प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम रानी गाइदिन्ल्यू तथा उनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों के बारे में चर्चा करेंगे।. इसके साथ ही हम नागा आंदोलन,एवं मणिपुर विश्व विद्यालय और मणिपुर में पाए जाने वाली पूरी दुनिया की सबसे अनोखे फूल की प्रजाति की चर्चा करेंगें।.
रानी गाइदिन्ल्यू
इन्हे रानी माँ या रानी गाइदिन्ल्यू जेलियांग के नाम से भी जाना जाता है,भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थीं,खासकर उत्तर-पूर्व भारत क्षेत्र में। उनका जन्म 26 जनवरी 1915 को,वर्तमान में मणिपुर,भारत में नुंगकाओ गाँव जिसे लुआंग ओ के नाम से भी जाना जाता है में हुआ था।.गैदिनलीऊ वे छोटी आयु में ही नागा आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता हैपू जादोनांग से प्रेरित हुई,तो वे राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो गई। जादोनांग आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ और नागा लोगों को ईसाई बनाने के खिलाफ किया था।.वे मणिपुर से अंग्रेजो को बाहर खदेड़ना चाहते थे।.29 अगस्त 1931 में जब जादोनांग को ब्रिटिशस ने गिरफ्तार कर बाद में फांसी दी,तो बालिका गाइदिन्ल्यू ने मात्र 17वर्ष की आयु से ही उनके संघर्ष में आगे बढ़ाया। वें बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की महिला थीं।.
विद्रोह के संचालन कर्ता के रूप में
उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कठोर संघर्ष के लिए जेलियांगरोंग लोगों को संगठित किया।17 अप्रैल 1932 में,ब्रिटिशस द्वारा अचानक उन पर हमले के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और जीवन कायापलट के कारण दण्डित किया गया।.हालांकि,जनता के दबाव और उनकी छोटी आयु (उनकी गिरफ्तार के समय उनकी आयु केवल 16 वर्ष थी)के कारण,उनकी सजा को 14 वर्ष की कठोर कारावास से कम किया गया। गाइदिन्ल्यू को अंततः 1947 में ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के बाद जेल से रिहा किया गया।.उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में शामिल रहकर पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी लोगों के अधिकारों के आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने गांधी जी असहयोग आंदोलन से प्रभावित हो कर न देने की घोषणा की।.उन्होंने जेलियांग्रोंग यूनियन का गठन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उनकी पूरे जीवनकाल में,रानी गैदिनलीऊ उत्तर-पूर्व भारत में नागा और अन्य प्राचीन जनजातियों के बीच श्रद्धांजलि का विषय बनी रहीं। नेता जादोनाग की मौत के बाद समुदाय के लोगो ने संतोष फैल गया।.उनके द्वारा कहे वचन "उन्होंने ने अपने लोगो का पथ प्रदर्शित करते हुए कहा की आज नेता जी की बारी थी कल हमारी आ सकती है। सो अगर हम उनकी मौत का बदला य आंदोलन जारी नही रखेंगे तो हमारा ये विद्रोह निर्थक होगा ही इसके साथ ही नेता जी का बलिदान भी निर्थक चला जायेगा।.आज हम जो कुछ भी कर रहे है,वो हमारी आने वाली पीढ़ियों के जीवन संरक्षण तथा उन्हें स्वतंत्रता से जीने का अधिकार प्रदान करेगा।.16वर्षीय गाइदिन्ल्यू ने अपने समाज के लोगो में प्रतिशोध की आग भर दी। उन्होंने मात्र 4000 नागा सिपाहियो के साथ अंग्रेजो की सेना का सामना किया।.वे गोरिल्ला युद्ध में बहुत निपुण थी।.नागा जनजाति के उनके प्रति विचार
अपने वीरता पूर्ण कार्यों के कारण गाइदिन्ल्यू को नागा समुदाय द्वारा नागालैंड की रानी लक्ष्मी बाई कहा जाता था। छापामार युद्ध और शस्त्र संचालन में वे अत्यन्त निपुण थी।.अंग्रेज उन्हें निर्दयी और खूंखार नेता मानते थे।.दूसरी तरफ जनजाति समूह के लोग उन्हें अपना उद्धारक मानते थे।.उनके द्वारा किए गए आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजी ने कई गांव जला के रख कर दिए। रानी साहिबा के नाते उन लोगो के उत्साह कभी कम नहीं हुआ।.शास्त्र नगाओं ने मिलकर आसाम राइफल की सरकारी चौंकी पर हमला कर दिया।.लूटपाट और चौंकी को आग लगाने के बाद वे सभी 4000 सैनिक और गाइदिन्ल्यू एक साथ एक ही स्थान पर रहते थे।.जिसके कारण उन्हें घेरना और पकड़ना आसान हो गया।अतः 17अप्रैल 1932 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।.जब 1947 में आजादी के बाद उन्हें रिहा किया गया तब वे अपने भाई मारंग के साथ तुयेनसांग के विमरप गांव में रहीं।.उनका निधन 17 फरवरी 1993 को हुआ,लेकिन उनका स्वतंत्रता सेनानी और प्राचीन अधिकारों के प्रशंसक के रुप में विरासत अब भी बनी हुई हैं।.
भारत सरकार द्वारा दिए गए सम्मान
1972 में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया।.उन्हें 1982 में भारत के तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान,पद्म भूषण से सम्मानित किया गया,जो उनके राष्ट्र के प्रति योगदान की पहचान में था। 1983 में उन्हें विवेकानंद सेवा सम्मान दिया गया।.1996 में उन्हें बिरसा मुंडा पुरस्कार दिया गया। उनकी मृत्यु के बाद भी,रानी गाइदिन्ल्यू का योगदान और उनका वीरता का परिचय लोगों के बीच और गहरा हो गया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय जेल में काटा,लेकिन उनकी साहस,संघर्ष और अदम्य संग्राम की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है और उन्हें एक अद्वितीय स्थान प्राप्त है। उनके साहस और समर्पण को सम्मान देना अब भी हम सभी का दायित्व है,ताकि हम भी उनकी प्रेरणा से उत्तराधिकारी समाज और राष्ट्र के निर्माण में योगदान कर सकें।.रानी गाइदिन्ल्यू की कहानी हमें यह सिखाती है कि साहस,संघर्ष और निष्ठा से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। उनका जीवन एक प्रेरणास्रोत और एक संघर्ष का उदाहरण है,जो हमें स्वतंत्रता,न्याय और समानता के लिए लड़ने की महत्वपूर्णता को समझाता है। उनकी योगदान को स्मरण करके,हमें अपने समाज के साथ मिलकर उन्हें याद करते रहना चाहिए और उनके सपनों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। उनकी विरासत को सम्मान और सत्कार करना हमारी जिम्मेदारी है,ताकि हम एक सशक्त,समृद्ध,और समान समाज की दिशा में अग्रसर हो सकें।.
नागा आंदोलन
इस आंदोलन का मुख्य कार्य स्वयं को भारत से अलग कर संप्रभु नागालैंड का निर्माण करना था।.जिसको लेकर निम्नलिखित कार्य किए गए।.1.1881 में नागा हिल्स भारत का हिस्सा बन गया।.2.नागा समुदाय द्वारा 1918 में नागा क्लब का निर्माण किया गया। 3.1929 में नागा क्लब ने साइमन कमीशन को खारिज कर दिया।.4.1946 में में नागा क्लब n.n.c यानी नागा क्लब कौंसिल में परिवर्तित हो गया।.5.14 अगस्त 1949 में नागालैंड ने स्वयं को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में परिभाषित किया।.6.22 मार्च 1952 में उनके नेता फिजो ने अंडरग्राउंड नागा फेडरल और नागा फैडरल आर्मी का गठन किया।.7.1956 में विद्रोह अपने चरम पर था।उनका मुख्य उद्देश्य भारत से नागा क्षेत्र को अलग करना था। अतः स्वतंत्र भारत ने 1958 में शास्त्र बाल अधिनियम ( विशेष अधिकार) को अपनाते हुए नागालैंड में अपनी सेना भेजी।.8.1975 में सरकार के साथ हुए समझौते के परिणाम स्वरूप NNC और NFG ने अपने हथियार त्याग दिए।.9.1980 में नेशनल सोशोलिस्ट काउंसलिंग ऑफ नागालैंड का गठन हुआ।.10.1998 में NSCN IM)में और K में टूट गया।.11.1991 में लंदन में फीजो की मौत के बाद IM को उस क्षेत्र के सभी विद्रोह की जननी कहा जाने लगा।.
मणिपुर
यह भारत के पूर्वोत्तर में स्थित एक राज्य है। इस राज को राजधानी इम्फाल है। मणिपुर के उत्तर में नागालैंड,दक्षिण में मिजोरम,पश्चिम में आसान और पूर्व में म्यांमार है। राज्य का क्षेत्रफल 22347 वर्ग कि० मि० है। यानाहा के लोग मणिपुरी भाषा बोलते है जिसे मेइतलोन भी कहते है। मणिपुर एक संवेदनशील राज्य की श्रेणी में आता है।आजादी से पहले यह एक रियासत थी। आज़ादी के बाद यह भारत का केंद्रशासित राज्य बना।.इस राज्य में प्राकृतिक संसाधनों का प्रचुर भंडार है। यहां पर विभिन्न प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियां पाई जाती है। लो कटक झील यहां की एक महत्वपूर्ण झील है। भौतिकी विश्लेषण के कारण इस राज्य को दो भागों पहाड़ियों और घाटियों में बांटा गया है। मणिपुर को अल्फ्रेड बास्केट के नाम से भी जाना जाता है।.मणिपुर में कुल 16 जिले है। यहां के लोग लोग संगीत और कला के बहुत शौकीन होते है।पहाड़ी की ढालों पर चाय तथा घाटियों में धान की पैदवार की जाती है। राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है।.
जनजाति समूह
मणिपुर में कुकी,मैतेई,नागा जनजाति की लगभग 60 से भी ज्यादा उपजातियां पाई जाती है।.
शिरोई लिली
मणिपुर की पहाड़ियों में एक शिरोई लिली नामक एक दुर्लभ फूल पाया जाता है। फूल की विशेषता यह है की इसे सूक्ष्म दर्शी द्वारा देखे जाने पर इसमें सातों रंग देखे जा सकते है इसके साथ ही यह इस लिए भी महत्त्वपूर्ण की यह संपूर्ण विश्व में सिर्फ मणिपुर की पहाड़ियों पे पाया जाता है।.
मणिपुर यूनिवर्सिटी
मणिपुर विश्वविद्यालय की स्थापना 5 जून 1980 को (1980 मणिपुर यूनिवर्सिटी Act) के तहत की गई।.यूनिवर्सिटी को 13/10/2005 में एक केंद्रीय विद्यालय के रूप में स्थापित कर दिया गया।.28 दिसंबर 2005 में मैकेनिकल यूनिवर्सिटी अधिनियम संख्या 54 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई।.वर्तमान समय में विश्वविद्यालय में 2 मेडिकल कालेज सहित 116 संबद्ध कालेज है। मेडिकल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का कालेज(संयुक्त राज्य अमेरिका)के विश्वविद्यालय का एक घटक कालेज है।मास्को की राजधानी कचीपुर इंफाल में स्थित है। विश्व विद्यालय परिसर कांचीपुर में 28,783 वर्क किलो मीटर में फैला हुआ है। विद्यालय परिसर नोबेल के पुराने "द लांगथा बल केनुंग" महल के स्थान पर बना हुआ है। इस महल के निर्माण करता महाराजा गंभीर सिंह थे।.यह स्थान कांचपुर के प्रसिद्ध कवि डा० लामाबम कमल का जन्म स्थान भी है।.
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