9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: "रत्ती" भारतीय प्राचीन वज़न मापक पद्धति

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गुरुवार, 4 मई 2023

"रत्ती" भारतीय प्राचीन वज़न मापक पद्धति

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परिचय


आप ने अक्सर ऐसा कहते सुना होगा कि "बहन वो रत्ती भर मेरी फिक्र नही करता हैं,या फिर रत्ती भर शुक्ला का लड़का हमारी इज्जत नहीं करता,या उसे तो रत्ती भर भी शर्म नहीं आती कुछ भी बोलता है,कुछ भी करता है। इस प्रकार की लोकोक्तियां घर परिवार या नजदीकी माहौल में सुनने को मिलती रहती है।आज हम इसी रत्ती के बारे में बात करने जा रहे है।.इसका प्रयोग ज़ेवर तौलने के लिए जौहरी द्वारा किया जाता था।.जिस प्रकार मन,सेर,छटांक की जगह ग्राम वा किलो ग्राम ने ले ली।.उसी प्रकार रत्ती की जगह वर्तमान में केरेट ने ले हैं। मगर आज भी जौहरियो द्वारा इसे सबसे शुद्ध मापक माना जाता है। क्युकी मानव द्वारा निर्मित मापको में गलती हो सकती है मगर इस प्रकृति द्वारा निर्मित मापक में गलती की कोई गुंजाइश ही नहीं हैं।

रत्ती की विशेषता

(एब्रस प्रिकेटोरियस) उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की मूल निवासी एक पौधे की प्रजाति है,जो विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया और प्रशांत द्वीप समूह के कुछ हिस्सों में पाई जाती है। यह अपने आकर्षक लाल और काले बीजों के लिए जाना जाता है, जिनका उपयोग विभिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है,गूंजा नामक पौधे से प्राप्त मटर जैसी फली में रत्ती के दाने होते हैं। रत्ती के दाने लाल काले रंग के होते है। यह छुने में किसी बीड या मोती की तरह लगता हैं।.फली की आयु कितनी भी क्यों न हो उसके अंदर उपस्थित बीजों का वजन हमेशा एक समान रहता है, यानि एक मिली ग्राम का भी अंतर नही आता।. आधुनिक तकनीक के अनुसार एक रत्ती का वज़न 0.12149795625 ग्राम होता है।.दूसरे शब्दों में एक रत्ती में 121.48 मिली ग्राम होता हैं।. इस प्रकार अगर (1 कैरेट 200 मिली ग्राम) का तो( 5 कैरेट 1 ग्राम का ) होगा।. ठीक उसी प्रकार 8 रत्ती मिलकर 1 ग्राम के लगभग होती हैं। यानी 28.16मिली ग्राम का अंतर होता हैं। प्राचीन काल में इस से सोने के मापन का चलन भारत में ही नही पूरे एशिया महाद्वीप में था।.

रत्ती का आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग

बताया जाता है कि रत्ती का बीज ही नही इसका पौधा भी बड़ा उपयोगी होता है। जानकारो के अनुसार रत्ती के पौधे गूंजा के पत्ते चबाने से मुंह से बुरे से बुरे छाले ठीक हो जाते हैं। इसकी जड़ सेहत के लिए फ़ायदेमंद होती है।. गूंजा (वैज्ञानिक नाम ABRUS PRECATORIUS) के पौधे से बहुत सी दवाएं बनाई जाती हैं। इससे टिटनेस , ल्यूकोड़र्मा (यानी स्किन इन्फेक्शन) और सांप के काटने का भी इलाज होता है। इसे वात और पित्त की बीमारियों के इलाज में भी कारगर माना जाता हैं।.बीज अक्सर अपने आकर्षक स्वरूप के कारण पारंपरिक शिल्प,आभूषण और सजावटी वस्तुओं में उपयोग किए जाते हैं।सांस्कृतिक महत्व: जेक्विरिटी बीजों का विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक महत्व है। इनका उपयोग सजावटी मोतियों,ताबीज और आकर्षण के रूप में किया गया है। कुछ संस्कृतियों में,माना जाता है कि बीजों में आध्यात्मिक या सुरक्षात्मक गुण होते हैं। हालाँकि,उनकी विषाक्तता के कारण रत्ती के बीजों को संभालते समय सावधानी बरती जानी चाहिए। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रत्ती के बीजों का उपयोग और रखरखाव उनकी विषाक्त प्रकृति के कारण बहुत सावधानी और सावधानी से किया जाना चाहिए।


भूल कर भी न खाए गूंजा का बीज या "रत्ती"

अत्यधिक जहरीले होते हैं। जेक्विरीटी बीजों की विषाक्त प्रकृति के कारण विभिन्न देशों में उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। उदाहरण के लिए,संयुक्त राज्य अमेरिका में,सजावटी या सजावटी उद्देश्यों के लिए जेक्विरिटी बीजों का आयात,बिक्री या वितरण करना अवैध है। संक्षेप में,अत्यधिक विषाक्तता के कारण जेक्विरिटी बीजों का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए।सावधानी बरतना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इन बीजों को पहुंच से दूर रखा जाए, खासकर बच्चों या पालतू जानवरों वाले घरों में।.यदि आकस्मिक रूप से जेक्विरिटी बीजों का संपर्क होता है, तो तत्काल चिकित्सा सहायता लें। हमेशा सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करें और उचित जानकारी और सुरक्षा के बिना जहरीले पौधों या बीजों को संभालने से बचें।बीजों में एब्रिन नामक पदार्थ होता है, जो ज्ञात सबसे शक्तिशाली पौधों के विषाक्त पदार्थों में से एक है। यदि एब्रिन की थोड़ी सी मात्रा भी निगल ली जाए या रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाए तो यह घातक हो सकती है। विष कोशिकाओं के भीतर प्रोटीन संश्लेषण को प्रभावित करता है और गंभीर अंग क्षति और यहां तक ​​कि मृत्यु का कारण बन सकता है।

29 नवंबर 2022 में ज़ी न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के भिंड नामक ग्राम से एक मामला सामने आया, जिसमे 7 साल के बच्चे के रत्ती के दाने खाने की घटना सामने आइ।. जिसके चलते बच्चे के पूरे शरीर में जहर फेल गया ।. डॉक्टरों ने बच्चे को पहली बार देखा तो उन्हें ऐसा लगा की बच्चे को किसी जहरीले सांप ने काटा है।. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों को भी पहली बार यकीन नही हुआ कि रत्ती का बीज खाने से यह ज़हर फैला हैं।.इस पौधे के बीज से सांप के ज़हर जैसा जहरीला पदार्थ ABRIN निकलता है। हालांकि ABRIN नामक ज़हर का कोई Antidote नही है ऐसे में शरीर में जा चुके ज़हर को बाहर निकालने के अलावा कोई और तरीका नहीं बचता।. इसके अलावा मरीज़ को जहर से होने वाले दूसरे साइड इफेक्ट्स से बचाने के लिए मरीज़ को सपोर्टिव ट्रीटमेंट दिया जाता है।.


जैसे
अगर मरीज ने सांस के जरिए जहर निगल लिया है तो उसे सांस लेने में दिक्कत होगी। उसे अक्सीजन दिया जाना,उसी प्रकार बि.पी. कंट्रोल करने के लिए दवाएं दी जाना ,एक्टिवेटेड चारकोल थैरिपी दी जाती है । हालाकि की 7 वर्ष के उस बच्चे को बचा लिया जाता है ,मगर उसके छोटा भाई जोकि1वर्ष का था उसे डॉक्टर नहीं बचा पाते है।.डॉ o धीरेन गुप्ता तत्कालीन समय पर गंगाराम अस्पताल के पीडियाट्रिक्स एमरजेंसी केयर के एक्सपर्ट थे बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराके 4 दिन तक इलाज किया गया।.डॉ० साहब ने सुझाव देते हुए बताया की अगर किसी ने रत्ती का बीज खा लिया है तो 2 से 2.30 घंटे के अंदर अस्पताल पहुंचा देना चाहिए। ताकि ज़हर को फैलने से रोकने तथा जहर निकलने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सके।.मरीज को समय पर इलाज मिलने पर बचाया जा सकता है।.

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