शुल्क समाप्त कर दिया जिससे अंग्रेजो को अन्य व्यापारियों से चुनौति मिलने लगी।.इसके साथ ही नवाब ने फ्रांसिसीयों को और अंग्रेजो को बंगाल में किले बंदी करने से रोका फ्रांसिस तो मान गये मगर अंग्रेज नही माने।.इसके साथ ही  1756 में अंग्रेजो ने नवाब के दिवान राजा राजवल्लभ को अपनी तरफ मिला लिया इससे नाराज़ नवाब  सिराजुद्दौला ने 24 मई 1756 को कासिम बाजार पर कार्यवाही की यहां के अंग्रेज अधिकारी वोट्स और दूसरे अधिकारियो को पकड़ लिया गया।.16 जून 1756 को सिराजुद्दौला ने 30000 सिपाही,20घुड़सवार सेना,तथा 100 हाथीयों के साथ फोर्ट विलियम पर हमला किया।. बंगाल में सबसे बड़ा व्यापारिक सैन्य अड्डा अंग्रेजो का यही था।.लड़ाआ पुरे चार दिन तक चली 18 जून को गवर्नर रोज़न ड्रेक किले में महिलाओ और बच्चों को छोड़कर खुद भाग गया।.इसके कारण अब अंग्रेजो की सेना मजिस्ट्रेट ज़ोन होलवेल के हाथों में थी।.20जून तक अंग्रेजो को काफी नूकसान हुआ 21 जून को होलवेल ने किला सिराजुद्दौला को सौंप दिया।.

The Block Hole Tragedy

एससी हिल ने अपनी किताब बंगाल इन 1857-58 में लिखते है कि सिराजुद्दौला ने फोर्ट विलियम के बिचो-बिच अपना दरबार लगाया और घोषणा कि अब से बंगाल का नाम बदलकर अलीनगर रखा जा रहा है। इस दौरान 149 अंग्रेजो को बंदी वना लिया गया।.सबको एक बेहद छोटे कमरे में बंद कर दिया गया था जहां अत्याधिक गर्मी और घुटन से ज्यादातर लोगो कि मौत हो गयी थी केवल 23 लोग जिन्दा बचे थे और इस घटना को नाम दिया गया ब्लैक होल टरेज्डी।.घटना कि खास बात यह है कि बहुत से इतिहासकार इस घटना को सत्य नही मानते। कम्पनी डाक्युमेंट व मद्रास काउंसील की बहसों य उस वक्त की घटनाओं पर लिखने वाले लेखक सयीयद गुलाम हुसैन जैसे अन्य लेखकों कि किताब में भी इस घटना का कोई जिक्र नही मिलता है।.बताते चले कि सयीयद गुलाम हुसैन ने अपने समय काल में सुयार-उल-मुख्ख़रीन जैसी किताबो कि रचना कि जिसमें 1727-1728 ई0 के मध्य बंगाल में मुस्लिम शासन के पतन कि घटना का जिक्र किया गया है।.इसके साथ हि राबर्ट क्लाइव और जेम्स वाटसन और सिराजुद्दौला के मध्य लिखे गए पत्राचारों में भी इस घटना का कोई जिक्र नही मिलता है।.कहा जाता है कि हाॅलवेल ने इग्लैंड़ जाकर इस किताब को लिखा तथा घटना को बढ़ाचढ़ाकर नाटकिय रुप देना का प्रयास किया।.ताकि ब्रिटीश सरकार और ब्रिटीशस कि सहानुभूति मिल सके और सिराजुद्दौला के चरित्र को कंलकित किया जा सके।.होलवेल बेहद चालक और कपटी आदमी था इसने मिरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने का लालच देकर उससे 1 लाख रुपये कि रिश्वत ली था इसी तरह मीर कासीम से भी तीन लाख रुपये की उगाही मांगी थी अतः ऐसे व्यक्ति की बातों पर यकिन करना पाना मुश्किल बात है।.

अलीनगर कि संधि

सिराजुद्दौला ने अलीनगर कि कमान राजा मानीक चंद को सौंपी थी और स्वयं 11 जूलाई 1756 में मुर्शीदाबाद चले गये 30 अक्टूबर 1756 को हाॅलवेल ने कम्पनी के डारेक्टर को लीखा कि इतनी घातक और शोक जनक स्थिती आदम के वक्त से लेकर आज तक किसी कौम के इतिहास में नही आई थी।.इसके बाद अंग्रेजो ने दो तरफा काम शुरु किया पहला कलकत्ता में सिराजुद्दौला के हाथ पैर जोड़ कर व्यापार करना प्रारम्भ किया दूसरा सिराजुद्दौला के लोगो को उसके प्रति भड़काना प्रारम्भ किया।.दुसरी तरफ कलकत्ता के किले पर नवाब के कब्जे कि खबर जब मद्रास पंहुची तो 800यूरोपियन सैनिक और 1300 भारतीय सैनिक रोबर्ट क्लाइल और अडमीरल वाटस्न के नेतृत्व में कलकत्ता पहुंचे।.मानीकचंद ने अंग्रेज के साथ मिल मिला था उसने दिखावे के लिए अंग्रेजो से लड़ाई लड़ी।.अतः सिराजुद्दौला को संदेश भिजवाया कि वो अंग्रेजो के सामना वो नही सका।.2 जून 1757 में दुबारा रोबर्ट क्लाइव ने किले पर कब्जा कर लिया।.सिराजुद्दौला को अपने गुप्तचरों से पता लग गया कि उसके अपने लोगो कि गद्दारी कि वजह से उसे हुगली और बंगाल (वर्तमान कलकत्ता ) का नियंत्रण खोना पड़ा।.

अंग्रेजो कि लूटपाट कि खबर जब नवाब तक पहुंची तो वे हुगली पहुंचे तथा आमना-सामना होने से पहले रोबर्ट क्लाइल को नवाब ने पत्र लिखा कि तुम लोग व्यापारी हो लूटपाट तुम्हे शोभा नही देती अगर चाहते हो की कम्पनी का कारोबार पहले कि तरह चले तो मुझसे बाद कर सकते हो।.मै सेना लेकर आया तो तुम्हारा नुकसान ही होगा आगे बातचीत के रास्ते भी बंद हो जायेंगे।.नवाब के इस पत्र से अंग्रेजो को लगा की नवाब सुलाह करना चाहते है अतः उन्होने अपनी चार शर्ते नवाब को लिखकर भेजी। जिसमें पहली शर्त थी अंग्रेजो के हुए नुकसान का हरजाना दिया जाये। दूसरी शर्त थी कि कम्पनी को जितनी व्यापारिक रियायते मिल रही थी सब वापिस दि जायें।3.बंगाल में अंग्रेजो को किले बंदी ओर टकसाल खोलने का अधिकार दिया जाये ताकि वे सिक्के बना सके,साथ हि अंग्रेजो ने सिराजुद्दौला को कलकत्ता आने को कहा ताकि धौकी से उनकी जान ली जा सके।.इतिहासकार एक्सी हिल लिखते है कि सिराजुद्दौला को पहले हि पता चल गया था कि अब उसके अफसर और सिपाही मेरा साथ देने को तैयार नही है।.4 फरवरी 1757 को सिराजिद्दौला बंगाल आया 5 फरवरी 1757 में अंग्रेजो ने हमला करने कि साज़ीश रची भौर होते ही सिराजुद्दौला पर हमला कर दिया मगर नवाब बच निकले।. 

अतः नवाब के करिबीयों ने उन पर संधि करने का दबाव बनाया संधि में समझौता हुआ कि मुगल बादशाह द्वारा दी गयी दस्तक अब बंगाल,बिहार तथा उडीसा में मान्य कि जाये ताकि अंग्रेज बे रोक टोक अपना व्यापार कर सके। अंग्रेजो का सार माल वापिस किया जाये। इसके साथ ही अंग्रेजो को अपनी कोठीयों कि किले बंदी और टक्साल चलाने का पुरा अधिकार होगा।.सिराजुद्दौला को संधि की सभी शर्ते माननी पड़ी इसके साथ ही अंग्रेजो द्वारा मुर्शीदाबाद में एक अंग्रेज अधिकारी नियुक्त किया गया।.अंग्रेजो के लिए बंगालके खिलाफ साजीश करना अब और भी आसान हो गया।.अलीनगर कि संधि बंगाल पर अंग्रेजो के पूर्ण अधिपत्य का पहला कदम साबित हुई।.इस संधि के कुछ समय बाद अंग्रेजो ने मीर जाफर,कलकत्ता के सेठ मानिकचन्द, दूर्लभराय के समर्थन से मिरजाफर को प्लासी के युद्ध में हरा दिया। 23 जून 1757 में मीर जाफर ने भागने कि कोशिश कि लेकिन पकड़े जाने पर मीर जाफर के बेटे मीरान ने 2 जुलाई 1757 को सिराजुद्दौला की हत्या कर दी। नवाब के शव को हाथी पर लाद कर पुरे शहर भर में घुमाया गया।.रोबर्ट क्लाई ने मीरजाफर को पत्र लिखा कि यह हमारी ही नही अपकी भी जीत है साथ ही मीरजाफर को बधाई देते हुए लिखा कि मुझे खुशी होगी जब मुझे आपको बंगाल का नवाब घोषित करवा पाने का सम्मान लेगा।.अतः सम्पूर्ण भारत में गद्दारी के लिए दो प्रमुख नाम प्रसिद्ध है पहला मीर जाफर दूसरा जयचन्द।.मीर जाफर को लगा कि वे बंगाल का शासन अपने हिसाब से चलाये गा मगर यह उसका भ्रम था जल्द ही उसका यह भ्रम भी टूट गया।.

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