9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: पोलिगारो व पलैयाक्कर विद्रोह

रविवार, 3 दिसंबर 2023

पोलिगारो व पलैयाक्कर विद्रोह

poligar-revolt

poligar revolt

परिचयउड़ीसा क्षेत्र में विजयनगर साम्राज्य के पूर्वी घाट की तरफ जंगलों में रहने वाली किसानों की प्रजाति थी।.मुख्य नेता विरपंडिया कट्टाबोम्मन उनको(नायक) भी कहा जाता था।.विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजो की तानाशाही के खिलाफ़।.यह भारत का पहला छापामार विद्रोह था।.वर्ष 2017 में इस विद्रोह को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी गई।.साथ में भारत सरकार द्वारा 200वी वर्षगांठ पर 200 करोड़ रूपये आवंटित किए ताकि इसे हर वर्ष प्रथम वस्तंत्रता संग्राम के रूप में मनाया जा सके।.पोलिगारो विद्रोह 1799-1807 भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी जो दक्षिण भारत में हुई थी। यह विद्रोह तामिळनाडु और अंध्र प्रदेश क्षेत्रों में स्थित नायकों,जिन्हें "पोलिगार्स" कहा जाता था,अंग्रेजो के बीच हुआ था। इस विद्रोह का मुख्य कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उपाधिकारियों की अत्यंत अत्याचारपूर्ण और अन्यायपूर्ण शासन नीतियों का विरोध करना था।.

1799 में,ब्रिटिश कंपनी ने नायकों को अपने ज़मींदारी समर्थन के लिए उनकी सैनिक बल को समर्थन देने के लिए बुलाया था,लेकिन इस आमंत्रण को मना करने के बाद नायकों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का निर्णय लिया। इसके बाद,विद्रोह दक्षिण भारत में विभिन्न स्थानों पर फैला।.विद्रोह के दौरान,पोलिगार्स ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ अपनी सेनाएं बनाईं और संघर्ष किया। इस समय का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा,1801 में मलेबर विद्रोह की घटना था,जिसमें प्रमुख नायक वीरपंडिया कट्टाबोम्मन शामिल थे। ब्रिटिश और पोलिगारों के बीच हुए संघर्षों में कई बार बदलाव हुआ,लेकिन अंत में ब्रिटिश सेना ने पोलिगारों को हराया और विद्रोह का दमन कर दिया।.1807में, पोलिगारों का विद्रोह समाप्त हो गया और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया। यह विद्रोह दक्षिण भारत में ब्रिटिश आधिकारिकों के प्रति जन जागरूकता और स्वतंत्रता की भावना को उत्तेजना देने वाला एक महत्वपूर्ण घटना थी।.

प्रारम्भिक कारण 

1750 से 1805 तक विद्रोह की पुरी एक श्रृंखला चलती है।.कहानी की शुरआत में 1750 के लगभग अंग्रेजो द्वारा सम्पूर्ण भारत को अपने अधिकार में लेने से प्रारम्भ होती है।.उड़ीसा के उत्तर में स्थित बंगाल,दक्षिण में मद्रास के जितने के बात अंग्रेजो ने उड़ीसा की तरफ अपना रुख किया।.उस समय काल के दौरान उड़ीसा के गजपति वंश के राजा मुकुंददेव देव एक बालक थे।.परिवार के जेष्ठ एवं किसी अन्य के नजीवित रहने के कारण उन्हें ही गद्दी पर बैठना पड़ा।.

प्रथम युद्ध श्रृंखला

अतः प्रशासन संभालने का कार्य भार कुलगुरु के ऊपर था। और वे ही राजा के संरक्षण कर्ता भी थे।.जय राजगुरु ने अंग्रेजो की दमनकारी नीतियों का विरोध किया और उन्हें चुनौती दी की वे उनके राज्य में प्रवेश करने की हिम्मत न करे।.परिणाम स्वरूप अंग्रेजो ने जय राजगुरु को निर्दयता पूर्वक जिंदा ही कई भागो में काट डाला।.दोस्तो उस समय काल के अनुसार प्रजा के संरक्षण एवं युद्ध लड़ने का कार्य क्षत्रीय वर्ग का था इसमें नगर वासियों व किसानों का कोई योगदान न था।.प्रथम विद्रोह के सफल न होने का ये भी एक कारण था।.युद्ध होना उस समय काल के अनुसार आम बात थी। राजा कोई भी हो उन्हें कर देना ही पड़ता था।.मगर उन्हें ये नही पता था की अंग्रेज और अत्याधिक शोषण कारी नीतियां ले कर आ रहे है।.

द्वितीय विद्रोह श्रृंखला

द्वितीय विद्रोह की शुरूआत 1817 में अंग्रेजो और किसानों के मध्य हुई बैठक के दौरान होती है।. किसान अपना कर कम करना चाहते थे क्योंकि कर की राशि अधिक थी। जिसके कारण जीवन यापन करना मुश्किल हो रहा था।.अतः किसान अपनी समस्या को अंग्रेज़ अफसर के समक्ष रख रहे थे। मगर किसानों की बातो में उसकी कोई रुचि न थी।.वे लगातार कर की मांग बढाता रहा।.अतः किसान अक्रोशित हों उठे और फिर किसान विरपंडिया कट्टाबोम्मन ने क्रोध में आकर उस अंग्रेज़ अफसर की हत्या कर दी।.

सभी किसानों ने उनका सहयोग किया क्युकी ये उनके भी अधिकार की लड़ाई थी।.अंग्रेजो द्वारा विरपंडिया कट्टाबोम्मन के सर पर भारी इनाम रखा गया।.छपामार युद्ध कला में निपुण होने के कारण,संख्या में काम होने के बावजूद भी सभी किसानों ने अंग्रजो के पसीने छुड़ा दिए।.मगर अंत में तकनीकी हथियारों तथा संख्या में काम होने के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा।.कहा जाता है कि उत्तर भारत के राजपूत तथा पोलिगर किसान एक ही समान वीर थे।.

ब्रिटिश जंगल अभियान काफी दिनो तक चला विरपंडीय कट्टाबोम्मन अपने क्षेत्रीय जंगल को छोड़ कर पुटूकोट्टई देश के जंगल में चले गए।.अतः मुखबिरो की चाल तथा वहां के राजा के लालची तथा अंग्रेजो के सहयोग करने के कारण पकड़े गए।.उन्हें ढेर सारी यातनाएं देने के बाद जनता में अपना डर पैदा करने के लिए अंग्रेजो द्वारा सारे आम फांसी दी गई।.उनके सहयोगियों तथा भाईयो की भी सार्वजनिक रूप से हत्या की गई।.सुब्रमण्या पिल्लई को फांसी दी गई जनता में अपना डर पैदा करने के लिए उनके सर को डंडे में गाड़ कर सारे आम घुमाया गया।.और अन्य सहयोगी को ओममैदुराई को प्लायमकोट्टई जेल में बंदी बनाया गया।.

1803 कोयंबटूर 1803 में फिर से विद्रोह प्रारंभ हुआ। इस विद्रोह की रणनीति अत्याधिक गुप्त थी। इसकी शुरआत कोयंबटूर में अंग्रेजी बैरकों पर बमबारी करके हुई।.इस विद्रोह के सहयोगी नेता ओमाइथुराई,मरुथु पंडियार,मालाबार के राजा केरल वर्मा जहरसी,चिन्नामलाई गौड़र-कोगुनाडु आदि थे।.बता दे कि प्लायकर्स के पास सलेम और डिंडीगुल जंगलों में तोपखाने और हथियार निर्माण कारखाने थे जो की विद्रोह का मुख्य लक्ष्य था।.वैसे देखा जाए तो अंग्रेजो ने हमें एक जुट रहने का सबक सिखाया हैं।.अगर हम सब में आपसी मतभेद न होते तो शायद अंग्रेज भारत में कभी घुस हीं नहीं पाते या शासन कर पाते।.

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