प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम गुमसूर अथवा गंजाब विद्रोह के बारे में चर्चा करेंगे इसके साथ हि हम कंध विद्रोह इसके साथ कैसे सम्बधिंत है इस पर चर्चा करेंगे।. तथा डोरा बिसोई,चक्र बिसोई,राजा धंनजय भंज,आंगुल के राजा सोमनाथ सिंह,दण्ड सेना, गुमसूर,आंगुल,तथा सोनपुर की रियासतों तथा मदनपुर के ज़मीदार तथा कर्नल कैंपबेल एंव उनके सहयोगी कर्नल मैकफर्सन के बारे में जानेंगे।.इसके साथ हम गुमसूर विद्रोह के पिछे के मुख्य कारण की भी चर्चा करेंगे।. लेख में उडिसा के गुमसूर राज्य के इतिहास के बारे में भी चर्चा कि गई हैं।.गुमसूर राज्य यह उत्तरी भारत का एक महत्तवपूर्ण राज्य है जो अंग्रेजो के अधिन होने से पहले हैदराबाद के निजाम सलाबत जंग के अधिन था।. 1753 मेें सलाबत जंग ने घुमसूर राज्य को फ्रांस इण्डिया के आधिन छोड दिया।.1758 में ब्रिटीश सरकार कि सत्ता के प्रबल होने पर यह ब्रिटीश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आधिन आ गया।. इस समय काल के अनूसार गुमसूर राज्य के दो भाग पार्लाखेण्डी तथा गुमसूर अलग नही हुये थे।.विद्रोह का मुख्य कारण गुमसूर राज्य के दों भागो में विभाजित होने के बाद दोनो क्षेत्रो को अलग-अलग राजस्व कर देना पडता था।. मगर कुटनीतिक नतीजो का शिकार होने कारण दोनो क्षेत्र अपना राजस्व कर समय से नही चुका पाते थे।. इधर अंग्रेज लगातार राजस्व कर में बढ़ोत्तरी किये जा रहे थे।. परिणास्वरुप 1830 में गुमसूर में ब्रिटीश सत्ता के खिलाफ विद्रोह होना प्रारम्भ हो गया।.
श्री कर भंजा
यह धनंजय भंजा के पिता तथा एक लोकप्रिय शासक थे।. इनके शासन काल में प्रजा के साथ ब्रिटीशस को भी किसी प्रकार कि समस्या नही हुई।. 1790 में श्री कर भंजा गद्दी पर बैठे।. इनके समय काल में घुमसूर राज्य दो भागो मेें विभाजित नही हुआ था,और न ही साम्राज्य में किसी प्रकार का राज द्रोह था।.लगभग 18 वर्ष तक सुचारु रुप से प्रशासन चलाने के उपरान्त 1808 में श्री कर भांजा अपने पुत्र धनंजय भंज को अपना राजकाज सौंप कर लम्बी तीर्थ यात्रा को चले गये।.राजा धनंजय भंज
विद्रोह के मुख्य पात्र राजा धनंजय भंज के कार्यकाल के समय सम्पत्ति को लेकर आराजकता फैल गई।.जिसके कारण राजा अपना राजस्व कर चुकाने में असफल रहे।. समय से कर न चुकाने के कारण राजा पर ब्रिटीशस द्वारा जुर्माना लगाया गया।. जिस कारण कर कि राशी में लगातार बढ़ोत्तरी होती गई।. अतः समय से कर न चुका पाने के कारण ब्रिटीश कर्नल ने राजा को आमीन के माध्यम से नोटिस भेजा अगर राजा द्वारा महिने के अन्त तक सम्पुर्ण कर नही चुकाया जाता है,तो राजा कि सम्पुर्ण सम्पत्ति जब्द कर ली जायेगी।.इधर राजा ने अमिन द्वारा नोटिस लेना स्वयं का अपमान समझा और उसका अपमान करते हुए उसे राजदरबार से भगा दिया।. कर्नल ने स्वयं के आदेश का अनादर होता देख राजा को बंदी बनाने का आदेश दे दिया।. राजा धनंजय भंज के बंदी बनाये जाने के बाद 1818 में जब राजा श्री कर भांजा अपनी तीर्थयात्रा से वापिस लौटे तो उन्हे भी किले में नज़रबन्द कर दिया गया।.एक लोक प्रिय शासक होने के नाते राजा के सहयोगियों ने उन्हे छुड़ा लिया।. गुप्त तरिके से मिले सहयोगियो के समर्थन से राजा ने ब्रिटीश सत्ता से विद्रोह कि घौषणा कर दी।.
सम्पुर्ण राज्य को एक जुट होता देख अंग्रेजो ने 1819 में राजा को उसका राज्य वापिस लौटा दिया तथा धनंजय भंज को भी छोड़ दिया गया।. पुनः सत्ता सम्भालने उपरान्त राजा ने अपना सम्पूर्ण बकाया चुका दिया।. लेकिन 1830 आते- आते राजा एक बार फिर कर्जदार हो गये।.उन पर लगभग 77,623 रुपयों का बकाया था।. जिसे अंग्रेजो द्वारा माफ कर दिया गया।.1832 श्री कर भांजा सेवानिर्वत्त होना चाहते थे,जिस कारण उन्होने अपनी राजगद्दी अपने पुत्र धनंजय भंज को सौप दी।.1835 आते-आते धंनजय भंज एक बार फिर कर्जदार हो गये इसके साथ हि अंग्रेजो ने राजस्व कर 10 प्रतिशत तक बढ़ा दिया।.
सम्पुर्ण राज्य को एक जुट होता देख अंग्रेजो ने 1819 में राजा को उसका राज्य वापिस लौटा दिया तथा धनंजय भंज को भी छोड़ दिया गया।. पुनः सत्ता सम्भालने उपरान्त राजा ने अपना सम्पूर्ण बकाया चुका दिया।. लेकिन 1830 आते- आते राजा एक बार फिर कर्जदार हो गये।.उन पर लगभग 77,623 रुपयों का बकाया था।. जिसे अंग्रेजो द्वारा माफ कर दिया गया।.1832 श्री कर भांजा सेवानिर्वत्त होना चाहते थे,जिस कारण उन्होने अपनी राजगद्दी अपने पुत्र धनंजय भंज को सौप दी।.1835 आते-आते धंनजय भंज एक बार फिर कर्जदार हो गये इसके साथ हि अंग्रेजो ने राजस्व कर 10 प्रतिशत तक बढ़ा दिया।.
विद्रोह का आगमन भाग-1
एक बार फिर राजा को गिरफ्तार करने का आदेश हुआ मगर अबकी बार राजा धनंजय भंज अपने सहयोगियों कि मदत से भागने में सफल रहें।. अतः अपने सहयोगी आदिवासीयों, ग्रामप्रधान, जमीदारों के सहयोग से विद्रोह कि घौषणा कर दि गयी।.आदिवासीयों के नेता डोरा बिसोई ने अंग्रेजो के खिलाफ सभी को एक जुट करने में राजा कि मदत की।.31 दिसम्बर 1835 को उदयगिरी में अज्ञात कारणो से राजा धनंजय भंज की मौत हो गई।.डोरा बिसोई
यह गुमसूर के और कंध विद्रोह के मुख्य पात्रों में सेे एक है।.इन्होने धनंजय भंज के बाद विद्रोह की कमाण्ड अपने हाथों मे ली।.इन के विद्रोह करने का मुख्य कारण धार्मिक प्रथाओ में अंग्रेजो का हस्तक्षेप तथा राजस्व कर था।.विद्रोह का दमन करते हुए अंग्रेजो द्वारा डोरा बिसोई को पकड लिया तथा कारागार में डाल दिया गया।.1846 में इनकी उटी जेल में मौत हो गयी।. इसके बाद डोरा बिसोई को भतीजे चक्र बिसोई ने विद्रोह कि कमाण्ड अपने हाथो में ली।.डोरा बिसोई कि मौत के साथ हि गुमसूर विद्रोह भाग 1 समाप्त एवं कंध विद्रोह भाग 2 प्रारम्भ होता है।.कंध विद्रोह भाग 2
कंध विद्रोह के मुख्य कारणो में सबसे प्रमुख कारण डोरा बिसोई कि मौत थी।. मेरिया एजेंट मैकफर्सन कंधो को बहोत प्रताडित करता था, कानून का उलंघन करने पर कंधो को कडी सजा सुनाई जाती थी।. सामाजिक और धार्मिक प्रथाओ में अंग्रोजो का हस्तक्षेप तथा जबरन अपने कानुन थौपना, इसके साथ ही अंग्रेजो का बढ रहा अत्याचार प्रमुख कारणों मे से एक था।.
चक्र बिसोई
यह डोरा बिसोई के भतीजे और कंध विद्रोह के मुख्य पात्र थें।. अपने शुरुआती कार्यकाल के दौरान चक्र ने 1846 से 1856 तक पहाडी जनजाति विद्रोह का नेतृत्व किया।.चक्र बिसोई के सहयोग से हि कन्धो ने मेरिया एजेंट मैकफर्सन को उसके बिसपारा शिविर में पकड कर धमकी दि की अगर उसने उनका काहां नही माना तो उसकी हत्या कर दि जायेगी।.अतः मैकफर्सन ने अपने बर्ताव में बदलाव किया।.चक्र कि ही मदत से कंधो ने धनंजय भंज के नाबालिग बेटे को गद्दी पर बिठा कर घुमसूर का राजा नियुक्त किया।. आगे चलकर आगे चलकर गुमसूर,आंगुल तथा सोनपुर कि रियासतो ने चक्र को समर्थन देने से, अंग्रोजो के डर से समाप्त कर दिया।.चक्र समर्थन न मिलने के कारण भागते रहे।.अपने सम्पुर्ण जीवन में चक्र कभी पकडे नही गये।.चक्र से सम्बधित सम्पुर्ण घटना का अध्ययन क्रमवार तरीके से हम आगे भाग में करेंगे।.आंगुल
आंगुल उडिसा के पश्चिम तथा तटिय क्षेत्रो के बिच बसा राज्य हैं।. यहां प्रौगतिहासिक और आध्द ऐतिहासिक अवशेष भिमकंद,सामल,केराजंग,कलिया काटा,और पल्लाहार गांव में पाए गये है।.आंगुल ने अपनी सांस्कृतिक पहचान बरकरार रखी है जो इसके राजनीतिक प्रतिष्ठोनों की तुलना में कहीं अधिक प्रमुख हैं।. स्वतंत्रता के बाद आंगुल उडिसा का एक महत्वपुर्ण जिला बन गया।.सांस्कृतिक विरासत तथा अपने निवास स्थान पर कच्चे माल कि उपलब्धता आंगुल को 21वी सदी में एक प्रमुख जीला बनाती है।.कर्नल कैंपबेल
यह ईस्ट इण्डिया कम्पनी का एक मेरिया एजेंट था।. मेरिया एजेंट कर्नल मैकफर्सन कन्धों द्वारा उसके उसके शीविर में घुसकर दि धमकी से डर गया था, जिसके चलते उसने कंधो के साथ तुष्टी करण कि निती नही अपनाई।.जिसके परिणामस्वरुप अंग्रेजो को लगने लगा कि मैकफर्सन कि उपस्थिती गुमसूर में ब्रिटीश प्रशासन को संचालित नही कर पा रही हैं।. अतः मद्रास प्रेसिडेंसी ने लेफ्टीनेंट कर्नल कैंपबेल को वहां का नया मेरिया एजेंट बना दिया।. कर्नल कैंपबेल एक उच्चकोटी का कुटनीतिकार था।.अपने प्रयासों से कन्धों को मनाने में सफल रहा जिसके कारण वश कंधो ने चक्र को समर्थन देना बंद कर दिया।.आगूंल राजा सोमनाथ सिंह
इधर चक्र बिसोई को नबघन कोन्हारों और राजा सोमनाथ सिंह का समर्थन मिलना प्रारम्भ हो गया।. जिसके चलते चक्र ने आपना विद्रोह जारी रखा।.एक बार फिर कैंपबेल ने अपनी चाल चलते नबघन के कोन्हारों को और चक्र को माफ कर दिया।. अतः कोन्हारों ने आत्मसर्पण कर दिया मगर चक्र ने अपना विद्रोह जारी रखा।. मुखबिरो कि मदत से अंग्रेजो को पता चल गया कि चक्र को राजा सोमनाथ सिंह का समर्थन मिल रहा।. अतः राजा ने कुछ समय के लिए विद्रोह में अपने समर्थन और भागीदारी कम कर दि।.1846 में सोमनाथ सिंह एक बार फिर विद्रोह में शामिल हुऐ।. चक्र का समर्थन करते हुए बलपुर्वक हिडोल गांव पर कब्जा कर लिया, हिडोल के राजा ने इसका विरोध करने का प्रयास किया जिस कारण उस पर राजा सोमनाथ सिंह तथा उनके सहयोगियों द्वारा 3000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।.1848 में कर्नल कैंपबेल ने हिडोल पर हमला किया और उसे अपने कब्जे में ले लिया।. राजा सोमनाथ सिंह को हाजारी बाग जेल में भेज दिया गया।.कर्नल कैंपबेल को लगा कि अब अपनी हार स्वीकार कर लेंगे।. मगर ऐसा नही हुआ चक्र ने कालाहण्डी में कन्धो के नेता रेंडो माझी के पकड लिया, उसके बाद कर्नल कैंपबेल के उत्तराधिकारी एसी मैक निल पे हमला किया।.अतः अंग्रेजो को पता चल गया कि इन दोनो घटनाओ में चक्र का हाथ है।. धिरे-धिरे अंग्रेजो को पता चल गया कि चक्र बिसोई को पकड़ पाना मुश्किल हैं। अतः उन्होने चक्र बिसोई के सहयोगियों को पकडना प्रारम्भ किया।.1.इसी बिच गदनपुर के ज़मिंदार पर चक्र को आश्रय देने का आरोप लगा जिसके कारण वश उसकी जमिदारी छिन ली गयी।.2.इसके बाद आठ गांव के जमिदार धर्म सिंह मधांता कि गिरफ्तारी हुई।.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें