9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: हल्दी घाटी का युद्ध

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शुक्रवार, 17 मई 2024

हल्दी घाटी का युद्ध

 
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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम हल्दी घाटी के युद्ध के बारे में तथा महाराणा प्रताप के प्राक्रम के बारे में चर्चा करेंगे।.इसके साथ ही हम अकबर के मेवाड़ पर अपने शासन को स्थापित करनें के मुख्य कारणों के बारे में जानेंगे।.युद्ध में हम महाराणा प्रताप को भिल जनजाति के समर्थन के पिछे के मुख्य कारण को जानेंगे और अन्तिम समय में युद्ध प्रारम्भ होने से पहले अफ्गान नेता हकीम खान सुरी तथा गर्दन कटने के बाद भी उनके लड़ते रहने के शौर्य का वर्णन करेंगे।.

युद्ध के पिछे का कारण

अकबर सम्पूर्ण भारत पर अपना शासन स्थापीत करना चाहता था,जिसके परिणामस्वरुप मेवाड़ को जीतना उसके लिए अवश्यक था।. एक अन्य कारण यह भी था कि उसका समर्थन करने वाले राजपुतों के वशंजों ने मेवाड़ के राजा एवं महाराणा प्रताप के दादा राणा सांगा के साथ मिलकर, अकबर का दादा बाबर को हराने में सहयोगी थे।.अतः वह राजपूतों का यह गरुर तोड़ना चाहता था कि कभी उन्होने मिलकर उसके पुर्वजों को हराया था।.अकबर नही चाहता था कि भविष्य में कोई और राजपुत राणा सांगा के समान उसको चुनौति दें।. क्योंकि वह जानता था कि मेवाड़ कि एक भी आज़ाद रियासत, वर्तमान में अकबर से विद्रोह करने और उसकी सत्ता परिवर्तन का मुख्य कारण बन सकती है।.

युद्ध के पहले कि घटना

बताते चले कि अकबर,मेवाड़ शासक राणा उदय सिंह के शासन काल में भी मेंवाड़ पर आक्रमण कर चुका था।.इस युद्ध में अकबर को हार का सामना करना पड़ा था जिसमें उसकी धन सम्पत्ति की तथा सैनिकों टुकड़ीयों से हाथ धोना पड़ा था। अपने पुराने अनुभव के कारण उसने सिधे युद्ध करने कि अपेक्षा माहाराणा प्रताप से संधि करने के लिए अपने दूत भेजना उचित समझा ताकि क्षेत्र कि रुप रेखा को देखकर युद्ध कि रणनीति बनाई जा सके।.इस कार्य के लिए मुगल दरबार के एक चतुर व्यक्ति जलाल खाँ कोरची को चुना गया।. जब वह महाराणा प्रताप के पास संधि प्रस्ताव लेकर गया तब महाराणा प्रताप नें मुगल सत्ता कि अधिनता को स्वीकार करने से सख्त मना कर दिया।. इस घटना के दो वर्ष बाद अकबर नें  राजपूतों के अन्य राजा अमिर शासक मान सिंह से संधि प्रस्ताव महाराणा प्रताप को भीजवाया मगर अबकी बार भी प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया।.वापिस जाते वक्त मान सिंह ने महाराणा प्रताप को धमकी देते हुए कहां कि ठिक है आप अगर नहीं मान रहे है  तो अगली मुलाकात युद्ध के मैदान में होगी।.इस बात का जवाब देते हुए महाराणा प्रताप ने कहां अगली बार तुम यहाँ अपने मालिक के अदेश पर आये तो तुम्हारा सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा, वहीं अगर तुम यह क्षत्रिय राजपुत की तरह आये तुम्हारा सम्मान किया जायेगा।.

इसी तरह दो अन्य राजपुतों को महाराणा प्रताप को संधि के लिए मनाने के लिए भेजा।.मगर हर बार कि तरह अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया।.अतः 1576 में अकबर अपने वज़ीरों के साथ अजमेर आ पहुंचा।. यहां पर 80,000 सैनिकों के साथ राजा मान सिंह को चितौड़ पर आक्रमण करने के लिए चुना गया।. मान सिंह सम्पुर्ण सेना लेकर दो महिने के लम्बे सफर के बाद मांडलगढ़ होते हुये खमनौर नामक गांव में पहुंचा।.इधर मान सिंह के आने कि खबर सुन कर महाराणा प्रताप ने भी अपनी सेना को संगठित करना प्रारम्भ कर दिया।.

महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी

  • भील जनजाति- महाराणा प्रताप का सम्पुर्ण बचपन भीलों के साथ बिता था इस कारण भीलों के सरदार भीलू राणा के नेतृत्व में समस्त भील योद्धा महाराणा प्रताप के साथ थे।.
  • ग्वालियर के राजा रामशाह अपने समस्त पुत्रों के साथ महाराणा प्रताप के साथ थे।.
  • जालौर के सोनगरा चौहान अपनी समस्त सेना के साथ महाराणा प्रताप के साथ थे।.
  • अफ्गान शासक हाकीम खान सूरी ने युद्ध में उनका समर्थन किया।.

हल्दी घाटी का युद्ध 1576

यह युद्ध चितौड़ के हल्दी घाटी के मैदान में अकबर के सामंत राजा मान सिंह और चितौड़ शासक महाराणा प्रताप के बीच लड़ा गया।.प्रारम्भ में राजपुतों कि जयपुर कि रियासत ने अपनी पगड़ी उतारकर अकबर के शासन को स्वीकारा।. अरबर ने 1559 में राजस्थान की रियासतों पर मुगल ध्वज लहराने कि कसम खाई।. अकबर कि सत्ता स्वीकार नें पर जयपुर कि रियासत के राजा को राजस्थान कि अन्य रियासतों के राजाओं ने धितकारना प्रारम्भ कर दिया।.मगर बाद में इन्होने भी अकबर कि अधीनता को स्वीकारना प्रारम्भ कर दिया।. जिसके कारण जीस क्षेत्र विशेष पर कभी राणा सांगा का शासन हुआ करता था वहां मुगल ध्वज लेहराने लग पडा था।.राणा सांगा महाराणा प्रताप के दादा थे ,एक समय काल के दौरान उन्होंने बाबर को भारत से खदेड़ा था।.चितौड़ रियासत राजस्थान के उदयपुर के क्षेत्र विशेष में पड़ता था।. 

1974 के बाद राजस्थान पुर्ण राजस्थान बनने में पुरे साढ़े-आठ साल लग गयें।.
1. पहले चरण में अलवर,भरतपुर,धौलापुर और करौली की रियासतों को मिलाकर (Matsya Union) को बनाया गया।. 2. दूसरे चरण में झालवार,कोटा,बुंडी,टोनक,प्रतापगढ़,दूंगपुर,बंसवारा,कौशलगढ़,लावा,तथा दो अन्य क्षेत्र शाहपुर एवं किशनगढ़ को मिलाकर बना (Rajsthan union) 3.तीसरे चरण में उदयपुर को इसमें जोड़कर बनाया गया(United state of Rajsthan). 4. चौथे चरण में बीकानेर,जैसलमेर,जयपुर,जौधपुर को मिलाकर बना (Greater Rajsthan). 5.चरण में Greater Rajsthan जुड़ा Matsya Union और बना (United state of Greater Rajsthan).
6. चरण में सिरोही रियासत इसमें मिलाई गई जिससे इसका नाम परिवर्तित हुआ (United Rajsthan) में।. 7.चरण में अजमेर रियासत,अब्बु रोड़ तहसिल,सुनेल तप्पा के रिज़न को इसमें मिलाकर अन्त में राजस्थान बना।.

महाराणा प्रताप कि कसम

मेवाड़ कि छाती पर लेहराता मुगल ध्वज महाराणा प्रताप के दूःख का एक मुख्य कारण था। अतः उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक केसरी हिन्द का झण्डा सम्पूर्ण मेवाड़ में नही लेहरता वे चैन से नहीं बैठेंगे।. उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक वे अपने लक्ष्य को नही पा लेते तब तक वे न तो राजमहल में रहेंगे और न ही पलंग पर सौयेंगे और न सोने चाँदी के बर्तनों में भोजन ग्रहण करेंगे।. महाराना प्रताप के अन्दर स्वाभिमान कुट-कुट के भरा था।. जैसे जैसे महाराणा प्रताप युद्ध में आगे बढ़े वैसे-वैसे अन्य रियासतों के शासक उनके साथ जुड़ते चले गये।.इस प्रकार महाराणा प्रताप 20,000 सैनिकों कि सेना के साथ लोहा सिंह नामक गांव में पहुंचे।. उनकी सेना से मान सिंह कि सेना का पड़ाव 6 मिल दूर था।.अतः 18 जून 1576 में इस यूद्ध का प्रारम्भ होता है।. युद्ध में उनके शौर्य प्रदर्शन के कारण उन्हे वीर वीराट मेवाड़ हिन्दुआसूरज महाराणा प्रताप भी कहा जाता है।.इसके साथ ही उन्हे राणा श्री भी कहा जाता है।.

युद्ध का सम्पुर्ण वर्णन

मुगल सेना के आगे बढ़ने पर महाराणा प्रताप ने हरावल सेना के दस्ते के सेनापति हाकीम खान को शत्रु पर अक्रमण करने के लिए आगे भेजा।. महाराणा प्रताप की हरावल सेना ने मुगल सेना के 3 दस्तों को पुरी तरह से नष्ट कर दिया।. मुगल सेना के इस दस्ते का नेतृत्व लूण करण कर रहा था जो बाज़ी को पल्टी खाता देख मैदान क्षेत्र से अपने अंगरक्षक दस्ते समेत भागने लगा।.इस वक्त महाराणा प्रताप अपने भील सैनिकों के साथ हल्दी घाटी की पहाड़ीयों पर तैनात थे।. वह तुरन्त अपनी सेना के मुख्य योद्धाओं के साथ मैदान में उतर आये।. जिसके परिणामस्वरुप मेवाड़ एवं मुगल सेना आमने-सामने आ गयी।. महाराणा प्रताप के मैदान में उतरे ही मुगल सेना में दहशत का महौल हो गया, वे जीस और बढ़ते उस ओर शत्रुओं की लाशों के ढे़र लग जाता। मुगलों ने पहली बार महाराणा प्रताप को  देखा था इससे पहले उन्होने उनका नाम मात्र सुना था।

महाराणा प्रताप 7 फुट 5 इंच के एक कुशल शासक थे।. लेखक कादिर अल-मंन्दायुनि अपनी किताब मुख्ताब अल तवारीख में लिखते है कि वह बहुत लंबे,मजबूत और ताकतवर थे जब वह चलते थे तो ऐसा लगता था कि आधी मुगल सेना को तो वे अकेले ही ले डूबेंगे।.उनके चहरे पर सदैव गुस्से कि लकीरे चमकती रहती थी।.युद्ध भूमि में किसी भी मुग़ल सैनिक ने उन्हे छेड़ने कि कोशिश नही की।. प्रारम्भ में महाराणा प्रताप ने मुगल सेनापति सैयद हाशिम के जत्थे पर आक्रमण किया।. सैयद हाशिम उनका प्रकोप सह नहीं पाया और अपने जत्थे समेत पिछे हट गया। जिस पर राणापुंजा भिलसेना पति कि सेना ने सैयद हाशिम कि सेना पर तीरों की बौछार कर दीं।.महाराणा प्रताप  कि सेना नें मात्र 3 घण्टे के समय में मुगलों कि सेना में लाशों के ढ़ेर लगा दिये।. घबराई हुई मुगल सेना अरावली की घाटी की तरफ भागने लगी। मुगलों को भागता देख मुगल सेनापति मेहतर खाँ जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि बादशाह सलामत अकबर स्वयं अपनी सेना के साथ युद्ध भूमि में आ रहे हैं। यह सूनकर मुगल सेना सोच में डूब गयी की अगर भागे तो अकबर हमें मार देगा और न भागे तो राणा प्रताप हमें मार देंगे।.

अतः अस्त-व्यस्त मुगल सेना पर जालौर के शासक सोनगरा चौहान ने हमला कर दिया। दुसरी तरफ महाराणा प्रताप ने मुगल सेना में राजा मान सिंह को खोजना प्रारम्भ किया।. जिसने युद्ध से पहले महाराणा प्रताप को चूनौति दी थी कि अगली मुलाकात युद्ध के मैदान में होगी।.अतः महाराणा हूकुम ने मान सिंह को मुग़ल सेना के केन्द्र में हाथी पर बैठा देखा। अतः महाराणा को इसकी सूचना मिलते हि मुगल सेना को चीरते हुए मान सिंह के पास जा पहुंचे।. उन्होंने अपने घोड़े चेतक के अगले पौरों को मान सिंह की सवारी हाथी के मस्तक पर टिका दिया और मान सिंह पर भाले से प्रहार किया, मगर मान सिंह हाथी पर लगे होज मे दूबक कर बचने में सफल रहा।. लेकिन भाले के प्रहार से उसके हाथी का महावत मारा गया।.तब सादड़ी रियासत के शासक जालाबिदा ने कहा  हुकूम! आपके प्रिय चेतक को इलाज कि जरुरत है और आपको भि गोली लगी है,जिससे पुरे शरीर में जहर फैल सकता है।.अतः आप तुरन्त बैद्य जी के पास जायें।.

महाराणा प्रताप अपने घोड़े को पुत्र कि तरह प्रेम करते थे उन्होनें जालबिदा को पूरे मेवाड़ का राजछत्र सौंपा और सेना का नेतृत्व करने का आदेश दिया और स्वयं चेतक पर स्वार होकर पुरे युद्ध को पहाडियों कि तरफ मोड़ दिया।. जहां पहाड़ियों पर भिलों ने युद्ध का मौर्चा सम्भाल लिया।. अतः महाराणा प्रताप चेतक को लेकर पर्वतों की तरफ निकल पड़े।. यहां चेतक ने स्वामी भक्ती निभाते हुयें 26 फुट कि खांयी को कुद कर अपनी स्वामी भक्ती निभाई मगर  अपने घाव के  कारण बलिचा गांव में नीचे गिर कर बेहोश हो गया।. दुसरी तरफ हल्दी घाटी के मैदानों में घमासान युद्ध चल रहा था। घाटी के दर्रो से राणा भुंजा भि मुगलों को कड़ी टक्कर दे रहे थे।.इस वक्त तक दोपहर हो चुकी थी हल्दी घाटी आग में जल रहे लोहे के समान तप रही थी।. जिसके कारण मान सिंह ने अपने पड़ाव को गो गूंदा कि पहाड़ीयो कि तरफ बढ़ना प्रारम्भ किया।.इस जाती हुइ मुगल सेना पर भील समुदाय के लोगो ने हमला करके उनके खाने एवं हथीयारों पर कब्जा कर लिया।.

मान सिंह को भिलों से इतना ड़र हो गया कि  जिस जगह पर रात में उसने अपना डेरा लगाया उसके चारों तरफ गहरी खांई खुदवा दी।. पुरी रात भीलों ने मुगलों और राजा मान सिंह को चैन से सोने नही दिया इसके साथ ही वे भुखे भी थे।. रात को मुगल सैनिकों ने कच्चे आम खा कर अपनी भुख मिटाई।. मान सिंह को अकबर नें महाराणा प्रताप को बंदी बनाकर अपने समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया था मगर उल्टा मान सिंह स्वयं पुरी रात मेवाड़ के भिल समूदाय का बंदी बनकर रह गया था। राजपुतों ने मुग़ल सेना का गर्व मिट्टी में  मिला दिया था।. मानसिंह और आजम खां जब खाली हाथ अकबर के दरबार में पहुंचें तो नाराज़गी दिखाते हुए उन्हे तीन महिने के लिए मुगल दरबार से बरखास्त कर दिया, इसके साथ ही उनके वेतन और सारी सुख-सुविधाओं से उन्हे वचिंत कर दिया गया, उनकी सम्पत्ति को जब्द कर लिया गया तथा उनके घोड़ो से शाही मौहर को उतार लिया गया।.हल्दी घाटी के युद्ध संग्राम के बाद महाराणा प्रताप कंबलगढ़ आ गये।. इस युद्ध में राणा श्री की तरफ से झालामान सहित तोमर राजवंश सहिंत तीन पिढ़ीयों ने एक साथ,एक ही समय पर एवं एक ही स्थान पर वीरगति को प्राप्त किया।.

बताया जाता है कि अफ्गान कि तरफ से महाराणा प्रताप का समर्थन करने वाले शासक हाकीम खान सूरी यूद्ध में गर्दन कटने के बाद भी लड़ते रहे।.

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