प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम भारत के प्राचीन कलाकारी के उदाहरण गुरुत्वाकर्षण विरोधी जार के बारे में चर्चा करेंगे इसके साथ हि इस तथ्या का पता लगाने की कोशिश करेंगे कि आखिर यह इतना खास क्यों है, इसके अलावा हम गुरुत्वाकर्षण विरोधी स्तम्भ के बारे में भि चर्चा करेंगे जिसका प्रयोग पुराने ज़माने में भुकम्प मापने के लिए किया जाता था इसके साथ हि यह सदियों से अपने विलक्षण तरीके से खाड़ा रहने के कारण यह प्राचीन भारतीय वास्तुकला कला का एक अनोखा उदाहरण है।.
गुरुत्वाकर्षण विरोधी जार
दरसल इसे गुरुत्वाकर्षण विरोधी जार इस लिए कहा जाता है कि क्योंकि यह न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम को झुठलाता है।.इसकी बनावट ने सभी को चकित कर दिया है कि आखिर कैसे ऊपर और निचे कि स्तह में छेद होने के कारण भी जार में रखा पानी निचे नही गिरता।.दरसल इस जार कि निचे कि सतह में पांच छेद है यही से जार को उल्टा करके पानी को भरा जाता है मगर सिधा करके के रखने पर भी पानी इसमें से निचे नही गिरता।. जार कि उपरी सतह पर भी कई सारे छेद है मगर पानी न तो यहां से भरा जा सकता है और न ही निकाला जा सकता है हमेशा पानी जार के नल से ही निकलता है।. इस प्राचीन जार को तामिलनाडु के कांचीपुरम म्युज़ीयम में रखा गया। भारतीय पुरात्तत्व विभाग ने यह दावा किया है कि इसका चलन भारत में लगभग 2000 वर्ष पहले था।. इसे कारीगरी जार के नाम से भी जाना जाता है जो प्राचीन भारत के कुम्हारों के अद्भुत कौशल को दिखाता है।.इस जार को तामिलनाडु के कांचीपुरम मिज़ियम में रखा गया है शोधकर्ताओं का दावा है कि यह जार लगभग 400 साल पुराना है।.
जार का मैक्निस्ज़म काम कैसे करता है
इस जार के अद्नर दो कोण आकार के नल लगे होते और दोनों कोण के अंतिम छोर पर दो एल आकार के एलबो लगे होते है। जिसके कारण जब आप इसको उल्टा करके इसमें पानी ड़ालते है तो सिधा करने पर तथा एलबो के कारण पानी को बाहर निकलने का रास्ता नही मिल पाता।.अतः पानी बाहर नही गिरता है। हमेशा पानी निकालने के लिए जार के नल का हि इस्तेमाल किया जा सकता है।इस जार को निर्माण करने कि तकनीक बताती है कि आज से 2000 हजार सालो पहले भी भारत पर रहने वाले मानव को गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में मालुम था।.यानि न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण बल के सिद्धांत देने से पहले भी भारत में गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में जानते थे।.हमारे ग्रंथों में गुरुत्वाकर्षण शब्द के लिए गुरुत्व मोहिनी शब्द का प्रयोग किया गया है इस का सर्वप्रथम प्रयोग 628 ई0 पुर्व भारतीय खगोलशास्त्री एवं गणीतज्ञ श्री ब्रह्मगुप्त जी द्वारा किया गया था।.
गुरुत्व मोहिनी
गुरुत्व मोहिनी के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण के बल को परिभाषित किया गया है।.इसका प्रमाण हमें 17 सितम्बर 2022 में कर्नाटक राज्य के हसन जीले में 12 वीं सदी में बना चेन्नाकेशवा के मंदिर में मिले है।.दरसल मंदिर में ऐसी कलाकृतीयां तथा स्तम्भ मिले हैं जो यह प्रमाणित करते है कि उस समय के वास्तुकला के जानकार गुरुत्वाकर्षण बल से भली-भांति परीचित थे।. इस मंदिर का निर्माण 1171 ई0 में राजाविष्णु वर्धन द्वारा होयसल साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी बेलूर मेंं यागाची नदी के तट पर बनवाया गया था।.इस मंदिर को केशवा य बेलूर के विजयनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।. बताया जाता है कि 1926 में महात्मा गांधी तथा पं0 जवाहर लाल नेहरु एवं उनके साथी एवं पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री मोहम्मद अली जिन्ना भी इस मूर्ति कला को देखने के लिए कई बार इस मंदिर में गये थे।.
गुरुत्वमोहिनी मुर्ति का वर्णन इस प्रकार है कि मुर्ति के सर पर रखे हाथ से पानी की एक बूंद नीचे कि तरफ गिरती है जो मोहिनी के माथे के बीचों-बिच से होते हुुए मुर्ति के बाँए स्तन के निप्पल को छुते हुये, दोनो पैरों के बिच बांए पैर के अंगुठे पर जा कर गिरती है और उसके बाद धरती पर आकर गिरती है। ऐसी अद्भुत कला कृति पर अभी तक विज्ञानिकों द्वारा किसी प्रकार को शौध संभव नही हो पाया है कि आखिर यह किस कौशलकला का प्रमाण है।.लेकिन देखा जाये तो सम्पुर्ण प्रशनों का जवाब हमें मंदिर की अन्य मुर्तियों के माध्यम से मिलता है।.
मंदिर की सम्पुर्ण कला कृतियों से आकर्षण के अस्तित्व कि व्याख्या बड़े सूक्ष्म ढ़ंग से कि गई है जैसे सम्पुर्ण वस्तुएं अपने से बड़ी वस्तुओं कि प्रति आकर्षित होती है इसके प्रमाण के लिए गुरुत्वमोहिनी कि एक बड़ी मुर्ति मिलती है जिसके अगल बगल जो साधुओं कि मुर्ति मिलती है जीनके लिंग का झुकाव गुरुत्व मोहिनी की तरफ है।. अतः यह आकर्षण बल को समझाने का इक उचित प्रमाण है।.इसी प्रकार एक अन्य गुरुत्वमोहिनी कि मूर्ति की लकड़ी की मूर्ति में मोहिनी कि नाभी ही नही है यानि वे कभी पैदा ही नही हुई है।.जो प्रमाणित करता है कि स्त्री का माध्यम लेकर गुरुत्वाकर्षण बल को समझाया गया है।.शोधकर्ताओं द्वारा देखा गया कि इस मुर्ति के समान हि कई अन्य मूर्ति में भी नाभी नही थी यानि यह प्रमाणित होता है कि नाभि न बनाने का कार्य त्रुटिवश नही किया गया है।.
खोज का मुख्य आधार
17 सितम्बर 2022 में खोज को आधार तब मिला जब मंदिर के बाहर खड़े स्तम्भ से एक गोल पत्थर जमीन पर गिरा।.इसी बिच इस क्षेत्र विशेष में 2.3 रीयेक्टर पैमाने की आधार गति से भुकंप का आना था काफी पुराना होने का कारण लोगों का लगा लगी कि स्तम्भ गिरने वाला है मगर गोल पत्थर के गिरने से सबके मन से उत्सुकता जागृत कि आखीर यह पत्थर ऊपर कैसे पहुंचा और भुकंप के समय हि क्यों गिरा।.अतः जांच प्रारम्भ हुई जिसमें पता लगा कि स्तम्भ बिना किसी ने के समर्थन के खड़ा है इसके साथ हि इसके स्तम्भ मात्र तीन स्लैव पर हि खड़ा है यानि स्तम्भ का एक स्लैव सदा हवा में रहता है इसके प्रमाणन के लिए कपड़े कि एक पतली शीट को आर-पार करके देखा गया।. उपरोक्त कारणों ने शोधकर्ताओं को सोच में ड़ाल दिया कि आखीर स्तम्भ किस आधार पर खड़ा है इसके साथ हि स्तम्भ के ऊपर की तरफ लम्बाई 42 फिट कि है और यह तीन फीट चौड़ा है जिसका वज़न लगभग 45 टन अनुमानित किया गया है स्तम्भ के उपर कि ओर एक नट के आकार कि आकृति का पत्थर है और उसके उपर एकआयता कार पत्थर रखा गया है जिस के चारो तरफ जंग लगी घंटीयां थी देखने से ऐसा लगता है कि एक समय में काल के दौनान ये तेज गति से आये भुक्पं के कारण बजती रही होंगी ओर ये नट के आकार की पत्थर की आकृति गति करती होगी।.
अतः प्रमुख शोधकर्ताओं द्वारा यह दावा किया गया है कि यह मंदिर अदभुत कलाकृति के साथ गुरुत्वाकर्षण के अस्तित्व को प्राचीन समय से जानकारी होने को प्रमाणित करता है।.
(स्रोत parveen moahan youtube channel and google research)
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