प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में बनारास विद्रोह के बारे मेंं चर्चा करेंगे। ये भारतीयों द्वारा किया गया पहला विद्रोह था जिसमें भारतीयों कि जीत हुई थी।.इस विद्रोह का इतिहास धुंधला सा गया है अंग्रेजों द्वारा इस विद्रोह के साक्ष्यों को बदलने कि पुरी कोशिश की गई। मगर क्षेत्रीयों लोगो के पुर्वजों का इतिहास मिटा पाना इतना आसान नही था।.इस लेख में हम बनारास के राजा चेत सिंह तथा उनके सहयोगियों,मिर्जा वाजीर अली,तथा बनारत के घरछडी अन्दोलन के बारे में चर्चा करेंगे।.बनारस के क्षेत्र में बनारस विद्रोह तीन बार हुए जीनमें से बनारस में हुए सर्वप्रथम विद्रोह को अधिक महत्व दिया जाता है।.
विद्रोह का मुख्य कारण
पहला बनारस विद्रोह को राजा चेत सिंह द्वारा अपने साम्राज्य को बचाने के लिए किया गया।.
दुसरा बनारस विद्रोह अवध के नवाब के धातक पुत्र द्वारा अपनी सत्ता पुनः हासिल करने के लिया गया।.
तीसरा बनारस विद्रोह जीसे हम घरछडी अन्दोलन के रुप में भी जानते है यह विद्रोह हाऊस टैक्स कर के खिलाफ हुआ था।.
पहला बनारस विद्रोह
यह विद्रोह 16 अगस्त 1781में काशी के राजा महाराज चेत चेत सिंह और ब्रिटिश अफसर वारेन हेस्टिंग के बीच हुआ था। बताया जाता है की 1781 के समय काल के अनुसार काशी को भारत का हृदय कहा जाता था। उस समय काशी की तुलना भारत की बड़ी रियासतो में की जाती थी।.जिसके चलते ब्रिटिश संसद में बनारस के क्षेत्र को काफी चर्चा थी की अगर काशी पर ब्रिटिशस का कब्जा हो जाता हैं तो उनकी अर्थ व्यवस्था और व्यापार में बड़ा विकास होगा।.
अतः ब्रिटिश संसद के आदेश के परिणाम स्वरूप तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग द्वारा राजा चेत सिंह पर अनायास आरोप लगाए की वे प्रशासन व्यस्था को सुचारू रूप से नही चला रहे हैं और ब्रिटिश कानून के प्रति ईमानदार प्रवृति के नही है अतः उन पर 50 लाख का मान हानि का जुर्माना लगाया जाता है। जिसे राजा ने देने से मना कर दिया।.राजा चेत सिंह ने अंग्रेजो के मनसूबे भांप कर अपनी पड़ोसी रियासतों ग्वालियर,मराठा,पेशवा से इस बात पर संधि कर ली की यदि जरूरत पड़ी तो वे फिरंगियों को भारत से खदेड़ने में राजा उनकी मदत करेंगे।.
मार्कहम
यह एक ब्रिटिश संदेश वाहक था। 14 अगस्त 1781 दिन शनिवार को वारेन हेस्टिंग कलकत्ता से एक सेना लेकर समुद्र के रास्ते बनारस आता है।. बताया जाता है की अंग्रेज सेना ने अपना पड़ाव माधव दास सतिया के बाग में डाला था। अगले दिन वारेन हेस्टिंग अपने सहयोगी मार्कहम के हाथो राजा को एक संदेश भेजता है। जिसका राजा द्वारा जवाब तात्कालिक प्रभाव से दिया जाता है। 15 अगस्त को संदेश आदान-प्रदान सिलसिला दिन भर चलता है।
16 अगस्त को वारेन हेस्टिंग राजा से मिलने पानी पूरी सेना लेकर आता है। राजा के द्वारपाल द्वारा पूछे जाने पर वे आना कानी करता है और महल में मात्र 3 लोगो के जाने आदेश मांगता है।.राजा के आदेश पर फिरंगियों को अंदर आने दिया जाता है। वारेन हेस्टिंग को लगता है की उसके आधुनिक हथियारों और सेना को देख कर राजा आत्मसमर्पण कर देंगे और बनारस पर उसका राज्य स्थापित हो जाएगा।.मगर यहां बाजी उल्टी पड़ जाती हैं। 16 अगस्त को सावन का अंतिम सोमवार था जिसके कारण राजा अपने रामनगर किले की बजाय, भगवान शंकर की पूजा करने के लिए गंगा के इस पार छोटे किले शिवाला घाट पर आए थे।.इसी किले में उनकी तहसील का एक छोटा सा कार्यालय भी था।.
बाबू नन्हकू पहलवान
जब वारेन हेस्टिंग ने राजा को निहत्था देख कर उन पर बंदूक तान दी। उसी समय ट्रिगर दबाने से पहले राजा के अंगरक्षक बाबू नहंकू सिंह ने वारेन हेस्टिंग के उस अफसर का सर धड़ से अलग कर दिया। यह देख हड़बड़ाहट में वारेन हेस्टिंग किले से बाहर भागा ।. उन्हें ऐसे भागता देख राजा के गुप्तचर जोकि किले के बाहर छिपे थे उन्हें तथा सैनिकों ने युद्ध की घोषणा कर दी ।.और सभी अंग्रेज फिरंगियों को काटना प्रारम्भ कर दिया।.
युद्ध लगातार चार दिन तक चला।.लगभग सैंकड़ों की संख्या में अंग्रेज सैनिक झटके में काट दिए गए।. भारतीयों को इस हिसंक तरीके से तलवार चलता देख हेस्टिंग डर गया और भाग खड़ा हुआ।. वारेन हेस्टिंग को पकड़ लिया गया उनके मंत्री बाबू मनियार सिंह ने राजा को उसे मार देने का आदेश दिया। मगर दिवान बक्शी सदानंद के आदेश से उसे छोड़ दिया गया। बताया जाता है की अगर उस दिन राजा ने वारेन हेस्टिंग को मार दिया होता तो भारत कभी भी अंग्रेजो का गुलाम न बन पाता।.
ओसान सिंह
यह राजा का कर्मचारी था जिसे राजा द्वारा अपने राजदरबार से एक विशेष गलती के कारण बाहर निकल दिया था । इसी ने वारेन हेस्टिंग के साथ मिलकर राजा को मारने का षड्यंत्र रचा था। षड्यंत्र विफल होता देख इसी ने वारेन हेस्टिंग की भागने में मदत की। इसने वारेंन हेस्टिंग को माधव दास की बाग में अवस्थित कुएं में छिपा दिया।. रात को माधव दास बाग के मालिक पंडित बेनी राम ने उसे औरतों के कपड़े पहना कर , पर्दा बंद पालकी में बिठा कर रवाना किया तथा पालकी वालो के बताया की बहन जी विंध्याचल देवी के दर्शन करने जा रही हैं।.इस तरह वारेन हेस्टिंग्स चुनार पहुंचा और वहां से कलकत्ता भाग गया।.
शीला लेख
आज भी शिवाला घाट पर अंग्रेजों द्वारा अंकित शीला लेख मौजूद है जिस के अनुसार उस दिन राजा चेत सिंह द्वारा लेफ्टिनेंट स्टॉकर,लेफ्टिनेंट स्काट तथा लेफ्टिनेंट जार्ज स्मेलास सहित दो सौ सैनिक मारे गए।.यह सच में काशी का दुर्भाग्य ही है की इस घटना का काशी में आज तक कोई स्मारक स्थल नहीं बन पाया हैं।. सिवाय अंग्रेजो के उस शीला लेख के।.
दूसरा बनारस विद्रोह
यह विद्रोह 14 जनवरी 1799 में ही बनारस के 18 वर्षीय नवाब मिर्जा वज़ीर अली खान ने किया।. यह अवध के नवाब आसफ उद्दौला के दत्तक पुत्र थे। चूक के नियम अनुसार वे राज गद्दी नही संभाल सकते थे। अतः अंग्रेजो ने मात्र 4 माह के शासन काल के बाद उन्हें गद्दी से उतार दिया तथा रामनगर के किले में नजरबंद कर दिया गया।. बिना अंग्रेज अफसरों के आदेश के उनसे किसी को मिलनी की अनुमति नहीं थी।.इधर उन्हें गर्वनर नील द्वारा कलकत्ता ले जाने का आदेश दिया गया।अतः वजीर अली खान को ब्रिटिश मंसोबो के पहले ही से पता था। जिसके चलते उन्होंने ने अपने सहयोगी इज्जत अली खान और वारिस अली खान से 200 सिपाहियो से सेना इक्कठा करने को कहा।.
कमांडर चेरी
14 जनवरी 1799 में मिर्जा वज़ीर अली खान ने कलकत्ता चने से पहले ,अपना पक्ष रखने के लिए कमांडर चेरी से मिलने की इच्छा प्रकट की गई।. अदेशा अनुसार उन्हें कमांडर चेरी से मिलने का आदेश दे दिया गया।. बातो बातों के दौरान तलवारे नकल गई और वजीर अली खान तथा उनके सहयोगियों द्वारा (कमांडर चेरी,कैप्टन कानवे,रॉबर्ट ग्राहम,रिचर्ड इवांस सहित 7 ब्रिटिश अफसर को मौत के घाट उतार दिया गया।.इन सातों को मकबूल आलम रोड पर स्थित ईसाईयों के कब्रिस्तान में दफनाया गया।. जो वर्तमान समय में भी बनारस में मौजूद है।
बनाए गए स्मारक पर वजीर अली खां का भी नाम अंकित है।उस समय कलकत्ता के जनरल आर्सेनिक थे जिन्होंने ने अपनी फौज बनारस भेजी , वे वजीर अली खां पकड़ नहीं पाए वे अंग्रेजो के चकमा दे कर राजस्थान भाग गए।. मगर जयपुर के तात्कालिक महाराज ने उन्हें धोखा दिया और वे पकड़े गए।.एंट्री उन्हें कलकत्ता की पोर्ट विलियम जेल भेज दिया गया।. वर्ष 1817 में वजीर अली खां की जेल में मौत हो गई।.
तीसरा बनारस विद्रोह
इसे घरछड़ी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।. यह आंदोलन हाउस टैक्स यानी ग्रह कर को लेकर को हुआ था।. अंग्रेजों द्वारा बनारसियों को बनारस में रहने के लिए उनके घर पर यह कर लगाया था। यह विद्रोह 26 दिसंबर 1810 से प्रारंभ हो कर 11 जनवरी 1811 तक चला।. अन्त में यह विद्रोह अंग्रेजो द्वारा दबा दिया गया।.(अगर आप लेख से संबंधित कोई समस्या या जानकारी साझा करने चाहते है तो हमे जरूर लिखे)
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