भारत पर 12बार विदेशी आक्रमण हुआ।.जिनके नाम निम्नवत है।.1.पारसी ईरानी आक्रमण,2.दूसरा विदेशी और पहला यूरोपीय आक्रमण,3.शकों ने तीसरा आक्रमण किया,4.कुषाण वंश के लोगो ने किया,5.हूणो ने किया 6.अरब के ईरानी शासकों ने किया। 7.गजनवी तुर्क शासकों ने किया।.8.गौर तुर्क शासकों ने किया।.9.गुलाम वंश के शासक द्वारा हुआ। 10.खिलजी वंश के शासकों ने किया। 11.मुगल तथा मंगोल 12.ईस्ट इंडिया कंपनी।.
1.पारसी ईरानी पहला विदेशी आक्रमण 486 के बाद 522 के समय काल में हुआ।.
हखानमी वंश के राजाओं ने पहला विदेशी आक्रमण किया। इनकी सेना भारत के समीप तो आई मगर आक्रमण में असफल रहे।.साइरस द्वितीय इस वंश का संस्थापक था।अतः इसके उत्तराधिकारी दारयव्हू यानी डेरियस प्रथम ने 516ईसा पूर्व में पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया। इसे प्रथम सफलता मिली और उसने पंजाब सिंध नदी के पश्चिमी क्षेत्र पर विजय प्राप्त करके अपने साम्राज्य में मिला लिया।.यह साइरस का उत्तराधिकारी था। साइरसद्वितीय का उतराधिकारी,(कंबूजिय) मिस्र विजय अभियान में व्यस्त रहने के कारण भारत विजय कि ओर ध्यान न दे सका। डोरियस अथवा दारा ने भारत पर आक्रमण किया और सफलता हासिल की। इस से पहले कंबूजीय और साइरस द्वितीय ने भी भारत पर आक्रमण करना चाहा मगर सफल रहे। इसने 519 से 13 ईसा पूर्व के बीच सिंधु प्रदेश पर विजय प्राप्त की।.इसकी पुष्टि बहिस्तान अभिलेख द्वारा होती है। डोरियस ने सिंध प्रदेश,पश्चिमी गांधार,कंबोज पर अपना परचम लहराया।.
2. दूसरा विदेशी आक्रमण
ये पहला यूरोपीय और दुसरा विदेशी आक्रमण था। यूनानी राज्य मकदूनिया के राजा फिलिप द्वितीय का पुत्र सिकंदर था। इसने 326 ईसा पूर्व भारत पर आक्रमण किया। यह सिंधु नदी के खैबर दर्रे को पार करके भारत आया था। सर्वप्रथम तक्षशिला के शासकों ने इसके समक्ष आत्म समर्पण किया। इसके समय काल में मगध का शासक धनानन्द था। सिकंदर के साथ युद्ध में पंजाब के राजा पोरस ने कड़ी टक्कर दी।.ये युद्ध झेलम नदी के तट पर हाइड्रो स्पिज(तवितस्ता)के नाम से भी जाना जाता है। मगर अंत में पोरस की हार हुई।.इसका पहला आक्रमण दक्षशिला के राजा अम्भि के विरुद्ध था।.इनके गुरु अरस्तू थे।.पोरस का राज्य चिनाब और झेलम नदी के बीच में था। सिकंदर ने पोरस को हराने के बाद जब उससे पूछा की तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया जाए तो पोरस ने जवाब दिया वैसा ही जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। इस जवाब से सिकंदर बहुत प्रभावित हुआ और उसने पोरस को छोड़ दिया और उसका राज्य भी वापिस लौटा दिया। और अपनी वापिस यात्रा प्रारम्भ की।.सिकंदर की वापसी यात्रा 326 ई पूर्व में झेलम नदी के तट से प्रारम्भ हुई।.वह भारतीय भूमि छोड़ कर बगदाद (बेबीलोन)चला गया। जन्हा 323 ईसा पूर्व उसकी मृत्यु हो गई।.झेलम और चिनाब नादिबके बीच पोरस का राज्य था। सिकंदर का पहला आक्रमण तक्षशिला के राजा अंबी पर था। वो खैबर दर्रे से भारत आया। राजा अंबी के गुरु अरस्तू थे। सिकंदर ने भारत से वापिसी के समय अपने भू भाग को तीन भागों में विभाजित किया। और इस तीन यूनानी गवर्नर को सौप दिया।.इसने भारत में दो नगरों की भी स्थापना की थी। पहला नगर झेलम नदी के किनारे निकैया बसाया,दूसरा नगर अपने घोड़े के नाम पर बसाया था।.
3. तीसरा विदेशी आक्रमण
123 ई स o पूर्व से 200 ई सo पूर्व का समय शकों का था। यानि शकों द्वारा तीसरा विदेशी आक्रमण किया गया।.शक यूरोप के मध्य स्थित झिंगयांग प्रदेश तथा उतरी चीन के निवासी थे। शकों का शासन (शुंग वंश) के पतन के बाद प्रारम्भ होता है। इतिहासकारों को द्वंद था कि शकों और कुषाण कबीला एक ही था।.अतः इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाली (स्कीथी) लोगो की एक जनजाति है। यह सिर नदी घाटी में रहते थे। इन्हें युईशी कहा जाता था। इन पर चीन की हूण जाति के लोगो ने आक्रमण किया तो इनको अपना निवास स्थान छोड़ कर भागना पड़ा। क्रमानुसार ने आगे बढ़ कर युईशियो ने शकों आक्रमण किया। शक ने आगे बढ़ कर बैक्टीरिया पर आक्रमण किया। इस प्रकार यवन जाती का अंत शकों द्वारा हुआ।.
छोटे छोटे राज्यों को जीतते हुए मीनानगर को की सिंधु नदी के तट पर स्थित था उसे अपनी राजधानी बनाया। इस प्रकार शको के भारतीय आक्रमण के दौरान मीनानगर पहला भारतीय शक राज्य बना। इसके बाद गुजरात,आवंतिका,महाराष्ट्र के बड़े भू भाग पर स्थित सातवाहन राजाओं पर विजय हासिल की।.भारत में शकों को आमंत्रित करें का श्रेय आचार्य कालक को जाता है।. वे उज्जैन का निवासी थे तथा राजा गर्द भिल्ल के अत्याचारों से तंग हो कर सुदूर पश्चिम के पार्थियन राज्य में चले गए। राजा गार्द मिल को शकों ने इन्ही की सहयोग से पराजीत किया।.भारत में शकों के आने के लिए इन्होंने ही प्रेरित किया था।.इसके बाद शकों ने गंधार,सिंध,महाराष्ट्र,मथुरा,और अवंतिका आदि क्षेत्रों के कुछ स्थानों पर लंबे समय तक शासन किया। उज्जयनी का पहला स्वतंत्र शासक चाष्टण था इसने अपने अभिलेखो में शक संवत का प्रयोग किया। चंद्र गुप्त विक्रमादित्य ने इस कुल का अंत किया।.
4. विदेशी आक्रमण कुषाण वंश
ये यूची कबीले के लोग जिनका समय काल 60-240 ईसाo पूर्वo का था। हुणो के आक्रमण से घबराकर इन्होंने ने अपने क्षेत्र को छोड़ कर शकों पर आक्रमण किया जो की उस समय काल में सिर नदी की घाटी में रहते थे। यूचि कबीले की तरह शकों को इन्होंने खदेड़ कर मध्य एशिया में भेज दिया। कुषाण नामक वीर पुरष इस समय काल में (25 ईसा o पू o) में इस राज्य का स्वामी था।इसी प्रकार धीरे धीरे इसने सारे युचि कबीलों को अपने अधीन कर लिया।.तो उन्होंने भी कबूल कंधार का रुख किया।.जब भारत में हिन्दू -युनानी कमजोर राजाओं का शासन था। तब उनको आसानी से पराजित करते हुए कबूल और कंधार पर अपना अधिकार कायम कर लिया।.इस प्रकार कुषाण वंश का प्रथम राजा कुजुल कडफाईयीसिस था।.
इस शासक ने उत्तर पश्चिम सीमा पर बसे पहल्लवो को पराजित किया।.और अपनी राजधानी मथुरा को बनाया।.कुजूल के उतराधिकारी विम तक्षम ने अपने साम्राज्य का और अधिक विस्तार किया।.पश्चिमी पंजाब,शुंग साम्राज्य के पश्चिमी भाग को भी अपने अधिकार में ले लिया था।.कुषाण राजाओं का शासन कभी भी पूर्वोत्तर भारत,गुजरात,दक्षिण भारत में नहीं रहा।.127 ई सo के लगभग तक सम्राट कनिष्क प्रथम का शासन काल था। इसका साम्राज्य पेशावर (पाकिस्तान) से सारनाथ के आगे तक तथा उत्तरी सिंध से कश्मीर राज्य तक फैला हुआ था। पुष्पुर्व का नाम देकर कनिष्क ने कुसुपूर्व पाटिलपुत्र की स्थापना की।.यह कुषाण वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। लगभग 150 ई में इसकी मृत्यु हो गई।.
5. हूणो द्वारा पांचवा विदेशी आक्रमण
यह चीन की बर्बर और मध्य एशिया की खानाबदोश जाति थी। भारत में उसके पुत्र मिहिर गुल और हूण राजा तोरमण का नाम प्रसिद्ध है।पंजाब और मालवा को जीतनें के बाद इन्होंने भारत को अपना स्थाई निवास बनाया।.इनका साम्राज्य मध्य भारत,पश्चिमी उत्तर प्रदेश अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों तक रहा।.मालवा के राजा यशोवर्मन और बालादित्य ने मिलकर 528 ईस्वी में हूणो के राजा तोरमाण को हरा दिया।.हुणो ने भारतीय धर्म संस्कृति कला को अपना लिया और इस कारण से ये भारत में ही बस गए।.
6. छठा विदेशी आक्रमण अरब ईरानियों ने किया
हुण ,शक, कुषाण के अंत के अंत के बाद भारत का पश्चिमी छोर कमजोर पड़ गया। इस समय काल में भारतीय राजाओं के साथ साथ,फ्रांस साम्राज्य के अधीन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से या भाग थे। इनके भारत आने का समय 715 ईo पु o से पहले 717 के लगभग का था। बलूचिस्तान एक स्वतंत्र सत्ता थीं।.सातवी सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से जाता रहा।.भारत में सातवी शताब्दी के अंत में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर पहला मुस्लिम आक्रमण किया।.बौद्ध और हिंदू धर्म के राजा इस्लाम प्रवेश से पहले गंधार,कंबोज और अफगानिस्तान में थे। ईरान के खलीफा को जिस राजा की बेटियों को भेंट किया गया था उस राजा का नाम दाहिर सेन था। वे एक हिंदू ब्राह्मण राजा थे।.74 वर्ष के समय काल में 9 खलीफाओ ने मिलकर सिंध या us समय काल के भारत पर 15 बार आक्रमण किया। ये लगभग 7111 से पहले 638 के लगभग तक का समय काल था। यहां के हिन्दू राजाओं को कबूलशाह या धर्मपति कहा जाता था। इनमें कुछ राजाओं के नाम उल्लेखनीय है
जैसे भीम,सामंतदेव,जयपाल,आनंदपाल,त्रिलोचनपाल,भीमपाल आदि।.इन राजाओं ने 350सालो तक अरब लुटेरों अथवा मुस्लिम राजाओं को टक्कर दी।.याकूब एलिस ने अपना अधिकार अफगानिस्तान पर 870 ईo में किया। ये एक अरब सेनापति था। जबरन धर्म अंतरण अफगानिस्तान में हुआ बौद्ध और हिंदू धर्म के लोगो का। सैकड़ों सालो तक लड़ाईयां चली,अंत 1019 ईस्वी में मुहम्मद गजनी से त्रिलोचन पाल को हराने के बाद सारा अफगानिस्तान मुसलमान बन गया।.अतः 715 ईस्वी में खलीफा हज्जाज की मृत्यु के बाद मोहम्मद बिन कासिम को वापिस बुला लिया गया। कासिम के जाने के बाद भारतीय राजाओं ने फिर से अपना अधिकार स्थापित किया।.लेकिन सिंध के राज्यपाल जुनैद ने सिंध और आसपास के क्षेत्र पर इस्लामिक शासन बनाए रखा। इसने कई भारतीय राजाओं पर आक्रमण किया मगर असफल रहा।.
7.गजनवी तुर्की शासक ने सातवां विदेशी आक्रमण किया लगभग 977 में।.
अरबों के बाद तुर्कियो ने भारत पर आक्रमण किया। अल प्लगिन नामक एक तुर्क सरदार ने गजनी में तुर्क साम्राज्य की स्थापना की।.977ईस्वी में अल्पलगीन के दामाद सुबुत्कगीन ने गजनी पर शासन किया।.खुरासन,बल्ख,अफगानिस्तान और पश्चिमोत्तर भारत पर कई सारी लड़ाईयां लड़ते हुए विजय हासिल की। मौत के बाद इसका बेटा मोo गजनवी राजगद्दी पर बैठा गजनी की।.भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण इसने बगदाद के खलीफाओं के आदेश पर किया।.इसने धन,सोना,स्त्री प्राप्ति के लिए 1001 से 1026ईस्वी के बीच 17 बार भारत पर आक्रमण किया।.इसके समय काल में भारत में राजपूतों का शासन था।.
17 आक्रमण मु o गजनवी द्वारा
दोस्तो यहां हमने उन्ही आक्रमण की चर्चा की है जिसमे इसने विजय हासिल की थी।.1.राजा जयपाल को इसने अपने दूसरे युद्ध में हराया। सुखपाल जो की जयपाल का पोता था ने इस्लाम का मजबूरन कबूल कर लिया।2.राजा आनंदपाल जो की बठिंडा का राजा था को अपने चौथे आक्रमण में हराया।.3.पंजाब का शासक नौ शाह को बनाया इसने पांचवे भारतीय आक्रमण में।.4.नगरकोट और अलवर राज्य के नारायणपुर पर विजय 6वे व 7 वे भारतीय आक्रमण में हासिल की।5.नारायणपुर के राजा आनंदपाल नारायणपुर से भाग कर नंदशाह को अपनी नई राजधानी बनाया इस प्रकार 10वा आक्रमण नंदशाह पर हुआ।.6.मुo गजनवी ने ग्यारहवा भारतीय आक्रमण कश्मीर पर किया। त्रिलोचन पाल पुत्र था आनंदपाल का। नांदशाह पर आक्रमण होने पर यह भाग कर कश्मीर में शरण लिए हुए था। 7.बारहवां आक्रमण कन्नौज पर हुआ। यांहा इसने बुलंदशहर के शासक हरदत्त को पराजित किया।.8.तेरहवां आक्रमण बुंदेलखंड,किरात,लोहकोट पर किया।.9.ग्वालियर के कालिंजर पर चौदहवां भारतीय आक्रमण किया। 10.पंद्रहवां आक्रमण लोदार्ग (जैसलमेर),चिक्लोदर (गुजरात),तथा अन्हिलवाड (गुजरात) पर किया।.11.50,000 ब्राह्मणों का कत्ल सोमनाथ मंदिर पर 1025 ई o में सोलहवां भारतीय आक्रमण करके किया।.12.सिंधु और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों पर सत्रहवा भारतीय आक्रमण किया।.
8.शहाबुद्दीन
9. नौंवा विदेशी आक्रमण गुलाम वंश
1206 से 1290 तक जिन तुर्कों द्वारा दिल्ली सल्तनत पर शासन किया गया।उन्हें गुलाम वंश का शासन कहा जाता है। 1194 ईस्वी में अजमेर को जीतकर संस्कृत विश्वविद्यालय को नष्ट कर उनके मलबे पर (कुव्वाल-उल-इस्लाम) ढाई दिन के झोपड़े का निर्माण करवाया। इसके बाद दिल्ली के ध्रुव स्तंभ को तोड़ कर कुतुबमीनार का निर्माण करवाया।.बुंदेलखंड के मजबूत कालिंजर के किले को कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1202 से 1203 के बीच जीता।.1197 से 1205 ईस्वी के मध्य बंगाल एवं बिहार उडंडपुर,विक्रमशिला,नालंदा विश्वविद्यालय पर अधिकार कर लिया।.
10. 1290 से 1890 ई o तक दसवां विदेशी आक्रमण खिलजी वंश द्वारा हुआ।
इस वंश स्थापना जलालुद्दीन खिलजी ने को थी।.खिलजी कबीला मूलतः तुर्किस्तान से आया था।.इस से पहले यह अफगानिस्तान में बसा था।.इस से पहले यह अफगानिस्तान में बसा था।.गुलाम वंश का सेना सैनिक था जलालूद्दीन खिलजी एक गुट के सहयोग से गद्दी पर बैठा। इसे से पहले गुलाम वंश का अंतिम शासक बादशाह कैकुबाद शासन करता था। इसके भतीजे ने ही इसकी हत्या की थी जूना खां के दक्कन के राज्य पर चढ़ाई करके उलीचपुर और उसके खजाने को लूट लिया और 1296 में वापस लौटकर अलाउद्दीन खिलजी की हत्या कर दी।.और अलाउद्दीन खिलजी की उपाधि धारण की।.और 20वर्ष तक शासन किया।.देवगिरी पर अपना आधिपत्य जमाने के साथ साथ मात्र 20 वराह के समय में इसने चित्तौड़,मांडू,रणथंभौर पर अपना कब्जा कर लिया था।.
जलालूद्दीन खिलजी के बाद दिल्ली पर क्रमश: इस प्रकार शासन किया।1.अलाउद्दीन खिलजी 2.शिहाबुद्दीन उमर खिलजी 3.कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी।.इसके अलावा मालवा के खिलजी वंश का दूसरा सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी भीबेसी वंश का शासक था। जिसने मरने से पहले अपने बेटे को गद्दी पर बिठाया।.
मालिक काफूर ये अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति था 1308 ईस्वी में इसने दक्षिण भारत पर आक्रमण कर होयसल वंश का विनाश का मदुरई पर अधिकार कर लिया। 3 वर्ष बाद मालिक काफूर दिल्ली लौटा तो उसके पास अपार लुट का माल था। 1316 ईस्वी में सुलतान की मौत हो गई।.अंतिम खिलजी शासक कुतुबुद्दीन मुबारक था जिसकी हत्या इसके प्रधानमंत्री युसरो खां ने 1320 ईस्वी में कर दी।.अन्त में गयासुद्दीन तुगलक ने युसरो खां से गद्दी छीन ली।.
तुगलक वंश
दिल्ली सल्तनत तुगलक वंश के अधीन आ गई जब खिलजी वंश का अंत हुआ। गयासुद्दीन तुगलक (गाजी) सुलतान बनने से पहले कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के शासन काल में उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत का शक्तिशाली गर्वनर था। काफिरों का वध करने के कारण उसे (गाजी ) की उपाधि मिली थी। तुगलक वंश ने भी गुलाम वंश कि तरह दिल्ली सहित उत्तर मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों पर राज किया को क्रमशः इस प्रकार है 1 गयासुद्दीन तुगलक 2.मुहम्मद बिन तुगलक 3.नासरेत शाह तुगलक 4.महमूद तुगलक आदि शासकों ने दिल्ली पर शासन किया।तुगलको का शासन 1412 ईस्वी तक रहा जबकि 1399 ईस्वी में तैमुर लंग द्वारा दिल्ली पर आक्रमण के साथ ही तुगल साम्राज्य का अंत माना जाता है।.
लोदी वंश 1451 से 1426 तक
ये लोग अफगानी थे। इनके सरदारों में सबसे महत्वपूर्ण बहलोल लोदी था। दिल्ली के शासक पहले तुर्क थे।.लेकिन लोदी शासक अफगानी थे। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार है1.बहलोल लोदी 2.सिकंदर शाह लोदी 3.इब्राहिम लोदी ने क्रमानुसार दिल्ली पर शासन किया। इब्राहिम लोदी1526 ईस्वी में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर के हाथो मारा गया और उसी के साथ ही लोदी वंश समाप्त हो गया।.
11.ग्यारहवां विदेशी आक्रमण मुगल व मंगोल और अफगान 1525 से 1556 तक
तैमूर लंग शासक बनना चाहता था चंगेज खां के बाद।.वह चंगेज वंशज होने का दावा करता था। लेकिन असल में वह तुर्क था। चंगेज खान चीन के पास मंगोलिया देश का वासी था। यह मघोल ही मंगोल और आगे चल कर मुगल हो गया।.सन 1211 से 1236 ईस्वी के बीच भारत पर मंगोलो ने कई आक्रमण किए। इन सभी आक्रमण का नेतृत्व चंगेज खान कर रहा था। चंगेज खान ने 100 से 150 वर्षो तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसके बात तैमुरलंग ने पंजाब तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।.समकंद का शासक तैमूर लंग 1369 में बना।.मध्य एशिया के मंगोल लोग इस बीच मुसलमान हो चुके थे।.जिसके कारण जब तैमूर मुगल फौज लेकर आया तो किसी ने इसका विरोध नहीं किया। मगर इसने किसी के साथ रहम नहीं किया। हिंदुओ के साथ मुस्लमानो को मार डाला गया। वह दिल्ली में15 दिन तक रुका बाद में वह लूट पाट करते हुए कश्मीर से वापस समकंद लोट गया।.
बाबर 1494 में
यह ट्रांस अक्सियाना की एक छोटी सी रियासत फरगाना का उतराधिकारी था। इधर तैमूर राजकुमार आपस में लड़ रहे थे उन्हें बाबर के आक्रमण का पता नहीं था।1526 ईस्वी में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी की पराजय के साथ भारत में मुगल वंश की स्थापना की गई।.संस्थापक बाबर था। इसका पूरा नाम जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर था। इतिहासकार मानते है की बाबर अपने पिता की ओर से 5वा एवं माता की ओर तुर्की जाति के चागताई वंश के अंर्तगत आता था चंगेज खां का परिवार।.मगर वह खुद के मंगोल नेता का 14वा वंशज मानता था।.पंजाब पर हमला करने के बाद बाबर ने दिल्ली पर हमला किया।. इसने घूम घुमाकर उत्तर भारत के मंदिरों को तोड़ा और उनको लुटा। इसने ही अयोध्या राम जन्म भूमि पर बने मंदिर को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण करवाया। बाबर केवल 4 वर्ष तक भारत पर राज कर सका। इसके बाद इसका बेटा गद्दी पर बैठा जिसका नाम नासिरूद्दीन मुहम्मद हुमायू दिल्ली के तख्त पर बैठा।.दिल्ली का सुल्तान बहादुर शाह से पहले बहादुर शाह प्रथम मुहिम्मुद्दीन मोoओरंगजेब शाहबुद्दीन मोo शाहजंहा नुरुद्दीन सलीम जन्हागीर जलालूउद्दीन मोo अकबर और इस से पहले हुमायूं था।
12. बारहवां विदेशी आक्रमण (ईस्ट इंडिया कंपनी)
अंग्रेजो की ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई,मद्रास,कलकत्ता पर सत्रहवीं शताब्दी की शुरआत में ही कब्जा कर लिया।.उधर फ्रांस की ईस्ट इंडिया कंपनी ने माहे,पांडिचेरी,तथा चंद्रा नगर पर कब्जा कर लिया। अंग्रेज जब भारत पर कब्जा करने लगे। तो उन्हें मराठों,राजपूतों,सिक्खों और कई छोटे मोटे साम्राज्य के साथ कमजोर मुगल शासक दिल्ली शासक बहादुर शाह जाफर,हैदराबाद पर निजामशाही वंश का शासन था।मगर अंग्रेजो को सब से कड़ा मुकाबला मराठों,सिक्खों,और राजपूतों से करना पड़ा।.अंग्रेजो को क्रमानुसार 1.मैसूर के साथ 4 लड़ाईयां,2.मराठों के साथ 3लड़ाईयां, 3.बर्मा म्यांमार तथा सीखो के साथ 2-2 लड़ाईयां,4.सिंध के अमीरों,गोरखो,अफगानिस्तान के साथ 1-1 लड़ाईयां लड़ी।.इन लड़ाईयों में एक दूसरे के विपक्षी राजाओं की मदत अंग्रेजो को मिलती रहीं। आपसी फूट का फायदा उठाते हुए कंपनी ने संपूर्ण भारत पर अधिकार कर लिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने कूट नीतियों की साजिशो का पूरा जाल बिछा रखा था। कंपनी के शासनकाल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक 22 गवर्नर जनरलो के हाथो में रहा।.ब्रिटिश राज: 1857 के विद्रोह के बाद कंपनी का शासन ब्रिटिश राज के अंतर्गत आ गया। 1857 से लेकर 1947 तक ब्रिटेन का राज भारत पर रहा। इस से पहले कंपनी ने भारत पर 100 वर्षो तक शासन किया। तथा 200 वर्षो तक अंग्रेजो ने भारत पर शासन किया।.धर्म के आधार पर भी विभाजन अंग्रेजो ने 1947 में ही भारत का किया।.
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