9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: भृण हत्या एवं महिला शौषण

शनिवार, 29 जून 2024

भृण हत्या एवं महिला शौषण

infanticide

प्रस्तावना 

प्रस्तुत लेख में हम  शिशु हत्या अधिनियम 1795,1805 को पारित करने के मुख्य उद्देश्य के बारे में चर्चा करेंगे। इसके साथ ही शिशु कानुन 1933 के बारे में चर्चा करेंगे। लेख के माध्यम से हम इस बात का विशलेषण करने का प्रयास करेंगे कि क्या अंग्रेजो द्वारा लाये इन कानुनों का वर्तमान समय भारत पर क्या असर पड़ा है।.क्योंकि स्थिती अभी भी काबु में नही है।.वर्तमान समय में भी नवजात बच्चों और बच्चीयों कि हत्या गर्भ में ही कर दी जाती है।. जबकि सरकार द्वारा इसे पुरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है।.दरअसल यह कार्य प्राइवेट अस्पतालों द्वारा गुप्त तरीकों से किया जाता है और मुंह मांगी किमतों कि डिमांड कि जाती है।.

भृण हत्या होने के प्रमुख कारण 

यह हमारे समाज की सबसे प्राचीन कुरीतियों में से एक है हम ऐसा नही कहते है कि प्राचीन प्रथााओं को मनाना एक अंध विश्वास है मगर उस प्रथा के पिछे के मुख्य कारण को जाने बिना परंपरा के तौर पे मनाते जाना गलत है।. क्योंकि हर किसी प्रथा को मनाने के पिछे एक कारण होता था जो उस समय काल और सामाजिक परिवर्तन के साथ आवश्यक था मगर वर्तमान समय में उन प्रथाओं को परम्परा को तौर पर बिना सोचे समझे मनाते जाना गलत है।. बातों के प्रमाणिकरण के लिए हम भृण हत्या को दो वर्गों में विभाजित कर के देखने का प्रयास करेंगे। यह प्रमाणिकरण इस लिए भी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान समय में हम अपनी प्राचीन कुप्रथाओं के साथ ही अपनी सभ्यता संस्कृती को भी भुलते जा रहा है।.1.भृण हत्या के प्राचीन कारण एवं 2.भृण हत्या के वर्तमान कारण 

भृण हत्या के वर्तमान कारण

1.लिव इन रिलेशन शिप- यह पाश्चात्य शिक्षा का एक उदाहरण ये विदेशीयों द्वारा आज़ादी से जीवन जीने का एक तरीका है जिसमें अपने माता पिता के विचारों को जाने बिना।. स्त्री-पुरुष बिना शादी के एक दुसरे के साथ रहते है और छोटे-मोटे झगड़ों के चलते अलग हो जाते। इस लिव इन रिलेशन शिप के चलते जो संताने पैदा होती है उनका भरण पौषण का जिम्मेदार कोई नही होता। अतः स्त्रीयों के पास उन्हे गिराने के सिवाय कोई अन्य उपाय नही सुझता क्योंकि उन्हे शादी से पहले माँ बनने का कारण समाज द्वारा स्वीकारा  नही जायेगा और उनकी दुबारा शादी नही हो पायेगी।.अतः जिसके परिणामस्वरुप भृण हत्या जैसे कार्यों को अन्जाम दिया जाता है।.इसके आलावा अन्य भी बहुत से कारण हो सकते है।.

2.प्रोफेशनल लाईफ में बिज़ी दिनचर्या के चलते- कुछ परिवारों में ऐसा देखा गया है कि पति-पत्नि दोनो किसी रोजगार पेशे चलते एवं अपनी ओफिस लाइफ के प्रारम्भिक दौर के कारण बच्चा होने पर उसकी देखरेख करने  में है सक्षम य समय न दे पाने के कारण इन कार्यों को आन्जाम देते है।.इसके अलावा पारिवारिक तनाव एवं आपसी तनाव भी एक मुख्य कारण हो सकता है।.

3.एक से अधिक शादियां करना य अपने साथी से छुपा कर एक्सट्रा मैरिटल अफ्यर का होना।.
4. स्वतंत्र के अधिकार का हवाला देना - स्वतंत्रता का हवाला देते हुए कुछ लोग शादी से पहले और शादी के बाद भी 5 से अधिक लोग से सम्बन्ध बनाते है और स्वतंत्रता का दावा करते है मगर संतानों के पैदा होने पर उनकी जिम्मेदारी से मुकर जाते है अखिर ये क्यों भुल जाते है कि उस बच्चे के पास भी देश के संविधान के चलते वो सभी अधिकार है जो उसके पास है।. अतः वे किससे अपने अधिकारों का दावा करने जाये।.

भृण हत्या के प्राचीन कारण

 1804 का अंग्रेजो के शासन काल यह वह समय था जब भारत में प्राचीन कुप्रथाओ का शासन था शिशु भृण हत्या,सति प्रथा, दास प्रथा प्रमुख थी।.उपरोक्त प्रथाओं को भारत के उच्च वर्गों द्वारा बनाया गया था और सभी को इसके नियमों को मानना अनिवार्य था।.इस समय भृण हत्या एवं सती प्रथा बंगाल क्षेत्र में अधिक प्रचलित थी यह निम्न कारणों से चलन में आयी और धिरे-धिरे इसने प्रम्परा का रुप धारण कर लिया जो भारतीय समाज की स्त्रीयों के शोषण और भृण हत्या का मुख्य कारण बना।.

स्त्री संतान का कमजोर होना- यह प्रथा बंगाली राजपुतों में बहुत आम थी। वे स्त्री समाज को एक बोझ समझते थे।. भारत में अंग्रेजो के आने से पहले किसी क्षेत्रीय विशेष के राजा अपने साम्राज्य विस्तारण के लिए दूसरे क्षेत्र विशेष के राजा पर आक्रमण किया करते थे।.अतः हारे हुये राजा कि रानी ,बहनों तथा अन्य विशेष दर्जा प्राप्त स्त्रीयों को राजा अपनी रानी बना कर, कुछ को पटरानी बनाकर, एवं बाकियों को ब्रोथल में रखा जाता था।. उस समय काल के अनुसार राजा के एक से अधिक रानी रखना राजा की शान हुआ करती थी।.

उदाहरणके लिए पंजाब क्षेत्र के पटियाला के माहाराज भुपिंदर सिंह की 365 रानियां थी इन्होने 1900 से 1938 तक शासन किया ।. (सोर्स दैनिक भास्कर )अतः राजा एवं राजा के अधिकारिक नियमों के अनुसार उसके साम्राज्य में पैदा होने वाली स्त्री नवजात शिशु  को जन्म के उपरान्त ही मार दिया जाता था।.वहीं पुरुष संतान होने पर खुशियां मनाई जाती थी।. बचपन से ही उन्हे युद्ध प्रशिक्षण दिया जाना प्रारंभ कर दिया जाता था।.

सती प्रथा
सती प्रथा के साक्ष्य 510 ईस्वी के आसपास (ऐरण एवं अन्य) अभिलेखों से मिलते है।.सर्वप्रथम सती प्रथा का उल्लेख गुप्तकाल के महाराजा भानुप्रताप कि गोपराज युुद्ध के दौरान मृ्त्यु हो जाने पर उनकी पत्नि के उनकी चिता के साथ ही प्राण त्यागने का उल्लेख मिलता है अतः इतिहासकारों द्वारा इसी समय काल को सती प्रथा के उद्गम का समय  माना है।.इस प्रथा के जन्म का कारण युद्ध ही था।.युद्ध में हारे हुए राजा के साम्राज्य की पत्नियों को विजेता राजा की गुलामी ही करनी होती थी।.आदेश न मानने पर यतनाओं को सहना पड़ता था।.इसके साथ ही बहोत से नमावर राजा ने मिलकर अपने वंश को इस प्रकार दागदार होने से बचाने के लिए इस प्रथा का सृजन किया जिसने आगे जा कर एक परम्परा का रुप धारण कर लिया।.

अतः राजाओं द्वारा इस प्रथा का पालन इस लिये किया जाने लगा कि क्योंकि ऐसा करने से राजा कि मृत्यु के उपरांत उसके परिवार को दुश्मन राजा कि यतनाओं का सामना न करना पडे।.परन्तु धिरे -धिरे इस प्रथा ने अपना क्रुर रुप धारण किया जब राजा की सन्तान के भरण पोषण के लिए रानीयों ने सती होने से इनकार करना प्रारम्भ किया।. सती प्रथा कि आड लेकर राजगद्दी के उम्मीदवारों ने शडयंत्र रचना प्रारम्भ किया जिनके द्वारा इस प्रथा को अनिवार्य रुप से परम्परा को रुप धारण करा दिया ताकि राजा का पुत्र गद्दी की दावेदारी भविष्य में न कर सके और  रानी के मरने के बाद राजकुमार को अपने रास्ते से आसानी से हटाया जा सके।.

उपरोक्त कारणों के चलते इस परम्परा ने पुरे साम्राज्य मे अपना वर्चस्व स्थापित किया।.जिसके परिणामस्वरुप किसा भी व्यक्ति विशेष के परिवार में पुरुष मृत्यु के साथ उसकी पत्नी को बगैर उसकी इच्छा जाने जाला दिया जाता था।.

इसी प्रथा का दुसरा रुप जौहर है जिसमें स्त्री समाज द्वारा स्वंय से आयोजित किया जाता था सर्वप्रथम जौहर का उल्लेख 1301 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किये आक्रमण एवं राजा हम्मीर देव को छल से मारने के आख्यान में मिलता है।.राजा हम्मीर देव चौहान के वीरगति को प्राप्त करने के बाद उनकी रानी रंगादेवी ने जौहर किया जिसमें उनका समर्थन समस्त राज घराने की स्त्रीयों ने किया।.हम्मीर देव चौहान 1301 में रणथंभौर के शासक थे।.हालांकि यह प्रथा ज्यादा दिन तक नही चली मगर सती प्रथा अंग्रेजों के शासन काल तक चलती रही।.

जो कि उस समय काल के भारतीय समाज की मुर्खता का बड़ा प्रमाण है।.भारतीय जन मानस इन परंम्पराओं के मुख्य कारण को जाने बिना ही इन्हें लगातार पुशतैनि परम्परा के रुप में मनाता रहा।.जिसके चलते स्त्री समाज का लगातार शोषण होता चला गया।. अंग्रेज जब भारत आये एवं अपना वरच्स्व स्थापित करने को दौरान उन्हे यहां कि रुढ़ीवादी परम्पराओं के बारे में पता चला तो चकित रह गये।. शायद उन प्रमुख कारण में से एक प्रमुख कारण जिसके चालते विदेशी हमें आज भी मुर्ख समझते है।.

सरकार द्वारा उठाये गये कदम 

1795 एवं 1804 अंग्रेज सरकार के गवर्नर लार्ड़ वेलजली द्वारा बंगाल अधिनियम पारित किया गया। जिसमें शिशु हत्या तथा सती प्रथा जैसे कानुनों पर रोक लगाने का प्रयास किया गया।.अतः भारतीय समाज द्वारा अंग्रेजो को तीखी आलोचना का समाना करना पड़ा।.विदेशी लेखकों (विलीयम विल्वरफोर्स और चार्ल्स ग्रांट) ने अपने लेखों में लिखा कि भारतीय समाज अंधविश्वास ,मूर्तिपुजा और पुजारियों के आत्याचारों से भरा पड़ा है।.1829 में सिर्फ बंगाल में सती प्रथा और विधवा को जलाने कि परंपरा को गैर कानुनी घोषित किया गया।.चन्द बदलावों को करने के बाद 1830 में इस कानुन को मद्रास प्रेसीडेंसी और बाम्बे प्रेसिडेंसी में भी लागू कर दिया गया।.इसी क्रम में 1870 में कन्या भृण हत्या निषेध के लिए अधिनियम पारित किया गया जिसके चलते गर्भ में बच्चे को मारना एवं नवजात शिशु की हत्या को प्रतिबन्धित कर दिया गया।.

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