9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: पानीपत के युद्ध

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गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

पानीपत के युद्ध

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम पानीपत के युद्ध तथा पानीपत के क्षेत्र विशेष के बारे में चर्चा करेंगे।. इसके साथ हम मुगल साम्राज्य के उदय तथा दिल्ली सल्तनत के पतन के पीछे के मुख्य कारणों पर चर्चा करेंगे।. साथ ही पानीपत के युद्ध से भारत की राजनीतिक स्थिति एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या असर पड़ा इस पर चर्चा करेंगे।.

पानीपत

पानीपत का क्षेत्र वर्तमान भारत के हरियाणा राज्य के जिला के क्षेत्र विशेष में आता है। पौराणिक कथा अनुसार पानीपत हमारे महाकाव्य महाभारत के मुख्य पत्र पांडव भाईयों द्वारा स्थापित 5 शहरों में से एक है। इसका प्राचीन नाम पाण्डव प्रस्थ था। यह स्थान देश की राजधानी दिल्ली के उत्तर दिशा 95 किलो मीटर की दूरी पर अवस्थित है। पंजाब एवं हरियाणा की राजधानी चण्डीगढ़ से 169 किलोमीटर की दूरी पर है।. पानीपत चंडीगढ़ के दक्षिण में है जिसे भारत का राष्ट्रीय राजमार्ग NH 1 जोड़ता है। यांहा पर कपड़ा व्यापार भरी मात्रा में किया जाता है। जिसके कारण पानीपत को cast of capital के नाम से जाना जाता है। CIH के पर्यावरण सूचकांक की रिपोर्ट के मुताबिक पानीपत गुजरात के अंकलेश्वर शहर 88.50 के बाद दूसरे स्थान 71.81 के सूचकांक पर आता है।

पानीपत में ढेर सारी ऊनी और कपास मिलिंग फैक्ट्रियां तथा कांच, कांच और बिजली के उपकरण बनाने के कारखानों के साथ ही साल्टिपिटर रिफाइनिंग मौजूद है। पानीपत को भारत की आजादी के बाद 1 नवंबर 1980 में करनाल जिले से अलग करके बनाया गया।. मगर कुछ अन्य कारणों से इसे 24 जुलाई 1991 में फिर से करनाल जिले में विलय कर दिया गया।. अतः एक बार फिर से 1 जनवरी 1992 में दुबारा से इसे नया जिला बनाया।. 2011की जनगणना के मुताबिक पानीपत की जनसंख्या 1294,292 थी। 2011 के आंकड़ों के मुताबिक पानीपत की साक्षरता दर 83 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना के अनुसार  लिंगानुपात 1000 पुरषों पर 861 महिलाएं थी। अतः 2001 एक की जनगणना के मुताबिक इस क्षेत्र की जनसंख्या में 24.33%की बढ़ोतरी देखी गई।. अतः 83.39% हिंदू,12.03% मुस्लिम,4.13% सिख,0.23% जैन तथा 0.05% ईसाई पाए गए।.

Battle of Panipat

पानीपत के युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण युद्धों में से एक हैं। इन युद्धों में पानीपत की मैदान में हुए युद्धों का इतिहास उत्कृष्ट है। पानीपत में तीन मुख्य युद्ध हुए हैं:
1. प्रथम पानीपत का युद्ध (1526): पहला पानीपत का युद्ध मुगल साम्राज्य के बादशाह बाबर और लोदी साम्राज्य के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था। इस युद्ध में बाबर ने लोदी साम्राज्य को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
2. द्वितीय पानीपत का युद्ध (1556): दूसरा पानीपत का युद्ध मुगल साम्राज्य के बादशाह हुमायूं और शेर शाह सूरी के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में हुमायूं ने शेर शाह सूरी को हराकर मुगल साम्राज्य को पुनः स्थापित किया।
3. तृतीय पानीपत का युद्ध (1761): तीसरा पानीपत का युद्ध मुगल साम्राज्य के तात्कालिक उत्तरी भारत के मराठा साम्राज्य के बीच हुआ था। इस युद्ध में मराठा साम्राज्य की सेना ने अहमदशाह अब्दाली के खिलाफ लड़ा, लेकिन अब्दाली की सेना ने मराठों को हराया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप मराठा साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो गई और मुगल साम्राज्य की अस्तित्व पर भी प्रभाव पड़ा।इन तीनों पानीपत के युद्धों ने भारतीय इतिहास को गहराई से प्रभावित किया और उनके परिणाम देश के राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में अद्वितीय रहे हैं।

पानीपत का प्रथम युद्ध

यह युद्ध भारत में राजनीतिक फेर बदल का महत्वपूर्ण कारक था। यह युद्ध 21 अप्रैल 1526 में मुगल शासक बाबर और दिल्ली सल्तनत के अंतिम शासक इस्ब्राहिम लोदी के बीच हुआ।. यह बाबर का भारत पर पांचवा आक्रमण था।  प्रारंभ में बाबर लाहौर अथवा पंजाब पर अपने पूर्वजों की दिल्ली इच्छा पूरा करने के लिए शासन करना चाहता था। मगर जल्द ही उसे समझ आ गया की ऐसा कर पाना तब तक संभव नहीं है जब तक दिल्ली सल्तनत के शासक को न हराया जाए।. 1526 के समय में पंजाब पर इब्राहिम लोदी के चाचा दौलत खां सूबेदार पद पर अस्ति थे। तथा एक अन्य चाचा आलम खां बाबर द्वारा गर्वनर पद पर अस्ति किए गए।. दरअसल ये अपने भतीजे इब्राहिम लोदी को तनिक भी पसंद नहीं करते थे और बाबर से जा मिले ।.बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए इन्होंने ही उकसाया था।.बताते चले की यह पहला मुगल आक्रमण था । जिसमे आग उगलने वाली तोपों और बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था।.इस्ब्राहीम लोदी की सेना के आगे बाबर की सेना बहुत कम थी। इसके बावजूद भी इब्राहिम लोदी को हर का सामना करना पड़ा।.

बाबर की रणनीति

बाबर जानता था की उसकी सेना काम है अगर सही से सेना को सुसज्जित नही किया गया तो उसकी कार निश्चित है। अतः उसने दक्षिण दिशा की तरफ एक गहरी खाएं खुदवाई और उसमे लकड़ी के भाले रखवाकर ऊपर से सामान्य घास भुस से इस तरह से ढक दिया की देखने में वह सामान्य भूमि की तरह लगे।. दक्षिण दिशा की सुरक्षित करने के बाद बाबर ने तुलुगमा और उस्मानी विधि का इस्तेमाल करके सेना को सजाया।
तुलुगमा विधि - इस विधि में मुख्य सेना के दाएं और बांए छोर पर अन्य दो सेनाओं की टुकड़ियां खड़ी होती है । जो तेजी से आगे पीछे जाने में सक्षम होती है। अतः आगे पीछे तेजी से होने के कारण यह विपक्ष सेना को घेरने में सक्षम होती हैं।
उस्मानी विधि- इस विधि के दौरान तोपों को इस तरीके से सजाया जाता है कि एक वार में ही विपक्ष सेना को भारी नुकसान पहुंचाया जा सके।.

इब्राहिम लोदी की हार का मुख्य कारण

इब्राहिम लोदी की हार का मुख्य कारण भारत का कई भागों में विभाजित होना था। यानी हर क्षेत्र विशेष पर एक अलग शासक का अधिपत्य स्थापित था। जैसे गुजरात में मालवा साम्राज्य का शासन,बंगाल में अफगान शासकों का शासन ,मेवाड़ में संग्राम सिंह का शासन, दक्षिण भारत में कृष्णदेव राय द्वारा स्थापित विजय नगर साम्राज्य का होना,पंजाब में दौलत खां का शासन ,इब्राहिम लोदी के चाचा होने के बावजूद भी वे इब्राहिम लोदी के प्रशासन को नहीं पसंद करते थे। बाबर के सामने सर्वप्रथम आत्मसर्पण (दौलत खां लोदी और आलम खां लोदी) ने किया । और बाबर को दिल्ली पर हमला करने के लिए उकसाया।.अतः सभी भारतीय रियासते एक दूसरे को कमजोर करने में लगी हुई थीं।.

इब्राहिम लोदी को चाचाओं ने दिया धोखा 

1524 में दौलत खां लोदी की सेना बाबर के कहने पर इब्राहिम लोदी के खिलाफ मैदान में आयी।. मगर इब्राहिम लोदी की सेना ने उन्हें उखड़ फेंका।.बाबर ने दौलत खां की मौत के बाद आलम खां को पंजाब का गार्नर नियुक्त किया। इस प्रकार बाबर ने आलम खां लोदी को पंजाब की सेना मोहिया करा कर मैदान में भेजा इन्हे भी इब्राहिम लोदी से हार का सामना करना पड़ा। अतः यह डर कर काबुल भाग गया।.अतः बाबर स्वयं युद्ध में उतरा और सेना की छोटी टुकड़ी लेकर दिल्ली की तरफ कूच की। दूसरी तरफ इब्राहिम लोदी ने पंजाब की तरफ कुच की।. इस प्रकार दोनो सेनाओं का अमाना सामना पानीपत के मैदान में हुआ।.

युद्ध के परिणाम 

युद्ध में इब्राहिम लोदी की हार होने के साथ ही दिल्ली सल्तनत पूरी तरह से समाप्त हो गई। भारत में मुगल वंश का शासन स्थापित हुआ। जिसने भारत पर 1526 से 1857 तक यानी पर 331 वर्षो तक शासन किया। 1530 में बाबर की मौत हो गई और उसका पुत्र हुमायूं मुगल शासक बना। जिसे 1540 के बेलग्राम युद्ध में अफगान शासक शेरशाह सूरी ने हराया था।.

पानीपत की दूसरा युद्ध

यह युद्ध 15 नवंबर 1556 में 13 वर्ष के अकबर के संरक्षक बैरम खां तथा अफगान शासकों के सेना जनरल सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच लड़ा गया।.

हेमू से हेमचंद्र विक्रमादित्य बनने की कहानी

वर्तमान के हरियाणा के रेवाड़ी क्षेत्र के एक नामक व्यापारी अपनी योग्यता से अफगान प्रशासन का हिस्सा बना।. इसका नाम प्रारंभ में हेमू था जिसकी कबलियत को देखते हुए मोo आदिल शाह ने हेमू को अपना वज़ीर नियुक्त किया।. हेमू अपनी प्रतिभा और कबलियत के बल पर आगे चलकर विक्रमादित्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1545 में एक विस्फोट हादसे में शेरशाह सूरी मौत हो गई और लगभग 8 वर्षो के बाद 22 नवंबर 1554 में अज्ञात कारणों से इस्लाम शाह सूरी की मौत हो गई। अतः मुगल शासक हुमायूं ने अफगान प्रशासन को कमजोर होता देख अपना आधिपत्य फिर से स्थापित किया।.इस्लाम शाह सूरी का वारिस फिरोज़ शाह सूरी था जिसे उसके मामा ने मारकर राजगद्दी आदिल शाह सूरी ने हासिल की।. उपरोक्त घटनाओं के होने तक हेमू अपने पद पर जीयों के तियों बने रहे। आदिल शाह व्यभिचारी एवं सदैव भोगविलास में लिप्त रहने वाला राजा था। अतः प्रशासनिक कार्यों का कार्यभार हेमू पर छोड़ दिया गया।.इसी बीच 24 जनवरी 1556 में हुमायूं की सीढ़ियों से उतरते समय जामे में घुटना फसने के कारण सीढ़ियों से गिरकर मौत हो गई हुमायूं के वारिस अकबर दिल्ली में नही थे । मगर उन्हें 
मगर अकबर की ताजपोशी 13 वर्ष की आयु में पंजाब के कलनौर में हुई। बैरम खां को उसका संरक्षक नियुक्त किया गया।.इधर हुमायूं की मौत के बाद हेमू को मुगलों को हारने तथा अपने खोए हुए क्षेत्रो को पुनः हासिल करने का अवसर मिला। अतः हेमू ने बंगाल प्रांत से अपना विजय अभियान प्रारंभ किया और मुगलों को खदेड़ते हुए बयाना,इटावा,भरथना,बिधूना,लखना, संभल,कालपी और नारनौल में अपना शासन स्थापित किया।. आगरा पर हेमू के आक्रमण की खबर पा कर आगरा के गवर्नर भागने लगा। अतः हेमू उसका पीछा करते हुए दिल्ली के समीप तुगलक बाद पहुंचा और यहां हेमू की लड़ाई दिल्ली का गर्वनर तारिद बेग खान से हुई। विजय हासिल करने के बाद 7 अक्तूबर 1556 में दिल्ली में अपना आधिपत्य स्थापित किया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण करते हुए अपनी शाही स्थिति का दावा किया।.

अतः खबर पाते ही हुमायूं के उत्तराधिकारी अकबर के संरक्षक 
बैरम खां ने अपनी सेना लेकर दिल्ली की तरफ चढ़ाई की। इधर विक्रमादित्य ने खबर पा कर पंजाब की तरफ अपनी सेना लेकर प्रस्थान किया। इस प्रकार दोनो सेना का अमाना सामना पानीपत के मैदान में हुआ।.हेमू की कुशल रणनीति के चलते अफ़गानी सेना मुगल सेना पर भरी पद रही थी। इसी बीच एक मुगल तीर हेमू की आंख में आकर लगा जिससे विकारमदित्य हेमू बेहोश हो कर हाथी से नीचे गिर गया। अपने राजा को इस तरह गिरता देख सिपाहियों में हफरा तफरी मैच गई । इधर उधर भागने के कारण लगभग 5000 हजार के अधिक सैनिक मारे गए। अतः बेहोश हेमू की पालकी वालो को पकड़ कर हेमू को अकबर के शिविर में ले जाया गया। 13 वर्षीय अकबर के आदेश पर हेमू का सर धड़ से अलग करके के नुमाइश के लियब्रख लिया गया।.इस प्रकार पानीपत के द्वितीय युद्ध में अकबर की जीत हुई।. वर्तमान समय में हेमू का स्मारक उस स्थान पर बनाया गया जहां अकबर के आदेश पर हेमू का सर कटा गया था।.

पानीपत का तीसरा युद्ध

मुगल शासक ओरंगजेब की मौत के बाद एक बार फिर मुगल प्रशासन को कमजोर होता देख मराठों ने मुगलों को चुनौती दी।.परिणाम स्वरूप 14 जनवरी 1761 में मराठा संघ के सेनापति सदाशिव राव भाऊ के साथ दुरानी साम्राज्य के शासक अहमद शाह दुरानी के साथ हुआ।. इस युद्ध में मराठों की हार हुई। .1737 के समय काल में मुगलों का पतन शुरू हो गया था जिसके कारण वश दुरानी साम्राज्य के संस्थापक अहमद शाह दुरानी ने दिल्ली सल्तनत पर हमला करके उसे अपने हाथो में लेते हुए मुगल शासन का अंत किया।.1757 में मराठा के साथ हुए युद्ध में मराठा सेनापति रघुनाथ राव ने अहमद शाह दुरानी पर हमला किया हाला की दुरानी युद्ध की गया। मगर अपने बेटे की मौत की खबर मिलते ही पेशवा बाला जी बाजीराव युद्ध के लिए तैयार हुए मगर युद्ध में अपने सिपाहियो को अधिक संख्या में मरता देख कर दुरानी ने पीछे हटते हुए मराठा राजा को पत्र लिखा की मैं भले ही युद्ध में जीत गया हूं मगर मैं पीछे हटते हुए अफगानिस्तान जा रहा ही । अतः आप ही दिल्ली का प्रशासन संभालिए। जिसके कारण बाला जी बाजीराव ने युद्ध का ख्याल छोड़ दिया।.अतः कुछ समय बाद 14 जनवरी 1761 में अवध के नवाब तथा अन्य भारतीय शासकों के उकसाने पर दुरानी फिर भारत आया और पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ जिसमे चल से जिसमे धोखे से सदाशिव राव भाऊ को मार दिया गया।.

हार का मुख्य कारण

1.इतिहास कारों दावे अनुसार बताया जाता है की मराठों की हार का  मुख्य कारण उन्हें अन्य रियासतों का सहयोग न मिलता था। जबिक दुरानी सेना को रोहिला शासक नजीब उद्द दौला का ,अवध के नवाब शुजाऊ दौला का समर्थन प्राप्त था।. मराठों ने अपनी नज़दीकी रियासतों से मदत की गुहार लगाई। मगर सिवाय इब्राहिम खां गर्दी के उनकी मदत के लिए कोई नही आया।.
2.दूसरा कारण सब ये भी मानते है कि पेशवा
बाला जी बाजीराव ने रघुनाथ राव, महादेव जी सिंधिया अथवा मल्हार राव होलकर के बदले भाऊ सदा शिव राव को सेनापति बना कर भेजा जबकि उनकी सेना में सदाशिव राव भाऊ से ज्यादा अनुभवी  लोग मौजूद थे।.

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