प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम छोटा नागपुर में बने राजमहल के इर्द गिर्द स्थित पाहडीयों पर रहने वाली पहाडीया जनजाति तथा इनके सामाजिक जीवन,इनके द्वारा किये गये अंग्रेजो के खिलाफ किए संघर्ष के तथा दामिन-ए-कोह के बारे में जानेंगे। आगे के भाग में ब्रिटीश कर्मचारी बुकनन तथा रानी सर्वेशवरी और ब्रिटीश कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड के बारे में जानेंगे।.इसके साथ ही 1857 के विद्रोह पर इस विद्रोह का क्या असर पडा इस पर भी चर्चा करेंगे।.पहाडीया जनजाति
उत्तर पूर्वी छोटा नागपुर पठार पर बने राजमहल के इर्द-गिर्द बसी पहाडियों पे रहने के कारण इनका नाम पहाडीया जनजाति पड गया।.इसके अलावा इन्हे द्राविड़,माल्टी,मल्लेर भी कहा जाता था।.राजमहल पहाडीयों को सौरिया के क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता हैं।.इसको अंतरगत गौंडा और पाकुड का क्षेत्र भी आता था।.पहाडीया जनजाति मुख्य रुप से तीन भागों में विभाजित थी।.1.माल पहाडीया जनजातिः यह बांसलोई नदी के दक्षिणी क्षेत्र में बसे हुए थें।.
2.कुमार भाग पहाडीया जनजातिः यह बांसलोई नदी के उत्तर पुर्वी क्षेत्र में बसे हुए थें।.
3.सौरिया पहाडीया जनजातिः यह मुख्यतः बांसलोई नदी के उत्तर तटीय क्षेत्र में बने राजमहल के पठारों मे बसे हुये थे।.
कार्य एवं रहन सहन
यह पेशे से झुम खेती करने वाले किसान थे। वे अक्सर उत्तर-पूर्वी बंगाल तथा बिहार के मैदानी क्षेत्रों मेें लुटमार के लिए हमला किया करते थें।.इसके अलावा यह जंगल में होने वाली सब्जीयों से अपना गुजर बसर करते थे।.झूम खेती
जंगल कि झाडियो और घास फूस को जलाकर प्राप्त हुई साफ ज़मीन पर यह खेती किया करते थे।.दो वर्ष तक फसल काटने के उपरान्त वह साफ कि हुई जमीन को वैसे ही छोड देते थे।. कुछ समय काल के लिए किसी अन्य स्थान पर खेती करते थे।.ताकि उस भूमि की उपजाऊ क्षमता वापिस आ सकें।.खेती कि इस प्रक्रिया को झुम खेती कहा जाता हैं।.जंगलो से खाने के लिए वे महुआ के फूल,अन्य फल इकट्ठा किया करते थे। और बेचने के लिए रेशम कि कौप, राल,काठ कोयला बनाने के लिए लकडी इकट्ठा किया करते थे।.किसी अन्य कारणो से इमली के बीज इकट्ठा किया करते थें।.अपने घरो के निर्माण को लिए जंगली घास और बांस का इस्तेमाल किया करते थें।.इसके साथ ही शिकार एंव जंगली जानवरो से अपने बचाव के लिए तीर कमान का इस्तेमाल किया करते थे।.रोजना शिकार करने के कारण इनका निशाना बडा सटिक था।.घने जंगले में रहने के कारण तथा तीर अदांजी मे निपुण होने के कारण और लूूटेरा प्रवृत्ति का होने के कारण इन जंगलो मे रात क्या दिन में भी इसमें कोई जाने कि हिम्मत नही करता था।.अगल-बगल के क्षेत्रीय व्यापारी एवं लोगो इस क्षेत्र में आने जाने औऱ व्यापारिक माल को ले जाने,लेे आने के लिए एक निश्चत धन राशि प्रदान किया करते थे।.बदले मे इस जनजाति के लोग इनका और इनके समान का संरक्षण किया करते थें।.
उपर्युक्त कारणों के चलते ब्रिटीश सरकार का भी इन पर काबु पाना मुश्किल हो गया था।.इसके आलावा पहाडीया जनजाति अंग्रेजो से पहले राजपुतो और मुगलो से भी संघर्ष रत रहे।.
पहाडीया विद्रोह
पहाडीया विद्रोह अंग्रेजो के खिलाफ आदिवासी विद्रोह में एक महत्वपुर्ण स्थान रखता है।.पहाडीया विद्रोह तीन चरण हुआ।.1.1766 ,2.1772, 3. 1781-82 के बिच।.मुख्य पात्र
मुख्य पात्रो कि सूची में सूर्य चांगरुन सांवरिया,पचगे डोम्बा,पहाडीया पुलहार रयना,इनके अलावा महेशपुर कि रानी सर्वेश्वरी तथा राजा जगन्नाथ मुख्य पात्रों कि सूची में आते हैं।.विद्रोह का मुख्य कारण
1760 के दशक में अंग्रोजो ने इन पहाडीयों से जंगलो को साफ करने के निती अपनाई।.अंग्रेजो मतानुसार जंगलो को साफ करके उस पर खेती करवा के अधिक लाभ कमाया जा सकता था। दुसरा लाभ पहाडीया जनजाती पे काबू पाना था।.अतः 1766 में रमना अहडी के नेतृत्व में विद्रोह कि शुरुआत हुई। जिसमें उनता समर्थन घसनिया पहाड़ से दुमका,करिया पुलहर,आमगाछी पहाड़ से दुमका,चगंरु सांमवरिया ने किया।.अन्त में विद्रोह को क्रुरता पुर्वक दबा दिया गया।.1772 में सूर्य चागरुन सांवरीया ने विद्रोह कि फिर से शूरुआत कि जिसमें उनका सहयोग पचगे डोंम्बा,पहाडिया पुलहार ने दिया।.अंग्रेज इसे भी दबाने में सफल रहें।.1780 के दशक में भागलपुर के कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड ने शांति स्थापना कि नई निती लागू करी जिसके मुताबिक पहाडीया जनजाति के मुख्या को ब्रिटीश सरकार द्वारा वार्षिक भत्ता दिया जायेगा।बदले में मुखिया द्वारा अपने जन-समुह को अनुशासिक और अपने नियंत्रण मे रखेगा ताकि आम जन और अंग्रेज सत्ता को उनसे किसी प्रकार कि समस्या न हो।.जिस- जिस कबीले के सरदारो ने अंग्रेजो के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया उसने अपने कबिले में अपनी सत्ता खो दी।.इस प्रकार यह विद्रोह भी अंग्रजो कि कूटनीतिक चाल का शिकार हो गया।.
1781 के विद्रोह का नेतृत्त्व महेशपुर के राजा कि पत्नी सर्वेशवरी ने किया। जिसमें उनका समर्थन सम्पुर्ण पहाडीया जनजाति ने किया।.सम्पुर्ण सेना के अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिये।.मगर अंग्रेज कूटनीति चाल चलकर,आपसी मतभेद पैदा कर विद्रोह को दबाने मे सफल रहे।.अपने लोगो को संगठित करके 1856 में विद्रोह कि शुरुआत पहाडीयों के सरदार सुन्दर पहाडीया ने की। वे पूर्वी धरनी पहाड के रहने वाले थे।.यह विद्रोह1856 के संथाल विद्रोह के पहले का विद्रोह था।.इस विद्रोह ने संथाल विद्रोह में लोगो को एक जुट करने में अहम भूमिका निभाई।.मगर अंतः सभी विद्रोह अंग्रेजो कि प्रबल सेना और तकनिकी हत्थीयारो के आगे ज्यादा समय तक नही टिक पाये।.
1781 के विद्रोह का नेतृत्त्व महेशपुर के राजा कि पत्नी सर्वेशवरी ने किया। जिसमें उनका समर्थन सम्पुर्ण पहाडीया जनजाति ने किया।.सम्पुर्ण सेना के अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिये।.मगर अंग्रेज कूटनीति चाल चलकर,आपसी मतभेद पैदा कर विद्रोह को दबाने मे सफल रहे।.अपने लोगो को संगठित करके 1856 में विद्रोह कि शुरुआत पहाडीयों के सरदार सुन्दर पहाडीया ने की। वे पूर्वी धरनी पहाड के रहने वाले थे।.यह विद्रोह1856 के संथाल विद्रोह के पहले का विद्रोह था।.इस विद्रोह ने संथाल विद्रोह में लोगो को एक जुट करने में अहम भूमिका निभाई।.मगर अंतः सभी विद्रोह अंग्रेजो कि प्रबल सेना और तकनिकी हत्थीयारो के आगे ज्यादा समय तक नही टिक पाये।.
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