प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम मोमोरिया के मुख्य कारणों तथा भारत के अहोम साम्राज्य पर इसके प्रभाव के बारे में चर्चा करेंगे।.इसके साथ ही पाईका प्रणाली तथा वैष्णव धर्म से इसके सम्बधं के बारे में चर्चा करेंगे। मोमोरिया विद्रोह मुख्य रुप से चार चरण में हुआ था।.
विद्रोह का मुख्य कारण
यह विद्रोह आसम के अहोम साम्राज्य मे हुआ था।.विद्रोह के कारणो समझने के लिए हमें पाइका प्रणली तथा मोमोरिया के सत्र मायामरा तथा इससे सम्बंधित अन्य 11 सत्रों के बारे में समझना होगा ।.1769 में मायामरा के मठाधीश अस्तभुज और उनके बेटे का भरी सभा मे अपमान किया गया। जिसके चलते प्रजा मेें असतोंष फैल पहले हि फैल गया था।.अहोम राजा प्रताप सिंह ने मायामारा सत्र के एक शिष्य को राजदरबार कि आलोचना करने के जुर्म में मारा डाला गया अतः राजा यहीं नही रुक शिष्य कि मृत्यु के बाद जब राजा को यह पता चला के मायामारा के मोमोरिया शिष्य अपने गुरु के आलावा किसी अन्य के आगे अपना मस्तक नही झुकाते है तो उसने कई शिष्यों सर धड़ से अलग करवा दिये।.मोमोरिया ने स्वयं को एक जुट करना प्रारम्भ कर दिया और अहोम समाम्राज्य में विद्रोह कि घोषणा कर दी।.
विद्रोह के मुख्य पात्र
राघा,नियोग,नाहखोया सैकिया,गोविंद गौबूरहा,रमाकांत सिंहा,घनश्याम बुराहागोहेन,हारनाथ वोरफुकन,दशरथ बेरफुकन,पुर्णानदा बुरहागोहेन,भोगई,मर्कई सेनापाति,भागी बुराहायोहेन, हरिहर तांती ,परमान्द,पिताम्बर देव,तंगनराम,भोगइ,मर्कई सेनापति,दशरथ बेपफुकन, मैडुरियल बोर्गोहोन आदि।
विद्रोह का परिणाम
1.विद्रोह के परिणाम स्वरुप आहोम साम्राज्य बुरी तरह से कमजोर हो गया था।.2.पाइका प्रणाली का पुरी तरह से अंत हो गया।
3.अहोम साम्राज्य की लगभग 90 मायामारा सत्र से जुड़े होने के कारण साम्राज्य 50 आबादी पुरी तरह से समाप्त हो गई।
4.राज्य कि अर्थव्यवस्था पुरी तरह से समाप्त हो गयी।.
उपरोक्त सभी कारण का एक मुख्य कारण अहोम राजाओ कि स्वार्थवादी सोच का होना था।.वे अपनी प्रजा से गुलामों कि तरह व्यवहार करते थे।.जैसे अगर समय से कार्य न पुरा करने पर या हाथीयो कि प्रयाप्त मात्रा एकत्रित न कर पाने पर कोड़े से मारने कि सजा देना आदि।.जबकि सजा देने का प्रवधान कानुन के उल्लंघन करने पर किया जाता है।.
पाइका प्रणाली
इस प्रणाली को एक दुसरे नाम कोरवी श्रम प्रणाली के रुप में भी जाना जाता है। इसी प्रणाली पर पुरे अहोम साम्राज्य कि पुरी अर्थ व्यवस्था टिकी हुई थी।. इतिहासकारो के अनुसार पाइका एक रियासत का नाम था जिसे अहोम शासक दक्षिण से लेकर आये थे ।. इस परियोजना के अनुसार व्यस्क पुरुषों जिनकी उम्र 15 से 50 के मध्य होती थी उन्हे पाईका कहा जाता था और वे आहोम साम्राज्य के अदिग्रहित भूमि पर अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अथवा स्वयं का भरण पोषण करने के लिए राजा द्वारा दिये जमीन के 2.66 एकड़ टुकड़े के बदले में राज्य को सेवा प्रदान करने के लिए बाध्य किया जाता था।.पाईकाओं को 4-4 के समुहो में वर्गीकृत किया गया था और वे बारी- बारी से राजकिय कार्यो को करने के लिए राजा के पास जाते थे। प्रत्येक पाइका कि गैर मौजुदगी में अन्य तीन पाइकाओ को उसके परिवार और खेतो को देखने कि जिम्मेदारी दि जाती थी।.राजा द्वारा पाइकाओं को दि गई भुमि किसी भी प्रकार से हस्तांतरित एवं वंशानुगत नही हो सकती थी।.बताते चले कि पाईका प्रणाली 1928 समय कि अन्य रियासतों में भी संचालित थी जैसे कचारी साम्राज्य,जैन्तिया साम्राज्य,मणिपुर साम्राज्य आदि।.
मोमाई तमुली बोरबरुआ
इतिहासकारों के अनुसार पाइका प्रणाली के नियमों में बदलाव अहोम राजवंश के राजा मोमई तमुली बोरबरुआ द्वारा 1608 मे किया गया।.इतिहासकार इसे मोमोरिया समुदाय को पुर्णतः गुलाम बनाने की प्रक्रिया के रुप में देखते है.1658 में अहोम साम्राज्य के अगले शासक सुतमला जयध्वज सिंह के द्वारा इस प्रणाली के संशोधित रुप को लागू किया।.
पाइका समुदाय
इस समुदाय का मुख्य कार्य अहोम राज्य की सेवा प्रदान करना था।.अहोम सामाराज्य का 12-50 वर्ष का हर व्यक्ति जाहे वे कुलीन हो,पुजारी हो,या उच्च जाति का हो उसे राजा आदेशा अनुसार वह कार्य करना पड़ता था। दासों को इस समुदाय में बाहर रखा गया था मगर वे एक प्रकार से दास ही थे बस उनका कार्य चार लोगो के बीच विभाजित किया हुआ था।.
घटना का विस्तृत परिचय
विद्रोह 4 चरणों मे पुर्ण हुआ।.विद्रोह का प्रथम चरण 1769 में मायामरा के मठाधीश अस्तभुज एवं उनके बेटे गागिनी डेका का राजा द्वारा अपमान किया जाता है। जिसके चलते मायामरा सत्र के लोगों में राजा के प्रति अंसोष फैल जाता है।.
मायामरा सत्र
इसका स्थापना 17वी शताब्दी में अनिरुद्ध देव के द्वारा कि गया थी।.कलासमाधी साम्रदाय कि स्थापना गोपालदेव ने कि थी।उन्हों ने असम वासियों के बीच एक नई वैष्णव बाद शिक्षा प्रणाली का प्रचार किया। कला समाधि संप्रदाय में कुल 12 सूत्र थे। 6 सूत्रों की अध्यक्षता ब्राह्मण तथा अन्य 6 सूत्रों की अध्यक्षता शुद्र किया करते थे।.जिनमे से मायामारा और डीहिंग सूत्र सबसे प्रभावशाली थे। मायामरा के अनुयायी पूरे देश में फैले हुए थे।अतः मायामरा सूत्र प्रमुखता के साथ उभरा। इस सूत्र को समय समय पर राजा द्वारा अपमान और उत्पीड़न सहना पड़ा। अहोम राजा प्रताप सिंह ने मायामारा सूत्र के एक शिष्य का राजदरबार की अवहेलना करने के जुर्म में मारा डाला। वे इतने पर भी नहीं रुका जब उसे पता चला की इस सूत्र के शिष्य अपने गुरु के अलावा किसे के आगे अपना सिर नहीं झुकाते तो राजा ने उन्हें एक पंक्ति में खड़ा करके सबके सर धड़ अलग कर दिए। इसके साथ के मायामारा मठाधीश जयराम देव को राजा के डर से गुप्तावास में रहना पड़ा।.1673 में उदयादित्य सिंह ने म्यामारा सहित 4 सूत्रों के शिष्यों का बंदी बना लिया। मगर सूत्र के प्रभाव शाली शिष्यों ने अपना प्रभाव दिखाते हुए राजा को गद्दी से निष्कासित करवा दिया। अहोम साम्राज्य के अन्य राजा उदयादित्य सिंह के वंशज गदाधर सिंह ने वैष्णव सूत्रों को जड़ से मिटा देने की कसम खाई। क्यूंकि उसने वैष्णव वाद के प्रभाव को सैन्य और आंतरिक विकास में बाधा के रूप में पाया।.1691 मायामरा मठाधीश बैकुंठ देव को मार दिया गया।.1702 में आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान अहोम के राजा ने शुद्र मठाधीशों को ब्राह्मण मठाधीशों को दीक्षा देने से हटाकर एक धर्मसभा की घोषणा कर दी। जिसके चलते ब्रह्म और शुद्र मठाधीशों में टकराव होने लगा।.इसी प्रकार विद्रोह का दूसरा चरण 1782 में हुआ और विद्रोह का तीसरा चरण 1786 से 1789 के मध्य हुआ। और अंतिम विद्रोह 1794से 1805 तक हुआ।.
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