9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: doctrine of lapse

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रविवार, 17 मार्च 2024

doctrine of lapse

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प्रस्तावना

प्रस्तुत ब्लाग में हम चुक के सिध्दांत,सर्वप्रथम इसका प्रयोग कहां हुआ तथा भारत में पहली बार इस सिध्दांत का कब प्रयोग किया गया।.इसके साथ ही भारतीय जनता पर इसके नियमो का क्या प्रभाव पडा इसके बारे में जानेंगे।.इस कानून के चलते ब्रिटीश घराने कि रानी विक्टोरिया किस तरह से प्रभावित थी तथा समय-समय पर इसे किन-किन विदेशी शासको द्वारा लागू किया गया इसके बारे में जानेंगे।.

रुपरेखा

यह एक विदेशी नियम था जिसका सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांस के शासकों द्वारा किया गया।.प्रारम्भ में यह समाज कल्याण कि नीति थी।.मगर धीरे-धीरे यह शोषणकारी नीति में परिवर्तित हो गयी।.इक समय काल के दौरान फ्रांस के राजा का कोई पुरुष उत्तराधिकारी न होने कि स्थिती में।.उसने अपनी बेटी कि शादी किसी अन्य साम्राज्य के शासक से करके उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।.अतः राजा कि मंत्रीमण्डस सिमीत द्वारा इस नियम को बनाया गया ताकि कोई विदेशी उनके साम्राज्य पे शासन न कर सके तथा उनके प्रशासन के हि किसी यौध्दा को राजा का कार्य भार सौंपा जा सकें।.भारत में इसे ब्रिटिशस द्वारा हड़प कि नीति के रुप मे लागू किया गया।.


चुक के नियम का इतिहास


भारत में इसे कोर्ट आफ डारेक्टरस द्वारा 1834 में ही लागू कर दिया गया था।.कुछ देशी रियासते इस कानुन के नियम और शर्तो को मानते हुए,ब्रिटीश भारत का हिस्सा बन चूकी थी।.लेकिन इस कानून ने अपना कठौर रुप तब धारण किया जब लार्ड डलहौजी भारत का गवर्नर जनरल बना।.लार्ड डलहौजी ने इस कानून को कठोरता पूर्वक लागू कर दिया।.जिसके चलते यह कानुन न रह कर हडप कि नीति बन गया।.प्रारम्भ में चुक का सिध्दांत 31 दिसम्बर 1601 लेकर 1858 तक लागू किया गया।.मगर भारतीय परस्थीतियो के अनूसार इसका समय काल बढ़ता चला गया और आज़ादी के बाद 1971 तक लागू होता रहा।.इसके कारण कि चर्चा आगे कि जायेगी।.इस कानून के चलते ब्रिटीशस ने किसी भि रियासत में अपने प्रशासनिक हस्तक्षेप को अपने पास रखा तथा जब किसी राज्य को अपने में विलय करना होता था।.तब कम्पनी द्वारा यह दावा किया जाता था कि शासक ठिक से शासन नही चला रहा।.उनके साम्राज्य को हडप लिया जाता था।1852 तक अंग्रोजो के पास भारत कि आपार शक्ति थी।.1947 मेंं आजा़दी के समय ब्रिटीश भारत में 560 से अधिक भारतीय रियासते शामिल थी।.

सर्वप्रथम चुक के नियम प्रयोग

1.इस कानून का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांस शासको द्वारा लगभग 10 सदी से 14वी सदी के बिच किया गया।.
2.1410में यह चर्चा में तब आया जब फ्रांसीस सिंहासन के दावो को लेकर एक पुस्तक प्रकाशित हुई।. जिसे रोमन सम्राट हेनरी चतुर्थ द्वारा लिखा गया था।.अपनी पुस्तक में हेनरी ने इस कानुन को सैलिक कानुन का नाम दिया।.
3.1593 में यह कानुन तब चर्चा में आया जब फ्रांसीस किंग हेनरी दुतीय कि पोति कि शादी स्पेन के राजा फिलीप दुतीय के साथ हुई।.फिलीप दुतीय कि फ्रांसीस सिंहासन कि दावेदारी खतम करने के लिए इस कानुन का प्रयोग किया गया।.
4.स्पेनिश राजा फिलीप पंचम ने इस कानुन को एक अलग रुप में कम कठोर बदलावों के साथ प्रस्तुत किया।1713 में पुरी तरह से समाप्त कर दिया गया।.
5.एैसा भी कहां जाता है कि सौलिक कानुन को बनाने के पिछे का लक्ष्य महिला उम्मिदवार को प्रशासनिक कार्यो से दुर रखन था।.
6.1837 हनोवर परिवार के राजषि घराने से सम्बंध रखने रानी विक्टोरिया को इंग्लैण्ड कि महारानी तो बनाया, मगर उन्हे होनवर ताज के उत्तराधिकार से वचिंत रखा गया. होनवर ताज के वारिस उनके चाचा लियोपोल्ड प्रथम थे।.

Doctrine of Lapse का भारत पर असर

1857 की क्रांति का कारक
1857 क्रांति का मुख्य कारण यहि कानुन था। इसके कठोर नियमो तथा देशी रियासतो में अंग्रेजो के अनावश्यक हस्तक्षेप के चलते इस कानुन ने सम्पुर्ण ब्रिटीश भारत को एक जूट कर दिया।. अतः इस अक्रोश ने 1857 की क्रांति का रुप धारण कर लिया। जिसके चलते सम्पुर्ण भारत में ब्रिटीशस का विद्रोह किया गया।.इस क्रांति के ही परिणामस्वरुप 1859 में ब्रिटीश सरकार ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से भारत शासन के अधिकार को छिन लिया।.ब्रिटीश सरकार द्वारा 1862 इस कानुन को समाप्त कर दिया गया।.
क्यो 1971 तक लागू होता रहा
आज़ादी के बाद भारत सरकार नेे लगभग सभी देशी रियासतो से विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाए।.इसके पिछे कारण यह था कि आज़ादी के मात्र एक वर्ष पुरे होने के बाद हि शासकों ने स्वयं के राज्य को एकीकृत करने कि मांग करी।.जिसके लिए विलय कि नीति य प्रिवी पर्स का सहारा लिया गया।.

प्रिवी पर्स

इसके पहले चरण में आज़ादी के पहले से 1947 तक के समयकाल के लिए भारत सरकार के साथ देशी रियासतो से एकीकरण के समझोते हस्ताक्षर लिए गयें थे। तथा इसके दूसरे चरण में 1949 के राज्यों विलय के लिए समझौता किया गया।.समझौते के अनुसार भारत सरकार सम्पुर्ण शासको को आजीवन भत्ता देगी। जिसमें परिवार के सभी सदस्यो को शामिल किया जायेगा। परन्तु शासक कि मृत्यु हो जाने की स्थिती में उसके किसी अन्य उत्तराधिकारी को यह भत्ता नही दिया जायेगा।.इसके बदले में शासक स्वयं के राज्य को एकीकृत करने की मांग नही करेगा। इस प्रकार हम देख सकते है लैप्स का सिध्दांत अभी मान्य था। यह तब तक लागू होता रहा,जब तक कि इन्द्रा गाॅंधी सरकार ने 26 वाॅं सविंधान सशोंधन करके राजसी परिवारो कि मान्यता समाप्त न कर दी।.

26 सविंधान सशोंधन

इस सशोंधन के चलते अनुच्छेद 291 और 364 को समाप्त कर दिया गया। इस सशोंधन के चलते प्रिवी पर्स तथा इससे सम्बधिंत सभी अधिकार दायित्व तथा शासक और उसके उत्तराधिकारी का मान्यता समाप्त कर दि गयी।.उपर्युक्त सभी संशोधनो को करने के लिए अनुच्छेद 363A,363B को जोड़ा गया तथा 366 के भाग 22 में संशोधन किया गया।.

ब्रिटीश सरकार द्वारा भारतीय रियासत विलय चार्ट

1.जयन्तिया राज्य 1803 11.जालौन 1840 21.झांसी 1853
2.गोझीकोड कालीकट 1806 12.सूरत 1842 22.तुलसीपुर 1854
3.गुलर 1813 13.सतारा 1848 23.अर्काट 1855
4.कन्नूर राज्य 1819 14.अंगूल 1848 24.तजौंर 1855
5.किट्टूर राज्य 1824 15.जसवां 1849 25.अवध 1856
6.कुटलैहड़ 1825 16.जैतपुर 1849 26.रामगढ़ राज्य 1858
7.कछार 1830 17.सबलपुर 1849 27.बल्लबगढ़ 1858
8.कोड़ागू 1834 18.जाब 1849 28.नरगुंड राज्य 1858
9.असम 1838 19. सिवा 1849 29.बांदा राज्य 1858
10.कुरनूल 20.उदयपुर 1852 30.मकराई 1890

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