9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: खिलाफत अंदोलन

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मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

खिलाफत अंदोलन

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम खिलाफत आंदोलन के होने के मुख्य कारणों तथा भारतीय आज़ादी में इसके योगदान के बारे में जानेंगे। इसके साथ हम प्रथम विश्व युद्ध से इसके संबंध,सर्वेरस समझौता तथा लखनऊ समझौता,तथा दिल्ली के फिरोज़ शाह गौतला मैदान एवं अरुण जेटली क्रिकेट स्टेडियम के बारे में चर्चा करेंगे।.उपरोक्त सभी समझौते तथा घटनाएं एक दूसरे से किस प्रकार संबंधित है इसके बारे में आपको आगे जानने को मिलेगा।.


विद्रोह का मुख्य कारण

खिलाफत आंदोलन के होने के दो मुख्य कारण थे।.1. घरेलू परिस्थितियां 2. प्रथम विश्व युद्ध।.

घरेलू परिस्थितियां

1919 से समयकाल से पहले महात्मा गांधी अंग्रेजो के खिलाफ जगह-जगह सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे। ताकि भारतीय जनता एक जुट होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाए। जिसके चलते उन्हें अंग्रेजो के अत्याचारों से छुटकारा मिल जाए।. महात्मा गांधी जातिगत भेदभाव को खतम करते हुए आगे बढ़ रहे थे ।.1917 में उन्होंने चंपारण सत्याग्रह किया।. 1918 मिल मजदूर लोगो ने सत्याग्रह किया। इसलिए अब वे चाहते थे की वे भारतीय मुस्लिम समुदाय से भी चाहते थे की वे भी अपना सत्याग्रह प्रारम्भ करे।.इस प्रकार अंग्रेजों का शासन और उनके अत्याचार इस विद्रोह का कारण बना।.

प्रथम विश्व युद्ध

यह युद्ध 28 जुलाई 1914 से प्रारम्भ हो कर 11 नवंबर 1918 तक चला।. यह विश्व युद्ध दो गुटों में हुआ। पहला गुट जिसे astriya नाम दिया गया। जिसमे जर्मनी,तुर्की और हंगरी देश शामिल थे।. दूसरा गुट जिसे सरबिया नाम दिया गया। इसमें इंग्लैंड,फ्रांस, रूस,इटली,अमेरिका आदि देश शामिल थे।.प्रथम विश्व युद्ध में astriya की हार हुई।. अतः सर्बिया गुट ने astriya गुट से सेवर्स की संधि करी। जिसके नियमानुसार सर्बिया गुट ने तुर्की के खलीफा के साथ सम्मान जनक व्यवहार करने का वादा किया। बताते चले की उस समय काल के अनुसार खलीफा मुस्लिम समुदाय का प्रमुख माना जाता था जिस कारण से भारत मूल के मुसलमान भी खलीफा के प्रति भावनात्मक लगाव महसूस करते थे।. मुस्तफा कमाल पाशा उस समय तुर्की के खलीफा थे।

अतः संधि के नियमों का दुरुप्रयोग किया गया। मुस्लिम समुदाय के खलीफा को टोपी पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और महिलाओं को बुर्का और हिजाब पहनने से रोका जाने लगा। अतः सभी देशों के मुस्लिम समुदाय ने विरोध करना प्रारंभ किया भारत में इस विद्रोह को मोहम्मद अली और उनके भाई शौकत अली ने प्रारम्भ किया।.

गांधी जी का विद्रोह में समर्थन

इस समय काल के अनुसार कांग्रेस पार्टी तथा अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के मध्य समझौता 1916 में ही चुका था।. अतः गांधी जी मुस्लिम समुदाय के समर्थन में दिल्ली शहर के फिरोज़ शाह गौतला मैदान में पहुंचे। इसका वर्तमान नाम अरुण जेटली क्रिकेट स्टेडियम रखा गया हैं । उस समय महात्मा गांधी जी अपना सत्याग्रह आंदोलन चलाने के कारण हिंदुस्तान का मुख्य चेहरा बन चुके थे। मुसलमानों के बीच एक हिंदू को समर्थन करता देख मुस्लिम समुदाय चकित रह गया। उन्होंने अपने आंदोलन को और जोर शोर से प्रारंभ किया। मुस्लिम नेता शेख मजीबूर रहमान ने गांधी जी को उनके सम्मान में जादूगर बोला।. गांधी जी तो चाहते थे की भारत के हिंदू मुस्लमान एक एक जुट हो जायेंगे तो अच्छा ही रहेगा।.
अतः 1919 में खिलाफत कमेटी का गठन किया गया जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की।.एक प्रकार खिलाफत आंदोलन की शुरुआत हुई।.आंदोलन की समाप्ति 3 मार्च 1924 में तुर्की ग्रीन नेशनल असेंबली के आदेश पर समाप्त हो गया।.

सेवर्स संधि

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति सेवर्स की संधि के साथ होती है जिसमें सर्बिया गुट में यानी (इंग्लैंड,फ्रांस,इटली, रुस,अमेरिका) देश थे। और हारने वाले गुट में जर्मनी,तुर्की,हंगरी आदि देश थे। इस संधि के दौरान तुर्की को क्षेत्र के कई हिस्सों में बताते हुए फ्रांस,इंग्लैंड,इटली सौंप दिया। तुर्की मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा धार्मिक स्थल है। अतः यह बटवारा मुस्लिम समुदाय का एक प्रकार से अपमान ही था।.

तुर्की के धार्मिक महत्व को देखने के लिए हमे मुस्लिम समुदाय के इतिहास को देखना होगा। शुरुआत मुस्लिम पैगम्बर से होती है। इनके आखरी पैगम्बर मोहम्मद साहब थे। उनके बाद मुस्लिम धर्म कुरान शरीफ को इस्लाम का मुख्य आधार मानते हुए आगे बढ़ा।.कुरान शरीफ में बताए गए रास्ते के आधार पर खलीफा आगे बढ़े।. खलीफाओं को इस्लाम का बहुत जानकार माना जाता है। पूरे इस्लाम में खलीफा का पद काफी सर्वोच्च होता हैं।अतः सेवर्स संधि के दौरान तुर्की के खलीफा मुस्तफा कमाल पाशा थे। मुस्तफा का पद सेवर्स संधि के दौरान समाप्त कर दिया गया।. जिसके कारण से सभी क्षेत्रों के मुल्समानों ने इसके खिलाफ बगावत की। खलीफा पद को समाप्त करने साथ ही सेवर्स संधि पर हस्ताक्षर करने वालो की नागरिकता छीन ली गई। मुस्लिम समुदाय को टोपी और बुर्का पहनने से रोका जाने लगा।.

लखनऊ समझौता

यह समझौता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के मध्य हुआ था। इस समय मोहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस पार्टी के नेता थे। जिन्होंने हिंदू- मुस्लिम एकता को मजबूत देने के लिए मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस का समझौता करवाया।. खास बात यह है की वे ही आखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष भी थे।.समझौते को पंडित बाल गंगा धर तिलक और मोo अली जिन्ना ने मिलकर बनाया था। बाल गंगा धर तिलक को हम केसरी समाचार पत्रिका के निर्माता के रूप में भी जानते है।

समझौते का मुख्य पहलु

समझौते के अनुसार जिस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय कम थे वन्हा पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व करने की मांग करी गई थी। इसके साथ ही उनके लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था करी गई थी।.यह सब होने के बाद भी अंग्रेजो द्वारा जिन्ना को कूटनीतिक तरीके से फसाया गया। जिसके परिणामस्वरूप वे कांग्रेस पार्टी से अलग ही गए।.उन्हें डर था कि हिंदू समाज से भरा हिंदुस्तान ,मुसलमानों को उचित प्रतिनिधित्व कभी नहीं देगा।.जिसके कारण से वे नए राष्ट्र पाकिस्तान की स्थापना के घोर समर्थक बन गए।.वे चाहते थे की ब्रिटिश्स जब सत्ता हस्तांतरण करे तो मुसलमानों को करे न की हिंदुओं को।.क्यों कि अगर सत्ता हिंदुओं के हाथ में जाती है तो मुसलमानों को हिंदुओं की अधीनता में रहना होगा।अतः जिन्ना ने धार्मिक आधार पर हिंदुस्तान के विभाजन की बात करी।.

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