9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: बक्सर का युद्ध

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सोमवार, 3 जून 2024

बक्सर का युद्ध

 
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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम बक्सर के युद्ध के मुख्य कारण तथा अंग्रेजो कि कुटनीति का शिकार हुए सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजो का समर्थन और सिराजुद्दौला को धोखा देने वाले उसके सेनापति मीर ज़ाफर के बारे में चर्चा करेंगे।. इसके साथ ही हम बंगाल में छिड़ रहे ग्रह युद्ध के पिछे के प्रमुख कारणों के बारे में जानने कि कोशिश करेंगे।. उपर्कोत सभी विषयों पर चर्चा करने के साथ हि हम इलाहाबाद कि संधि तथा भारत पर पडने वाले इसके प्रभाव के बारे में चर्चा करेंगे।.

बक्सर का युद्ध 

बंगाल में अपने हितों की पूर्ति के लिए अंग्रेज अपनी जाटूकारता करने वाले नवाबों को बिठाते जा रहे थे।.इसी श्रृंखला में अंग्रेजो ने पहले प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को हराकर उसके स्थान पर मीर जाफर को गद्दी पर बिठाया।. जल्द ही अंग्रेजो को इहसास हुआ कि मीर जाफर उनके मनसुबो पर खरा नही उतर रहा तब अंग्रेजो ने मीर जाफर को गद्दी से उतार कर उसके दामाद मीर कासीम को गद्दी पर बिठाया।. मीर कासिम एक योग्य नवाब था अपने ही राज्य में रहकर अपना और अपनी प्रजा का शोषण होता देख उसने अंग्रेजो का विरोध किया।. अपने लोगों को जागरुक करते हुए अपनी शक्ति को प्रबल करने का प्रयास किया।. अपने खिलाफ मीर कासिम को जाता देख अंग्रेज उससे नाराज़ हो गये। अतः 1763 ई0 में मीर कासिम के स्थान पर पुनः मीर जाफर को नवाब बनाया गया।इधर जनता ने बढ़ चढ़कर मीर कासिम का समर्थन किया। परिणास्वरुप मीर कासिम ने जन सहयोग से अंग्रेजो से अनेक स्थानों पर मुठभेड़ की।.

मीर कासिम का परिचय

इनके जन्म के बारे में विवरण अज्ञात है।. इनेक पिता मीर राज़ी खान एक शिया मुस्लमान थें।.इनका पुरा नाम मीर मोहम्मद कासिम अली खान था।. मीर कासिम का पत्नी का नाम फातिमा बेग़म साहिबा था जो कि मीर जाफ़र और शाह खानम की बेटी थी।. मीर कासिम की चार सन्ताने हुई 1.मिर्जा गुलाम उरीज जाफरी 2.मिर्जा मुहम्मद बाकीर उल-हुसैन 3.नवाब मोहम्मद अजीज़ खान बहादुर 4. नवाब बन्द-उद-द्दीन अली खाल बहादुर था।. मीर कासिम का राज्यभिषेक 12 मार्च 1761 में मुगलबादशाह शाह आलम तृतीय द्वारा पटना में किया गया था।.हालांकि कि इससे पहले इन्हे बंगाल का सांमत अथवा गुलाम नवाब के रुप में अंग्रेजों द्वारा 20अक्टूबर 1760 मेंं गद्दी पर बिठाया गया था। हालांकि वे जल्द ही अंग्रेजो के अंतहीन लालच और हर कार्य में हस्तक्षेप करने के कारण से उब गये।. जिसके परिणामस्वरुप वे अंग्रेजो की गुलामी एवं अनावश्यक हस्तक्षेप से छुटकारा पाना चाहते थे।. जिसके लिए सर्वप्रथम मीरकासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से बिहार के मुंगेर में स्थानंतरित कर दी।. मुंगेर में उन्होने ने स्वतंत्र सेना का संग्रह करना प्रारम्भ किया।.
1763 में मीरकासिम ने पटना में ब्रिटीश कार्योलयों को समाप्त कर दीया जिसमे मूल निवासी सहित अनेक यूरोपिय लोगों कि हत्या की गयी।.जिसके कारण अंग्रेजो और मीर कासिम के बिच शत्रुता और बढ़ती चली गयी।. अतः अंग्रेजो पर हमला करने के लिए मीर कासिम ने बनारस के राजा बलवंत सिंह , अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और शाह आलम द्वितीय की सेना से समर्थन मांगा जिसके परिणामस्वरुप 22 से 23 अक्टूबर 1764 में ब्रिटीश मेजर हेक्टरमुनरों और मीर कासिम की सयुंक्त सेना के बीच बिहार के आरा  जिले के बक्सर क्षेत्र मे बक्सर का युद्ध हुआ।.

बक्सर के युद्ध का परिणाम

मीर कासिम बक्सर के युद्ध में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी से जुडना चाहता था मगर 25 नवंबर 1759 में वेदरा का युद्ध डचों को पराजित कर चुके थे इसके साथ 1760 में वांड़ीवाश के युद्ध में फ्रांसीसयो को पराजित कर दिया था। अतः बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो की जीत हुई और अंग्रेज बंगाल के निर-विरोधी शासक बने।.
  • 1.बक्सर का युद्ध इलाहाबाद कि संधि से समाप्त हुआ इस क्रम में इलाहाबाद कि दो संधियां हुई पहली 12 अगस्त 1765 में दूसरी 16 अगस्त 1765 में हुईं।.
  • बक्सर के युद्ध के समय बंगाल का नवाब मीर जाफ़र था 1765 में मीर जाफ़र की मृत्यु हो गयी उसके बाद मीर जाफ़र का बेटा नजमुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया गया।. वह बहोत अल्पआयु में नवाब बना था जिसके कारण अंग्रेजों ने उसकी सुरक्षा के बंगाल में एक ब्रिटीश सेना का गठन किया जिसके बदले में नवाब को खर्च के रुप में अंग्रेजो को प्रतिवर्ष 5 लाख रुपये अंग्रेजो को देना होता था।.
  • राबर्ट क्लाइव को पुनः बंगाल का नवाब बना कर भेजा गया।.

इलाहाबाद कि संधि

इलाहाबाद कि संधि अंग्रेजो और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के मध्य 12 अगस्त 1765 में हुईं। शाह आलम द्वितीय 1765 के समयकाल के दौरान अवध के नवाभ शुजा-उद-द्दौला के संरक्षण मे रहते थे।. इसके अलावा उसने मुग़ल दरबार के लगभग सभी राज्यों को सम्भाल था।. इस संधि के दौरान अंग्रेजो ने बंगाल,बिहार,उडीसा की दीवानी प्राप्त कर ली।. इसके परिणामस्वरुप अब अंग्रेजो की तीनों क्षेत्रों मेें राजस्व कर वसूलने को अधिकार मिल गया था।. जिसके बदले में अंग्रेजो को मुगल बादशाह को प्रतिवर्ष 26 लाक रुपये देने होते थै।. इसके साथ हि कम्पनी ने नवाब से इलाहाबाद और कड़ा का क्षेत्र छीन कर मुगल बादशाह शाह आलम को दे दिया।.

इलाहाबाद की द्वितीय संधि

यह संधि अंग्रेजो और अवध के नवाब शुजाउद्दौला के मध्य 16 अगस्त 1765 में हुई। संधि के परिणामस्वरुप अंग्रेजो को अवध क्षेत्र में व्यापार करने की अनुमति मिल गयी।. इसकेसाथ ही नवाब को ब्रिटिशस को युद्धक्षति पुर्ति के लिए 50 लाख रुपये की राशि अदा करनी थी जिसे नवाब को दो किश्तों में चुकाने का आदेश मिला था।. संधि के परिणामस्वरुप अंग्रेजो के हस्तक्षेप से बनारस के जागीरदार बलवंत सिंह को उसकी जागीर वापिस लौटा दी गयी।.

इलाहाबाद कि संधि का परिणाम

अब भारत में व्यापार करने के लिए अंग्रेजो को धन  तथा अन्य किमती धातुएं लाने की जरुरत नही थी।. अंग्रेज बिहार,बंगाल,उडिसा की दीवानी से मिलने वाले राशि के माध्यम से ही भारत में सस्ती दरों पर वस्तुएं खरीदते थे और उन्हे ब्रिटेन के बाजारों महंगे दामों में बेचते थे।. जिससे कम्पनी को भारी मुनाफा होता था।. इसके सात हि कम्पनी दीवानी से वसुव की गई राशी  के माध्यम से ही भारत से कच्चा माल खरीदते और उसे ब्रिटेन की कम्पनीयों को बेचते थे और दूबारा ब्रिटीश कम्पनीयों निर्मित पक्के माल को भारत में लाकर बेचते थे। इस तरह कम्पनी दोनों तरफ से लाभ कमाती थी।.उपरोक्त कारणों के चलते भारत में हस्तशिल्प उद्योग का पतन होना प्रारम्भ होना ही प्रारम्भ नही हुआ बल्कि भारतीय संसाधनों का ब्रिटेन की और प्रवाह भी तेज हो गया।. अतः भारतीयों की गरीबी पर ब्रिटेन की और समृद्धि साकार हुई।.

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