प्रस्तावना
प्रस्तुत
ब्लाग में कर्नाटक राज्य के
किट्टूर क्षेत्र की रानी
चेन्नम्मा द्वारा किये गये
विद्रोह के बारे में जानेंगे।.इसके साथ ही
भारत कि आज़ादी में उनके
महत्वपुर्ण योगदान तथा चुक
के सिधांत के बारे जानेंगे।.
विद्रोह का मुख्य कारण
विद्रोह
का मुख्य कारण ब्रिटिशस का
चूक का सिध्दांत था।.जिसके चलते
दत्तक पुत्रो को साम्राज्य
पर शासन करने का अधिकार न था।.यानि राजा कि
मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी
न होने कि दशा में सम्पूर्ण
साम्राज्य अंग्रेज सत्ता के
अधिन हो जायेगा।.1824के
समय काल के अनुसार स्त्री समाज
को इतने अधिकार नही प्राप्त
थे कि वे प्रशासनिक कार्य
सम्भाल सकें।. एैसा
बहोत कम देखने को मिला है जब
नारी समाज द्वारा सत्ता कार्य
सम्भाला हो।.भारत
में चूक के सिध्दांत का सर्वप्रथम
विद्रोह रानी चेन्नम्मा द्वारा
हि किया गया।.इसके
साथ हि रानी चेन्नम्मा अंग्रेजो
के अनावश्यक हस्तक्षेप तथा
कर निती से भी अंसतुष्ट थी।.उपर्युक्त
सभी कारणो के चलते रानी साहेबा
ने 1824 मेें
विद्रोह कि घौषणा कर दि।.आपको बताते
चले कि रानी चेन्नम्मा का यह
विद्रोह,रानी
लक्ष्मी बाई के अंग्रेजो से
लौहा लेने के पहले का विद्रोह
था।.
रानी चेन्नम्मा का जीवन-परिचय
रानी
साहिबा चेन्नम्मा का जन्म
कर्नाटक राज्य के बेलगांव
जीले के छोटे से गांव में 23
अक्टूबर 1778
लिंगयात समुदाय
में हुआ।.रानी
सहेबा चेन्नम्मा कि शादी मात्र
15साल की
उम्र में किट्टूर के अंतिम
शासक शिवलिंग रुद्र के साथ
हुई।.बचपन
से ही इन्हे रानी लक्ष्मीबाई
के समान हि तलवार बाजी,घुड़सवारी
तथा तीरंदाजी का शौक था।.रानी
साहिबा का सम्पुर्ण जीवन
संघर्षमय था।. शादी
के कुछ वर्षो बाद हि रानी
चेन्नम्मा के पति राजा शिवालिंग
रुद्र का वर्ष 1816 में
निधन हो गया।. प्रजापालक
कि अनुपस्थिती में सम्पुर्ण
साम्राज्य अस्त-व्यस्त
होने लगा।.अतः
रानी साहिबा ने सम्पुर्ण कार्य
भार का जिम्मा अपने हाथों मे
लिया।.प्रशासन
संभाले कुछ हि वर्ष हुए थे कि
1824 उनके
पुत्र कि मृत्यु हो गई।.ऐसी
विकट परिस्थितीयो में भि रानी
साहिबा ने हार नही मानी और
किट्टूर प्रशासन को सूचारु
रुप से चलाती रही।.
चूक का सिध्दांत
अभि
रानी साहिबा के दुःख के बादल
छटे नही थे कि अंग्रेजो ने
किट्टूर साम्राज्य को हडपना
प्रारम्भ कर दिया।.चूक
सिध्दांत जिसकी शुरुआत लार्ड
डलहौजी के प्रथम माकृवेर्स
जेम्स ब्राउन रामसे ने कि थी।.अपने शूरुआती
चरण में इसे 1858 तक
हि लागू किया गया था।.लेकिन इसे 1971
लागू किया जाता
रहा।.इस
नियम कें अनुसार जीस साम्राज्य
में शासक का कोई उत्तराधिकारी
नही होगा व स्वतः ही ब्रिटिश
साम्राज्य में विलय हो जायेगा।.चूक के सिध्दांत
को हम डाक्ट्रिन ऑफ लप्स के
नाम से भी जानते हैं।.किट्टूर
के आंतरिक मामलो में अंग्रेजो
का हस्तक्षेप रानी साहिबा को
पसन्द न था।.परिणामस्वरुप
1824 में
रानी साहिबा ने शिवलिंगप्पा
को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त
कर दिया।.चूक
के नियम अनुसार धातक अथवा
सौतेले पुत्रो को प्रशासनिक
कार्यो को संभालने कि अनुमति
न थी।.रानी
चेन्नम्मा ने शिवालिंगप्पा
को साम्राज्य के सम्पुर्ण
प्रशासनिक अधिकार दिलाने के
लिए बाम्बे प्रांत के गवर्नर
मांउट स्टूअर्ट को एक पैरवी
पत्र लिखा।.परन्तु
गवर्नर द्वारा इस पैरवी पत्र
के नियमो को मानने से इन्कार
कर दिया।.अतः
रानी साहिबा चेन्नम्मा ने
अंग्रोजो के प्रति अपने विद्रोह
कि शुरुआत कर दि।.रानी
साहिबा ने अंग्रेजो कि चूक
निती के साथ-साथ
कर निती की भी कडा विद्रोह
किया।.उनका
मानना था कि यह सब शौषणकारी
तथा जबरन थौपी जाने नितीयां
हैं।.इसके
साथ रानी साहिबा प्रथम महिला
शासिका थी जिन्होने ने अंग्रेजो
का स्वयं प्रशासन में अनावश्यक
हस्तक्षेप का विरोध किया।.
विद्रोह के प्रथम चरण कि घटना
रानी
साहिबा ने अंग्रेजो द्वारा
उनके प्रस्ताव को ठुकराये
जाने के बाद विद्रोह कि शुरुआत
कि, क्योकि
वैसे भी साम्राज्य को अंग्रेज
हड़प लेते,मगर
अगर विद्रोह के फलस्वरुप अगर
किसी तरह उन पर विजय हासिल कर
ली जाती हैं तो उनका साम्राज्य
उनके पास ही रहगा।.विद्रोह
के प्रारम्भिक चरण में सेंट
जॉन ठाकरे,कलेक्टर
और कुछ राजनीतिक एजेंट मारे
गये।.इसके
साथ हि ब्रिटिश अधिकारी सर
वाल्टर और श्री स्टीवेंस्न
को बंदी बना लिया गया।.उपर्युक्त
सभी कार्य रानी के लेफ्टिनेंट
अमातुर बल्लप्पा के सहयोग से
सम्पन्न हुआ।.अंग्रेजो
ने कूटनीतिक तरीके से ब्रिटिश
पादरी का साहारा लेकर रानी
साहिबा से संधि कि ताकि वे
अपने
ब्रिटिश अफसरो को
छुडा सकें।.इस
प्रकार विद्रोह के प्रथम चरण
में रानी साहिबा जीत हुई।.
विद्रोह के दुतीय चरण कि घटना
संधि
करने के पिछे रानी साहिबा का
उद्देश्य अपने साम्राज्य में
स्वतंत्रता पूर्वक शासन करने
का था।.उनको
लगा ऐसा करके उनको खुद का
उत्तराधिकारी चुनने कि आज़ादी
मिल जायेगी।.मगर
रानी साहिबा संधि के पिछे कि
कूटनीति को नही समझ पायीं।.यह
अंग्रेजो का कूटनीतिक तरिका
था जिसके माध्यम से वे समझौता
करके ये दिखाते है कि वे अपने
प्रतिद्वंदी से हार गए हैं।.और जब उनका
दूश्मन भय मुक्त हो कर रहने
लगता था तब वे हमला करके उस पर
अपना शासन स्थापित कर लेते
थे।.अतः
अंग्रेजो ने दूबारा हमला किया
इस बार भी रानी चेन्नम्मा ने
हमले का मुह तोड जवाब दिया।.युध्द के दौरान
सोलापुर के उप कलेक्टर थाॅमस
मुनरो कि मौत हो गयी।.मगर अंत मेंं
अंग्रेजो के तकनीकि हत्यारो
तथा संख्या में अधिक होने के
कारण रानी साहिबा कि हार हुई।.
रानी चेन्नम्मा
को बेलहोगल के किले में बंदी
बना लिया गया।.
करावास के दौरान रानी चेन्नम्मा
कारावास
में रहने के बाद भी रानी चेन्नम्मा
ने अंग्रेजो कि अधिनता स्वीकार
नही कि।.उन्होने
अंग्रेजो कि शोषणकारी निती
का विरोध किया और अन्य कैदियो
अंग्रेज नितीयो के प्रति
जाग्रत किया।.उपर्युक्त
कारणो के चलते उन्हे एकांत
कारावास मेें डाल दिया गया।.इसके
साथ हि उन्हे भोजन पानी और
स्वच्छता जैसी बुनियादी
ज़रुरतो से वचिंत रखा गया।.जिसके चलते
उनका स्वस्थ्य दिन ब दिन बिगडता
चला गया।.अतः
खराब स्वास्थ्य तथा उचित
चिकित्सा देखभाल न मिलने के
कारण 21 फरवरी
1829 को उनकी
मृत्यु हो गयी।.
किट्टूर
उत्सव
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