भारतीय स्वतंत्रता सेनानी की कहानी तात्या टोपे की अनसुनी कहानी सुनें। उनके जीवन के उल्लेखनीय किस्से और उनके योगदान को जानें।.
प्रस्तावना
तात्या टोपे,भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक उज्ज्वल तारे की तरह चमकते हैं। उनकी वीरता, बलिदान,और राष्ट्रप्रेम ने देश को आजादी की राह पर अग्रसर किया।. प्रस्तुत लेख में तात्या टोपे के 1857 के में दिये गये महत्वुर्ण योगदान के बारे में चर्चा करेंगे इसके साथ हि हम उनके नाम पर महत्वपुर्ण स्मारकों के बारे में चर्चा करेंगे।.
उनका जीवन
तात्या टोपे का असली नाम महानायक रामचंद्र पाण्डुराव पंत था। उनका जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले के येवला नामक गांव में 6 जनवरी 1814 में हुआ था। उनका जन्म देशरथ कुलकर्णी परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम श्री मति रुकमणी बाई था एवं उनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्रम्बक था।.उनका बचपन गरीबी में बीता,लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और निरंतर प्रयासों से उच्च उद्दीपन प्राप्त किया।तात्या टोपे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी थे। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बहुत साहसी कार्य किए और भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। टोपे ने 1857 के विद्रोह के दौरान अपनी साहसिकता और नेतृत्व के माध्यम से लोगों को प्रेरित किया और उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उनकी बहादुरी और समर्थन ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दिशा दिया और भारतीय जनता को स्वाधीनता की लड़ाई में जुटने के लिए प्रेरित किया।.उन्होंने नानासाहेब पेशवा के सेनानी के रूप में काम किया और उनकी नेतृत्व में एक समर्थ सेना बनाई। 1857 की विद्रोह में,टोपे ने लखनऊ के उपनगरीय इलाके में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह का मुख्य केंद्र बनाया। उन्होंने बहुत साहसिक कदम उठाए और अपनी अनूठी योजनाओं के माध्यम से ब्रिटिशों को पराजित किया। लेकिन अंत में,टोपे को पकड़ लिया गया और उन्हें 8 अप्रैल,1859 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। तात्या टोपे की शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम में एक नया जोश और उत्साह भरा। उनकी साहसिकता और बलिदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रूप में अमर बना दिया।
उनका योद्धा जीवन
तात्या ने युवा उम्र में ही भारतीय सेना में शामिल होकर अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता और साहस को सलामी दी जाती है।.अपने प्रारम्भिक जीवन काल में शिक्षा ग्रहण करने के बाद ब्रिटीश भारतीय सेना कि बंगाल रेजीमेंट के तोपखाने में कार्य किया।.कुछ इतिहासकारों का मानना है कि तोपखाने में काम करने के कारण ही इनके नाम के आगे टोपे शब्द जुड़ा।.
1857 के विद्रोह में उनकी भूमिका
पेशवा बाजीराव के सेनापति के रूप में
तात्या टोपे ने पेशवा बाजीराव के सेनापति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश के खिलाफ सशक्त सेना का नेतृत्व किया।अतः श्रीमन्त नाना साहेब धोंडोपंत पेशवा ने तात्या टोपे को अपना सैनिक सलाहकार बना कर उन्हे ये मौका दिया।.ब्रिगेडियर जनरल हैवलौक ने ब्रिटीश सेना की कमान इलाहाबाद से सम्भालते हुए कानपुर पर आक्रमण किया।.नाना साहेब कि सेना ने विरता से युध्द लड़ा मगर तकनिकी हथीयारों के आगे ज्यादा समय तक टिक नही पाये और अंत मे 16 जुलाई 1857 में उनकी हार हुई।.जिसके परिणाम स्वरुप तात्या टोपे को कानपुर छोडना पडा वे भाग कर 14 मिल दुर बिठुर मे आये और सेना का पुनरगठन का कार्य प्रारम्भ किया।.सेना एकत्र करके उन्होने एक बार फिर कानपुर पर आक्रमण किया,मगर इस बार भी उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा। उपर्युक्त दो हारो के बाद भी वे पिछे नही हटे राव साहेब सिंधिया के क्षेत्र कि प्रसिध्द सेना टूकड़ी ग्वालियर कन्टिजेन्ट का समर्थन पाने में सफल रहे।.इस प्रकार एक बार कानपुर पर आक्रमण किया और अबकी बार युध्द में विजय हासिल की। मगर इस विजय की खुशी कुछ ही पल कि थी।.6 दिसम्बर 1857 में सर काॅलिन कैम्पबैल ने कानपुर पर हमला कर के उन्हे एक बार फिर से पराजित कर दिया। पुनः पराजय के बाद वे भागने में सफल रहे और खरी पहुंचे। खरी उस समय काल के दौरान ब्रिटीश सेना के अधिन था अतः अपने सहयोगियो के साथ मिलकर खरी को लुटने से सफलता हासिल कि।.
तात्या टोपे का योद्धा जीवन
तात्या टोपे का योद्धा जीवन उनकी शौर्यपूर्ण कार्यों से भरा था। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश के लिए बलिदान दिया। उन्हे कई बार घेरने का प्रयास किया गया मगर अपने सहयोगियों एवं पैनी सोच के कारण हार बार भागने मे सफल होते थे। राजस्थान और मध्या प्रदेश में उन्होने कयी छापमार लड़ाईयां लडी जिससे अंगेजो कि रातों कि नींदे हराम हो गई। भीलवाडा और कंकरीलि में भी इन्होने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध लडा मगर यहां पर उन्हे हार का सामना करना पडा।.तात्या टोपे को हर जगह से मिलने वाले सहयोग से उन्हे ऐसा लगा कि इसी प्रकार धिरे-धिरे युद्ध लड-लड के भारत को अंग्रेजो के चंगुल से आजाद करा लेंगे। मगर हर कोइ व्यक्ति हमारी विचार धारा से मेल खाये ऐसा होना सम्भव नही है।.
अतः उन्हे नरवर के राजा मान सिंह द्वारा उन्हे धोखा दिया गया और उन्हे 7 अप्रैल 1859 में परोन नामक स्थान पर सोते वक्त पकड़ लिया गया।.15 अप्रैल शीवपुरी में कागजी कार्यवाही के पुरा करते हुए उनका कोर्ट मार्शल किया गया। खास बात यह है कि उनके द्वारा दिये गये सभी बयानो मे उनका नाम तात्या टोपे लिखा गया। अंग्रेजो द्वारा किये गये इस कार्य से उनका नाम तात्या टोपे पडने का मुख्य कारण कुछ इतिहासकार कारण मानते है। अपने बयानों में उन्होने स्वीकार किया कि स्वाधिनता संग्राम में वे अपनी भागीदारी स्वीकार करते है।18 अप्रैल 1859 में उन्हे सरे आम दो बार फांसी पर चढ़ाया गया।अंग्रेजो का मानना था कि वे इतना जल्दी मरने वालो मे से नही थे। मगर सच तो यह था कि वे फांसी देने से पहले हि मर चुके थे।.
तात्या टोपे कि मौत का कारण
तात्या टोपे स्टेडियम
निष्कर्ष
तात्या टोपे की विरासत हमें यह सिखाती है कि समर्पण और बलिदान ही असली वीरता है। इसके साथ ही हर किसी पर अन्धा भरोसा करना अपके लिए घातक साबित हो सकता है।.अपने चाहने वालों को समय समय पर परखते रहना चाहिए।.
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