प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम मुंडा विद्रोह,मुंडा जनजाति,विद्रोह के पीछे के मुख्य कारण की खोज की कोशिश करेंगे। इसके साथ ही हम बिरसा मुंडा के जीवन और विद्रोह में उनके योगदान एवं उनके द्वारा किये गये महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार के बारे में चर्चा करेंगे।.
बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा एक महान स्वतंत्रता सेनानी और तानाशाह थे। उनका जन्म 1875 में झारखंड के एक गांव में हुआ था। वे मुंडा जनजाति से संबंधित थे और उन्होंने अपने जीवन में आदिवासी समुदाय की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया और उनके नेतृत्व में आदिवासियों ने भूमिहारों और अन्य अत्याचारियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने जदयू समुदाय को एकजुट किया और उन्हें अपने अधिकार के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।.बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने प्रभाव को कमजोर करने और लोगों को समुदाय के अधिकार के लिए लड़ाई की शिक्षा दी। उनका प्रभाव आज भी जनजातीय समाज में माना जाता है और उन्हें उनके साहस और चिन्हों के लिए सम्मान दिया जाता है। बिरसा मुंडा एक जनजाति मुक्ति सेनानी थे और उल्गुलान या मुंडा के विद्रोह के महत्वपूर्ण आंदोलन में एक मुख्य पात्र थे।.19वीं सदी के अंत में विद्रोह,वर्तमान समय के झारखंड,भारत के छोटा नागपुर ऑप्रेशन क्षेत्र में प्रमुख रूप से हुआ। वह उन जन-जातीय लोगों के लिए एक साथ आने वाले चित्र बन गए जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद और भूमिधरों और धनग्राहकों के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के तहत शोषण और प्रचार का सामना कर रहे थे।.जीवन परिचय
1875 में इनका जन्म झारखंड के छोटा नागपुर के क्षेत्र में मुंडा जनजाति के सदस्य सुगना मुंडा के यहां हुआ।.के अनुसार भारत में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार बहुत तेजी से चल रहा था। वे हिन्दू धर्म को अंधेरे कुँए की खाइयाँ कहते थे। उस समय भारत पर ब्रिटिश शासन था और ब्रिटेन ईसाई धर्म को मानता था। जिसका परिणाम स्वरूप ईसाई धर्म को विपरीत से अंग्रेजी में बोहत सी द्वारा दिया जाता है।.जैसे स्वयं के साथ अपने विद्वानों में पढ़ने का मौका देना,खाद्य सामग्री और समर्थक का मांस खाने के लिए भर्ती करना या कर में छूट और अधिक देना आदि।.अपने बचपन में बिरसा मुंडा ने स्वयं ईसाई धर्म को अपना लिया था। वे हिन्दू से ईसाई बन गये थे। उनका ईसाई में परिवर्तित नाम बिरसा था। वे ईसाई विद्यालय में पढ़ते रहे।.
पुनः हिन्दू धर्म आगमन
1858 से 1895 के बीच चल रहे सरदार विद्रोह से प्रभावित होकर उन्होंने भी विद्रोह में अपना योगदान दिया। विद्रोह में सरदार अंग्रेज किसानों की खुद की जमीन पर अनाज उगाने के लिए कर वसूली की गई थी,जिसका विरोध उनके क्षेत्र के गांव के मुखिया ने किया था,जिसे सरदार आंदोलन का नाम दिया गया था। ईसाइयों ने 1886 में अपने स्कूल और गिरजा मंदिर में प्रवेश से इनकार कर दिया। मूलतः उन्हें अंग्रेजी और ईसाइयों की धारणा में समझा गया एक ही हैं। यह हमें कहते हैं और धर्म को बढ़ावा देते हैं।.
आनंद पादरे
दोस्तो!एक नेक काम करने वाला और सभी का नैतिक भला चाहने वाला व्यक्ति ही संत होता है चाहे जहाँ भी हो वह व्यक्ति सादे कपड़े पहने हो या किसी और धर्म का हो। आनंद पादरे वैष्णव धर्म का मठ थे। वर्जिन ने बिरसा मुंडा की हिंदू धर्म में वापसी की पूरी प्रक्रिया पूरी की।.पूरी प्रक्रिया के बाद बिरसा मुंडा ने मांसखाना छोड़ दीं और हल्दी लगी,वस्तुत:धोती और जनेव धारण करने लगे।.
बिरसात का जन्म
हिंदू धर्म में पुनः आगमन के बाद बिरसा मुंडा ने हिंदू धर्म का प्रचार बड़े जोर शोर से किया।.मुंडा ने अंध विश्वास और सामाजिक कुरितियों का विरोध बढ़ाया। बिरसा ने अपने लोगो को अंग्रेजी के कानून और अपने कुनीटिक राजनीति से लोगो को साक्षत्कार करने के लिए भी प्रेरित किया।.
विद्रोह के पीछे का मुख्य कारण
विद्रोह की शुरुआत मुंडारी जाति की पारंपरिक व्यवस्था खुंटकटी जमीदारी व्यवस्था में परिवर्तन के कारण हुई। मगरअंग्रेजी ने अपनी चतुराई करने वाले लोगों के लिए अपने क्षेत्र का जमीदार बनाना शुरू कर दिया,जिसके परिणाम स्वरूप विद्रोह की शुरुआत हुई।.इस विद्रोह का केंद्र बिंदु छोटा नागपुर का क्षेत्र था और वन्हा से ही यह विद्रोह सभी क्षेत्रों में फैला हुआ था।.विद्रोह को महिलाओं का भारी समर्थन मिल रहा था।.बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश और ईसाई धर्म का कड़ा विरोध करने के लिए विद्रोह की शुरुआत की। क्रिसमस का त्यौहार 24 दिसम्बर 1899 में..मूल रूप से गोल्ला सेना का गठन किया गया। सरकारी उत्पाद,पुलिस स्टेशन,इंजीनियरों के घरों को आग लगा दी गई। विदेशी वस्त्रों और विदेशी सामुहिकों को बहिष्कृत कर दिया गया।.
बिरसा मुंडा ने जनजातीय लोगों के बीच एकता की आवश्यकता पर जोर दिया और उनकी पारंपरिक रीति-रिवाजों और जीवन शैली को पुनर्जीवित करने की मांग की।आंदोलन का बड़ा हिस्सा संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक अन्यायों की प्रतिक्रिया के रूप में विशेष रूप से दिया गया,जिसमें भूमि-हार शामिल है। प्रदर्शन की आवंटन व्यवस्था और धार्मिक प्रसार शामिल थे। बिरसा मुंडा और उनके नक्षत्रों ने अपने समूह के लिए भूमि अधिकार,व्यवहार और स्वामिता की मांग की। प्रोटोटाइप आधुनिक रिज़ॉर्ट से एक ब्रिटिश सेना का गठन किया गया है जिसमें बिरसा मुंडा और उनके सहयोगियों की मृत्यु हो गई है।.
निर्मम हत्या कांड
सेना के गठन की बात सुन कर बिरसा मुंडा और उनके साथियों को पीछे हटना पड़ा। धनुराशि और भाला बंदूकों के साथ कोई काम नहीं था। कर अंधविश्वास फिल्म की मुख्य भूमिका में बिरसा मुंडा के सभी सहयोगी मारे गए। यह घटना जेल वाले बाग हत्याकांड से पहले ठीक थी। मगर इस भीषण हत्या कांड का दृश्य एक समान ही मार्मिक है।.सेना बिरसा मुंडा को गिरफ़्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। जेल में ब्रिटेन के विद्रोहियों की मृत्यु हो गई।.
विद्रोह का परिणाम
- विद्रोह के परिणाम स्वरूप(छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम)अर्थात छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया। इस नियम के अनुसार अब गैर-सरकारी अधिकारों को "आदिवासियों की भूमि"के स्थानान्तरण पर रोक लगा दी गई है।.
- बिरसा मुंडा को धरती अब्बा भूमि का देवता और भगवान बिरसा भी कहा जाता है।
- भारत के आज़ाद होने के बाद 15 मार्च 2000 को बिहार पुनर्स्थापन अधिनियम 2000 के मध्यम से बिहार के दक्षिणी हिस्से को काटकर झारखंड की स्थापना भारत के 28 वें राज्य के रूप में हुई।
- विपक्षी सरकार के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक ने उड़ीसा के राउरकेला क्षेत्र के बिरसामुंडा अंतराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम की स्थापना 5 जनवरी 2023 को की। इसे दुनिया का सबसे बड़ा हॉकी स्टेडियम होने का खिताब मिल गया है। इस 29 जनवरी 2023 को इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम होने की मान्यता प्राप्त हुई।.
उनकी विरासत भारत में सामाजिक न्याय और जनजातीय अधिकारों के लिए प्रेरणा देने का काम करती है। बिरसा मुंडा जयंती हर साल 15 नवंबर को मनाई जाती है।.यह उन्हें समर्पित है,जो एक महत्वपूर्ण आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और तानाशाह थे।.उनकी जयंती को भारत भर में सम्मान दिया जाता है,विशेषकर झारखंड और छत्तीसगढ़ में उनके जीवन और कार्यों को याद किया जाता है। बिरसा मुंडा ने अपने जीवन में जनाब समुदाय के संघर्षों और अधिकारों की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई।.
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