9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: खानवा का युद्ध 1527

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गुरुवार, 23 मई 2024

खानवा का युद्ध 1527

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम खानवा के युद्ध के बारे में चर्चा करेंगे इसके साथ ही हम राणा सांगा के तथा बाबर के प्राम्भिक जीवन पर प्रकाश डालेंगे।.लेख में पाती पेरवन परम्परा के बारे में भी विस्तार से वर्णन किया गया है इसके साथ ही बाबरनामा की भाषा शैली तथा  इससे से सम्बंधित मुख्त तथ्यों मुगल एवं मंगोल शब्द के अन्तर का बारे में बात करेंगे।.

युद्ध का मुख्य कारण 

राणा सांगा ,बाबर को और उसकी सेना को लुटेरा समझते थे जो भारत के दिल्ली शासन में इब्राहिम लोदि को हराने के बाद लुटपाट करके अपने देश वापिस लौट जायेंगे और वे इनके जाने  के बाद दिल्ली शासन पर हिन्दु राज्य को स्थापित कर लेंगे।.मगर जब बाबर ने भारत में रहकर मुग़ल शासन को स्थापित करने का प्रयास किया तब राणा सांगा ने बाबर से युद्ध करने का विचार बनाया।.वहीं कुछ इतिहासकार यह मानते है कि राणा सांगा और बाबर के मध्य एक समझौता हुआ था जिसके चलते राणा सांंगा को बाबर कि मदत करनी थी इब्राहिम लोदी के साथ युद्ध में जोकि राणा सांगा नही कि अतः समझौते के आदेशों का पालन न करने के कारण बाबर ने राणा सांगा पर आक्रमण किया।.वहीं कुछ इतिहासकारों का मानता था कि राणा सांगा,बाबर को दिल्ली का बादशाह नही मानते थे राणा सांगा बाबर को लूटेरा मानते थे जो भविष्य मेंवाड़ को भी लुटने का प्रयास कर सकता था अतः राणा सांगा ने बाबर पर आक्रमण किया था।.

युद्ध का विस्तार से वर्णन

यह युद्ध 17 मार्च 1527 ई0 में राजपूत नरेश एवं मेवाड़ के राजा राणा सांगा और मुगल बादशाह प्रथम बाबर के माध्य लड़ा गया था।इस युद्ध में राणा सांगा को हार का सामना करना पड़ा जिसके कारण करके सम्पूर्ण भारत पर हिन्दू राज्य की स्थापना करनें का उनका सपना अधुरा रह गया।.यह युद्ध बाबर द्वारा पानीपत के बाद लड़ा गया दुसरा युद्ध था।.खानवा नामक स्थान वर्तमान समय में राजस्थान के भरतपुर जीले के निकट है।. खानवा से फतेहपुर सीकरी कि दूरी लगभ 16 किलोमीटर है।.इतिहासकारों द्वारा यह दावा किया जाता है कि भारत में दिल्ली के सुल्तान के बाद सबसे शक्तिशाली शासक चित्तौड़ के राजा राणा सांगा का था।. बाबर ने अपने पानीपत के अपने प्रथम युद्ध में दिल्ली शासन के शासक इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर अपना अधिपत्य स्थापित किया।.उस समयकाल के अनुसार ऐसा प्रतीत होता था कि बाबर लूटपाट करके वापिस अपने देश लौट जायेगा मगर ऐसा नही हुआ उसने दिल्ली मे रहकर भारत में मुगल साम्राज्य कि स्थापना की जिसके परिणाम स्वरुप अन्य धर्म के लोगो को प्रताडित करने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ।.

उस समय राणाा सांगा वीर और कुशल सेना नायक थे।.वे कई यु्द्ध जीत भी चुके थे।. जल्द ही बाबर को एहसास हुआ कि राणा सांगा की मौजूदगी में भारत में मुगल साम्राज्य कि स्थापना करना संभव नही है।.अतः बाबर ने अपने पूर्वजों कि विरासत को विस्तृत करने के लिए मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।. बताया जाता है कि एक समय काल के दौरान बाबर के पुर्वज पंजाब राज्यके एक विशेष क्षेत्र पर शासन किया करते थे।.राजस्थान के एतिहासिक काव्य ग्रंथ वीर विनोद में राणा सांगा और बाबर के युद्ध के बारे में विस्तार पुर्वक वर्णन किया गया है। इस वर्णन में बताया गया है कि राणा सांगा की सेना के सेनापाती को बाबर ने प्रलोभन देकर फंसा लिया था जिस कारण राणा सांगा कि युद्ध में हार हुई।.

राणा सांगा की मृत्यु

युद्ध में राजपुतों ने तुर्कों को करारा जवाब दिया प्रारम्भ में राजपूतों के प्राक्रम से तुर्कों कि हार एवं राजपूतों कि विजय स्पष्ट रुप से देखी जा सकती थी मगर बाबर के तोपखानों के हमलों के बीच सब कुछ उलट-पलट हो गया।. राणा सांगा तब तक वीरता पु्र्ण लड़ते रहे जब तक की वे बेहोश होकर रणभूमि में गिर नही गये।. इतिहासकार बताते है कि राणा सांगा के युद्ध में बुरी तरह घायल होने के कारण उनकी युद्ध में हार हुई मगर वे मरे नहीं उनके सहयोगियों द्वारा उनको बचा लिया गया।. दुसरी तरफ बाबर द्वारा इस युद्ध को जितने के बाद उसे ग़ाज़ी की उपाधि से नवाज़ा गया।. आगरा के पूर्व में ग्वालियर और चौलापुर कि रियासतों को जीतकर उसने अपनी स्थिती को और मजबुत किया, इसके बाद बाबर ने मालवा स्थित चन्देरी के मोदिन राय के विरुद्ध अभियान छेड़ा।. राजपुत अपने शरीर में रक्त की अंतिम बुंद तक बाबर के खिलाफ लड़ते रहे।.

बाबर विशेष परिचय

बाबर का दूसरा नाम ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था।.यह मुगल साम्राज्य का संस्थापक था।. बाबर का जन्म फरग़ना वादी के अन्दीझान नामक शहर में हुआ था।.यह शहर वर्तमान समय में उज़्बेकिस्तान के क्षेत्र विशेष में पड़ता है।. बाबर के पिता का नाम उमरशेख मिर्ज़ा द्वितीय था।.वे फरगना घाटी के शासक थे। बाबर कि माँ कुतलुग बिग़ार ख़ानम थी। बाबर अपने सभी भाईंयों में सबसे छोटा था।.बाबर ने अपने समय काल में मुबईयान नामक पद्य शैली का निर्माण किया था।.बाबर ने बादशाह कि उपाधि 1504 में काबुल एवं 1507 में कन्धार को जीत कर हासिल की थी। बाबर ने 1519 से 1526 के समय काल में दिल्ली सल्तनत को जिता,और 1527 में खानवा ,1528 में चंदेरी तथा 1529 में घग्गर जीता।.इतिहासकारों द्वारा बताया जाता है कि बाबर कि मातृभाषा चराताई थी और फारसी उसके जीवन काल के समय उसके निवास स्थान कि आम भाषा थी।.जिसके परिणामस्वरुप उसने अपनी जीवनी जगताई भाषा में लिखी जो आगे जा कर बाबरनामा के नाम से प्रसिद्ध हुई।.बताते चले कि मंगोल को ही फारसी में मुग़ल कहते है।.उसकी सेना में फारसी,पश्तों,तुर्कों के अलावां बर्लास तथा मध्य एशियाई कबीले के लोग थे।. बाबर अपने समय काल का एक शक्तिशाली शासक था।.

इतिहासकार बताते है कि अपने रास्ते मे आने वाली नदियों को वह तैर के पार करता था।.1494 में 12 वर्ष कि आयु में बाबर को फरगना घाटी का शासक बनाया गया।.सन् 1530 में 48 वर्ष कि उम्र में अपने बेटे हुमाँयू कि बिमारी कि चिंता के कारण बाबर कि मौत हो गयी।.

राणा सांगा का विशेष परिचय

महाराणा संग्राम सिंह को ही हम राणा सांगा के नाम से जानते है।.उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 में हुआ था , इनकें पिता का नाम राणा रामपाल था।.वे अपने पिता की सबसे छोटी सन्तान थे राणा सांगा मेवाड़ के प्रमुख शासकों में से एक थे।.इनकी माता का नाम रतन कुँवर था ( राणा सांगा कि माँ एक चौहान राजकुमारी थीं। राणा सांगा ने मेवाड़ पर 1509 से 1528 ई0 तक शासन किया। इतिहासकारों के साक्ष्यों के साक्ष्यों के अनुसार राणा सांगा ने खानवा के युद्ध से पहले बाबर के युद्ध ने हराकर बयाना का किला जीता था।.खानवां के युद्ध मे राणा सांगा के सेनापती हसन खां मेवाति थे जिन्हे बाबर ने प्रलोभन देकर अपनी तरफ कर लिया था।.युद्ध में जाने से पहले राणा सांगा के आदेश पर राजपूतों ने पाती पेरवन परम्परा का निर्वाहन किया था।.

पाती पेरवन कि परम्परा

इस परम्परा के तहत युद्ध मे जाने से पहले अन्य शासकों को निमंत्रण भेजा जाता है।.इस परम्परा का लाभ भी राणा सांगा को खानवा के युद्ध के दौरान मिला।.जब खानवा के मैदान मे घायल अवस्था में मुर्छीत हो कर गिर पड़े तब उनकी जगह राणा सांगा के परम मित्र राजा राणा अजझाला ने उनका कार्य भार सम्भाला और युद्ध को बहादूरी से लड़ा।. राणा सांगा की पुत्री उत्तमदे कंवर राव गांगा की रानी थीं। जब राणा सांगा ने ईडर पर आक्रमण किया था तब रानी गांगा स्वयं सेना के साथ अपनी पिता कि सहायता के लिए गईं।. 30 जनवरी 1528 को राणा सांंगा की मृत्यु जितौड़ में उन्ही के सामंत द्वारा जहर देकर की गयी थी।.

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