प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम रम्पा विद्रोह , विद्रोह के मुख्य पात्रों ,1882 के मद्रास वन अधिनियम के कानून के बारे में चर्चा करेंगे।.इसके साथ हि हम विद्रोह के मुख्य पात्र अल्लूरी सीता रामाराजू द्वारा किये गये कार्यो पर प्रकाश डालेंगे।.लेख में 1879 में हुए विद्रोह और 1922 में विद्रोह में अंतर स्पष्ट करते हुए दोनो विद्रोह कि प्रमुख घटनाओ का वर्णन किया गया हैं।.1879 का विद्रोह
1879 का यह विद्रोह आंन्ध्रा प्रदेश के विशाखापत्तनम के क्षेत्र में हुआ ।.विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रजो का उनके क्षेत्र मे अनावश्यक प्रवेश था।. तथा उस समय का वन कानून था।.जिसके चलते रम्पा जनजाति समुदाय में आक्रोश था इस कानून के तहत ताडी दौहन को अवैध करार दिया गया तथा ताडी दौहन पर कर लगा दिया गया।.रम्पा जनजाति के लोग जंगल को ही अपना घर समझते थे। अतः चेदालंदकोडला के भीमा रेड्डी ने दमनकारी कानून का विरोध करते हुए और रेडीज सेना का गठन किया ।.प्रारम्भ में उन्होने वन रेंज पोस्ट के ब्रिटीश पुलिस स्टेशन पर हमला किया।. धीरे धीरे विद्रोह विशाखापत्तनम, भद्रचलम तालुक की गोलकुंडा पहाडीयों तक फैल गया।. कुछ हि समय में विद्रोह पुरे जीले में फैल गया।.मद्रास सरकार ने पुलिस कर्मियों कि कई कंपनीया जैसे पैदल सेना, घुडसवार सेना,सैपर और खनिको की दो कंपनियां और हैदराबाद सेना से एक पैदल सेना रेजीमेंट भेजकर जवाब दिया।. अतः विद्रोह को दबा दिया गया तथा भीमा रेड्डी की तथा उनके सहयोगियो कि निर्मम हत्या कर दी गईं।. इस प्रकार प्रथम रम्पा विद्रोह समाप्त होता है।.1922-1924 का विद्रोह
इस विद्रोह का नेतृत्व अल्लूरी श्री सीता रामराजू ने तथा उनके सहयोगी नेता करम तमन्ना डोरा, अम्बेल रेड्डी ने किया था।. इस विद्रोह के दौरान गौरिल्ला युद्ध विशाखापत्नम कि गोलाकुण्डा कि पहाडीयो तथा भद्रचलम कि पहाडीयों क्षेत्र में हुआ था।.विद्रोह का मुख्य कारण
सर्वप्रथम विद्रोह का मुख्य कारण मद्रास वन अधिनीयम 1882 था।. इस कानून के तहत वे वन में रह तो सकते थे मगर वन कि किसी वस्तु का उपभोग नही कर सकते थें।.इस कानून के तहत रम्पा जाति द्वारा कि जा रही पौंड़ खेती को रोक दिया गया।. पौंड़ खेती रम्पा जाति के लोगो के जीवन यापन करने का मुख्य आधार थी।. जिसके परिणाम स्वरुप यह विद्रोह का एक मुख्य कारण बना।.इसके साथ ही यह ऐसा क्षेत्र था जो मलेरिया और काला पानी बुखार प्रसार के लिए जाना जाता था।.इन बिमारीयो से उनके संरक्षण के लिए किसी भी प्रकार कि सुविधा मद्रास सरकार द्वारा नही प्रदान कि जाती थी ब्लकि लागातार कर और टैक्स लागाये जा रहे थे।.रम्पा जनजाति के लोगो को वनों के सरंक्षण को लेकर रोक लगाई गयी थी वहीं अंग्रेज स्वयं वनों को काटकर वहां पर रेल मार्ग एवं अन्य उपयोगी स्थल अपने लिए बनाते जा रहे थे।.
पठारी क्षेत्रों में बसे लोगों कि अपेक्षा वनों तथा पहाडीयों बसे लोगो के प्रति अंग्रेजों का व्यवहार काफी क्रुर था।.
पठारी क्षेत्रों में बसे लोगों कि अपेक्षा वनों तथा पहाडीयों बसे लोगो के प्रति अंग्रेजों का व्यवहार काफी क्रुर था।.
अल्लुरी सीता रामराजु
अल्लुरि सीता राम राजा, जिन्हें अक्सर लोग अल्लुरि सीता रामराजु या अल्लुरि सीता राजा भी कहते हैं, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वह आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गाँव से थे और इन्होने ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अपनी अहम भूमिका को निभाई। अल्लुरि सीता राम राजा आंध्र प्रदेश के जंगलों में गुप्त रूप से ऑपरेशन करते थे। उन्होने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सेना का नेतृत्व किया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।अल्लुरि सीता राम राजा ने आंध्र प्रदेश के आदिवासी जनजातियों को रम्पा विद्रोह के माध्यम से संगठित किया और उनके साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया।.उन्होंने 1920 में एक छोटे से ग्रुप के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और 1922 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बडी जनजाति सेना के साथ विद्रोह से अंग्रेजो की नींदे उड़ा दी। उनके साहसिक और स्वतंत्रता प्रेम की भावना को देखकर, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया और उन्हे 7 मई 1924 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमर रहेगा और उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्मरण किया जाता रहेगा।.
1882 का मद्रास वन अधिनियम
हलांकि इस कानून को बनाते समय पर्यावरण सरंक्षण तथा वन संरक्षण,वन्य जीव सुरक्षा, के वादे किये गये।. मगर इस कानून को बनाने का मुख्य लक्ष्य रम्पा जनजाति पर अपना शासन स्थापित करना था।. तथा वनों को काट कर उन पर रेलवे स्टेशन तथा जहाज एअर पोर्ट बनाना चाहते थें।.इस अधिनियम के तहत वन कि किसी भी वस्तु का उपभोग करने के लिए कर का नियम बनाया गया। ताडी उतारना गैरकानूनी करार दिया गया जोकि रम्पा जनजाति का एक पारंपरिक पेशा था।. इस कानून के तहत रम्पा जाति द्वारा कि जा रही पौंड़ खेती पर रोक लगा दी गयी जोकि इनके जीवन यापन करने का मुख्य हिस्सा था।.दरअसल इस जनजाति के लोग पहाडीयो पे पानी न रुकने कारण इस पद्धति का इस्तेमाल कृषि करने के लिए करते थे।. एक सिमीत क्षेत्र के जंगल को जला कर वहां पौंड़ बनाकर खेता किया करते थे।. यह एक विशेष प्रकार का गढ्डा होता है जिसमें बरसात के पानी को इकट्ठा किया जाता था. और इस पानी को फसलो कि सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता था।.1882 का मद्रास वन अधिनियम भारतीय वन नीति का एक महत्वपूर्ण कदम था।. इस अधिनियम के तहत, वनों के प्रबंधन, उपयोग और संरक्षण के लिए नियम बनाए गए थे। इसका उद्देश्य वनों के संरक्षण को मजबूत करना, वन्य जीवन की रक्षा करना और वनों के सही उपयोग को सुनिश्चित करना था। यह अधिनियम वन्य जीवन की सुरक्षा, वन संभाल, और वन्य जीवन के सहयोग के लिए महत्वपूर्ण था।
इसके अंतर्गत, वन क्षेत्रों को क्षेत्रीय समुदायों के लिए निर्धारित किया गया और वनों के उपयोग को नियंत्रित किया गया।.मद्रास वन अधिनियम, 1882 के तहत, वन्य जीवन के संरक्षण और उनकी बचाव की देखभाल के लिए अद्यतित नियम और प्रावधान शामिल थे। इस अधिनियम ने वन्य जीवन के नाश को रोकने के लिए वनों की बचाव को महत्वपूर्णता दी। यह अधिनियम वन्य जीवन की संरक्षा, वन संभाल, और वन्य जीवन के सहयोग के लिए महत्वपूर्ण था। इसके अंतर्गत, वन क्षेत्रों को क्षेत्रीय समुदायों के लिए निर्धारित किया गया और वनों के उपयोग को नियंत्रित किया गया। यह अधिनियम भारतीय वन नीति के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम था जो वन्य जीवन की सुरक्षा और उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था।
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