प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में ब्लैक होल त्रासदी के बारे में चर्चा करेंगे।.इसके साथ ही हालवैल द्वारा दिये बयान में इस घटना में किये गये बदलावों तथा ब्रिटीश गाॅरन्मेंट पर पडे इस घटना के असर के बारे में चर्चा करेंगे।.इसमें कोई सशंय नही की यह अपने समय काल की एक बहोत ही दुखद घटना थी,जिसने सम्पूर्ण भारत को अंग्रेजो का गुलाम बनानेे में एक अहम भूमिका निभाई।.इतिहासकारों के अनुसार यह बताया जाता है कि यह प्लासी के युध्द का मुख्य कारण थी।.
ब्लैक होल घटना का मुख्य कारण
कहानी के अनुसार उस समय काल के अनुसार फ्रांस ईस्ट इंण्डिया कम्पनी अपने उफान पर थी।.फ्रांसीस नही चाहते थे कि अंग्रेज भारत मेें व्यापार करें जिसके लिए वे समय-समय पर अंग्रेजों को परेशान करने के लिए उन पर हमले किया करते थे।.जिसके परिणाम स्वरुप अंग्रेज फोर्ट विलियम किले कि घेरा बन्दी कर रहे थे। अंग्रेज उस समय काल के अनुसार कर्नाटक,तंजावर और कलकत्ता के क्षेत्र में व्यापार किया करते थे।.अतः 20 जून 1756 को बंगाल के नवाब सिराजुदौला का वहां आना हुआ। अंग्रेजो को किले कि घेरा बन्दी करता देख नवाब ने अदेश दिया कि तुरन्त घेराबन्दी का काम बन्द करवाया जाये। मगर अंग्रेजो ने उनके आदेश को नही माना,जिसके परिणामस्वरुप अंग्रेजो और नवाब कि सेना के बीच युध्द हुआ लगभग 70-80 लोगों कि मौत के बाद अंग्रेजो ने अपनी हार स्वीकार कर ली।.नवाब ने अपना आदेश न मानने के जुर्म में बचे लोगो को बन्दी बनाने का अदेश दिया।.परिणामस्वरुप कैदियों को 18 फुट लम्बी और 14 फुट 10 इंच चौडी काल कोठरी में डाल दिया गया। रात में दम घुटने से लगभग 146 अंग्रेजो कि मौत हो गयी जिसमें बच्चे,बुढ़े और महिलाएं भी शामिल थे।.इनमें से मात्र 23 लोगों को बोहत बुरी हालत में तीसरे दिन कोठरी से बाहर निकाला गया।.इन 23 लोगों मे से हालवेल भी एक था जिसने आगे चलकर घटना को बयान करते हुए एक किताब लिखी।.इतिहासकारो के अनुसार इस घटना पर आज भी संशय बना पड़ा है कि 18*14 के कमरे में146 लोगों को कैसे भरा गया होगा।.
हालवेल के शब्दों में घटना का वृतांत
हालवेल लिखता है कि हमें बन्दी बनाकर नवाब सिराजुद्दोला के सम्मुख ले जाया गया। उस समय हमारे हाथ बंधे पड़े थे। उनके सामने ले जाने पर नवाब ने हमसे बात करी और कहां कि तुम लोगो के साथ किसी भी प्रकार कि बद्स्लुकी नही होगी,हम तुम्हारे गवर्नर डेक से नाराज़ है अगर उसने हमारे आदेश को मान लिया होता तो तुम्हे आज ये दिन नही देखना पड़ता।.इतना कहकर थोड़ी देर बैठने के बाद नवाब आराम करने के लिए एक कमरे में चले गये जोकि एक अंग्रेज बैडरमैन का था।.नवाब के जाने के बाद,नवाब के सिपाहीयों ने एक नियंत्रित लुट-पाट करी जिसमें किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाया गया था मगर शाम होते-होते उनके व्यावहार में परिवर्तन आने लगा, शराब के नशे में महिला अंग्रेज से वे बदसलुकी पर उतर आये। उनका विरोध करते हुए एक अंग्रेज सैनिक ने उनकी बन्दुक निकाल कर उस सिपाही को गोली मार दी।.
इस घटना कि शिकायत शिराजुद्दौला के पास पंहुची तब नवाब के अधिकारीयों ने उन्हे सलाह दी कि इन सभी कैदियों को (गोली मारने वाली घटना के परिणाम स्वरुप खुला छोडना ठिक नही रहेगा हो सकता है कि वे भागने कि कोशीश करें य फिर ये किसी और सिपाही कि जान ले लें। अतः उन्हे काल कोठरी में डालना उचित रहेगा।.अतः नवाब के आदेश अनुसार उन सभी को काल कोठरी मे भर दिया गया।.आगे हाॅलवेल लिखता है कि वो रात गर्मी को मौसम कि सबसे गर्म रात थी जिसमें हम लोगों को एक छोटी सी काल कोठरी में बंद कर दिया गया था। कोठरी में दो तरफ दो छोटी -छोटी खिड़कीयां थी जो दिवाल कि ऊपरी तरफ थी जिसके कारण कमरे में हवा का आना बड़ा मुश्किल था।. आगे हाॅलवेल लिखता है कि एक बुढ़े सुरक्षा कर्मी ने उनके प्रति दया दिखाई। मैंने उससे विनम्रता पुर्वक कहा कि आधे लोगो को दूसरे कमरे में बंद करके हमारी मुसीबतों को थोड़ा कम कर दो।.इस दया के बदले वे कल सुबह उसे 1000 रूपये देगा।. सुरक्षा कर्मी वादा करके कुछ समय के लिए वहां से गायब हो गया हो गया वापिस आने पर उसने कहा कि बिना नवाब के आदेश के यह सम्भव नही है अंत मै इसमें तुम्हारी कोई मदत नही कर सकता।.अपनी तकलीफों को बढ़ता देख मैने ईनाम कि राशि 2000 करते हुए उसी प्रस्ताव को दुबारा उसके सामने रखा,एक बार फिर वे गायब हो गया 30 मिनट बाद वापिस आने पर उसनें कहा कि नवाब सोये हुए है और किसी कि हिम्मत नही है उनको जगाने कि अतः मै तुम्हारी कोई मदत नही कर सकता।.
रात के 9 बजे सबको प्यास लगाना प्रारम्भ हो गयी जिसके चलते कैदियों कि हालात और भी खराब होने लगी।.उस बुढ़े सुरक्षा कर्मी को हम पर दया आ गयी अन्त में वे छोटे से बर्तन में हमारे लिए पानी लेकर आया। उसने खिड़की सलाखों के जरिये पानी अंदर पहुंचाया। कुछ लोग जो दुसरी खिड़की पर हवा के सुविधा के लिए खडे थे वे पानी की आस में पहली खिड़की तरफ भागे,इस भाग दौड़ में वे कई लोगो को कुचलते हुए पहली खिड़की कि तरफ भागे पानी तो उन्हे मिला नही,मगर इस भाग दौड़ ने उनकी प्यास और बढ़ा दी।.आगे हालवेल लिखता है कि गर्मी और प्यास से लोग करहने लगे चारो तरफ उनके करहने कि आवाज़े गुंजने लगी। फिर उन लोगो ने यह सोचकर सुरक्षाकर्मीयों को बुरा भला कहना शुरु कर दिया ताकि क्रोध मे आकर वे हमें गोली मार दे,जिससे हमें इन यतनाओं से फुर्सत मिल जाये।.रात 11 बजे तक उनकी सारी ताकत खतम होने लगी,उनका दम घुटना प्रारम्भ होने लगा और लोग एक दुसरे पर बेहोश होकर गिरने लगे।.हमें 3 दिनों तक बिना खाना पानी के उस कौठरी में रखा गया।. तीसरे दिन सुबह को जब कोठरी के खोला गया तो मात्र 23 लोग बुरी हालत में जीवित पाये गये।.किसी भी सुरक्षा कर्मी कि हिम्मत नही थी कि घटना कि जानकारी,इतनी सुबह नवाब को जगाकर सुचना दे। अन्त में नवाब जब खुद जागे तो उनको इस घटना कि सुचना दि गयी।.
घटना पर अन्य इतिहासकारों को मत
- इतिहासकार जदुनाथ सरकार के हालवेल द्वारा मरने वालों कि संख्या के बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है। जादूनाथ सरकार भारत के एक प्रसिध्द इतिहासकार है।.अपना किताब द हिस्ट्री आफ बंगाल में लिखते है कि सिराजुद्दौला के हाथों इतने अधिक अंग्रेजो के लगने का सवाल ही नही उठता।.क्योंकि उनकी किताब के अनुसार जमीदार भोलानाथ चन्द्रा ने 18*15 का बाँस का घेरा बना कर खुद अंग्रेजो कि लाशों को इकट्ठा किया था। जिनकी संख्या 146 से कम ही थी।.अतः हालवेल ने उन सभी लोगो को कोठरी में मरा दिखाया था जो पहले हि मारे गये थे और जिनके जीवित बच निकलने का कोई उम्मिद हि नही थी।.
- इतिहासकार विलियम डेलरिंपिल इन्होने अपनी हाल हि मे प्रकाशित पुस्तक में एक शौध के दौरान लिखा कि काल कोठरी में मात्र 64 लोगों को रखा गया था,जिसमें से मात्र 21 लोगो ही बच पाये थे।.
- एच एच हाॅडवेल ने अपनी किताब क्लाइव इन बंगाल 1756-60 लिखा कि हालबेल तथा कुछ अन्य इतिहासकारों ने जो विरण प्रस्तुत किया है वे मनगढंत है। काल कोठरी में इतनें मजदूर नही मारे गये तो उनमें से बहुत से अंग्रेज पहले ही फोर्टविलियम पर हुए हमले में मारे गये थे।.
- इतिहासकार विन्सट ए स्मिथ अपनी किताब आक्सफर्ड हिस्ट्री आफ इण्डिया फ्रांस अरलियर टाइम टू द एंड आफ 1911 ये घटना हुई जरुर थी मगर विवरणों मे असंगतियां पाई जाती है। उनके अनुसार नवाब सिराजुद्दौला निजी और प्रत्यक्ष रुप से इस घटना के जिम्मेंदार नही थे,क्योकि उन्होने कैदियों के साथ क्या सलुक किया जाये इसका जिम्मा अपने हितकारियों के उपर छोड़ दिया था। मगर यह भी सच है कि इस घटना कि जानकारी मिलने पर भी उन्होने न तो किसी कोई सज़ा सुनाई और न ही शोक व्यक्त किया।.
प्लासी के युध्द का मुख्य कारण
इतिहासकारों द्वारा बताया जाता है कि इस घटना में भारत में अग्रेज़ी प्रशासन कि नींव रखी औऱ सर्वप्रथम प्लासी का युध्द हुआ। जिसे राबर्ट क्लाइव और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बिच लड़ा गया।.ब्रिटीश अधिकारीयों ने रोबर्ट कलाइव के नेतृत्व में एक सेना बंगाल भेजी जिसका गठन फ्रांसीसियों से मुकाबले के लिए किया गया था।.अतः 2 जनवरी 1757 में बंगाल पर अपना अधिकार स्थापित किया। हार मान कर नवाब सिराजुद्दौला को अलीनगर में अंग्रेजो से संधि करनी पड़ी।.संधि के दौरान अंग्रेजो के उनके सभी अधिकार वापिस लौटा दिये गये।.यह सभी अधिकार उन्हे फरखुसीयर के फरमान के माध्यम से मिले थे। इसके साथ ही नवाब द्वारा उन्हे 3 लाख रुपये कि क्षतिपुर्ति की राशि प्रदान करी गयी।.
राबर्ट क्लाइव की कूटनीति
राबर्ट क्लाइव ने कूटनीति तरिकों से नवाब के विरोधियों तथा सहयोगियों को अपने साथ मिलाने कि चाल चली जिसमें वे सफल भी हुआ। अतः नवाब के सेनापति मीर ज़ाफर,साहूकार जगत सेठ,मानिक चन्द्र,कलकत्ता के व्यापारी दूर्लभ तथा अमीन चन्द्र ने षडयन्त्र रचा। जिसके कारण नवाब का क्रोध सिमा से पार हो गया और अन्त में प्लासी का युध्द हुआ।.
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