9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: महारानी दिद्दा 850 -1003 ई0

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

महारानी दिद्दा 850 -1003 ई0

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Queen Didda

प्रस्तावना


प्रस्तुत लेख में रानी के सम्पूर्ण जीवन कि घटनों के बारे में चर्चा करेंगे। क्यो एक कुशल महिला शासक होते हुए भी उन्हे चूडैल रानी तथा लंगडी रानी कहा जाने लगा? इसके पिछे के सम्पुर्ण कारणों पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही हम उनके द्वारा कश्मीर में किये गये महत्वपूर्ण कार्यो तथा मोहम्मद गजनवी के तथा हुए उनके य़ुध्द के विश्य में चर्चा करेंगे।.

प्रारम्भिक जीवन

रानी दिड्डा ने सम्पुर्ण जीवन बहोत कष्ठ सहे।.मगर उन्होने सम्पुर्ण चुनौतियों का डट कर सामना किया।.अपने हर एक विरोधी का मुह तोड जवाब देने,समाज कि कुरीतियों को न मानने तथा पुरुष शासकों को युध्द में हराने के कारण इन्ही लोगो ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए रानी का नाम चुडैल रानी रख दिया था।.इनका जन्म लौहार वंश के राजा सिंहराज के घर 950ई0 में हुआ।. बचपन से ही वे विकलांग थीं जिसके परिणाम स्वरुप परिवार को भी इनसे ज्यादा उम्मीदे नही थी। हिन्दू शाही कबीले के शासक भीमदेव इनके नाना थे।.बचपन में हि अपंग होने के नाते इनका परिवार इन्हे छोड देता है।.उस समय काल के अनुसार पुरुष प्रधान समाज होने के कारण यह कदम उठाया गया होगा।.मगर एक माँ अपनी सन्तान को ऐसे कैसे छोड़ सकती हैं। इनकी माँ ने पति धर्म निभाते हुए इन्हे अपनी सबसे प्रिय नौकरानी के हाथों सौंपा जिसने इनकी परवरिश अपनी संतान के ही समान कि।.कहा ये भी जाता हैं कि उस नौकरानी का दुध पिकर ही वे बडी हुईं मगर पुर्ण सत्य नही है।. बडे होने पर अपनी अपंगता को बाधा न मानते हुए युध्द कला में निपुंणता हासिल की तथा कई तरह के गुणों से खुद को नवाजा।.अपने बचपन के प्रयासो को दौरान ही इन्होने गौरिल्ला यूध्द प्रणाली की खेज कर डाली।.जो रानी साहिबा के युध्द करने कि मुख्य कला थी।.भारत में प्रथम गौरिल्ला युध्द प्रणाली के लिए सदैव इन्हे हि श्रेय दिया जाता है तथा आज भी इनके बताये सिध्दांतो को मान्यता दि जाती हैं।.

राजा क्षेमगुप्त

जंगल में आखेट खेलने के दौरान उत्पल वंश के राजा खेम गुप्त कि नजर इन पर पडी और राजा को इनसे प्रेम हो गया।.अतः  राजा ने 26 उम्र में वर्ष कि दिड्डा से शादी कर ली और वे रानी बन गईं।. साम्राज्य को सम्भालने में रानी साहिबा ने राजा कि कई कार्यो में मदत कि।. उनके बुध्दी कौशल और प्रतिभा से राजा बहोत प्रभावित हुये। उनके द्वारा दिये मशवरो अथवा राय से राजा कि कख्याती बढ़ने लगी।.प्रजा में रानी के दिये फैसलों का सम्मान होने लगा।.राजा द्वारा रानी के नाम कि स्वर्ण मुद्रा जारी करावायी गईं। ये हि नही राजा ने अपने नाम के आगे रानी का नाम जोड़ दिया।.

राजतरंगिणी किताब

किताब के लेखक अल्हड लिखते है कि राजा खेम गुप्त एक अय्याश और नशेडी वृत्ति के शासक थे। उनके मतानुसार राजा खेम गुप्त दिनभर भोग-विलास,मदिरा पिने और जुआ खेलने जैसी गतिवीधियों में लिप्त रहते थे।. जबकि राजा के कर्मो से एैसा प्रतीत नही होता।.एक विकलांग महिला से प्रेम करना तथा उसे रानी बना के सम्मान के साथ रखना।.राज दरबार में रानी दिड्डा य एक महिला के विचारो को सम्मान देने वाला व्यक्ति अय्याश कैसे हो सकता हैं।.
अल्हड़
इनके पुर्वज लाहौर वंश के राजाओ के राजदरबार मे मंत्री पद पर आस्ति थे।. अतः पूर्वजों द्वारा मिली जानकारी को इन्होने अपनी किताब राजतरंगणी में वर्णित किया हैं।.

सति प्रथा का विरोध

अपने पुत्र अभिमन्यू को जन्म देने के कुछ समय बाद राजा कि मौत हो गयी और परम्परा अनुसार रानी को सती होना था। मगर राज कुमार के छोटा होने के कारण रानी सती नही होना चाहती थी।. अतः रानी के इस निर्णय से प्रजा के कुछ वर्ग के लोग न खुश थे।.उन्होने ही रानी को चूड़ैल तथा अन्य अपमान जनक उपाधियां दी।.यह समाज का वही वर्ग था जो राजा के बाद स्वयं कि राजगद्दी पर बैठने कि दावेदारी रखता था। मगर रानी ने सबकी बातों को नज़र अंदाज करते हुए राजकुमार अभिमन्यू को वर्तमान का राजा और स्वयं को राज माता के पद पर आस्ति किया।.इस प्रकार उन्होने प्रशासन कि बागडोर अपने हाथों मे ली।.रानी साहिबा ने उनके खिलाफ आवाज ऊठा रहे ताकतवर दमा नामक जमींदार कि हत्या करवा दी,शडयंत्र मे शामिल महामंत्री दण्डी गुप्त कि भी हत्या करवा दी गईं।.इधर राजकुमार अभिमन्यू कि अज्ञात कारणों से मृत्यु हो गईं।.अतः रानी ने अपने पोतों को गद्दी पर बिठाना चाहां।.मगर अज्ञात कारणों से उनके तीनों पोतो कि भी मृत्यु हो गयी।.और उनकों मरवाने का अरोंप रानी पर मड़ दिया गया।.रानी ने 23 वर्षों तक सुचारु रुप से शासन किया।.अपने पति और पुत्र कि याद में रानी ने 64 मंदिरो का निर्माण करवाया।.श्री नगर में इन्होने शिव मंदिर का निर्माण करवाया जिसका नाम विद्या मठ रखा गया।.

भारत मे सती प्रथा किसने बंद की

सती प्रथा को भारतीय समाज में ज्यादातर 19वीं सदी में बंद किया गया। इसकी उत्पत्ति आमतौर पर धार्मिक और सामाजिक परिवेश में होती थी,तब स्त्री को अपने पति की मृत्यु के बाद उसके साथ आत्महत्या करने की प्रथा थी। यह प्रथा विभिन्न धार्मिक संस्कृतियों में पाई जाती थी, लेकिन भारतीय समाज में इसे ज्यादातर हिंदू समाज में देखा जाता है।.सती प्रथा की समाप्ति का महत्वपूर्ण कारण ब्रिटिश साम्राज्य का भारत में आना था। ब्रिटिश सरकार ने इस प्रथा को बंद करने के लिए कानून और नियम बनाए। 1829 में विलियम बेंटिक नामक ब्रिटिश नियायिक ने सती प्रथा को निषेधित किया। उन्होंने कहा था कि यह प्रथा मानवता के खिलाफ है और उसे अवैध घोषित किया। इसके बाद,ब्रिटिश सरकार ने सती प्रथा के खिलाफ विभिन्न कड़े से कड़े कानून बनाए और उसके पालन पर सख्ती से प्रहास किया। इसके परिणामस्वरूप,सती प्रथा का प्रचलन धीरे-धीरे समाप्त हो गया।. 

महमुद गजनवी

कुछ इतिहासकारों के मतानुसार रानी ने महमुद गजनवी से युध्द नही लडा था क्योंकि 1003 ई0 में रानी कि मौत हो गयी थी और गजनवी ने 1015में कश्मीर पर अक्रमण किया था।.मिली जानकारी के अनुसार हमे पता चला कि यह पुर्ण सत्य नही हैं।.हम आपको बताते चले कि महमुद गजनवी ने भारत पर 17 बार अक्रमाण किया।.शुरूआती समय में उसने भारत के समीपवर्ती इलाको मे आक्रमण किया।.उस समय काल के अनुसार कश्मीर भारत का हिस्सा नही था बस एक अभिन्न अंग था और महमुद गजनवी ने 1001ई0 भारत के समीपवर्ती इलाको में यहां अक्रमण किया था।.जिसमें उसे दो बार हार का सामना करना पड़ा।.

तुगलना से रानी के संबन्ध

अल्हड़ अपनी किताब में लिखते है की रानी के किसी तुगलना नाम के जवान मजदुर से सम्बन्ध थे।.हां शायद यह सत्य हो सकता है मगर औरत-पुरुष में बराबरी का माप क्या ये नही हो सकता कि महिलाओं को भी वो दोष रखने का अधिकार हो जो पुरुष रखते हैं।.उदहरण के लिए अगर राजा अपने शासन काल के दौरान 4 रानीयां औऱ कई पट-रानीयां रख सकता हैं।.तो महिला शासिका पर ऐसा प्रतिबंध कैसे कोई लगा सकता हैं।.दोस्तो ये पहली बार  ऐसा नही हुआ की किसी महीला शासिका को निचा दिखाने के लिए उस पर तरह-तरह के लाक्षण लगाये हो और उसका मनोबल गिराने के लिए उसके पति,बेटे,पोते कि हत्या करवा दि गयी हों।.आखीर एक माँ अपने बेटे कि हत्या कैसे कर सकती है इसका विचार आप स्वयं कर सकते हैं क्योकि हर मनुष्य ने जन्म माँ कि कोख ही से लिया हैं फिर वे चाहे गोरा हो य काला कुरुप हो य सुन्दर।.माँ का अपने सन्तान के प्रति सनेंह सदैव रहा हैं।.आप माँ के इस सनेंह को पर्यावरण में मौजूद किसी भी जीव जन्तु,पशु,पक्षी में देख सकते हैं। इस प्रकार इतिहास में लिखी बातों को जियों का त्यों मान लेना भी उचित नही हैं।.इसमें खुद के अनुभव एवं विचार विवेक का समिश्रण भी होना चाहिए।.अतः रानी दिड्डा ने अपने अतिंम समय में अपने भाई के बेटे संगराम राज को गद्दी का उत्तराधिकारी नियुक्त किया।.1003 ई0 में उनकी मृत्यु हो गयी।.

एक लंगड़ी रानी जिससे किसी को एक कदम चलने कि उम्मीद न थी उसने अपने जीवन कि समस्याओं को ऐसे लांघ डाला जैसे कभी हनुमान ने समुद्र को लंघा था।.दोस्तो आज भी महिलाओं को अपमानित करने के वहीं पैंतरे अपनाये जाते है जो तब के समय काल में अपनाये जाते थें।.चाहे भले हि गलती पुरुष कि ही हो सदैव अपमान महिलाओं का हि होता हैं।.दोस्तो गालीयां हमारे समाज का एक ऐसा हिस्सा हैं जो न चाहते हुए हमने सिख रक्खा हैं।.ये बचपन से हि हमारे समाज ने जबरन हमें सिखा रक्खा हैं।.

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