9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: हैदराबाद का काकतीय वंश

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

हैदराबाद का काकतीय वंश

kakatiya-

परिचय

काकतीय लोग राष्ट्रकूट वंशजों के ही वंश के थे। इस वंश का प्रथम ज्ञात शासक बेत प्रथम था।.1.बेत प्रथम-काकतीय वंश के लोग चालुक्य शासकों के सामंत थे। राजेन्द्र चोल ने इन पर आक्रमण किया राज्य को नष्ट कर डाला,और राज्य अव्यवस्थित हो गया,इसके कुछ समय बाद बेंत प्रथम ने हैदराबाद के नलगोड में अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। बेंत प्रथम का उत्तराधिकारी प्रोल प्रथम था।2.प्रोल प्रथम-यह वातापि के पश्चिमी चालुक्यों का सामंत था।

इसने चालुक्य शासक सोमेश्वर प्रथम की ओर से कई सारे युद्ध लड़े। जिससे प्रसन्न होकर सोमेश्वर प्रथम ने वारंगल में हनुमकुंड का इसे स्थायी सामंत बना दिया।3.बेत द्वितीय-इसने चालुक्य शासक विक्रमादित्य से कुछ प्रदेश प्राप्त किए और अपनी राजधानी अंमकोड़ में स्थापित की।.

4.गणपति-
यह काकतीय वंश का सर्वाधिक शक्ति शाली शासक था। इसने लगभग 60 वर्षो तक शासन किया। इसने कांची,आंध्र,नेल्लोर,कर्नुल को जीत कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इसने समय काल में मोटूपल्ली स्थान के कृष्ण जिला में बंदरगाह बनवाया,यहां से विदेशी व्यापार होता था।1263 ईस्वी में सुंदर पांड्य ने उसे प्राजित किया और कांची तथा नेल्लोर पर अधिकार कर लिया। जिसके परिणाम स्वरूप गणपति ने अपनी राजधानी वारंगल में स्थांतरित कर ली।

5.रुद्रम्बा देवी-यह गणपति की पुत्री थी। इसकी एक बहन भी थी जिसका नाम गणपांबा था। रुद्रम्बा देवी अपने समय काल की सर्व शक्तिशाली और प्रभावशाली महिला थी। इन्होने ने अपने समय काल में उचित जल निकासी की और सिंचाई व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया।मार्को पोलो ने अपनी यात्रा के दौरान मिले अनुभव को अपने पुस्तक मे लिखते हुए रुद्रम्बा देवी की प्रशंसा की ओर उनके शासन काल को उत्कृष्ट शासन काल बताया।

7.प्रताप रूद्र देव-रुद्रम्बा देवी ने प्रताप रूप देव को गोद लिया था। जिसे 1322 ई.में मोहम्मद बिन तुगलक ने पराजित कर बंदी बना लिया। इसके अत्याचारों से विवश हो कर रुद्र देव ने बंदी ग्रह में आत्म हत्या कर ली। अतः 1512 ई. में हिंदू राज्य के अंत के बाद गोल कुण्डा राज्य की स्थापना हुई। न्यांकार प्रणाली के उदय सर्व प्रथम काकतीय वंश से ही प्रारंभ हुआ। और कुछ समय बाद स्थापित विजय नगर साम्राज्य की मुख्य विशेषता बना।

काकतीय वंशजों की जाती

काकतीय शासकों ने अपने पूर्वजों के दुर्जय नामक एक महान प्रमुख शासक का पता लागाया।आंध्र के कई अन्य शासक राजवंशों ने भी दुर्जय से स्वयं के वंश का दावा किया।.इस प्रमुख शासक के बारे में और कुछ नहीं पता लग पाया है।.काकतीय अभिलेखों में परिवार के वर्ण का उल्लेख नहीं है लेकिन ऐसा कहते है,कि उनमें से अधिकांशतः इन्हे गर्व से शुद्र कहते है।.

ऐसा इन लोगो का मानना है क्युकी काकतीय वंश ने कोटा और नटवादी प्रमुखों के साथ भी वैवाहिक सम्बन्ध बनाए रखें।.इन सभी प्रमाणों के आधार पर कुछ विद्यवान काकतीय वंशजों को शुद्र मूल का मानते है।.लेकिन ताम्रपत्र शिलालेख में उन्हें क्षेत्रीय वर्ण से संबंधित बताया गया है।.इसी प्रकार गणपति मोतुपल्ली शिलालेख में काकतीय परिवार के पूर्वज दुर्जय के पूर्वजों में राम जैसे पुराणिक सूर्य वंशी राजाओं में गिनती होती है।.

1.मल्कापुरम शिलालेख-रानी रुद्रंबा देवी के गुरु विश्वेश्वर शिवाचार्य का मल्कापुरम शिलालेख भी काकतीय वंश को सूर्यवंश से जोड़ता है।.इसके साथ ही मंगलु और बयाराम शिलालेख की एक व्याख्या के अनुसार काकतीय केवल राष्ट्रकूट जागीरदार ही नहीं थे बल्कि राष्ट्रकूट परिवार की एक शाखा भी थे।.2.मंगलू शिलालेख-काकतीय प्रमुख गुंडा चतुर्थ के अनुरोध पर वेंगी चालुक्य राजकुमार दानार्णव द्वारा 956 ईसा में मंगलू शिलालेख जारी किया गया।.जिसमे गुण्ड्याना के पूर्वजों को गुण्डिया राष्ट्रकूट बताया गया हैं।. इस से यह पता चलता है की गुंडा चतुर्थ एक राष्ट्रकूट सेनापति था।.
3.बयाराम टैंक शिलालेख-इसी प्रकार गणपति की बहन मैलाम्बा द्वारा निर्मित करवाया गया बयाराम टैंक शिलालेख भी इन्हें राष्ट्रकुटो से संबंधित करता है।.4.गरवापड़ शिलालेख-मगर गणपति के गरवापड़ शिलालेख के आधार पर,परिवार के पूर्वजो के बीच करीकाल चोल का नाम लिया गया है।.जिसके तहत यह सिद्धांत दिया गया की काकतीय तेलगू चोल की एक शाखा थे।हलाकि किसी अन्य अभिलेख में करीकाल उल्लेख नहीं हैं।.जिसके तहत शास्त्री चारुल के सिद्धांत पूर्णतया स्थाई नहीं है।.

परम्परा एवं धर्म

काकतीय राजवंश एक मध्ययुगीन भारतीय राजवंश था जिसने 12वीं से 14वीं शताब्दी तक भारत के वर्तमान तेलंगाना और आंध्र प्रदेश क्षेत्रों के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। यह राजवंश कला,वास्तुकला,साहित्य और धार्मिक संस्थानों के संरक्षण के लिए जाना जाता था। काकतीय काल के दौरान परंपराओं और धार्मिक प्रथाओं के बारे में कुछ जानकारी यहां दी गई है:

1.हिंदू धर्म-काकतीय शासक कट्टर हिंदू थे और उन्होंने अपने राज्य में हिंदू धर्म को प्रमुख धर्म के रूप में प्रचारित किया। वे स्वयं हिंदू धर्म के भीतर शैव और शाक्त परंपराओं के अनुयायी थे। शैववाद भगवान शिव की पूजा है,जबकि शक्तिवाद दिव्य स्त्री ऊर्जा की पूजा है,जिसे मुख्य रूप से देवी दुर्गा या देवी के रूप में दर्शाया जाता है।

2.मंदिर-काकतीय लोग मंदिर निर्माण के संरक्षण के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपने राज्य भर में विभिन्न हिंदू देवताओं को समर्पित कई मंदिर बनवाए। उनमें से सबसे प्रसिद्ध वारंगल में श्री भद्रकाली मंदिर है,जो देवी भद्रकाली को समर्पित है। हनमकोंडा में हजार स्तंभ मंदिर और पालमपेट में रामप्पा मंदिर उनके मंदिर वास्तुकला के अन्य उल्लेखनीय उदाहरण हैं।

3.प्रतिमा विज्ञान और मूर्तिकला-काकतीय काल में मंदिर मूर्तिकला और प्रतिमा विज्ञान में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई। इस युग की मूर्तियों की विशेषता जटिल विवरण,अभिव्यंजक रूप और कुशल शिल्प प्रतिभा है।स्वयं काकतीय शासकों को दर्शाते हैं पौराणिक दृश्य और मूर्तिकला रूपांकन अक्सर हिंदू देवताओं को किया।.

4.धार्मिक त्यौहार-काकतीय राजवंश विभिन्न हिंदू त्यौहारों को भव्यता के साथ मनाता था। महाशिवरात्रि,नवरात्रि,दिवाली और उगादि (तेलुगु नव वर्ष)जैसे त्योहार उत्साह और भक्ति के साथ मनाए गए। इन त्योहारों में विस्तृत अनुष्ठान,जुलूस,सांस्कृतिक प्रदर्शन और देवताओं को प्रसाद चढ़ाना शामिल था।

5.सांस्कृतिक समन्वयवाद-काकतीय काल के दौरान,हिंदू धर्म और जैन धर्म के बीच सांस्कृतिक समन्वय था। कुछ काकतीय शासकों को हिंदू धर्म के समर्थन के साथ-साथ जैन मंदिरों और संस्थानों को संरक्षण देने के लिए जाना जाता था।

6.शिलालेख और अनुदान-काकतीय ने कई शिलालेख और अनुदान जारी किए,जिन्हें "प्रशस्ति" के नाम से जाना जाता है,जिसमें उनकी धार्मिक बंदोबस्ती,मंदिरों को दान,और पुजारियों और धार्मिक संस्थानों को भूमि अनुदान दर्ज थे। ये शिलालेख काकतीय काल के बारे में बहुमूल्य ऐतिहासिक और धार्मिक जानकारी प्रदान करते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि काकतीय काल के दौरान धार्मिक प्रथाएं और परंपराएं मुख्य रूप से हिंदू-केंद्रित थी।.जिनमें शैववाद और शक्तिवाद पर जोर दिया गया था।

हालाँकि,राजवंश ने जैन धर्म जैसी अन्य परंपराओं के साथ अपनी बातचीत के माध्यम से सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता भी प्रदर्शित की।गरुड़ यंहा के शाही चोल प्रतीक चिन्ह के रूप में संदर्भित है। परन्तु जब काकतीय लोगो ने कल्याणी के चालुक्य के प्रति अपनी निष्ठा बदली,तो उन्हों ने उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए वराह प्रतीक को भी अपनाया।.काकतीय लोग शैव धर्म के उपासक थे।.इन्होने शैव वाद को अपने परिवार के धर्म के रूप में स्थापित किया।.

जैसे-हरिहर,गणपति,रुद्रम्बा और महादेव आदि शासकों के नाम आते है।.

MCQ सम्बंधित

1.काकतीय वंश का आरंभ कैसे हुआ था?
 
उत्तर.काकतीय वंश का आरंभ काकतीय वंश के प्रमुख राजा पुलकेशिन II के द्वारा हुआ था। पुलकेशिन II ने 7वीं शताब्दी के मध्य में आंध्र प्रदेश के चालुक्य राजवंश को परास्त करके काकतीय राजवंश की स्थापना की। इससे पहले,आंध्र प्रदेश क्षेत्र में चालुक्य वंश का राज्य था, जिसे पुलकेशिन II ने विजयी रूप से ले लिया था।

2.काकतीय वंश का सबसे प्रमुख राजा कौन था?
उत्तर.काकतीय वंश का सबसे प्रमुख और मशहूर राजा राजाराज द्वितीय (Rajaraja II) था। वह 13वीं सदी के मध्य में शासन करने वाले थे और उन्होंने काकतीय साम्राज्य को एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली साम्राज्य में बदल दिया।राजाराज द्वितीय का शासन अद्भुत वाणिज्यिक और सांस्कृतिक विकास का काल था। उन्होंने काकतीय साम्राज्य को उच्च कला साहित्य और विज्ञान में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उन्होने कृष्णा नदी के किनारे स्थित वारंगल को अपनी राजधानी बनाया और जिसे प्रसिद्ध "एकाशिला" के नाम से जाना जाता है।

3.काकतीय राजवंश की स्थापना किस वर्ष में हुई थी?
उत्तर.काकतीय राजवंश की स्थापना के बारे में सटीक तिथि से संबंधित कुछ नहीं पता है,लेकिन इसका आरंभ 12वीं या 13वीं सदी के आसपास हुआ था।

4.काकतीय वंश के राजा कैसे बनाए जाते थे?
उत्तर.काकतीय वंश के राजा बनाने की प्रक्रिया में कुछ सामान्य चरण थे,जो उनके राजसत्ता में प्रवेश करने के लिए पालन किए जाते थे-1.उत्पत्ति और परिवार के संबंध-आमतौर पर,काकतीय राजा अपने पूर्वजों के पुत्र या पुत्री होते थे,जिनका उत्पत्ति संबंधित राजपरिवार से होता था।

2.प्रशासनिक योग्यता-राजा बनने के लिए योग्यता एक महत्वपूर्ण मानक था। उम्मीदवार को अच्छे प्रशासनिक और राजनीतिक कौशल से प्र्शिक्षित होना आवश्यक था।

3.राजकीय समर्थन- उम्मीदवार को राजकीय समर्थन प्राप्त करना होता था,जिसमें साम्राज्य के महत्वपूर्ण और प्रभावशाली लोगों का समर्थन शामिल था।4.राज्य के नियमों का पालन- राजा बनने के बाद,उन्हें राज्य के नियमों का पूरा पालन करना होता था और अपने राज्य की सुरक्षा और समृद्धि की देखभाल करनी थी।5.महत्वपूर्ण कार्यवाही- राजा बनने के बाद,उन्हें अपने प्रदेश के प्रमुख कार्यों का प्रबंध करना होता था,जैसे कि कृषि,व्यापार,सेना,और सांस्कृतिक समृद्धि का संरक्षण।काकतीय राजा बनने के लिए ये प्रमुख मानक थे,और यदि कोई उन्हें पूरा करता था,तो वह राजा के पद को प्राप्त करता था।

5.काकतीय वंश के समय कौन-कौन से महत्वपूर्ण शिलालेख मिले हैं?
उत्तर काकतीय वंश के समय महत्वपूर्ण शिलालेखों में से कुछ नाम निम्नलिखित हैं-
1.वेंगी शिलालेख (Vengi Inscription)- यह शिलालेख राजा गुणपंडित (Gunapati) के शासनकाल के हैं,जो काकतीय राजवंश के एक महत्वपूर्ण राजा थे। इसमें उनके राज्य के विकास और उनके प्राशासिक प्रक्रिया का वर्णन मिलता है।

2.हनमकोण्डा शिलालेख (Hanmakonda Inscription)- यह शिलालेख काकतीय राजा गणपति (Ganapati) के द्वारा जारी किया गया था और इसमें राजा के धर्मिक और राजनीतिक कार्यों का विवरण होता है।
3.कृष्णादेवराय की शिलालेख (Inscription of Krishna Deva Raya)- इस शिलालेख में कृष्णादेवराय,विजयनगर साम्राज्य के एक महान राजा के रूप में,काकतीय राजा प्रतापरुद्र द्वितीय की प्रशंसा और उनके योगदान का वर्णन होता है।

4.रुद्रमादेवी शिलालेख (Rudramadevi Inscription)- इस शिलालेख में रानी रुद्रमादेवी के बारे में जानकारी दी गई है,जो काकतीय राजवंश की पहली महिला राजा थी।ये शिलालेख काकतीय राजवंश के इतिहास और उनके शासकीय कार्यों के बारे में महत्वपूर्ण स्रोत हैं और इस समय के समाज,संस्कृति,और राजनीति के बारे में हमें जानकारी प्रदान करते हैं।.

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