परिचय
मदुरा(मदुरई)और
तिनेवली के क्षेत्र में इस
वंश की स्थापना हुई।.यह
क्षेत्र तमिलनाडु राज्य के
अन्तर्गत पड़ता है।.जो
की तमिल संस्कृत का केंद्र
भी माना जाता है। यह तमिलनाडु
का अपने आप में ही बहुत खास और
सुप्रसिद्ध एरिया है।प्राचीन
पांड्य राज्य दो भागो में
बांटा गया था। कुडुगोंन द्वारा
590
में
इस वंश की स्थापना की थी।.द्वितीय
पांड्या राज्य की स्थापना
590ई0
कुडुंगोन
ने की थी।.और
प्रथम पांड्या राज्य की
स्थापना1251
ई0
में(जटावर्मन
सुंदर पांड्या प्रथम)ने
की थी।.वैसे
विक्रम पांड्या को पांड्या
वंश का संस्थापक माना जाता
है।.लेकिन
किसी अन्य शासक के अधीन होने
के कारण इन्हें संस्थापक कहना
उचित न होगा।.अतः
मुख्य रूप से कुडुगोंन को ही
प्रथम पांड्या वंश का संस्थापक
कहा गया हैं।.
प्रथम पांड्या वंश
1.कुडुंगोन-इसने
तिनवेली,केरल
के अधिकांश भाग को और मदुरा
पर विजय हासिल की और मदुरा को
ही अपनी राजधानी बनाया। लगभग
590
ईस्वी
से अपने साम्राज्य विस्तार
को प्रारंभ किया।.620के
लगभग इसका देहांत हुआ।.2.मारवर्मन
अवनिशूलमणि-यह
कुडुंगोन
का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी
भी था। इसने अपने समय काल में
साम्राज्य का विस्तार ज्यादा
नहीं किया।.इसने(620
से
645
ईस्वी)यानी
मात्र 25
वर्षो
तक की शासन किया।.3.जयंतवर्मन
सेलियन सेंदन-यह
मार वर्मन अवनिशूलमणि का
उत्तराधिकारी था। तथ्यों के
आधार पर अनुमान लगाया जा सकता
है की यह चेर शासकों का सामंत
था। क्युकी इसने वान वन की
उपाधि धारण धारण की। यह मुख्यत-चेर
राजाओं द्वारा प्रदान की उपाधि
थी।.यह
तब दी जाती थी जब एक राजा चेर
शासकों की ओर से जंग लड़ता
था।.इस
प्रकार शासन काल 645
से
670
ई0
तक
रहा।.4.अरिकेसरी
मारवर्मन-अरिकेसरी
मार वर्मन प्रारंभिक पांड्य
नरेशो में महान योद्धा व सफल
शासक सिद्ध हुए। प्रारम्भ
में यह जैन धर्म के अनुयायी
थे।लेकिन शिव की उपासक इनकी
पत्नी के नाते,अरिकेसरी
ने जैन धर्म को छोड़ कर शिव का
उपासक बन गया,और
670
से
800
ई0
तक
राज किया। केरल तथा अन्य पड़ोसी
राजवंशों को भी जीता।.5.कोच्चडय्य्यन-इसका
दूसरा नाम रणधीर था।.इसे
मदुरै कर्नाटक और कोंगार कोमान
का अधिपति कहा जाता है। इसने
वाणवन और शोम्बियम जैसी उपाधियां
भी धारण कर रखी थी। इसका शासन
काल 700
से
730
ईस्वी
तक रहा।.
6.मारवर्मन
राजसिंह प्रथम-यह
एक शक्ति शाली शासक था।इसने
पल्लव शासक पल्लव मल्ल को
पराजित किया और पल्लव भंजन
की उपाधि धारण की। इसके पश्चात
इसने चालुक्य नरेश कीर्ति
वर्मन द्वितीय को वेंनभई नामक
युद्ध में पराजित किया। इसने
गंग शासक श्री पुरुष पर विजय
हासिल की। जिसके चलते गंग
सामंत को अपनी पुत्री का विवाह
पांड्या राजकुमार प्रांतक
के साथ करना पड़ा।.इसके
साथ ही मार वर्मन राज सिंह
प्रथम,कोंगुओ
व भाला कोंगम के साथ ही मालवा
के सेनापति ने उसके आगे आत्मसमर्पण
किया। इसने अनेकों यज्ञ करवाए
जिनमें से गोसाहार,हिरण्य
भार,एवं
तुलाभार आदि प्रमुख थे। इसने
कुदाल यंत्र,वंजी
और कोली बर्तन का पुनः निर्माण
करवाया।.इनका
राज 730
से
865
तक
रहा होगा।7.वारगुण
प्रथम-यह
तमिल देश का सबसे प्रभावशाली
व पराक्रमी शासक होने के साथ
ही मार वर्मन राजसिंह प्रथम
का पुत्र व उत्तराधिकारी भी
था। शत्रुओ को पराजित करने
के उपलक्ष्य में इसने प्रांतक
की उपाधि धारण की।.वेलविक्कुडी
अभिलेख के अनुसार इसने तंजौर
के निकट पेण्णा गड्म नामक
स्थान पर विशाल विष्णु मंदिर
का निर्माण करवाया।.वारगुण
ने करवंडपुरम में तिनेवली के
कलक्कड़ नामक दुर्ग का बनवाया
और सुन्दर और विशाल विष्णु
मंदिर का निर्माण (कांजी
वाणेरूर)
में
करवाया था।.जिसके
परिणाम स्वरूप इसने परम वैष्णव
की उपाधि धारण की। इस शासक का
शासन काल लगभग 765
से
815
ईस्वी
तक का रहा।.
8.श्रीमार श्री वल्लभ
यह
वारगुण प्रथम का पुत्र था।पल्लव
नरेश नादिवर्मन द्वितीय ने
इसे तेलारू के युद्ध में हराया।
कुछ समय बाद वल्लभ ने कुंभमोजय
को युद्ध में पराजित किया।
इसके बाद अरिचित के युद्ध में
नर्पतूंग ने इसे दुबारा हराया।
मगर श्री लंका के शासक ने
नर्पतूंग को पराजित कर मदुरा
पर अपना शासन कर लिया। नर्पतूंग
अपने समय काल में प्राचक्र
कोलहन,अवनिय
शेखर की उपाधियां प्राप्त की
थी।.इसने
815
से
862
तक
राज्य किया।.9.वार
गुण द्वितीय-इसने
मात्र 18
वर्ष
तक ही शासन किया। यह श्री वल्लभ
का बड़ा बेटा था। इसका पूरा
नाम वरगुण वर्मन द्वितीय था
और यह प्रांतक शासक वीर नारायण
द्वारा पराजित हुआ। इसका शासन
काल 862
से
880
ईस्वी
तक का था।.10.प्रांतक
वीर नारायण-वारगुण
द्वितीय की मृत्यु के बाद
प्रांतक वीर नारायण के अधीन
पांड्य वंश का शासन हो गया।
दवलपुर के ताम्रपत्र उसी के
शासन काल में जारी किए गए।
उसके साम्राज्य का विस्तार
कांगू प्रदेश से लेकर,कावेरी
नदी के दक्षिणी भाग को जीतकर
अपने राज्य में मिलाया। इसका
आधिपत्य शासन काल 880
से
900
ईस्वी
तक रहा।.11.मारवर्मन
राजसिंह द्वितीय-यह
प्रांतक वीर नारायण का पुत्र
था। इसके समय काल में चोल शासक
परांतक प्रथम ने पांड्य वंश
पर अकर्मण किया और इस प्रकार
लगभग कई बार चोलो ने राजसिंह
द्वितीय को पराजित किया। अतः
उसकी मृत्यु के बाद पंड्या
राज्य पर चोलो का अधिपत्य
स्थापित हुआ। इस शासक का शासन
काल 900
से
953
ईस्वी
तक रहा।.
12.वीर पांड्य
राज
सिंह द्वितीय इनके पिता थे।.चोल
शासक गांडरा दित्य 949
में
टक्कलोम नामक युद्ध में हराया।
मगर दूसरे युद्ध में गांडरा
दित्य से पराजित हुए।.महेंद्र
चतुर्थ (श्री
लंका)
के
राजा की सहयता मिलने पर भी
चोलो पर विजय न मिल सकी।.और
चैबुर के युद्ध में चोल सेना
ने वीर पांड्य को बुरी तरह
पराजित किया और युद्ध भूमि
में ही मार डाला।.इस
प्रकार 12
सदी
के लगभग अंत तक चोलो का शासन
इन पर रहा।.युद्ध
में मारे जाने के कारण इस शासक
ने मात्र 29
वर्ष
तक ही शासन कर पाए।.इनका
शासन 49
तक
रहा।.
द्वितीय पांड्या वंश
प्रथम
पांड्य वंश के अंत के बाद जटा
वर्मन सुन्दर पांड्य प्रथम
ने पांड्य वंश का उत्थान किया।
इसका समय काल 1251
से
1268
ईस्वी
तक का था।.1.जटावर्मन
सुन्दर पांड्य प्रथम-यह
पांड्य वंश का सर्वाधिक
शक्तिशाली राजा था। इसने चोल
शासकों का पूर्णतः विनाश कर
दिया। साथ ही इसने होयसल,सिंहल
राजाओं पर विजय हासिल की। इसने
काकतीय वंश के गणपति को हराया
और कांची पर अपना आधिपत्य भी
स्थापित किया।अपने द्वारा
जीते गए राज्यों से प्राप्त
धन संपत्ति से इसने चितंबरम
और श्री रंगन का मन्दिर निर्माण
करवाया और सुंदर कला आकृति
करवाई। इसका शासन काल 1251
से
1268
ईस्वी
तक का था।.2.गारवर्मन
कुलशेखर पांड्य प्रथम-यह
भी अपने पूर्वजों के समान एक
पराक्रमी शासक था।मंत्री
आचार्य चक्रवर्ती के सहयोग
से इसने सिंहल राज्य पर आक्रमण
करने के लिए सेना की एक टुकड़ी
भेजी। और वहां के शासक भुव
नायक वाहु ने इस से पराजित
होने के बाद पांड्यो की अधीनता
स्वीकार की लगभग 20
वर्षो
तक इसने सिंहल को अपने अधीन
बनाए रखा। और होयसल नरेश रामनाथ
को पराजित किया।1293
में
वेनिस का प्रसिद्ध यात्री
मार्कोपोलो पांड्या राज्य
में यात्रा के लिए आया मारवर्मन
कुलशेखर के समय काल में आर्थिक
दृष्टि से समृद्ध काल रहा।.जिसके
परिणाम स्वरूप मार्कोपोलो
ने मार वर्मन कुलशेखर की प्रशंसा
करते हुए लिखता है की वहां का
व्यापार वाणिज्य अत्यधिक
विकसित था तथा राज्य की ओर से
विदेशी व्यापरियो तथा यात्रियों
को काफी सुविधाएं प्रदान की
जाती थी। अतः कुल शेखर का समय
काल 1268
से
1309
ईस्वी
तक का था।.
4.वीरपांड्य चतुर्थ
कुल
शेखर के दो पुत्र थे।1.जटा
वर्मा सुन्दर पांड्या तृतिय
2.वीर
पांड्य।.इन
दोनो के बीच गद्दी को लेकर
संघर्ष हुआ। जिसमे प्रजा ने
वीर पांड्या को राजा बनाया
और उसे गद्दी पर बिठा दिया।.मगर
उसका भाई जटा वर्मा इस बात को
सहन न कर सका और उसने अलाउद्दीन
खिलजी से हाथ मिला लिया। जिसके
चलते खिलजी ने अपने सेना पति
मल्लिक गफुर को युद्ध के लिए
भेजा।.मल्लिक
गफुर ने 1310
ईस्वी
में पांड्य पर आक्रमण किया।
गफुर की से ने मदुरै में बहुत
तबाही मचाई,अंत
में मल्लिक गफुर ढेर सारा धन
लूटकर दिल्ली वापिस चला गया।
इस घटना के बाद पंड्या राज्य
का पतन प्रारम्भ हो गया। अगला
युद्ध तुर्कियो द्वारा पांड्या
राज्य पर किया गया। कुछ समय
तक पांड्या राज्य दिल्ली
सल्तनत का अंग बना रहा। इस
प्रकार पांड्या राज्य का अंत
हुआ। पांड्य वंश के अंतिम शासक
का समय काल 1309
से
1345
ईस्वी
तक का था।.
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