प्रस्तावना
यह भारत का पहला ऐसा विद्रोह था जो की भारत में बिद्ममान जातिगत भेदभाव को लेकर किया गया था। इसका मुख्य लक्ष्य भारत की जनता को बिना किसी जातिगत भेदभाव के एक जुट करना था।.प्रस्तुत लेख में हम वायकाम सत्याग्रह तथा इसके पीछे के मुख्य कारणों को जानेंगे।.इसके साथ ही हम 1857 की क्रांति एवम भारत की जनता पर वयकाम सत्याग्रह का क्या असर पड़ा,के बारे में चर्चा करेंगे।.विद्रोह की संपूर्ण कार्यों का वर्णन करने के साथ ही विद्रोह के मुख्य पात्रों एवं उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों का भी वर्णन करेंगे।.
विद्रोह का मुख्य कारण
इस आंदोलन का मुख्य कारण केरल के त्रावणकोर की रियासत में विद्यमान सामंत वादी सोच,सैन्यवाद और रीति रिवाजों से ग्रस्त कुरूरता थी।.त्रावणकोर का क्षेत्र दो वर्गों में विभाजित था।.स्वर्ण वर्ग एवं अस्वर्ण वर्ग।.स्वर्ण वर्ग को अपने विपरित वर्ग से 16 से 32 फीट की दूरी बनाए रखनी होती थी। इसके साथ ही उनका मंदिर में प्रवेश वर्जित था।."वायकाम सत्याग्रह" एक महत्वपूर्ण विद्रोह था जिस ने भारतीय आजादी संग्राम के समय महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का पूरा समर्थन किया था।
यह विद्रोह उनके अनुयायियों को व्यापक असहमति का एक प्रकार सुझाती है जिसका उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आम लोगों के सहयोग को जीतना। "वायकाम" का अर्थ है'बाध्यता' या 'अपने आप को समर्पित करना'और"सत्याग्रह" का अर्थ है'सत्य के लिए आग्रह'। महात्मा गांधी ने वायकाम सत्याग्रह की तकनीक को प्रदर्शित करने के लिए आम लोगों को अपने साथ उपवास या व्रत करने के लिए कहा। यह विशेष रूप से उन अवसरों पर किया गया जब उन्हें लगा कि ब्रिटिश सरकार के निर्णय को खट्टा बनाने के लिए आम लोगों का साथ चाहिए। उन्होंने इसे ऐसे संदर्भ में अपनाया जब किसी भी सामाजिक समस्या को हल करने के लिए आवश्यक था और वहां कोई अन्य विधि सफल नहीं हो रही थी।
इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य सामाजिक बदलाव को लाना और अपने हित के लिए सत्य के पक्ष में लोगों को संगठित करना है। इस तकनीक का प्रयोग महात्मा गांधी के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में किया गया और यह एक प्रभावी रूप से उन्होंने भारतीय समाज को संगठित किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सामाजिक और आर्थिक बाधाओं का मुकाबला किया।.महात्मा गांधी ने 1920 से 1924 तक कई अहम आंदोलन और अभियान चलाए,जिनमें वायकाम सत्याग्रह एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
हालाकि की यह आंदोलन उनके द्वारा नही चलाया गया था। बल्कि उनके अनुयायियों द्वारा इस आंदोलन को चलाया गया था ताकि वे महात्मा गांधी की असहयोग आंदोलन में समर्थन कर सके।.इस आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक असहमति को जगाना और उन्हें अपने (भारतीयों के) आधिकारों को लेकर संज्ञान में लाना।.इस असहयोग सत्याग्रह के दौरान,गांधीजी ने जनता को अपने आधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने और अपने अधिकारों के लिए सरकारी कार्यालयों को अस्थायी रूप से बंद करने की सलाह दी। इस अभियान ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और अधिक प्रभावशाली बनाया और लोगों को जागरूक किया।
वायकाम सत्याग्रह
सत्याग्रह का अर्थ है 'सत्य'और'आग्रह'। इसका अभिप्राय है कि जब कोई व्यक्ति या समूह अपने सिद्धांतों या मांगों को प्राप्त करने के लिए अधिकारिक तरीके से सत्य के लिए संघर्ष करता है,वे सत्याग्रही कहलाते हैं। इसमें हिंसा का प्रयोग नहीं होता,बल्कि अहिंसा का पालन किया जाता है। सत्याग्रह का उद्देश्य सत्य को प्रकट करना और अन्य लोगों को उसके पक्ष में आकर्षित करना होता है।सर्वप्रथम विद्रोह की आवाज टी0 के0 माधवन द्वारा स्वयं की समाचार पत्रिका (देशाभिमानी) में छुआ-छूत पर लिखे-लेख द्वारा उठाई।.दरअसल 1924 के समय अनुसार केरल काफी पिछड़ा इलाका था।.यहां छोटी जाति के लोगो को बड़ी जाति के लोगो से कम से कम 16 से 32 फीट की दूरी बना कर रखनी होती थी।.
उन्हें मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए नहीं जाने दिया जाता था। उन्हें अछूत समझा जाता था।.अतः इसके परिणामस्वरूप समाज दो वर्गों में विभाजित था।.इस दो वर्गीय विभाजन को भारत की गुलामी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। चुकीं उस समय जातिगत भेदभाव की भावना चरम पर थी जिसके परिणाम स्वरूप भारतीयों को आपस में लड़ना व एक-दूसरे के प्रति भड़का कर आंतरिक रहस्यों को जानना बहोत आसान था।.अतः किसी भी व्यक्ति के जीवन के कमजोर पहलुओं को जानकर उसे हर क्षेत्र में मात दी जा सकती है।.विद्रोह के मुख्य पत्र
विद्रोह के मुख्य पात्रों की सूची में केरल के नारायण गुरु जो की उस समय काल के महान संत थे,टी0 के0 माधवन जो की उस समय एक समाचार पत्रिका के संस्थापक एवम कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे इसके साथ ही अन्य सदस्य एन कुमार,के० पी० केशव मेनन,एम० के० गांधी,आई० वी० आर० पेरियार थे।.
नारायण गुरु
वे भारत के महान संत और एक समाज सुधारक थे। इनका जन्म केरल के एक साधारण परिवार में 22 अगस्त 1856 में हुआ था।.इन्होंने दक्षिण केरल में नापर नदी के किनारे अरूविप्पुरम नामक स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया था।.यह पूरे भारत का पहला ऐसा मंदिर था जन्हा कोई भी किसी भी जातिगत भेदभाव के पूजा अर्चना कर सकता था।.जिसके चलते जातिगत समाज में हंगामा खड़ा हो गया था।नारायण गुरु सदैव यह कहते थे की ईश्वर न तो पुजारी है और न ही किसान,वह सब में है।.वैसे इस दुनिया का सर्वोच्च धर्म तो वही है जिसमे संपूर्ण समाज,प्राकृतिक और इस दुनिया के प्रत्येक जीव जंतु के प्रति सम्मान और अधिकार हो और जिस धर्म को बिना किसी प्रतिबंध के निभाया जा सके।.
T.K माधवन
इनका दुसरा नाम देशाभिमनी माधवन भी है। इनका जन्म केरल के कार्तिकपल्ली में अलुम मुत्तिल परिवार के केसवन चन्नार और कोमले जथू परिवार की उम्मीनी अम्मा के पुत्र के रूप में 2 सितंबर 1885 में हुआ था।.अलुम मुत्तिल परिवार त्रावण कोर के तात्कालिक समराज्य के सबसे धनी और प्रभावशाली एझावा परिवारों में से एक था।.वे कांग्रेस पार्टिबके सदस्य होने के साथ ही देशभिमानी नामक समाचार पत्रिका के संस्थापक भी थे।.विद्रोह के मुख्य नेता टी० के० माधवन थे उन्होंने विद्रोह की शुरुवात अपनी समाचार पत्रिका में छुआछूत पर अपने विचार रखे। जिस पर समस्त बुद्धिजीवों ने अपना समर्थन दिया।.इस प्रकार 30 मार्च 1924 में वायकाम आंदोलन का आयोजन हुआ।.
आंदोलन के दौरान वे अपने सहयोगी दल (जिसमे स्वर्ण और अवर्ण दोनो शामिल थे) को लेकर गांव के सुप्रसिद्ध शिव मंदिर में प्रवेश किया।.टी० के० माधवन एवं उनके सहयोगियों द्वारा मंदिर के पुजारियों एवं त्रवनकोर की सरकार द्वारा मंदिर के प्रवेश पर लगाई गई बाड़ को पार कर मंदिर में प्रवेश किया।.जिसके चलते सभी सत्या ग्राहियों को गिरफ्तार कर लिया गया। अतः संपूर्ण भारत के भिन्न भिन्न क्षेत्र के स्वयंसेवक संघ ने सत्या गराहियों के समर्थन में विरोध किया।.मार्च 1925 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में त्रावण कोर की महारानी से मंदिर में प्रवेश को लेकर आंदोलन कर्ताओ के मध्य के समझौता हुआ।.
स्वयं सेवक संघ की स्थापना
वायकाम आंदोलन के प्रभाव के चलते केरल में श्री नारायण धर्म परिपालन स्वयं सेवक संघठन की स्थापना हुई।.जिसका मुख्य कार्य केरल की निचली जातियों के उत्थान के लिए कार्य करना था।. जनता को अक्रोशित होता देख त्रावणकोर के महाराज ने सन 1936 में मंदिर प्रवेश उद्दघोषण पर हस्ताक्षर किए।.इस उद्दघोषण के बाद केरल राज्य के प्रत्येक मंदिरों से निचली जातियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया।.अतः विद्रोह का समापन हुआ।.2023 में कांग्रेस पार्टी द्वार काडीनाडा में वायकाम विद्रोह 84 पूरे होने पर वर्षगांठ मनाई गई।.यह विद्रोह अपने समय काल के अनुसार भारतीय जनता द्वारा उठाया गया एक अहम कदम था।.
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