प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम वीoओo चितंबरम पिल्लई तथा उन पर हुए अत्याचारों एवम भारतीय स्वदेशी स्टिम नेविगेशन कम्पनी में उनके महत्वपूर्ण योगदान के बारे में चर्चा करेंगें।.इसके साथ ही महात्मा गांधी से उनके संबंधों एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के छोड़ने मुख्य कारण के बारे में चर्चा करेंगे।.गांधी कनक्कु-यह एक तमिल भाषा का शब्द है जो की दक्षिणी भारत में खूब प्रसिद्ध है।इसका साधारण भाषा में अर्थ होता है की गांधी का हिसाब।.आज के समय में इस शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब व्यापार में हद से ज्यादा बकाया हो जाने पर,बकाए दार द्वारा धन की राशि न जमा की जाए,और सेवाएं समय समय पर पूरी ली जाएं।.यानि इसको बोलने के पीछे का लक्ष्य यह है की अपने सहयोगी को धोखा देना,या देने वाला व्यक्ति।.अब इसमें गांधी शब्द कैसे जुड़ा या फिरगांधी कनक्कु ही क्यूं कहा जाता है इसके पीछे की कहानी जानने के लिए हमे चितम्बरम पिल्लई तथा उनके द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जानना होगा।.
वीoओo चितंबरम पिल्लई
इनका जन्म 5 सितंबर 1872 में तिरुनेलवेली जिले के ओल्टापीदारम निवासी ओलगनाथन पिल्लई और माता विरपेरुल अन्नवी के यंहा हुआ था।.वे पेशे से वकील थे।वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के एक सम्मानित सदस्य थे। जिन्हे लोग पूरे तमिलनाडु के साथ साथ भारत के अन्य क्षेत्रों के लोग भी जानते थे।.एक अच्छे वक्ता की ही ख्याति क्षेत्र विशेष में होती है तो हम निसंदेह कह सकते है की वे एक कुशल नेता थे। वे लाला लाजपत राय के विचारों से बहुत प्रभावित थे अतः उन्ही के शिष्य के रूप में कांग्रेस पार्टी से जुड़े।.चितंबरम पिल्लई को The Tamil Helsmen के रूप में भी जाना जाता है। 1906 में भारत में उन्होंने SSNC यानी स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कम्पनी की स्थापना की।.यह अंग्रेजों की BISNC यानी ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कम्पनी के साथ स्पर्धा करते हुए पहली भारतीय जल परिवहन व्यवस्था देने वाली कम्पनी थी।.अंग्रजों के अपनी कम्पनी की मांग को बढ़ाने के लिए जल परिवहन यात्रा खर्च कम कर दिया। इन सब के बावजूद भी लोग ssnc में यात्रा करना ज्यादा पसंद करते थे।.अतः उन्हें देशद्रोह के जुर्म में अंग्रेजो द्वारा जेल में डाल दिया गया ताकि BINC से कोई स्पर्धा न हो और वे सुचारू रूप से व्यापार कर सके।.
S.S.N.C
1906 में कंपनी को स्थापित करते समय पिल्लई की कंपनी के पास कोई जहाज़ नहीं था।.यात्रियों की सुविधा और अपने कारोबार को चलाने के लिए शौ लाइन स्टीमर्स कंपनी से पट्टे पर लिया गया था।.पिल्लई की तरक्की देख कर ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कम्पनी ने शौ लाइन स्टीमर्स कंपनी पर पट्टा रद्द करने का दबाव बनाया।.अतः पट्टा रद्द होने पर पिल्लई जी ने श्री लंका से एक बड़ा मॉल ढोने वाला जहाज़ किराए पर लिया।.धीरे-धीरे उनका व्यापार चलाने लगा। कम्पनी पहले यात्रा तूतीकोरिन पोर्ट से श्री लंका के शहर कोलोंबो तक चलते थे। धीरे धीरे अन्य क्षेत्रों में यात्रा करना प्रारंभ किया।.अतः स्वदेशी जहाज़ की मांग बढ़ने पर पिल्लई ने कंपनी की शेयर बेचना प्रारंभ किया।.कम्पनी के कुल 40000 शेयर जारी किए गए थे जिनमे प्रति शेयर की कीमत 25 प्रति शेयर थी।.हाजी फक्कीर मोहम्मद रोथर ने 2 लाख रुपए का भुगतान करके कंपनी के 8000 शेयर खरीद कर कम्पनी के सचिव बन गए।.इस प्रकार फ्रांस से स्वदेशी जहाज़ S.S गैलिया खरीदा गया तथा कुछ समय बाद S.S नावों को भी खरीद लिया गया।.
अतः अंग्रेजों को भारतीय कम्पनी की तरक्की देख कर ईर्ष्या होने लगी अतः पिल्लई को देश द्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया गया। वे लगभग 40 वर्षों तक जेल में रहे। उन्हें लगा की कांग्रेस पार्टी उनका समर्थन करते हुए अवश्य ही जेल से निकाल लेगी मगर उनका साथ किसी ने नहीं दिया। सजा के दौरान ही बैंक से उठाए गए कर्ज को भरने तथा अन्य कर्जों में डूबने के कारण कम्पनी के जहाजों को बेचना पड़ा। परिणाम स्वरूप जब वे जेल में ही थे तभी कम्पनी पूरी तरह से बर्बाद हो गई। कांग्रेस पार्टी से जुड़े होने के कारण तमिल लोगो ने पिल्लई जी की मदत के लिए कुछ धन राशि एकत्रित करके गांधी जी को दी ताकि वे पिल्लई जी के काम आ सके। क्यूंकि जेल से आने के बाद पिल्लई जी को अत्यंत गरीबी का सामना करना पड़ा। अतः जनता चाहती थी की वे कंपनी को फिर से प्रारंभ करे।.मगर गांधी जी द्वारा पिल्लई जी को चंदे की राशि दी ही नहीं गई।.इस प्रकार गांधी कनक्कु शब्द की उत्पत्ति होती है।.प्रसिद्ध लेखकार एमoपीo शिव गणनम जी ने पिल्लई जी के जीवन पर 1994 में कप्पलोटिया तमिजान किताब लिखी है जिसमे आप पिल्लई जी के जीवन के संपूर्ण घटना को विस्तार से पढ़ सकते है। इसके साथ ही उन्होंने उन पर कंपलोटिया चिदंबरनार 1972 तथा थकपती चितम्बरनार 1950 में लिखी थी।.
जेल में चितंबरम पिल्लई का जीवन
देश द्रोह की सजा के तौर पर उन्हें जेल में बैल की जगह उन्हें तेल निकालने के लिए कोल्हू में नाथा गया था। इसके साथ ही उनके वकालत के लाइसेंस को रद्द कर दिया गया।1912 में उन्हें रिहा होने पर वकालत की प्रैक्टिस करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।.अतः इस समय काल के दौरान कांग्रेस पार्टी ने भी उनका सहयोग नहीं किया।.इतनी कड़ी साजा के बावजूद वे टूट से गए थे।.
गांधी जी से पत्राचार
गांधी जी से मिलने के लिए पिल्लई जी ने जेल से आने के बाद मिलने के लिए पत्र लिखा,ताकि वे उनके साथ वार्ता कर सके।.अतः गांधी जी ने पत्र का जवाब देते हुए लिखा की वे उन्हें 15 मिनट का समय सुबह 6 बजे दे सकते है अगर वे आ सके तो मुलाकात हो जायेगी।.अतः पिल्लई जी को उनके जवाब से बहुत दुःख हुआ परिणाम स्वरूप पत्र का जवाब देते हुए पिल्लई जी ने लिखा मुझे नही मालूम था कि आपकी दिनचर्या इतनी व्यस्त है मुझे माफ करें मैं आपके मूल्यवान 15 मिनट नही ले सकता चूंकि मेरी बात पंद्रह मिनट में समाप्त नहीं होने वाली जिसके कारण में आपसे मिलने नहीं आ सकता।.पिल्लई जी के इस जवाब से गांधी जी को बहुत ठेस पहुंची। अतः गांधी जी ने लिखा की अगर आपके पास समय नहीं है तो मैं आपसे मिलने की चेष्ठा करता हूं और मिलने आ रहा हूं। अतः गांधी जी को ऐसा कहता देख पिल्लई जी उनसे मिलने सुबह 6 बजे पहुंच गए। संपूर्ण वार्ता होने के बाद भी पिल्लई जी को गांधी जी ने चंदे की राशि की बात न ही बताई और न ही चंदे की राशि दी।.अतः इसी प्रकार कई बार पत्राचार होने के पर गांधी जी ने पिल्लई जी से पूछा की क्या आपको चंदे की राशि मिली तो उन्होंने बताया की जी नहीं।.इस पर गांधी जी ने शोक व्यक्त किया।.एक पत्र के दौरान ही बताया गया की पार्टी द्वारा उनके नाम पर दान में मिले चंदे का कुछ भाग प्रयोग कर लिया गया है। जिस पर पिल्लई जी ने बची राशि की मांग की मगर वह भी उन्हें प्रदान नहीं की गई।.
अतः पिल्लई जी ने अपने जीवन का कुछ समय कांग्रेस पार्टी से अलग होकर अपने परिवार के साथ बिताया तथा कांग्रेस पार्टी की रणनीतियों का बदला देख एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए।.18 नवंबर 1936 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यालय में ही उनका देहावसान हो गया।.36 वर्ष बाद यानी 5 सितम्बर 1972 में भारतीय डाक विभाग उनके जन्म दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनके नाम का डाक टिकट,स्टांप जारी किया गया।.पिल्लई जी के समय काल में गांधी ने बुजुर्ग होने के बावजूद अंग्रेजो की सरकार के अधीन रहते हुए भी ब्रिटिश सरकार का विरोध करके भारतीय लोगो के दिल में उम्मीद की किरण के साथ जीने की एक नई राह सुझाई। उसी प्रकार ब्रिटिश सरकार के अधीन होते हुए उन्ही के खिलाफ या स्पर्धा में अपनी कम्पनी स्थापित कर पिल्लई जी ने एक मिसाल कायम करी की। हम खुद का उद्योग स्थापित कर उनकी गुलामी से छुटकारा पा सकते।.वैसे भी गांधी जी ने अपने आंदोलन के माध्यम से विदेशी चीज़ों का परित्याग करने के लिए बिडा उठा रखा था। विदेशी प्रत्येक वस्तु के उपभोग को उन्होंने वर्जित बताया। उनकी इसी विचार धारा के कारण पिल्लई जी की परिवहन सेवा महंगी होने के बावजूद भी लोग उन्ही की SSNC से यात्रा करना ज्यादा पसंद करते थे।.शायद इसी लिए उन्होंने चंदे की राशि पिल्लई जी को नहीं दी।यह एक अनुमान ही है।इसे सत्य न समझे ज्यादा जानकारी के लिए किसी मान्यता प्राप्त इतिहासकार की किताब का प्रमाण मिलान करना आवश्यक है।.हम मान के चलते है की किसी एक व्यक्ति विशेष से यह उम्मीद रखना की वे सभी कार्यों को बिना त्रुटि के साथ करे ये संभव नहीं है।इंसान गलतियों का पुतला है और यह बात दुनिया के हर व्यक्ति विशेष पर लागू होती है।.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें