9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: गुजरात का चालुक्या वंश

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

गुजरात का चालुक्या वंश

chalukya-dynasty

परिचय

गुजरात का चालुक्य राजवंश,जिसे सोलंकी राजवंश के नाम से भी जाना जाता है,एक प्रमुख मध्ययुगीन भारतीय राजवंश था जिसने वर्तमान गुजरात और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। राजवंश 10वीं शताब्दी में उभरा और क्षेत्र के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्राचीन ग्रंथ कुमारपाल चरित व वर्णरत्नाकर में परंपरागत 36 राजपूत कुल की सूची मिलती है। चालुक्य अग्निकुल से उत्पन्न राजपूतों में से एक थे। वराहमिहिर की ब्रह्तसंहिता में इन्हे शुलिक जाति का माना जाता है।.प्रमुख शासक- प्रमुख शासकों ने मूलराज प्रथम,भीम देव प्रथम,कर्ण,जयसिंह सिद्धराज,कुमार पाल,अजयपाल के नाम प्रमुख है। गुजरात के चालुक्य(सोलंकी)

राजवंश के बारे में मुख्य बातें
उत्पत्ति 
गुजरात के चालुक्य राजवंश की जड़ें पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य में थीं,जो दक्षिणी भारत के दक्कन क्षेत्र में केंद्रित था। गुजरात में राजवंश के संस्थापक मूलराजा थे,लगभग दसवीं शताब्दी में शुरआती दौर में इन्होंने अपना स्वतंत्र शासन प्रारम्भ किया।.

1.मूलराज प्रथम (941-995ई.)
गुजरात के चालुक्य वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था। उसने गुजरात के एक बड़े भाग को जीत कर अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया। इस वंश के शासक जैन धर्म के पोषक व संरक्षक थे। 995-1008 ई.तक मूलराज का पुत्र शासक रहा।.मुलराजा का उत्तराधिकारी उसका पुत्र सामंतसिंह था,जिसने राज्य के क्षेत्र का विस्तार किया। हालाँकि,प्रमुखता में वास्तविक वृद्धि सिद्धराज जयसिम्हा के शासनकाल के साथ हुई,जो राजवंश के एक प्रमुख शासक थे और उन्होंने अपने प्रभाव का काफी विस्तार किया।उसके पुत्र सामंतसिंह ने 1008-1002ई.तक शासन किया।

2.भीमदेव प्रथम (1022-1064ई.)
दुर्लभ राज के (भतीजा)भीम देव प्रथम अपने वंश का शक्तिशाली शासक था। भीम द्वारा मंदिर का पुनः निर्माण करवाया गया। उसके (सामंत )विमल शाह ने आबू वर्तमान राजस्थान में दिलवाड़ा मंदिर का निर्माण करवाया।.महमूद गजनवी के सोमनाथ मंदिर के धवस्त करके चले जाने के बाद भीम ने उसका पुनः निर्माण करवाया था। भीम प्रथम के शासन काल में महमूद गजनवी ने लगभग 1025-26 ई.में सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर लूट-पाट की थी।

3.कर्ण (1064-1094ई.)
भीम प्रथम का (पुत्र) कर्ण ने लगभग 30 वर्ष तक शासन किया। कर्ण ने अपने शासन काल में नाडोल के चौहान व मालवा के परमारो को परास्त किया था।

4.जयसिंह सिद्धराज (1094-1143ई.)
सिद्धराज जयसिम्हा को गुजरात के चालुक्य वंश के सबसे शानदार शासकों में से एक माना जाता है। उन्होंने मालवा और राजस्थान के कुछ हिस्सों सहित पड़ोसी क्षेत्रों पर राजवंश का नियंत्रण बढ़ाया।वह कला,संस्कृति और साहित्य के संरक्षक थे और उनका दरबार अपनी सांस्कृतिक जीवंतता के लिए जाना जाता था। जय सिंह ने सिद्धराज की उपाधि धारण की। वह पराक्रमी तथा वीर होने के साथ ही विद्वानों का आश्रयदाता भी था। प्रसिद्ध जैन आचार्य (हेमचंद्र)उसके दरबार में रहते थे।आबू पर्वत पर उसने एक मंडप का निर्माण करवाया। और साथ ही वहां पर हाथियों पर आरूढ़ और अपने सात पूर्वजों को मूर्तिया भी स्थापित की। उसने सिद्धपुर में रुद्र महाकाल का मंदिर भी बनवाया। सिद्धराज स्वयं शिव का उपासक था,लेकिन वह जैन विद्वान हेमचंद्र का सम्मान भी करता था।

5.कुमार पाल(1143-1172ई.)
जय सिंह का अपना कोई पुत्र नहीं था। कुमारपाल एक महत्वकांक्षी शासक था।प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचंद्र ने उसे जैन धर्म में शिक्षित किया था। उसने परमअर्हत की उपाधि धारण की और सम्पूर्ण साम्राज्य में अहिंसा के सिद्धांतो को क्रियान्वित किया।.जैन परम्परा के अनुसार,कुमारपाल ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में पशु हत्या,मदिरापान,द्युतक्रीड़ा पर प्रतिबंध लगाया था। कुमार पाल ने सोमनाथ मंदिर को अंतिम रूप से पुनः निर्माण करवाया था। इसके साथ ही उसने जैन आचार्य हेमचंद्र के साथ सोमनाथ मंदिर में शिव की अर्चना भी की। इसके बारे में कवि जयसिंह पूरी ने अपनी रचना कुमारपाल चरित में इसका वर्णन किया है।.

6.अजय पाल(1172-1176ई.)
कुमार पाल का उत्तराधिकारी उसका भतीजा अजयपाल शासक बना। उसके समय काल में जैन और शैव को मानने वाले लोगो के बीच गृहयुद्ध आरम्भ हो गया,जिसके नतीजा जन बहुत सारे जैन साधुओं को मार डाला गया और उनके पूजा स्थल को तोड़ दिया गया।.
 
7.मूलराज द्वितीय
यह अजय पाल का पुत्र था 1178ई.आबू पर्वत के समीप मुहम्मद गौरी को काशहद के मैदान में परास्त किया।

8.भीम द्वितीय
यह मूलराज का भाई था। 1187 ई.में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे परास्त कर दिया। भीमदेव के मंत्री लवण प्रसाद ने गुजरात में बघेल वंश की स्थापना की थी। 1195 ई0 में दुबारा कुतुबुद्दीन ऐबक ने आक्रमण किया जिसे पराजित कर अजमेर भेज दिया।.मगर 1197 में फिर इसने गुजरात पर आक्रमण किया और आंहिलवाड पर अपना कब्जा कर लिया।.
 
वास्तुकला
गुजरात का चालुक्य राजवंश मंदिर वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाना जाता था। गुजरात में चालुक्य वास्तुकला के कुछ सबसे प्रसिद्ध उदाहरणों में मोढेरा में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर और सिद्धपुर में रुद्र महालय मंदिर शामिल हैं।

पतन

राजवंश को आंतरिक संघर्षों और बाहरी आक्रमणों का सामना करना पड़ा, जिसने इसके पतन में योगदान दिया। 12वीं शताब्दी के अंत में,गुजरात के चालुक्य राजवंश ने अपने क्षेत्रों पर नियंत्रण खोना शुरू कर दिया। 

वाघेला राजवंश

चालुक्य राजवंश के बाद वाघेला राजवंश आया,जिसने 12वीं सदी के अंत से 14वीं सदी की शुरुआत तक गुजरात पर शासन किया। वाघेला राजवंश का सबसे उल्लेखनीय शासक कर्णदेव था, जिसने राज्य की सीमाओं को और बढ़ाया। वाघेला राजवंश एक मध्यकालीन भारतीय राजवंश था जिसने 12वीं शताब्दी के अंत से 14वीं शताब्दी के प्रारंभ तक गुजरात क्षेत्र पर शासन किया था। वाघेला चालुक्य (सोलंकी) राजवंश के बाद गुजरात के शासक बने और उन्होंने क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुजरात के वाघेला राजवंश के बारे में मुख्य बातें

1.उत्पत्ति-वाघेला राजवंश की स्थापना वीरधवल ने की थी,जो चालुक्य शासक जयसिम्हा सिद्धराज के अधीन एक सामंती प्रमुख थे। वीरधवल का पुत्र कुमारपाल बाद में वाघेला वंश का सबसे प्रमुख शासक बना।

2.कुमारपाल-कुमारपाल को वाघेला वंश के सबसे शक्तिशाली और सफल शासकों में से एक माना जाता है। वह 12वीं शताब्दी के अंत में सिंहासन पर बैठे और सफल सैन्य अभियानों की एक श्रृंखला के माध्यम से राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।

3.कला और साहित्य का संरक्षक- कुमारपाल कला,साहित्य और संस्कृति का संरक्षक था। उन्होंने संस्कृत विद्वानों और कवियों को प्रोत्साहित किया और उनका दरबार शिक्षा और बौद्धिक गतिविधि का केंद्र बन गया।

4.जैन धर्म और वाघेला-कुमारपाल एक कट्टर जैन थे और उनके शासनकाल में गुजरात में जैन धर्म का विकास हुआ। उनके शासनकाल के दौरान जैन मंदिरों और धार्मिक केंद्रों का निर्माण किया गया था।

5.दिल्ली सल्तनत के साथ संघर्ष
वाघेला राजवंश को दिल्ली सल्तनत से चुनौतियों का सामना करना पड़ा,खासकर अलाउद्दीन खिलजी के शासन के दौरान। 14वीं सदी की शुरुआत में अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण किया और वाघेला शासक कर्णदेव को बंदी बना लिया। वाघेला राजवंश के पतन ने गुजरात में हिंदू शासन के अंत और क्षेत्र पर सल्तनत के नियंत्रण की शुरुआत को चिह्नित किया।

6.विरासत
वाघेला शासक,विशेषकर कुमारपाल,कला,साहित्य और जैन धर्म के समर्थन के लिए जाने जाते थे। वाघेला राजवंश की विरासत गुजरात के इतिहास के साथ जुड़ी हुई है,और उनके शासन काल को क्षेत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में देखा जाता है। दिल्ली सल्तनत की विजय के बाद,गुजरात ने अपने राजनीतिक परिदृश्य में और बदलाव देखे,जिसमें बाद में इस क्षेत्र पर मुस्लिम राजवंशों का शासन भी शामिल था। हालाँकि,वाघेला के सांस्कृतिक योगदान और कला पर उनके प्रभाव को बाद की पीढ़ियों द्वारा याद किया जाता रहा।

दिल्ली सल्तनत 

चालुक्य और वाघेला राजवंशों को दिल्ली सल्तनत से चुनौतियों का सामना करना पड़ा,विशेषकर अलाउद्दीन खिलजी के समय में,जिसने 13वीं शताब्दी के अंत में गुजरात पर आक्रमण किया था। 
अंतिम वर्ष-
14वीं शताब्दी की शुरुआत में गुजरात पर सल्तनत का नियंत्रण और अधिक मजबूत हो गया,जिससे इस क्षेत्र में चालुक्य और वाघेला राजवंशों के शासन का प्रभावी अंत हो गया। गुजरात के चालुक्य राजवंश ने क्षेत्र की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत पर अमिट प्रभाव छोड़ा।.उनके शासनकाल के दौरान बनाए गए मंदिरों को भारतीय मंदिर वास्तुकला के कुछ बेहतरीन उदाहरण माना जाता है,जो राजवंश के कलात्मक और सांस्कृतिक संरक्षण को दर्शाते हैं।

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