प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम सोनम वांगचुक के जीवन तथा सरकार के साथ मिलकर किए गए उनके महत्वपुर्ण कार्यो के बारे में चर्चा करेंगे। इसके साथ ही हम उनके द्वारा निर्मित आइस स्तुप तथा उनकी उपलब्धीयों के बारे में चर्चा करेंगे।.वर्तमान समय में वह पुरे भारत के लिए गर्व के प्रतीक क्यों है,उनके अनशन करने का मुख्य कारण क्या है,इस भी पर चर्चा करेंगे।.
चर्चा का विषय
हाल ही के वर्षो में वाराणसी के जाने माने इंजीनियर GD अग्रवाल का निधन हो गया। एक इंजीनियर होने के साथ ही वे पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड के सदस्य भी थे। वर्ष 2018 में वाराणसी की गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए उन्होंने 111 दिनों का आमरण अनशन किया। जिसके दौरान उनकी जान चली गई।. बहुत से लोगो को तो उनके बारे में पता भी नही होगा। मगर एक सच्चे भारतीय के लिए वे एक प्रेरणा स्रोत थे। या यूं कहे कि वे भारत के कोहिनूर हीरे के समान थे।लोग अपने घर परिवार समाज के लिए जान देते है मगर उन्होंने अपने देश के लिए अपनी जान दे दी। क्यूंकि वे जानते थे की गंगा नदी प्रदूषण से देश की आने वाली पीढ़ियां कई बीमारियों का शिकार होंगी।.लेकिन भारतीय समाज और सरकार ने उनकी मांगों को मानना तो दूर उन्हे श्रद्धांजलि तक अर्पित नहीं की।.आज वे जीवित होते तो अपने ज्ञान से जाने ना जाने किन किन क्षेत्रों में हमारा मार्गदर्शन करते।.उन्ही के समान भारत के एक और इंजीनियर सोनम वांगचुक अपनी जान देने के लिए तैयार खड़े हैं।.हाल ही के दिनों में लद्दाख में इन्होंने 21 दिनों का मात्र पानी पी कर अनशन किया। लद्दाख की जनता ने इनका पूरा समर्थन किया है। अनशन का मुख्य मुद्दा यह की वे लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने के साथ संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को संरक्षित करने की मांग है।.
दरअसल धारा 370 के भाग 2 को हटा कर सरकार द्वारा उद्योग पतियों के लिए रास्ते खोल दिए ताकि क्षेत्रीय लोगो और उद्योग पतियों को इसका लाभ मिल सके और लद्दाख और कश्मीर के क्षेत्र में अब कारखाने तथा उद्योग स्थापित किए जा रहे है। जिसके परिणामस्वरूप लद्दाख में पेड़ो की कटाई,खनन का कार्य तथा कटाई चंटाई का काम जोरों पर है। जिसके कारण पर्यावरण प्रवर्तित हो रहा।.सोनम वांगचुक और लद्दाख वासियों का मानना हैं कि ऐसा लगातार होता रहा आने वाले दिनों में पर्यावरण संकट के आसार बढ़ जाएंगे।.अतः क्षेत्रीय लोगो की मांग है कि उनके क्षेत्र में भी चुनाव हो और मुख्य मंत्री चुने जाएं। जो क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षण को लेकर कानून बना सके।.हमें डर इस बात का भी कही एक बार फिर भारत का इंजीनियर अपनी जान न दे दें।.
जीवन परिचय
सोनम वांगचुक जन्म 1 सितम्बर 1996 को लद्दाख के अलसी जिले में हुआ। वे पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर और एक समाज सुधार है। वर्तमान समय में वे HIAC यानि इंजीनियर आफ अल्टरनोटिव्स लद्दाख के निदेशक है। 2018 में इन्हे रेमन मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया। 1998 में एक स्कूल की नींव रक्खी जिसका मकसद ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग देना है जो सिस्टम द्वारा नकार दिया गया हो।.इस स्कूल के माध्यम से इन्होंने ने काफी प्रसिद्धि हासिल की।.स्कूल का नाम SECMOL यानी स्टूडेंट एजुकेशन एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख है।.स्कूल की खास बात यह भी हैं पूरा कॉलेज सोलर एनर्जी पर चलाता हैं।.वर्ष 1994 में इन्होंने भारत के सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में सुधार को लेकर एक मिशन जारी किया जिसका नाम ऑपरेशन न्यू होप था। स्थानीय लोगो ने इस ऑपरेशन की काफी सराहना की।.इनके पिता एक कांग्रेसी नेता थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इतनी अच्छी नहीं रही।9 साल पूरे हो जाने पर इन्होंने श्री नगर के एक स्कूल में दाखिला लिया।.उम्र में छोटे छात्रों के बीच बैठने इन्हे कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। क्यूंकि ये थोड़ा अलग दिखते थे जिससे इन्हे व्यंग्यात्मक भाषा के प्रयोग से बुलाया जाता था। प्रारंभ में तो वे नहीं समझते थे मगर धीरे धीरे जब जब इसके बारे में पता चला तो इन्हे बहुत दुख हुआ।.उस समय को सोनम वांगचुक अपने जीवन के सबसे अंधकार मय दौर के रूप में याद करते है।.
1977 में भागकर दिल्ली आए और केंद्रीय विद्यालय के प्रिंसिपल के सामने अपनी समस्या को रखा और इस प्रकार उनकी शिक्षा सुचारू रूप से प्रारंभ हुईं।.1987 में NIT यानी राष्ट्रीय औद्योगिक संस्थान श्री नगर में मैकेनिकल इंजीनियर में एडमिशन लिया।.इनके पिता इन्हे किसी अन्य विषय पर शिक्षा दिलाना चाहते थे। अतः इंजीनियरिंग स्ट्रीम की पसंद पर उनकी अपने पिता से मतभेद के कारण उन्हें अपनी शिक्षा का खर्च खुद उठाना पड़ा।.1988 में स्नातक की पढ़ाई के बाद सोनम वांगचुक ने अपने भाई और सहयोगियों के साथ मिलकर SECMOL की स्थापना की।.2001 में उन्हें सरकार द्वारा हिल कौंसिल में शिक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था। 2005 के उन्हें मानव संसाधन मंत्रालय में प्रारंभिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय गार्वनिंग काउंसिल में सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था।.2007 से 2010 तक उन्होंने ने एक शिक्षा सलाहकार के रूप में एक दिन संस्था में काम किया। जिसे एक डेनिस एनजीओ द्वारा संचालित किया जाता था।.2011में वे उच्च शिक्षा लेने के लिए फ्रांस के ग्रेनोबेल में अवस्थित स्कूल craterre school of architecture से earthen architecture यानि मिट्टी की वास्तुकला में शिक्षा हासिल की।.2013 में एक IEC PROTO TYPE बनाया जो एक कृत्रिम ग्लेशियर है जो सर्दियों के दौरान बर्बाद हो रहे जलधारा के पानी को एक विशाल बर्फ के शंकु के रूप में संग्रहित करता है।.
बर्फ का स्तूप
इस परियोजना को जनवरी 2014 में प्रारंभ किया गया।.इसको बनाने का मुख्य लक्ष्य अप्रैल,मई के महीने में जलसंकट की समस्या का समाधान खोजना था।.ये बर्फ का स्तूप सर्दियों के दौरान बर्बाद हो रहे पानी को एक विशाल बर्फ के शंकु में संग्रहित करता है।.फरवरी 2014 के अन्त में उन्होंने सफलता पूर्वक एक बर्फ के स्तूप का दो मंजिला प्रोटो टाइप बनाया था।.जिसमे लगभग 1,50,000 लीटर शीतकालीन पानी संग्रहित किया गया।.जिसका इस्तेमाल किसान अपनी फसलों की सिंचाई के लिए सायिफन तकनीक का इस्तेमाल करके आसानी से कर सकते थे।अब उन्हें बारिश का इंतजार करने की आवश्यकता नही थी।.
सायिफन तकनीक
2015 में जब लद्दाख में भूस्खलन के कारण लोगो भारी संकट का सामान करना पड़।.तब भूस्खलन के कारण जास्कर की फुगताल नदी का मार्ग अवरूद्ध हो गया। जिस कारण उस क्षेत्र ने 15 किलोमीटर की एक लंबी झील बन गई।.जो की निचली आबादी के लिए बड़ा खतरा थी।.सोनम कांगचुक ने झील के पानी को निकलने के लिए जेट कटान के माध्यम से पाइप या पुल्ली डालकर निकलवाना चाहते थे। उनका विचार था की झील को नष्ट न किया जाए।.मगर क्षत्रिय अधकारियों को पानी निकलने की बड़ी जल्दी थी। परिणाम स्वरूप विस्फोटक पदार्थों के इस्तमाल से पानी के बहाव ने बाढ़ का रूप धारण कर लिया। 7मई 2015 में झील ने बाढ़ का रूप ले लिया जिसके चलते 12 पुल,हजारों खेतो के फैसले यन्हा तक की बहुतायत लोगो की जाने भी चली गईं।.सायिफान तकनीक पर उनका पहला प्रोजेक्ट सिक्किम सरकार के माध्यम से पूर्ण हुआ। राज्य द्वारा उन्हें और उनकी टीम को राज्य की एक खतरे से ऊपर बह रही झील के लिए सायिफन तकनीक लागू करने के लिए बुलाया गया।.सोनम वांगचुक की टीम ने 2 सप्ताह तक झील पर बारिश,बर्फबारी और ठंड को सहते कड़ी मेहनत के बाद सायिफन तकनीक का पहला चरण स्थापित किया।.
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