9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: शाही चोल साम्राज्य

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

शाही चोल साम्राज्य

chola-dynasty

परिचय

चोल वंश ने तमिलनाडु,आंध्रा प्रदेश और कर्नाटक राज्यों के क्षेत्र पर शासन किया।. आठवीं शताब्दी के प्रारंभ से पहले चोलो की राजनीतिक सत्ता का उत्थान हुआ।.इस प्रकार इनका समय काल आठवीं शताब्दी के आगमन के साथ 12वी तक रहा।.इनके समय काल से पहले से ही दक्षिण भारत में राष्ट्रकुटो,चालुक्यों,पल्लवो और पांडवों की सर्वोच्चता के लिए संघर्ष हो रहा था। इनके आपसी संघर्ष का चोलो ने लाभ उठाया और दक्षिण भारतब्मे नई शक्ति का उदय हुआ जो शाही चोल कहलाए।.चौथी शताब्दी में भी चोल वंश विराजमान था।. मगर इतिहास में उस समय काल के शासकों के बारे अधिक जानकारी नहीं मिलती है।.

 चौथी शताब्दी के चोल तथा आठवी शताब्दी के चोलो में अंतर स्पष्ट करते हुए आठवी शताब्दी के चोलो को शाही चोल कहा जाता है। साक्ष्य की बात की जाए तो अशोक के अभिलेख में इनका सर्वप्रथम अभिलेख मिलता है।.मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में भी चोलो का उल्लेख किया है।.प्रारंभ में चोल पल्लवो के सामंत थे।.लेकिन पल्लवो और पांडयो के आपसी संघर्ष की वजह से पल्लव राजवंश कमजोर पड़ गया।.जिसके परिणाम स्वरूप पल्लवो के सामंत सेनपति विजयालय ने पल्लवो का विरोध किया तथा चोल वंश को स्थापना कर डाली।.और 850 ईस्वी में तंजौर पर अपना अधिकार कर लिया और टोंड मंडल पर भी। इतिहास में पल्लव का समय काल एवं नाम निम्नवत है।.

प्रशासन की शुरुआत होती है सामंत के रूप में 1.उरवप्पहर्रे इलन जोत चेन्नी से होती है।.2.करिकाल 3.विजयालय 850 से 875 ईस्वी तक।.4.आदित्य 875 से 907 ईस्वी तक।.5. प्रांतक प्रथम 908 से 949 तक।.6.प्रांतक द्वितया 956 से 983 ईस्वी तक।.7.राज राज प्रथम 985 से 1014 ईस्वी तक।.8.राजेंद्र प्रथम 1014 से 1044 ईस्वी तक।.9.राजाधिराज 1044 से 1052 ईस्वी तक।.10.राजेंद्र द्वितीय 1052 से 1064 ईस्वी तक।.11.वीर राजेंद्र 1064 से 1070 ईस्वी तक।.

12.अधिराजेंद्र 1079 से मात्र एक वर्ष का शासन काल रहा।.13.कुलोतुंग प्रथम 1170 से 1120 ईस्वी तक।.14.विक्रम चोल 1120 से 1133 ईस्वी तक।.15.कुल तुंग द्वितीय 1133 से 1150 ईस्वी तक।.16.राज राज द्वितीय 1150 से 1183 ईस्वी तक।.17.राजा धीराज द्वितीय 1173 से 1178 ईस्वी तक।.18.कुलतुंग तृतिया 1178 से 1218 ईस्वी तक।.19.राज राज तृतीय 1218 से 1256 ईस्वी तक।.20. राजेंद्र तृतीय 1256 से 1279 ईस्वी तक।.

1.उरवप्पहर्रे इलन जोत चेन्नी
यह चोल वंश का प्रथम शासक था। इसने अपनी राजधानी उरैपुर में स्थापित की।. यह युद्ध में अपने सुंदर रथों में चर्चा में आया। वैलेरी वंश से एस्ले वैवाहिक संबंध थे।.

2.करिकाल
यह चोल शासकों में सबसे प्रमुख शासक था। इस शासक ने अपने शुरुआती वर्षों में वेणी नामक स्थान पर बेलरि तथा अन्य ग्यारह शासकों की संयुक्त सेना को हराया। इसने दूसरी महत्वपूर्ण सफलता वहैप्परल्लई के 9 छोटे छोटे शासकों की संयुक्त सेना पराजित किया। इस प्रकार लगभग लगभग पूरे तमिल प्रदेश को अपने पराक्रम द्वारा अपने अधीन कर लिया।.संगम साहित्य के अनुसार करिकाल ने कावेरी नदी के मुहाने कवेरि पट्टनम की स्थापना की।.

3.विजयालय
इसे चोल राजवंश का द्वितीय संस्थापक भी कहा जाता है। आरंभ में चोल पल्लवो के सामंत थे। पल्लवो की शक्ति कमज़ोर होने पर इसी ने विद्रोह किया। और स्वतंत्र चोल वंश की स्थापना की। इसने पांड्या साम्राज्य के शासकों से तंजोर को छीन लिया उरैपुर नामक स्थान को अपनी राजधानी बनाया।.तंजोर को जीतने के बाद इसने नरकेसरी की उपाधि धारण की।.897 ईस्वी तक चोल इतने शक्तिशाली हो गए की इन्होंने पल्लव शासकों को हरा कर उनकी हत्या कर दी। और सारे टोंड मंडल पर अपना अधिकार कर लिया। इसके साथ ही पल्लव राज वंश इतिहास के पन्नो में विलीन हो गया।. आगे चल कर चोल शासकों के राष्ट्र कूटो से भयानक संघर्ष करना पड़ा।.राष्ट्र कूट शासक कृष्ण तृतिय ने चोल सम्राट प्रांतक प्रथम को पराजित किया और चोल साम्राज्य के उत्तरी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। लेकिन 965 ईस्वी में कृष्ण तृतिय की मृत्यु के बाद चोल शासक एक बार फिर उठ खड़े हुए। विजयालय का शासन काल 850 से 871 ईस्वी तक रहा।.

4.आदित्य प्रथम
यह विजयालय का पुत्र था। 875 ईस्वी में यह गद्दी पर बैठा। 890 ईस्वी के लगभग इसने पल्लव राज अपराजिवर्मन को हरा कर तोड मंडल को अपने राज्य में मिला लिया। इस से पहले इसने अपराजिवर्मन की पांड्या शासक वरगुण को परास्त करने में सहायता की थी। मगर कालांतर पर आदित्य प्रथम ने उसकी हत्या कर दी। आदित्य प्रथम के मरने तक काल हारती और मुद्रा तथा दक्षिण के कावेरी तक का सारा जनपद चोलो के शासन में आ चुका था। अतः आदित्य प्रथम ने 875 ईस्वी से 907 ईस्वी तक शासन किया।.

5.प्रांतक प्रथम
इसने अपने शासन काल में पांड्या नरेश राजसिंह द्वितीय पर आक्रमण कर पांडियो की राजधानी मदुरै पर अपना अधिकार कर लिया। इस हार का बदला लेने के लिए पांड्या नरेश ने श्री लंका के शासक से सैनिक सहायता लेकर प्रांतक के खिलाफ युद्ध किया,जिस प्रांतक में सुदूर दक्षिण के युद्ध में व्यस्त था। इसके बावजूद भी वह प्रांतक को नही हरा पाया। कांची के पल्लव सामंतो ने भी अपनी विलुप्त प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए प्रयास किया मगर चोल नरेश ने उन्हें कुचल डाला।.इसी के समय काल के दौरान राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतिय ने 940 से 968 ईस्वी के शासन काल के दौरान चोल शासको हराने के लिए विजय यात्रा प्रारंभ की कांची एक बार फिर राष्ट्रकुटो के अधीन हो गया। मगर कृष्ण तृतिय अभी भी संतुष्ट न था। उसने आगे बढ़ कर तंजोर राज्य पर आक्रमण किया जो उस समय काल के अनुसार चोल शासकों की राजधानी थी। अत: उसे हार का सामना करना पड़ा।.

इस प्रकार प्रांतक प्रथम ने 907 से 953 ईस्वी तक शासन किया।. प्रांतक प्रथम के बाद अगला शासक 6.गंडरादित्य हुआ इसने 953 से 956 ईस्वी तक शासन किया। उसके बाद 7.प्रांतक द्वितीय 956से 973 ईस्वी तक।.8.उत्तम चोल वंश  का अगला शासक हुआ।.इसमें सबसे योग्य प्रांतक द्वितीय था। यह सुंदर चोल के नाम से भी जनन जाता था। इसने अपने समकालीन पांड्या शासक वीर पांड्या को चेबूर के युद्ध के मैदान में पराजित किया।.इसका समय काल 956 ईस्वी से 973 ईस्वी तक का था।

9.राज राज प्रथम
यह अरिमोलि वर्मन प्रांतक द्वितीय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। इसके समय काल 30 वर्ष चोल साम्राज्य के सबसे गौरव शाली वर्ष थे।.इसने अपने पूर्वज प्रांतक प्रथम लौह एवं रक्त की नीति का पालन करते हुए राजराज की उपाधि ग्रहण की।.इसका समय काल 985 से 1014 ईस्वी तक रहा।. 

10.राजेंद्र प्रथम
यह राज राज प्रथम का पुत्र था। अपने विजय अभियान के प्रारंभिक समय में पश्चिमी चालुक्यों, पंड्यो एवं चेरो को पराजित किया।.इसके बाद 1017 ईस्वी में सिंहल (श्री लंका ) राज्य के विरुद्ध अभियान में उसने वहां के शासक महेंद्र पंचम की परास्त कर सम्पूर्ण सिंहल राज्य को अपने अधिकार में ले लिया।.इसकी उपलब्धियों के बारे में सही जानकारी (तिरुवालंगड) एवं (कंरदाई) अभिलेखों में मिलती है। सिंहल नरेश महेंद्र पंचम को चोल राज्य में बंदी बना के रखा गया और यही पर उसकी मृत्यु 1029 ईस्वी में हो गई।. सिंहल विजय के बाद राजेंद्र चोल ने उत्तरी पूर्वी भारतीय प्रदेशों को जीतने के लिए हरित सेना का इस्तेमाल किया। 

राजेंद्र प्रथम के सामरिक अभियानों का महत्वपूर्ण कारनामा था (उसकी सेना का गंगा नदी को पार कर कलिंग एवं बंगाल तक पहुंच जाना था।.)कलिंग में चोल शासकों ने पूर्वी गंग शासक मधुका मानव को पराजित किया। संभवत: इस अभियान का नेतृत्व विकाराम चोल प्रथम द्वारा किया गया था।.गंग घाटी के अभियान की सफलता पर राजेंद्र प्रथम ने गंगैंकोंण्ड चोल की उपाधि धारण की।.इस विजय की स्मृति में कावेरी नदी के तट पर गंगैंकोंण्डचोल नामक नईं राजधानी का निर्माण किया गया।.इसका शासन काल 1014 ईस्वी से 1044 ईस्वी तक का था।.
11.राजाधिराज
यह राजेंद्र प्रथम का पुत्र था और उतराधिकारी भी।.इसकी शक्ति का प्रयोग प्रधान तया उन विद्रोह को शांत करने में हुआ, जो उसके विशाल साम्राज्य में समय समय पर होते रहते थे।.विशेषतया पांड्या,चेर वंश और सिंघल यानी श्री लंका के राज्यो ने राजाधिराज के शासन काल में स्वतंत्र होनेबका प्रयास किया।.पर चोल शासक ने उन्हें बुरी तरह कुचल डाला।.सर्वप्रथम संघर्ष कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों नरेश सोमेश्वर प्रथम के आहविमल्ल को पराजित कर चालुक्यों की राजधानी कल्याणी पर अधिकार कर लिया।.इस विजय उपलक्ष्य के दौरान राजाधिराज ने अपना वीराभिषेक करवा कर विजय राजेंद्र की उपाधि धारण की।.

12.राजेंद्र द्वितीय
यह चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम का द्वितीय पुत्र था। और राजाधिराज का छोटा भाई।. कोप्पम के युद्ध में जब राजेंद्र द्वितीय का बड़ा भाई राजाधिराज,कल्याणी के शासक सोमेश्वर आहवमल्ल के द्वारा मारा गया। तब वंही रणभूमि में ही राजेंद्र द्वितीय ने अपने भाई का मुकुट सिर पर धारण कर युद्ध जारी रखा और (प्रकेसरी) की उपाधि धर्म की।.उसके समय में चोल चालुक्य संघर्ष अपनी चरम सीमा पर था।राजेंद्र द्वितीय ने कुंडल संगमम्म में चालुक्य सेना को पराजित किया था। सोमेश्वर प्रथम ने कुंडलसंगमम्म में पराजित होने के पश्चात् नदी में डूबकर आत्महत्या कर ली।.उसने अपनी लड़की का विवाह पूर्वी चालुक्य नरेश राजेंद्र के साथ किया था। इसका समय काल 1052 से 1064 ईस्वी तक रहा।.

13.वीर राजेंद्र
राजेंद्र द्वितीय के बाद उसका छोटा भाई वीर राजेंद्र गद्दी पर बैठा। इसने लगभग 1060 ईस्वी में कुंडलसंगमम्म के मैदान में अपने परंपरागत शत्रु पश्चिमी चालुक्यों को पराजित किया। इस विजय के उपलक्ष्य में वीर राजेंद्र ने तुंगभद्रा नदी के किनारे एक विजय स्तंभ को स्थापना करवाई।.पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य के खिलाफ एक अन्य अभियान में कम्पिल नगर को जीतने के उपलक्ष्य में करडिग ग्राम में एक और विजय स्तम्भ की स्थापन करवाई।.वीर राजेंद्र ने सोमेश्वर द्वितीय के छोटे भाई विक्रमादित्य षष्ठ,जो की वीर राजेंद्र के विरुद्ध था। के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर पश्चिमी चालुक्यों के साथ संबंधों के नए अध्याय की शुरुआत की।. 

14.अधिराजेंद्र
इसका समय काल 1070 ईस्वी में वीर राजेंद्र की मृत्यु के बाद प्रारम्भ होता है। यह चोल साम्राज्य की शक्ति को स्थिर रखने में असमर्थ रहा। अधिराजेंद्र शैव धर्म का अनुयायी था और प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य रामनुज से इतना द्वेष करता था कि रामानुज को उसके शासन काल में श्री रंगम छोड़ कर अन्यत्र चले जाना पड़ा। इसके शासन काल में सर्वत्र विद्रोह शुरू हो गया। जिसके परिणाम स्वरूप इसके राज्य के पहले ही वर्ष के शासन काल में इसको मृत्यु हो गई।.इसके साथ को विजयालय द्वारा स्थापित चोल राज वंश समाप्त हो गया।.इसके बाद का इतिहास चोल वंशी इतिहास में नाम से जाना जाता है।अधिराजेंद्र की मृत्यु के पश्चात राज्य में अशांति फैल गई। परस्थिति का फायदा उठा कर कुल तुंग प्रथम राज सिंहासन पर बैठा। 

15.कुलोतुंग प्रथम
यह चोल शासकों में सबसे पराक्रमी शासकों में से एक था। इसने चोल साम्राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित करने के कार्यों में अदभुत पराक्रम प्रदर्शित किया था। इसके पूर्व शासक अधिराजेंद्र के कोई संतान नहीं थी। इस लिए  चोल राज्य के राजसिंहासन पर वेंगी के चालुक्य राजा कुलोतुंग प्रथम को राजगद्दी पर बिठाया गया।.यह चोल राजकुमारी का पुत्र था। किंतु कुलोतुंग के शासन काल में चोलो की शक्ति कायम रही।.उसके दक्षिण के चालुक्य नरेश विक्रमादीत्य को पराजित किया। इसके बाद इसने विल्हण के कल्चुरी शासक यथक कर्णदेव को तथा 1100 ईस्वी में कलिंग नरेश अनंत वर्मा चोडगंग को पराजित किया। इसका समय काल 1070 ईस्वी से 1120 ईस्वी तक का था।. 

16.विक्रम चोल
यह कुलतुंग प्रथम का पुत्र था। पिता को मृत्यु के बाद यह राजगद्दी पर बैठा। विक्रमादित्य षष्ठ के मरने में बाद विक्रम चोल ने पुनह वेंगी पर अपना अधिकार कर लिया।.1133ईस्वी में उसने पश्चिमी चालुक्य नरेश सोमेश्वर तृतीय को पराजित किया।विक्रम चोल अपने पिता के आदर्शो और नीतियों के प्रतिकूल प्रवृति का शासक था। विक्रम चोल ने चितम्बरम के नटराज मंदिर को अपार दान दिया था इसने अकलक एवं त्याग समुद्र की उपाधियां धारण की। इसका शासन काल 1120 से 1133 ईस्वी तक का था।.17.कुलोतुंग द्वितीय

यह विक्रम चोल का पुत्र था। इसने चितंबरम मंदिर के विस्तार एवं प्रदक्षिणा पथ के स्वर्ण मंडित करने के कार्य को जारी रखा। चोल राज्य वंश के इस शासक ने चितम्बरम मंदिर में विराजमान गोविंदराज की मूर्ति को समुद्र में फिकवा दिया।.इस शासक की कोई राजनीतिक उपलब्धि नहीं थी,कुलोतुंग द्वितीय और उसके सामंतो ने (ओट्टाकुन) शेक्किलर को और कंबल को संरक्षण दिया था।.कुलतुंग ने कुंभ कोथम के निकट कम्पोरेशवर मंदिर का निर्माण करवाया था।.अतह इसका शासन काल 1133 से 1150 ईस्वी तक का था।.

18.राजराज द्वितीय
इसके समय काल में इसके चारो ओर शक्तिशाली सामांतो का उदय हुआ। इसका राज्य सम्पूर्ण तेलगु प्रदेश,कोगुनाद के अधिकांश भाग तथा गडग्वाडी के पूर्वी भाग तक फैला हुआ था।.इसका कोई पुत्र नहीं था। 1166 ईस्वी में इसने विक्रम चोल के पुत्र राजाधिराज को अपना युवराज नियुक्त किया। इस शासक ने लगभग 1150 से 1173 ईस्वी तक शासन किया।.

19.राजाधिराज द्वितीय 
इसके समय काल में पांड्या वंश में राजगद्दी को लेकर कुलशेखर और वीर पांड्या के बीच संघर्ष हुआ। राजा धीराज ने वीर पांड्या का पक्ष लिया। और कुल शेखर का समर्थन श्री लंका के राजा प्राक्रम बाह ने किया।अतह राजाधिराज को सफलता मिली इसने वीर पांड्या को पांड्या वंश का राजा बनाया।.परन्तु इससे चोलो को कोई लाभ नही हुआ।.

20 कुलोतुंग तृतिया
यह राजधिराज का उतराधिकारी था। परंतु6राजाधिराज के साथ उसका संबंध अज्ञात है। यह चोल वंशबका अंतिम महान शासक था। 1182 ईस्वी में इसने वीर पाण्ड्या को पराजित किया तथा उसे अपनी अधीनता में रहने के लिए बाध्य किया।.कुछ समय बाद पंड्या ने जयवर्मन कुलशेखर के सहयोग से पुनः विद्रोह किया। 1205 ईस्वी में कुलोतुंग ने पांड्या राज्य पर आक्रमण किया,उसकी मदुरै के लुटा तथा पंड्यों के अभिषेक माडल को ध्वस्त कर दिया।.परन्तु कुल शेखर को उसका राज्य पुनः वापिस कर दिया गया। कुलोतुंग ने तेलगु चेरो को भी दबाकर अपने नियंत्रण में रखा।.अतः इसका शासन काल 1178 से 1218 ईस्वी तक का रहा।. 

21.राज राज तृतीय 
यह एक निर्बल राजा था। इसके शासन काल में राज्य में अराजकता फैल गई।.पांड्या नरेश सुंदर ने इसके राज्य पर आक्रमण कर इसको बंदी बना लिया।.1231 में हियासल सेना की सहायता से पुनः अपने स्वतंत्र राज्य पाने में सफल रहा। राज राज ने 1218 से 1256 ईस्वी तक शासन किया। परंतु इसका शासन काल मात्र का था।.

22.राजेंद्र तृतीय
यह चोल वंश का अंतिम राजा था। इसने चोलो की शक्ति का पुनरुद्धार करने करने का प्रयास किया। इसने पांड्यो पर आक्रमण करके सुंदर पांड्या द्वितीय को पराजित किया।. परंतु चालुक्य नरेश सोमेश्वर तृतिय ने पांड्या शासक का साथ दिया। जिसके परिणाम तह राजेंद्र अगले युद्ध में हार गया और इसने पांड्यो के साथ संधि कर ली।.1251 ईस्वी में पांड्या वंश का शासन जटा वर्मन सुंदर पांड्या नामक एक शक्तिशाली राजा के हाथ में आया। जिसने चालुक्य,होयसल तथा अन्य राज्योंके साथ चोलो पर भी विजय हासिल की।.1279 ईस्वी में राजेंद्र तृतिय को भी उसने अपने अधीन कर लिया। और राजेंद्र तृतिय ने पांड्या नरेश के सामंत के रूप में शासन करना जारी रखा।.1279 ईस्वी में पांड्या शासक कुलशेखर द्वारा पराजित कर राजेंद्र तृतीय की हत्या कर दी गई। अतः चोल साम्राज्य का अंत हुआ। 

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