परिचय
कच्छ
यह भारत के गुजरात राज्य के
सुदूर पश्चिम का क्षेत्र है।
कच्छ का विद्रोह 1816
से
1830
तक
चला,यह
भारत का पहला स्वदेशी विद्रोह
माना जाता है जिसमें अंग्रेजों
को भारत के कच्छ क्षेत्र से
खदेड़ने का कार्य किया गया
था। क्युकी यह एक निश्चित
क्षेत्रीय सीमा के लिए होने
वाला विद्रोह था जिसके कारण
इस विद्रोह ने 1857
की
क्रांति के समान ख्याति हासिल
नहीं की। इस ब्लॉग में हम कच्छ
विद्रोह के प्रमुख कारण और
कच्छ पर शासन करने वाले संपूर्ण
राजवंशों के इतिहास और कच्छ
के महत्वपूर्ण स्थानों के
बारे में जानकारी हासिल करेंगे।
विद्रोह का कारण
विद्रोह
की शुरुआत तब हुई जब अंग्रेजों
ने कच्छ के आंतरिक मामलों में
अपना हस्तक्षेप करना शुरू कर
दिया।1816
के
समय काल में राजपूत राजवंश
से संबंधित,राव
राजवंश में सत्ता को लेकर
आंतरिक संघर्ष चल रहा था। सत्त
संघर्ष जो 16वीं
शताब्दी से चलता रहा था।.उस
समय राव वंश के राजा खेगारजी
प्रथम का शासन था। उनके वंशज
राजा रायधन द्वितीय के 3
बेटे
थे,उनके
तीसरे बेटे ने दो बड़े भाईयो
और अपने पिता की हत्या के बाद
प्रयागमल द्वितीय ने कच्छ पर
अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
इन दो बड़े भाईयो के वंशजों
ने ही काठियावाड़ राज्य की
स्थापना की थी। इन्ही के वंशज
राजा रायधन तृतीय थे,
जिन
की नाजायज संतान राजा महाराज
भारमल द्वितीय थे।.रायधन
तृतीय और उनके शासक हजरत मोहम्मद
की मृत्यु के बाद कच्छ पर बर
बयात नी जमात का शासन था। साथ
ही हुसैन मियां और इब्राहिम
मियां वारिस बने हजरत मोहम्मद
के। इन दिनों भाइयों ने और 10
अन्य
सरदारों के साथ मिलकर,अंग्रेजी
हुकूमत के सहयोग से 11
साल
के अवयस्क राजकुमार देशजी को
गद्दी पर बैठा दिया। क्योंकि
महाराव भारमल नजायज संतान थे
रायधन तृतीय की।,रायधन
तृतीय की कोई जायज़ संतान नहीं
थी.इसके
बाद अंग्रेजो ने राजा देशजी
द्वितीय के आदेश पर भारमल को
बहुत पीटा। असलियत में वे नाम
के ले गद्दी पर बैठे थे,असल
हुकूमत अंग्रेजो की ही चल रहे
थी।
परिणाम
स्वरूप राजा भारमल ने अपने
सहयोगी सरदार झरेजा और अन्य
सरदारों की सहायता से अरब और
अफ्रीकी की सेना को एकजुट
किया। इधर कच्छ में रिजेंसी
कुंसलिंग के नए अत्याधिक भूमि
मूल्यांकन के साथ किए गए
प्रशासनिक सुधारो ने अंग्रेजों
के खिलाफ नाराज़गी पैदा की।
बर्मा युद्ध में ब्रिटिश
उलटफेर की खबर ने और भारमल के
सहयोगी प्रमुखों ने राजा भारमल
को स्थापित करने के लिए प्रेरित
किया। राजा भारमल के सहयोगी
सरदार पहले से ही विदेशी शासन
के विरुद्ध संघर्ष कर रहे
थे।इस प्रकार राजा भारमल ने
अग्रेजो पर अपनी जीत हासिल
की। इसके विपरीत अंग्रेजो ने
अपने विपरित परिस्थितियों
होता देख अपनी हार स्वीकार
कर ली। मगर 1819
में
कैप्टन मैकमुर्डो को भुज की
नई अंग्रेज़ी रेजिमेंट और
अंजार के नए कलेक्टर के रूप
में नियुक्त किया गया। 1819
में
अंग्रेजों ने कच्छ पर फिर से
आक्रमण किया। 19
अप्रैल
1819
को
कच्छ में राजा भारमल की हत्या
कर दी गई।इसके बाद 1947
में
आज़ादी के बाद,1950
में
भारत संघ द्वारा कच्छ को राज्य
बनाया गया। 1956
में
भूकम्प आने के बाद 1960
में
इसे गुजरात और महाराष्ट्र
राज्यों में दो अलग भाषाओं
के आधार पर विभाजित कर दिया
गया।.
कच्छ महत्वपूर्ण है निम्नलिखित दो से
1.कच्छ
में सिंधु घाटी सभ्यता के
महत्वपूर्ण स्थाल मिले हैं।
2.इसके
साथ ही कच्छ में मौसमी नामक
नमक का एक दलदल है जो थार मरुस्थल
में पाया जाता है। यह लगभग
7500
वर्ग
किलोमीटर क्षेत्र में फैला
हुआ है। 3.थार
मरुस्थल जिसे दुनिया के सबसे
बड़े नमक के रेगिस्तान के रूप
में जाना जाता है।राजा
भारमल का पूरा नाम महाराजाधिराज
मिर्जा भारमल जी है। कच्छ
पे शासन करने वाले पूरे राजवंश
में एक थे।.
1.सबसे
पहले ग्रीको बैक्ट्रियन
साम्राज्य के राजा मेन्डर
प्रथम का शासन था। 2.फिर
इंडोसिथियन ने शासन किया।
फिर3.मौर्य
साम्राज्य ने शासन किया।.4.फिर
शको ने किया।.5.पहली
शताब्दी में क्षत्रपों का
शासन था।6.फिर
गुप्त साम्राज्य ने शासन
किया।7.पांचवीं
शताब्दी में वल्लभी के मैत्रक
वंश का शासन था। चवदास ने सातवीं
शताब्दी तक कच्छ के पूर्व और
मध्य भाग पर शासन किया।.8.दसवीं
शताब्दी में कच्छ चाल्युकों
का शासन था।9.चालुक्यों
के बाद बघेल वंश ने शासन किया।
आगे चलकर इन्होंने अपने वंश
का नाम बदलकर जडेजा कर लिया
15वीं
शताब्दी तक जडेजा भाईयो की
तीन अलग अलग शाखाओं ने शासन
किया।.10.सोलहवीं
शताब्दी में राव वंश के खेंगारजी
प्रथम द्वारा शासन संभाला
गया।
इसके
बाद इनके वंशजों ने तीन शताब्दी
तक कच्छ पर शासन किया। रावो
के गुजरात सल्तनत एवं मुगलों
से अच्छे संबंध थे। राव के
वंशजों में राजा रायधन द्वितीय
के तीन पुत्र थे। जिनमे दो की
मृत्यु हो गई,उनके
तीसरे बेटे महाराव प्रागमल
द्वितीय ने सत्ता संभाली ।
इनके मृत दो भाईयो के वंशजों
ने काठियावाड़ राज्य की स्थापना
की। 11.18वीं
शताब्दी में राजा रायधन तृतिया
और उनके शासक फतेह मुहम्मद
की मृत्यु के बाद कच्छ पर बर
भयात नि जमात का शासन रहा।
यानी राजा रायधन तृतीय मुगलों
के सामंत थे।.इसके
बाद राजा देशजी द्वितीय ने
11
साल
की उम्र में शासन किया था। इसी
समय राजा भारमल ने कच्छ में
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह
कर दिया।9.1947
में
स्वतंत्र भारत पर शासन की
शुरुआत हुई।1950
भारत
संघ द्वारा इस राज्य का दर्जा
दिया गया है।10.1956
में
कच्छ में भूकम्प के बाद 1960
में
इसे दो अलग-अलग
भाषाओं के आधार पर विभाजित
कर कच्छ को गुजरात और महाराष्ट्र
में विभाजित कर दिया गया।
यह भी देखें
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