प्रस्तावना
जगह- त्रावणकोर (केरल)
प्रस्तुत लेख में हम वेलुथ्मपी विद्रोह,इतिहास मे इसके महत्व,ईस्ट इण्डिया कम्पनी और अंग्रेज़ो की कूटनिती,टिपू सुल्तान और विद्रोह के मुख्य पात्र वेलूथम्पी के जीवन पर प्रकाश डालेंगे।.विद्रोह का मुख्य कारण- लार्ड वेल्ज़वली की, कि गई सामरिक संधि थी।. दरसल त्रावणकोर के माहाराजा कार्तिक तिरूनाल वर्मा ने अपनी और अपने साम्राज्य सुरक्षा के लिये अंग्रेज़ो से मदत मांगी थी।.कारण वश यह संधि हुई थी।.जिसके तहत अंग्रेजो ने रा़ज्य पर वित्तय भार बढ़ा दिया।.जिसके चलते त्रावणकोर के दिवान वेलू थम्पी ने एक विद्रोह किया, जो उनके नाम से हि प्रसिध्द हुआ।.
महत्वपुर्ण घटनाएं
1.अंग्रेज अपने व्दारा जिती गई रियासतो के साथ सामरिक संधि करते थे।.जिसके चलते देशी राजा प्रशासन सभांलते हुये भी अंग्रोज़ो के गुलाम हो जाते थे।. जैसे - उनकी रियासत में अंग्रेज़ सैनिको की तैनाती।. अंग्रेज़ो के आदेश के बिना किसी अन्य रियासत पर हमला न करना।.अंग्रेज़ो को कृषि तथा व्यापार करने के लिए कर देना।.माहाराज नही जानते थे कि टिपू सुल्तान से ज्यादा उन्हे अंग्रेज़ो से खतरा था।.ऐसी हि एक संधि त्रावणकोर के माहाराजा के साथ हुई थी।1673 के शुरूआत में अंग्रेज़ो ने त्रावणकोर से सिर्फ व्यापार करने के लिए हाथ मिलाया था।. इनके रिश्तो को सामरिक संधि का पूर्ण रूप 1788 में तब मिला जब त्रावणकोर के माहाराजा धर्मराजा कार्तिक तिरूनाल राम वर्मा ने अंग्रेजो से, टिपू सुल्तान से अपने साम्राज्य कि सुरक्षा के लिये मदत मांगी।.बदले में अंग्रेज़ो ने माहाराजा से संधि पे हस्ताक्षर करवा लिये।.इसी प्रकार कि दो संधियां 1795 और 1805 हुई।. इन संधियो के माध्यम से निम्न कार्य किये गयें।
जैसे -1.अंग्रेज़ो कि एक सेना हमेशा रियासत में पैहरा देती थी।.2.जिसका खर्च अंग्रेज़ो को न उठाकर क्षेत्रीय शासको को उठाना पडता था।.3.कम्पनी के अदेश के बिना कोई भी रियासत, किसी अन्य रियासत से न तो युध्द कर सकती थी और न हि किसी से संधि।.4.अब कम्पनी के अदेश के बिना किसी भी व्यक्ति को सरकारी य राजशी नौकरी नही मिल सकती थी।.5.कम्पनी के आदेश बिना शाही दरबार में न तो कोई आ सकता था और न ही किसी को बुलाया जा सकता था।.महाराज बलराम वर्मा 1805 की संधि के खिलाफ थे मगर अंग्रोज़ो की धमकी के आगे उन्हे झुकना पडा।. इन्ही के दिवान वेलुथम्पी थे जो आगे चलकर वेलुथम्पी विद्रोह के मुख्य पात्र बनें।.
दिवान वेलुथम्पी का परिचय
दिवान वेलुथम्पी ज़मीदार घराने में 6 मई 1765 में कन्याकुमारी (तमिलनाडु) में जन्में थें।. मात्र 16 की आयु में उन्हें मवेल्लिकार अलाप्पूझा जीले का तहसिलदार बना दिया गया।. तहसिलदार वेलुथम्पी सच्चे,ईमानदार और कड़ाई से नियमो का पालन करने वाले व्यक्ति थे।.उनके तहसिलदार बनने के कुछ समय बाद राज्य में वित्तीय संकट आ गया।. जिससे निपटने के लिए सरकार ने तहसिलो से तीन हज़ार रूपये की जुर्माना राशि वसूलना प्रारम्भ किया।.जूर्माने कि राशी देने में सक्षंम न होने के कारण वेलूथम्पी ने तीन दिन का समय मांगा।.अपना कार्य ईमानदारी से करने के बावजूद भी जूर्माना देना पडे ये उनके लिए असहनीय था।.अतः वित्त सकंट से निपटने के लिए (संकट) के मूल कारण को समझने कि कोशिश की।. अपने सहयोगियो कि मदत से उन्हे मंत्री जयनाथ शंकरण नम्बूदिरी तथा दो अन्य सहयोगी सह-मंत्री मत्थेे ठरकन एवं शंकरनारायण शेट्टी के घूस लेने कि खबर सामने आई।.
तीन दिनो में जूर्माने कि राशी जमा करने के समय के अदंर ही, अपने सहयोगियो संग मिलकर त्रावणकोर के राजदरबार की घेराबंदी कर राजा को तीनो घूसखोंरो कि जानकारी प्रमाण सहित प्रस्तूत कि।.बदले में राजा ने तात्तकाल प्रभाव से तीनों को उनके पद से निष्कासित करने साथ हि कडी सज़ा सुनायी।.तहसिलदार वेलूथम्पी को पद् उन्नति करते हूए तहसिलदार से दिवान बना दिया गया।. वेलूथम्पी ने दिवान पद पर अस्ति होते ही धोखाधडी और घुस लेने पर कडि सज़ा के सख्त कानून बनाएं, ताकि प्रशासन को नइ दिशा दी जा सकें।.वेलूथम्पी कडे कानून के चलते न्याय व्यवस्था ओर शांति व्यवस्था बनाने कुछ हद तक सफल तो रहे। मगर कडे कानून के चलते उन्होने अपने कई दूश्मन भी बना लिए थे।.उनके करिबी दूश्मनो में राजा के खास मंत्री पील्लई भी थे।.इन्ही के चलते प्रांरम्भ में वेलूथम्पी से दिवान पद छिन लिया गया।. कुछ समय बाद पिल्लई ने माहाराज से वेलूथम्पी की गिरफ्तारी के आदेश पर भी हस्ताक्षर करवा लिये।.वेलूथम्पी को जब इसके बारे में पता चला तब वे त्रांवणकोर ओर कोच्ची के संयुक्त ब्रिटिश रेजिडेंट Colin Macaulay के पास गये।. मंत्री पिल्लई के खिलाफ ठोस सबूत मिलने के कारण उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया और वेलूथम्पी को उनका दिवान पद लौटा दिया गया।.
विद्रोह की सम्पूर्ण घटना क्रमबध्द रूप में
1.1804 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के धन की मांग में लगातार बढोत्तरी करने के कारण त्रावणकोर में वित्त संकट आ गया।.जिससें निपटने के लिए स्थानिय नायर सैनिको के भत्ते में कटौती कर दि गयी।.नायर सैनिको ने इसके लिए विद्रोह किया मगर इसे बडी आसानी से कम्पनी द्वारा दबा दिया गया।.2. इसके बाद 1805 में दुबारा संधि कर त्रावणकोर और कोच्ची से दूबारा धन कि मांग बढ़ा दी गई।. मगर त्रावणकोर के महाराज और दिवान वेलूथम्पी तथा अन्य सहयोगी इस संधि के खिलाफ थे।.परन्तु अन्य रियासतो का सहयोग न मिलने के कारण वे मजबूर थे।. परिणाम स्वरूप 2 वर्ष में भत्ता देने का समय मांगा गया।.3. 1808 तक भी त्रावणकोर के पास पर्याप्त धन नही हो पाया।. राज्य में आर्थिक संकट कि घोषणा कर दि गयी।. शुरुआत में त्रावणकोर के माहाराजा तथा दिवान वेलूथम्पी तथा अन्य सहयोगियो ने अपने प्रतिनिधी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सरकारी दफ्तरो में भेजे, ताकि कर कि राशि में कटौती की जा सकें।. मगर नतिजे निराशा जनक निकले।.
अन्त दिवान वेलूथम्पी व्दारा विद्रोह प्रारम्भ किया गया।.वेलूथम्पी ने अपनी सेना इकट्ठा करने के लिए स्थानिय राजाओ,मराठा और फ्रांस एवं अमेरिका से भी गुहार लगाई मगर उन्हे सफलता न मिली।.इसी बिच वेलूथम्पी की एक चिट्ठी कोझीकोठ के माहाराजा को भी मिली।. जिसने चिट्ठी का जवाब न देते हुए, चिट्ठी एक अंग्रेज़ कलेक्टर को सौंप दी।. जीसके चलते दिवान वेलूथम्पी की गिरफ्तारी का आदेश पारित हो गया।.आदेश पारित होने के बाद वेलूथम्पी ने अपनी मुहिम और तेज़ कर दी।. इस मुहिम में उनका साथ कोच्ची के दिवान पलियट अच्चन ने दिचया।.दोनो ने मिलकर स्थानिय नायर और तियार समुदाय के साथ मिलकर फौज बनाई। इनके पास तीर-धनूष के आलावां अन्य अधूनिक हथियार भी थें।.
4. 28 दिसम्बर 1808 में पद्दनाभ पिल्लई जोकि वेलूथम्पी के सहयोगी थे।, ने एक सैनिक टूकडी के साथ मैकुले के घर को घेर कर उस पर हमला कर दिया।. मगर मैकूले जहाज़ के ज़रिये वहां से भाग निकलने में सफल रहा।. उसके कारागार में बंद सभी कैदियो छूडा लिया गया, जिन्होने आगे चलकर जंग में उनका साथ दिया।.5. 16जनवरी को कोल्लम पर हमला कर रेज़ीडेंसी पर कब्जा कर लिया गया, मगर जित कुछ ही दिनो की मेहमान थी।. अग्रेज़ो को मद्रास और श्री लंका (प्राचीन नाम सीलोन) से साहयता मिल रही थी, जिसके चलते वेलूथम्पी की सेना को पिछे हटना पडा।. मगर स्थानिय लोगो ने युध्द कि बागडोर अपने हाथो में ले ली।. इस प्रकार युध्द लगभग एक महिने तक चला।.6. 19फरवरी 1809 पध्दनाभपुरम और उदयगिरी के किले अंग्रेजो के कब्जे में आ गये।.परिणामस्वरूप कोच्ची के दिवान अच्चन ने अत्मसर्मपण कर दिया।. जिस से दिवान वेलूथम्पी की सेना कमज़ोर पड़ गयी। नागरकोडल (तमिलनाडू) को हारने के बाद वेलूथम्पी टूट से गयें।. 1809 मेें ही अंग्रेज़ो व्दारा वेलूथम्पी के सर पर 50,000 रूपये का इनाम रखा गया।.अपने करीबियो का सहयोग न मिलने के कारण वेलूथम्पी कमज़ोर पड़ गये। परिणाम स्वरूप उन्होने अपने दिवान पद से इस्तिफा दे दिया क्योकि, वें नही चाहते थे कि उनके साथ अन्य लोगो की भी जाने जाये।.दुसरी तरफ त्रावणकोर के माहाराज को मजबूर होकर अपने अंगरक्षक बर्खास्त करने पडे और अंग्रेजो के सामने झुकना पडा।.
7. 28 मार्च 1809 को अंग्रेजो से बचते हुये वेलूथम्पी ने मन्नाडी मंदिर में पनाह ली।. अपने पकडे जाने के डर से उन्होने सीने चाकू घोंपकर अत्महत्या कर ली।.मगर अंग्रेज़ तब भी न रूके उनकी लाश को नूमाइश के लिए जनता के सामने फांसी पर लटका दिया गया।.
(वेलूथम्पी से सम्बंधित महत्पुर्ण तथ्य)
1.उनके मरने के बाद उनके करिबीयो को भी निर्दयता पूर्वक मार दिया गया।.वेलूथम्पी की गिनती स्वंत्रता संग्राम के जुझारू नेताओ में कि जाती हैं।.उनकी तुलना केरल के स्थानीय शूरवीर कून्याली मरक्कार और पाझसी राजा के साथ होती हैं।.2.आज़ादी के बाद केरल के केन्द्रीय सचिवालय में भारत सरकार ने उनकी मूर्ति स्थापित करवाई।.3.केरल सरकार ने उनके नाम पर स्मारक,शोधकेन्द्र व संग्राहलय की स्थापना करवाई।.4.उनके नाम पर 2010 में एक चित्रपट सिनेमा भी बन चूका हैं।.5.अपनी आखरी मुलाकात के दौरान वेलूथम्पी ने अपनी तलवार त्रावणकोर के माहाराज को सौंपी थी।. जो आज भी केरल के नेपियर संग्रालय मे सूरक्षित रखी हुईं।.6.उनकी माहाराज से आखरी मुलाकात त्रिवनंतपूरम (प्राचीन नाम किलिमानूर) में हुई थी।. 7.travancore devaswom board (TDB) एक स्वायत्त निकाय है जो 1950 के त्रावणकोर-कोचीन हिन्दू धार्मिक संस्थाओं के अधिनियम के तहत बनाया गया है। इसका प्रमुख क्षेत्र के रूप में केरल राज्य में स्थित कई प्रमुख मंदिरों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है, विशेष रूप से उन मंदिरों पर जो त्रावणकोर रियासत में स्थित हैं।.
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