9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: भारतीय लाॅरेल वृक्ष

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शनिवार, 18 मई 2024

भारतीय लाॅरेल वृक्ष

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम भारतीय वृक्ष टर्मिनलिया टोमेंटोसा के बारे में चर्चा करेंगे,इसके साथ ही हम इसकी आंतरिक खुबियों के बारे में तथा भारत में बढ़ रही जल आपदा के एवं भूमि जल के हो रहे लगातार दौहन के बारे में चर्चा करेंगे।.इसके साथ ही हम जल आपदा संकट से निकपटने के लिए प्रमुख कार्यो के बारे में चर्चा करेंगे।.

टर्मिनलिया टोमेंटोसा ट्री

इस पेड़ की खोंज पापिकोंड़ा राष्ट्रीय उद्यान में वन अधिकारियों द्वारा की गयी है।.पेंड़ की खासियत यह है कि इसके तने से पानी किसी सामान्य नल के तरह निकलता है।.इसकी खोज कोंड़ा रेड्डी समुदाय के लोगों द्वारा सर्वप्रथम किया गया था।.जो सदियों से इस पेड़ के पानी से अपनी प्यास बुझाते रहे है।.अतः इसकी खोज आन्ध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामा राजू जीले में स्थीत पापडीया राष्ट्रीय उद्यान में आन्ध्र प्रदेश के वन विभाग टीम द्वारा कि गयी।.

वृक्ष के महत्वपुर्ण गुण
इस पेड़ की विशेषता यह है कि यह गर्मियों के दिनों में अपने तने में लगभग 1000 गैलन पानी अवशोषित कर सकता है।.जिसका प्रयोग एक जैसे सामान्य परिवार अपने उपभोग के लिए इस्तेमाल कर सकते है।.वन विभाग के अधिकारी जी.जी.नारेंद्रन ने बताया कि गर्मियों में पेड़ के तने में पानी इकट्ठा होता है जिसमें से एक विशेष प्रकार कि गन्ध आती है पीने में इस पानी का स्वाद खट्टा होता हैं।.इण्डियन सिल्वर ओक के रुप में जाने वाली इंण्डियन लाॅरेल वृक्ष कि इस लकड़ी का व्यासायिक मूल्य अधिक होता है।.इसका पौधा सूखे और नमी वाले जंगलों में पाया जाता है।.

इस पेड़ कि सबसे खास बात यह है कि इसका तना अन्य पेड़ो कि अपेक्षा अधिक फायर प्रुफ होता है यानि इसमें जल्दी आग नही पकड़ती है।.इस पेड़ का सांइटिफीक नाम Ficus Microcorpa जो आमतौर पर आस्ट्रेलिया,पैसेफिक आईलैंड़,एशिया,वेस्टर्न क्षेत्रों में और अब खोज के दौरान भारत में भी पाया जाता है। पेड़ अपना खाना Photosynthesis प्रक्रिया से बनाता है। जिसमें पौधे य पेड़ को हवा,पानी,कार्बन ड़ाईअक्साइड,धूप कि आवश्यकता होती है।.

आसमोसिस क्रिया Osmosis
इस प्रक्रिया के दौरान पेड़ पानी को अपनी जड़ों से अवशोषित करता और उसके बाद capillary action द्वारा कोशीकाओं द्वारा पानी छाल,तने तथा पत्तों तक पहुंचाया जाता है।.इसके साथ हि पेड़ कि पत्तीयों,तनों,फूलों एवं जड़ों से पानी निकालने कि प्रक्रिया Evoporation कहते है।. वैज्ञानिकों के अनुसार यह अनुमान लगाया है कि एक पेड़ अपना भोजन बनाने कि लिए लगभग 1000 गैलन पानी को अपने अन्दर अवशोषित कर सकता है।आप प्रक्रिया में 10% पानी को छोड़कर सम्पूर्ण पानी को पेड़ से निकाला जा सकता है। 

जो पेड़ कि ग्रोथ को तथा इसके पौषण को ध्यान में रखकर छोड़ा जाता है।.धार्मिक मान्यता अपने अनोखे गुणों के कारण बौद्धीष्ठ इसे बोधी पेड़ भी कहते है।.1.कोंड़ारेड्डी समुदाय कोंड़ारेड्डी गोदावरी क्षेत्र के पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाली एक जनजाति है जो अपने प्राचीन समय काल से ही विशेष पेड़ो के गुणों तथा उनके लाभों के बारे जानकारी रखने के लिए जानि जाती हैं दरसल सर्वप्रथम इन्ही लोगो के द्वारा ही इस पेड़ कि खोज कि गयी थी।.

water crisis

भारत में जस समस्या के कई कारण होना संभव है जैसे गांवों का शहरीकरण,भुजल का अत्याधिक दौहन,अपर्याप्त जल निकायों का प्रदुषण,अकुशल कृषि सिंचाई विधियां य प्रक्रिया।.बढ़ती पानी की समस्या के कारण भारत मे ताज़ा पानी के जल स्त्रोत मात्र 4प्रतिशत ही बचा है जिसे भारतीय आबादी के 18प्रतिशत में पहुंचाना होता है।.2010 कि केन्द्रीय जल आयोग कि रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 70प्रतिशत ताजे जल स्त्रोत का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है।,जो वर्ष 2050 तक समाप्त हो जायेगा।.सिंचाई के लिए भारत में भूमिगत जल का उपयोग 63 प्रतिशत तथा नहरो के जल का प्रयोग 24प्रतिशत तक इसके साथ हि जलकुंड और टैकंरो से 2 प्रतिशत एवं अन्य स्त्रोतों से11प्रतिशत सिंचाई कि जाती है।.

भूजल कि समस्या भूजल के अत्याधिक दौहन के कारण नदियों के प्रवाह में कमी आयी है,इसके साथ ही भूजल संसाधनों के स्तर मे कमी आयी है कुछ तटीय क्षेत्रों में जलभृतों में लवण जल का आवाछिंत प्रवेश हो रहा है।.इसके साथ ही Eucalyptus पेड़ की मांग के कारण भी कमी आयी है दरसल यह पेड़ एक दिन में 1000 लीटर पानी का अवशोषण करता है जिसके कारण अगर यह किसी क्षेत्र विशेष में अधिक मात्रा में पाया जाता है तो उस क्षेत्र में पानी कि समस्या को देखा जा सकता है।.

Hybird Eucalyptus
इसे हिन्दी में नीलगीरी का पेड़ या सफेद पेड़ भी कहते है।.आम बोलचाल कि भाषा में इसे प्यासा पेड़ या The Thirsty Tree कहते है क्योंकि इसे अत्याधिक पानी कि आवश्यकता होती है।.इसे गोंद के पेड़ के रुप में भी जाना जाता है।.इस पेड़ को उपयोग लुगदी यानि कागज़ बनाने,शहद उत्पादन,एवं आवश्यक तेल निकालने के लिये किया जाता है।.इसकी लकड़ी काफी मजबूत होने के कारण घरेलु फर्नीचर अथवा अन्य कार्यो में उपयोगी होती है। इस पेड़ कि लकड़ी और पत्तियां जल्दी आग पकड़ती है अन्य पेड़ों कि अपेक्षा।.अपने इन्ही गुणों के कारण भारतीय बाज़ार में किमत अधिक होती है जिसके कारण किसान अपने खेतों में इनकों लगाते है काफी लम्बा होने के कारण उनकी फसलों को भी इससे कोई नुकसान नही होता।.

मगर हाल हि के दिनों इस पेड़ की हाइब्रड प्रजाति का आगमन भारत में हुआ जो कि 10वर्षों कम में ही जल्दी तैयार हो जाती है।.अतः किसानों तथा अन्य लोगों द्वारा अत्याधिक लाभ कमाने के चक्कर में इस हाइब्रड़ प्रजाति को जोरों शोरो से लगाया गया जिसके परिणाास्वरुप 5वर्षों के समय काल में ही उस क्षेत्र विशेष में भूमिगत पानी की समस्या देखी जाने लगी है।.राज्य स्तर के अधिकारियों द्वारा इस पेड़ पर काफी देर बाद प्रतिबंध लगाया गया। इस पेड़ की अत्याधिक जल दौहन की प्रक्रिया द्वारा वर्तमान समय में जो क्षेत्र भूमिगत जल कि समस्या से जूझ रहे है सरकार उन क्षेत्रों में जल टंकी एवं पाइप लाइन के द्वारा जल प्रबंधन कि व्यवस्था कर रही है।.

अतः सरकार द्वारा पेड़,पौधो,फूलों कि प्रजातियों पर एक कुशल प्ररिक्षण करने के बाद तथा उसके लाभ हानी का विशलेषण करने के बाद हि किसानों के हाथ में सौपना चाहिए।.

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