9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: खोंड विद्रोह 1837- 1856

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बुधवार, 27 मार्च 2024

खोंड विद्रोह 1837- 1856

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में खोंड विद्रोह तथा विद्रोह के मुख्य पात्रो तथा खोंड जनजाति के रहन-सहन के तरिकों उनकी परम्परों तथा विश्व युध्द तथा भारतिय सेना मे उनके महत्वपुर्ण योगदान के बारे में चर्चा करेंगे।. इसके साथ ही खोंड़ जनजाति के रीति रिवाजों तथा मानव बलि के बारे में चर्चा करेंगे।. लेख में दण्ड सेना तथा चक्र बिसोई के बारे में भी चर्चा कि गईं हैं।.

विद्रोह का मुख्य कारण

विद्रोह के मुख्य कारणों कि बात की जाये तो यह विद्रोह खोंड समुदाय के क्षेत्रों में अंग्रोजो द्वारा स्थापित किये गये जमिदारों तथा पेशकारो के अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण हुआ था।. खोंड समुदाय सम्पूर्ण जंगल को अपनी सम्पत्ति समझता था।. जो कि अंग्रोजो के लिए असहनिय तथा विद्रोह का एक प्रमुख कारक बना।.हालाकि अंग्रेजो ने अपनी मंशाओ के छुपाते हुए मानव बलि को विद्रोह का मुख्य कारण बताया।. मानव बलि परंपरा कि खबर अंग्रेजो को उन्ही के कर्मचारी बुकनन द्वारा मिली थी। बुकनन का कार्य क्षेत्र विशेष में भ्रमण करके जानकारी एकत्रित करना था।.

प्रमुख नेता

विद्रोह के प्रमुख नेताओ में चक्र बिसोई तथा राधाकृष्ण और दण्ड सेना का नाम आता हैं। हालाकि दण्ड सेना का निर्माण चक्र बिसोई तथा खोंड समुदाय द्वारा ही किया गया था।.1855 में अंग्रेजो के रेस्क्यो मिशन के तहत चक्र बिसोई भागते फिर रहे थे अतः इनके लापता रहने कि स्थिती में 1856 खोंड समुदाय के नेता राधाकृष्ण ने विद्रोह कि बागडोर अपने हाथो मे ली।. विद्रोह में इन सभी द्वारा निर्मीत दण्ड सेना ने अहम भूमिका निभाई।.विभिन्न गौरिल्ला एवं साधारण युध्द लडे गये, जंगल कि लगातार कटाई तथा मुखबिरो कि मदत से यह नजर में आने लगे।. इनकी हर एक गतिविधी पर अंग्रेज सरकार कि नजर रहने लगी। अतः दण्ड सेना के सभी सदस्यो को पकड लिया गया तथा फांसी पर चढ़ा दिया गया। उपर्युक्त कारण वश विद्रह कि समाप्ती हुई।.

खोण्ड़ जनजाति

इस समुदाय को खोंड, कोंधा और कंधा भी कहा जाता हैं। यह भारत के एक स्वदेशी समुदायों में से एक हैं।.खोंड उडिसा राज्य का सबसे बडा जनजाति समूह हैं। यहां कंधमाल के क्षेत्र में इनकी आबादी लगभग 70 प्रतिशत से अधिक हैै। उडिसा सरकार तथा क्षेत्रीय लोगो द्वारा इनके निवास स्थान के आधार पर दो भागों मे विभाजित किया हैं।.पहाडीयों पर रहने वाले खोंड तथा समतल क्षेत्रों पर रहने वाले खोंड।.

हालाकि गोंड समुदाय अपने कबिलें के उपनाम द्वारा जाने जाते थे।. कबिलें का संचालन कबिलें के सबसे शक्तिशाली परिवार द्वारा किया जाता था।. खोंड समुदाय के सभी कबिले अपने कौंध प्रधान के प्रति निष्ठा रखते थे।. हालाकि ये पेशे से कृष्क ही थे तथा झूम खेती किया करते थे। मगर इनका मुख्य पेशा य कार्य शिकार करना ही था।. इसके अलावा वे जंगलों से फल-फूल तोडने और लकडी एकत्रीत करने का भी कार्य किया करते थे।.उडिसा के अलावा यह समुदाय भारत के छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा पश्चिमी बंगाल के क्षेत्रों में भी पाये जाते है। यह अनुसूचित जाति कि श्रेणी में आते है।.

भाषा

मूल भाषा के रुप में यह खोंड कुई य कुवी तथा गोंडी भाषा बोलते हैं। यह दोनो भाषाए द्राविड भाषा कि श्रेणी में आती है तथा उडिया लिपी में लिखी गई हैं।.

रहन-सहन
ज्यादातर लोग जंगलो और पहाडी क्षेत्रों में निवास करते है मगर प्राकृतिक परिवर्तन, चिकीत्त्सा सूविधा,सिंचाई, शिक्षा के विकास के चलते इन्होने भी अधुनिक जीवन शैली को अपना लिया है।.

शिक्षा प्रणाली

खोंड कबिले में लडके-लडकीयों के लिए छात्रावास कि व्यवस्था होती है। लडके- लडकीयां छात्रावास मेंं सोते है। पुरी रात गायन,नृत्य,कहावतो,पहेलियों,मिथकों,किवदंतियो को सिखती है। यहि पर वे अपने जाति के तौर-तरिको को सिखते है।. छात्रावास में लडकीयों को अच्छी गृह व्यवस्था, बच्चोें को पालने के तरिके भी सिखाए जाते थे।. इसके साथ हि इन्हे दूर झरने से पानी लाना,खाना पकाना तथा घर के प्रत्येक सदस्य को भोजन परोसने से लेकर खेती,कटाई और बाजार में उपज की बिक्री में पुरुषों की सहायता के कुशल तरिकों से प्रशिक्षीत किया जाता हैं।

यहां लडको को शिकार करने कि कला और बहादुर मार्शल पूर्वजो की किवदंतिया सिखाई जाती है।. शिकार में बहादूरी और कौशल खोंड जनजाति में एक आदमी को मिलने वाले सम्मान को निर्धारित करता है। यह ढलान वाली जगहों पर स्थानंतरित खेती कि पोडु प्रणाली को सिखने का प्रयास का भी अभ्यास करते है। इसके आलावा प्रथम तथा दुतिया विश्व युध्द में अंग्रेजो द्वारा इन्हे सेना में भर्ती किया गया था।. खोंड अत्याधिक फूर्तिले तथा गोरिल्ला युध्द रणनीति में कुशल विशेषज्ञ माने जाते है।.

बहिर्विवाह

जनजाति के लोग बहि र्विवाह की परम्परा को निभाते थे।. यानि अपने कबिले से बाहर य दुसरे कबिले में विवाह की परम्परा निभाते थे।. विवाह के दौरान वर पक्ष के परिवार द्वारा वधु पक्ष के परिवार को वधु की किमत अदा कि जाती थी।.जो की परम्पता अनुसार बाघ कि खाल के रुप में अदा कि जाती थी।. हाला कि वर्तमान समय में सोना और भूमि किमत अदा करने का एक सामान्य तरिका हों गया हैं।.

विद्रोह का मुख्य कारण एवं परम्परा

धार्मिक परम्परा

इनकी धार्मिक परम्परा में कुल देवता की पुजा,जीववाद,पूर्वज पुजा और प्रकृतिक पुजा का उल्लेख मिलता हैं।. ब्रिटीश लेखको द्वारा इनके पुजायोजन में मानव बली का ज़िक्र मिलता है।.अतः इनके पुजा प्रावधानों में देखा जाये तो पृथ्वी पुजा,सूर्य पुजा, नदियों कि पुजा किया करते थे।.इनके पुजा प्रवधान से पता चलता है कि यह प्रकृतिक प्रेमी थे।. अनूष्ठानो में बेरदी पुजा,झगडी य केदु य मेरिया पुजा और पिता बलि पुजा शामिल हैं।.

1. मतिगुरु ने बीज बोने से पहले धरती पुजा कि थी। इसी प्रकार भूमि उर्वरा शक्ति सें सम्बधित गुरबा पुजा, तुर्की पुजा आदि है।.
2. धरती को प्रसन्न करने के लिए मेरिया पुजा कि जाती थी। इसी पुजा में मानव बलि का प्रवधान मिलता है।
3. देहुरि बलि तथा सरुपेतु पुजा में बकरे और मुर्गे कि बलि दी जाती थी।.
4. पिता बलि पुजा में चन्दन का लेप,धूप,घी,दीपक,सूखे चावल,हल्दी,भैंस,बकरी,मुर्गा च़ढाया जाता था।.
इस प्रकार मेरिया पुजन विद्रोह का एक कारण बना।.

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