प्रस्तावना
क्या
आपने कभी सोचा है कि एक समय
ऐसा भी था जब भारत में लोगों
की आवाज़ सुनी नहीं जाती थी?एक
ऐसा समय आया था जब गरीब और
निराधार लोगों के आवाज़ को
दबाया गया था,लेकिन
उनकी आवाज़ों ने अपनी ताक़त
दिखाई। यहां हम बात कर रहे हैं
कोया विद्रोह की,जिसने
1803
से
1882
तक
भारत में धूम मचाई थी।.प्रस्तुत
लेख में हम कोया विद्रोह के
मुख्य कारणों तथा 1882
के
वन अधिनीयम,विद्रोह
के प्रमुख नेता टोंपा सौरा,अन्नत
शौयार,अल्लूरी
श्री राम राजू के बारे में
जानेंगे।.
विद्रोह के पिछे का कारण
क्या
आप जानते हैं कोया विद्रोह
का अर्थ क्या है?
यह
एक ऐसा विद्रोह था जिसने अपनी
उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध
था,जिसने
ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी
आवाज़ उठाई थी।1.अंग्रेजो
द्वारा परम्परागत रुप से
अदिवासियो के अधिकारो को
समाप्त करना।2.सरकार
की दादागिरी एवं साहूकारों
का उत्पिड़न और शौषण।3.ताडी
जैसे घरेलु उत्पाद पर अबकारी
अधिनियम लगाना आदि।.
कोया विद्रोह की शुरुआत
कोया
विद्रोह भारतीय इतिहास में
एक महत्वपूर्ण अध्याय है
जिसमें कोया जनजाति के लोगों
ने अपने अधिकारों के लिए विद्रोह
किया। यह विद्रोह आंध्र प्रदेश
के पूर्वी गोदावरी क्षेत्र
के वर्तमान बिजापुर जीला के
क्षेत्र में हुआ था।.1803
में
विद्रोह कि शुरुआत होती है
मगर अंग्रेजो द्वारा इसे दबा
दिया जाता हैं। इसके बाद लगातार
विद्रोह कि चिंगारी
1840,1845,1858,1861
तथा
1862
तक
जलती बुझती रहती हैं।.कोया
विद्रोह,
भारतीय
इतिहास का एक महत्वपूर्ण
अध्याय है। यह एक ऐतिहासिक
घटना थी जो भारत में उथल-पुथल
मचा दी और जनता के बीच गहने
विचारों को उत्पन्न किया।.
विद्रोह का दो भागों में विभाजन
1.
1879 से
1882
तक
अपने
शूरुआती चरण में कोया और कोंड़
आदिवासी जनजाति तथा सोरा नामक
पहाडी जनजाति के सरदारों ने
विद्रोह कि शुरुआत कि।.मगर
विद्रोह ने अपना विक्राल रुप
सरदार टोंपा सौरा के नेतृत्व
में लिया।.हालांकि
प्रशिक्षीत सैनिकों तथा तकनिकी
हथीयारों के आगे वे टिक नही
पाये मगर सम्पुर्ण जनजाति
समुह को एक जूट करने में विद्रोह
ने महत्वपुर्ण भूमिकी
निभाई।.
2.विद्रोह का दुसरा चरण 1882-1886 तक
1882
में
अनन्त शैयार के नेतृत्व में
विद्रोह ने अपना असली रुप धारण
किया।.इन्होने
राम सेडू नामक 500
सैनिको
कि एक विद्रोही सेना कि स्थापनी
कि जिन्होने अंग्रेज सेना के
छक्के छुडा दिये।.अनन्त
शैयार के नेतृत्व मे कई गोरिल्ला
युध्द लड़े गये।.अपने
शुरुआती चरण मे ये लोग अंग्रेजो
को अपने क्षेत्र से भगाने का
कार्य करते थे।.मगर
अंग्रेजो दौबारा हमला करने
पर ये पकडे जाते थे और मार दिये
जाते थें।.क्येकि
हर बार अंग्रेज अपनी सेना को
बढ़ा कर और नये तकनिकी हथियार
लेकर लौटते थे।.जिसके
बारे में जानकारी न होने के
कारण वे अपना बचाव करने मे
असफल थे।.अतः
श्रीराम राजू ने सेना बागडोर
अपने हाथों मे लि।.
श्री अल्लूरी सितारामराजू
इनका
पुरा नाम अल्लूरी श्री राम
राजू य सिताराम राजू था।.इनके
बारे में एक कथा प्रचलीत है
कि जब वे युवास्था में थे तो
इन्हे एक लडकी से इन्हे प्रेम
हो गया था मगर अपतकालिन कारणों
से उस लडकी कि मौत हो गयी।.जिसकी
याद में इन्होने अपने नाम के
आगे सिता का नाम जोड दिया औऱ
इनका पुरा नाम श्री अल्लूरी
सिताराम राजू पड गया।.इल्होने
सिता कि मौत के बाद सम्पुर्ण
जीवन ब्रह्मचर्य को पालन करने
कि कसम उठाई।.प्ररम्भीक
जीवन
इनका
जन्म भारत के वर्तमान आंध्र
प्रदेश के बीजापुर क्षेत्र
के एक तेलगु परिवार में हुआ
था।.इनके
पिता वेंकट राम पेशे से एक
वकिल थे तथा इनकी माता सूर्या
नारायणमा के धर्मपरायण गृहणी
थी।.इनके
जन्म कि तिथी को लेकर मतभ्रम
है।.
विद्रोह में इनका योगदान
22
और
24
अगस्त
1922
के
बीच रामराजू ने अन्नवरम्,कृष्णा
देवी पेटा,राजवोम्मांगी,चिंतापल्ले,नरसीपट्टनम
के आसपास के क्षेत्रीय थानो
पर राम सेडु सेना ने श्री
सिताराम राजू के नेतृत्व मेंं
हमला करके उनके हथियारों को
अपने कब्जे में ले लिया,
जिसमें
26
बंदूके,2500
राऊण्ड
गोला बारुद,6303
ली
एनफिल्ड राईफल और एक रिवालवर
शामिल थी।.जिसका
प्रयोग अंग्रेजो के खिलाफ
विद्रोह में किया गया।.छापा
मारने के बाद रामराजू स्टेशन
की एक डायरी पर हस्ताक्षर करते
और लूट के माल का विवरण देकर
खुद को पकड़ने के लिए अंग्रोजो
को चुनौती देते थे।.बताया
जाता हैं कि रामराजू ने अपने
सहयोगियो को कह रखा था कि कोई
भी भारतीय सैनिक को नही
मारेगा।.उनके
द्वारा किये गये प्रत्येक
अभियान में भारतीय सैनिको
छोड दिया जाता था।.उन
पर अंग्रेजो द्वारा एक बडे
इनाम कि घौषणा कि गई थी।.अतः
6
जून
1924
अंग्रजो
द्वारा इनकी गोली मारकर हत्या
कर दी गई।.
1882 का वन अधिनियन कानून
1882
का
वन अधिनियन कानून एक अत्यंत
दुःखद और निरादार कानून था।
यह कानून न केवल वन्य जीवों
को अत्याचारित करता था,बल्कि
इससे जुड़े लोगों को भी दुखी
किया था।यह कानून वन्य जीवों
के संरक्षण की बजाय,उनके
विनाश को बढ़ाता था। जंगलों
की विपणन और उनके संरक्षण के
बारे में कोई ध्यान नहीं
था,जिससे
जंगलों की विनाशकारी व्यवस्था
होती चली गई। यह कानून वन्य
जीवों के साथ-साथ
उन लोगों की आत्मा को भी क्षति
पहुंचाता था जो जंगलों से
जुड़े हुए थे।इस कानून ने
जंगलों को निष्काशित कर
दिया,जिससे
लोगों का जीवन और पर्यावरण
दोनों ही प्रभावित हुआ। वन्य
जीवों के संरक्षण के बजाय,इस
कानून ने उनका विनाश किया जो
अंग्रेजो द्वारा किया गया एक
अत्यंत दुखद और अमानवी विचार
था।.
श्री रामराजू के शब्दो में
हमें
ऐसे अनुचित कानूनों के खिलाफ
आवाज उठाने की आवश्यकता है,ताकि
हम एक सामर्थ्यवान समाज बना
सकें जहां प्राकृतिक संसाधनों
का सम्मान किया जाता है और हर
जीव को सम्मान मिलता है। इसके
बिना,हम
अपने आप को एक अन्यायपूर्ण
और अस्वीकृत समाज में फंसा
बैठेंगे।एक ऐसा अधिकार है जो
किसी भूमि के स्वामी या अिधभोगी
को उस हैसियत में उस भूमि के
फायदाप्रद उपभोग के लिए,किसी
अन्य भूमि में या उस पर या उसके
संबंध में जो उसकी अपनी नही
है,कोई
बात करने और करते रहने के लिए
या किसी बात का किया जाना रोकने
और रोकते रहने के लिए पर्याप्त
है।.
अधिष्ठायी
और अनुसेवी सम्पत्तियां और
उनके स्वामी
वह
भूमि जिसके फायदा प्रद उपभोग
के लिए अधिकार विद्मान है
अधिष्ठायी सम्पत्ति औऱ उसका
स्वामी य अधभोहगी उसका अधिष्ठायी
स्वामी कहलाता हैं,वह
भूमि पर भाप अधिरोपित है वह
अनुसेवी सम्पत्ती और उसका
स्वामी या अधभोगी अनुस्वामी
कहलाते हैं।.
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