9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: घाघरा का युद्ध 1529

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सोमवार, 27 मई 2024

घाघरा का युद्ध 1529

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम घाघरा के युद्ध एवं इसके बिहार एवं दिल्ली शासन पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बात करेंगे।.इसके साथ ही इब्राहिम लोदी के भाई महमुद लोदी के प्रण एवं घाघरा के युद्ध में उसकी हार के प्रमुख कारणों के बारे में चर्चा करेंगे।.

महमुद लोदी की हार का मुख्य कारण 

महमुद लोदी ने स्वयं से किसी प्रकार कि युद्ध कि रणनीति नही बनाई थी जबकि उनको भारत में निमंत्रण देने का मुख्य कारण स्वयं कि रणनीति बनाकर बंगाल के शासक सुल्तान नुसरत शाह एवं बिहार के नाबालिग नवाब जलालुद्दीन लुहानी कि सेना का मार्गदर्शन करना था।.बिहार के नवाब के समर्थक एवं बंगाल के शासक महमूद लोदी को इसलिए महत्वपुर्ण समझते थे क्योंकि वह इब्राहिम लोदी का छोटा भाई थे जोकि इब्राहिम लोदी की मौत के बाद दिल्ली राजगद्दी के उत्तराधिकारी दवा रखते थे।.1526 में पानीपत की दूसरी लड़ाई में इब्राहिम लोदी की मौत के बाद मुहम्मद लोदी ने अपनी दावेदारी पेश कि थी।.1527 के खानवा के युद्ध में महमुद लोदी ने अपने करीबियों को खोनों से बहुत हताहत हुये थे जिसके कारण वे अपने बचे करीबियों को खोना नही चाहते थे परिणामस्वरुप वे घाघर के युद्ध में अपने लोगों को युद्ध में मोर्चा संभालते हुये नही देखना चाहते थे,इस प्रकार उनका डर पहले हि उनकी हार को सुनश्चित कर देता है।.
बाबर ने अपने गुप्तचर बिहार तथा बंगाल के पुरे क्षेत्र विशेष में फैला रखे थे अतः मुहम्मद लोदी गुप्त रणनीतियों को गुप्त रखने में असफल रहे जोकि उनकी हार के मुख्य कारणों में से एक हैं।.

युद्ध के पिछे कारण

बाबर कि बढ़ती शक्तियां युद्ध का मुख्य कारण थी जिसके तहत बंगाल शासक एवं बिहार के नाबालिग राजा सहित भारत के राजपुतों में दहशत का महौल था क्योंकि वे जानते थे कि जल्द ही बाबर उनके क्षेत्र विशेष पर भी हमला करेगा।.अतः राणा सांगा तथा अन्य शासकों कि मदत से महमुद लोदी का दिल्ली की राजगद्दी पर बिठाया गया था।.जिसे वे 1527 में खानवा के युद्ध में हार कर वे भाग कर गुजरात मे अपने अफगानि रिश्तेदारों के पास जा कर शरण ली।और उसके बाद बुंदेलखण्ड से पन्ना चले गये और उचित समय के आने का इंताजार करने लगे।.अतः बाबर कि बढ़ती शक्तियों को देखकर अफ्गान रियासतो के शासकों,बिहार,बंगाल तथा राजस्थान के राजपूतों ने मुहम्मद लोदी को वापस बुलाने का निर्णय लिया।.अतः जब सूल्तान मुहम्मद लोदी को बिहार की तरफ से यह निमंत्रण मिला तो सभी क्षेत्र वासीयों ने उन्हे समर्थन दिया ऐसा लगता था कि महमुद लोदी बिना किसी विरोध के पुरे बिहार पर शासन कर रहे है।.

युद्ध कि घटना का पूर्ण वर्णन

1529 में यह युद्ध मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर और इब्राहिम लोदी के भाई महमुद लोदी के बीच लड़ा गया था।.इस युद्ध से पहले खानवा का युद्ध और पानीपत का प्रथम और द्वतीय युद्ध हो चुका था।.इसके साथ हि यह बाबर का अंतिम युद्ध था जिसके बाद 26 दिसंबर 1530 में बाबर कि अज्ञात कारणों से बाबर कि मौत हो गयी जिसके बाद उसका बेटा हूमांयू गद्दी पर बैठा।.बाबर जो जब यह पता लगा कि मुहम्मद लोदी को क्षेत्रीय शासकों ने बिहार का शासक घोषिक कर के उसके प्रति विरोध का शडयंत्र रचा जा रहा है और बंगाल एवं बिहार सेना द्वारा बनारस के कुछ क्षेत्र विशेष पर कब्जा कर लिया गया है तब बाबर ने अपनी सेना को एक जूट होने का आदेश दिया और 27 फरवरी 1529 दादकी में घाघरा नदी के तट पर पहुंचा,यहां पर बाबर का समर्थन करने के लिए उसका बेटा हूमांयु एवं सेनापति असकरी अपनी सेना को लेकर बाबर का इंतजार कर रहे थे।.बाबर को पुनः अपने क्षेत्र में आता देख बंगाल सेना जबरन कब्जा किये क्षेत्र को छोड़ दिया।.
अपने मुखबिरों के माध्यम से पता चला कि सुल्तान महमुद लोदी अफगानों कि एक सेना के साथ बंगाल शिविर में है।.इसके साथ ही बाबर को यह पता चला कि सुल्तान लोदी अपने परिवार को सदस्यों कोा मोर्चे से हटाना चाहते थे मगर बंगालियों ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योकिं उनका मानना था कि ऐसा करने से सुल्तान युद्ध में पिछे हट सकते है।.बाबर कि सेना का शिविर नदीके दायीं तरफ था और बंगाली सेना का शिविर नदी के बायीं तरफ था।.बंगाली सेना के सेनापतियों ने नदी के बाएं किनारे पर 100-150 दबाज़ों का बेड़ा इकट्ठा कर लिया था जिसकी मदत से दुश्मन सेना को आसानी से नदी पार करने से रोका जा सकता था।.और वे तेज़ी से दाएं किनारे पर हमला करने में भी सक्षम हो गये थे।.परिणामस्वरुप बाबर नें चतुराइ से अपने चाल चलते हुए सेना के मुख्य भाग को नदी के नीचे मार्च करने का आदेश दिया।.ताकि दुश्मन अपने शिविर से बाहर आकर सामना करें।.(दरअसल) यह एक चाल थी ताकि बंगाली सेना को विचलित रखा जाये।.ताकि उन्हे सोचने का मौका न मिल पाये कि उनका दूश्मन अगली चाल क्या चलने वाला है।.
अतःबाबर कि सेना ने अपनी रणनीति के तहत अपने तोपखानों को नदी के बाये छोर पर ले जाना प्रारम्भ किया जिसके परिणाम स्वरुप एक तोपखानों के इस पार आने पर बंगाल सेना पर गोलाबारी प्रारम्भ कर दि गयी जिसके चलते बंगाल सेना में हाहकार मच गया।बाबर सेना को लगातार आगे बढ़ता देख बंगाल सेना ने पिछे हटने का निर्णय किया हला कि इससे पहले बंगाल सेना ने बाबर सेना को नदी के इस पार आने से रोकने के कयी अथक प्रयास किये मगर तोपखानों और गोलाबारुद के सामने टिक पाने में असफल रहे अतः सेना के अत्याधिक नुकसान से निपटने के लिए बंगाल सेना पिछे हट गई।.

युद्ध का परिणाम

युद्ध के दौरान महमुद लोदी ने भाग कर बंगाल के नवाब नुसरत शाह के यहां शरण ली जिसने युद्ध के नतीजाजन बाबर से संधि की,कि वे नातो एक दुसरे से युद्ध लड़ेंगे और न ही एक दूसरे के दुष्मन को पनाह देंगे।.युद्ध के नतीजा जन अफगानों की पूर्व में और परोक्ष रुप से दिल्ली में अपना शासन स्थापित करने कि उम्मीद को खतम कर दिया। युद्ध के पश्चात महमूद लोदी को बंगाल में ही एक जागीर दे दी गई। और शेरशाह के प्रयासो से बाबर ने बिहार के शासक जलालुद्दीन के राज्य के कुछ भाग पर कब्जा करके उसे अपना सांमत बना दिया।.इस युद्ध के बाद अफ्गानों की शक्ति कुछ समय के लिए क्षीण हो गयी।.यह बाबर द्वारा लड़ा गया अंतिम युद्ध था इस युद्ध के बाद 26 दिसम्बर 1530 में आज्ञात कारणों से बाबर कि मौत हो गयी।.

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