प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में कार्बन 14 तथा इसके प्रयोग के बारे में जानेंगे।.पुरात्तात्विक वस्तुओं की जाँच में इसके प्रयोग एवं मानव शरीर में एवं अन्य सजीव वस्तुओं में इसकी उपस्थीति मात्रा के बारे में जानेंगे।.इसके साथ हि हम कार्बन 14 के परमाणु बम के जनक मैनहेटन के प्रोजेक्ट मैनहेटन से इसके सम्बन्ध के बारे में जानेंगे।.
कार्बन 14
इसका प्रयोग 60,000 वर्ष पुराने कार्बनिक पदार्थो की आयु नुर्धारण किया लिया जाता है। इसकी खोज 27 फरवरी 1940 में शिकागो विश्व विद्यालय के प्रोफेसर विलार्ड लिब्बी (Willard Libby) द्वारा की गई थी।.शोध के दौरान बताया गया कि जीवित जीव (सजीव वस्तुए) जिनमें पेड़ पौधों से लेकर मनुष्य एवं जानवरों को सम्मिलीत किया जाता है सभी में कार्बन 14 पाया जाता है। जब वे मर जाते है अथवा निर्जीव हो जाते है तो उनमे विद्मान कार्बन 14 समय के साथ अन्य परमाणुओं में परिवर्तीत होने लगता है।
अतः पुरातात्त्विक विज्ञान के वैज्ञानिक उस जीव में विद्यमान कार्बन 14 की परमाणुओं कि गणना करके,जीव कितने समय पहले मरा है एवं मृत्यु के दौरान उसकी उम्र कितनी थी तक पता लगा लेते है।.इसकी खोज के ही कारण प्रोफेसर Willard Libby नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।.इसके साथ हि कार्बन 14 मानव शरीर की प्रक्रियाओं को समझने में सहायता प्रदान करता है एवं पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के पिछे के कारण को समझने में सहायता प्रदान करता है।.यह सुर्य कि गतिविधियों तथा पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्रों को खोजने में तथा उन क्षेत्र विशेष की खुबियों और खामियों को समझने सहायता प्रदान करता है।इसका अलावा मानव हस्तक्षेप से हुए जलवायु परिवर्तन के आंकड़ो को इकत्रित करने में मदत करता है। इसके प्रयोग से किस क्षेत्र विशेष में मानव बस्तियां रहा करती थी तथा उनके हस्तक्षेप से वहां क्या परिवर्तन आया,इन तथ्यों का सटीक अनुमान लगान सरल हो जाता है। जैसे किसी क्षेत्र विशेष के मानव कि सभ्यता,संस्कृति जानना और रहन सहन को समझना आदि।.
कार्बन 14 विधि का प्रयोग प्रक्रिया
इसकी शुरुआत ब्रह्माडीय किरणों से होते है। पदार्थ के subatomic कण जो लगाातार पृथ्वी पर चारों तरफ गिरते रहते है।. जब सुर्य कि किरणे पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करती है तो भौतिक और रासायनिक क्रिया के दौरान रेडियोएक्टीव कार्बन 14 का निर्माण होता है।.जिसके परिणाम स्वरुप सजीव वस्तुएं अपने ऊतकोंं (Organisms)से इसे अवशोषित कर लेती है।. सजीव वस्तुओं के निर्जीव होने य मर जाने पर कार्बन 14 अन्य परमाणुओं में परिवर्तीत होने लगता है।. एवं मृत शरीर द्वारा कार्बन 14 को अवशोषित करने कि प्रक्रिया बंद हो जाती है।.
अतः वैज्ञानिक इस अवधि को मापने के लिए कार्बन 14 के अणुओं कि गणना करते है जिससे जीव के मृत्यु के समय का अनुमान लगाना सम्भव हो जाता है।.1970 से लेकर अब तक इस कार्बन के अणुओं कि गणना करने के लिए नयी-नयी तकनीकों पर खोज जारी है।.
- पार्टीकल असीलीरेटर(Particle accelerate) इसकी खोज शीकागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 1970 में कि थी।.प्रारम्भ में इस तकनिक के माध्यम से कार्बन 14 के अणुओं कि गणना कि जाती थी।.इस तकनीक में पदार्थ के 10 से 100 ग्राम तक के नमुने य 0.35 से 3.5 औंस तक कि मात्रा कि आवश्यकता पड़ती थी। वर्तमान समय में इस तकनीक को बन्द कर दिया गया है क्योंकि इसमें अधिक खर्च के साथ मुख्य वस्तु के अवशेषों का अधिक नुकसान होता था।.
- Geiger Muller Detectors इस तकनिक में वस्तु अथवा पदार्थ के अवशेषों कि मात्रा को तो घटा दिया मगर इस तकनिक में सी14 के अणुओं कि छोटी मात्रा को आसानी से पता नही लगाया जा सकता था। जांच के दौरान पता लग पाया कि इस तकनिक से प्रति मिनट 100,000 disintegrations का ही पता लगाया जा सकता है।.
- Liquid scintillation counting हाल ही में वैज्ञानिको द्वारा इस तकनिक को विकसीत किया गया है इसके माध्यम से c14 के सबसे सुक्ष्म अणुओं कि भी गणना करना संभव हो पाया है इसके साथ हि इस तकनीक में वस्तु के बहुत छोटे नमुने उदाहरण के लिए किसी भी पौधे के छोटे बीज जीतनी छोटी वस्तु पर भी शोध किया जा सकता है।.
कार्बन -14 डेटिंग कि समस्या
विभिन्न प्रकार की डेटिंग तकनीकों की स्वयं की अलग-अलग समस्याएं जैसे काफी महंगी होना।. वस्तु य पदार्थ के नमुने को किसी रासानिक अभिक्रिया से गुजारना या दुषित होना आदि सम्मलित है।.यह दोष कार्बन डेटिंग के आंकड़ो को आगे-पिछे कर सकते है।.वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया है कि रेड़ियोकार्बन के नमुने भि आसानी से दूषित हो जाते है, इसलिए सटिक जानकारी निकालने के लिए वस्तु को साफ और अच्छी तरह से संरक्षीत किया जाना चाहिए।.वस्तु पर लगी गंदगी को साफ करने के लिए साफ पानी का इस्तेमाल करना चाहिए न कि रासायनिक पानी का।.
ऐसा इसलिए है क्योंकि गणना करने के लिए बहुत कम परमाणु शुद्ध रह पायेंगे।.अतः थोडी सी भी लापरवाही से उत्पन्न अतिरिक्त कार्बन परमाणु इसके महत्वपुर्ण रुप को खराब कर सकता है।.सभी डेटिंग तकनिक की अपनी समय सिमा होती है जैसे कुछ कार्बन डेटिंग तकनिके मात्र 60.000 वर्ष पुरानी वस्तुओं पर भी कार्य कर सकती है।. तथा कुछ डेटिंग तकनीक पदार्थ की प्राकृति पर भी निर्भर करती है जैसे ज्वालामुखी से प्राप्त सामग्री की आयु सिमा का आकलन 4 अरब वर्ष से पुराने हो सकते है के आंकडों को कोई कार्बन डेटींग तकनीक सही आंकडे प्रदर्शीत करती है वहीं पर पेड़ो के लगभग 12.500 नर्ष पुराने आंकड़े ही प्रदर्शित कर सकता है।.वही कुछ तकनीके ज्वालामुखी के नमुनों से वायुमण्डल परिवर्तन के आंकड़ो के साथ ही सौरमण्डल के बारे में तथा प्राचीन मानव सभ्यता के बारे मे भी सटीक आंकड़े निकाल सकती है।.
मैनहैटन प्रौजक्ट से कार्बन 14 का सम्बन्ध
बताया जाता है कि इस कार्बन 14 की खोज द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बम के सर्वप्रथम निर्माण कर्ता और मैनहैटन प्रोजक्ट शोधकर्ता प्रोफेसर मैनहैटन से जूड़ूी है क्योकि यह इक रेड़ियोएक्टीव पदार्थ जिसके कारण इसका सम्बन्ध इस प्रोजक्ट से जोड़ा जाता है।.वर्तमान समय में कार्बन 14 के प्रोजक्ट की पुरी दुनिया में अनेक प्रयोगशालाए विद्दमान है मुख्य तौर पर यह आस्ट्रेलिया,डेनमार्क,न्यूजीलैण्ड जैसे देशों में अवस्थीत है।.
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