9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: राष्ट्रकूट वंश

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शुक्रवार, 31 मार्च 2023

राष्ट्रकूट वंश

rashtrakuta-dynasty

परिचय

मानखेट के प्राम्भिक शासकों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई है।.शायद यह शासक किसी अन्य शासक के अधीन शासन कर रहे थे।.जिसके परिणाम स्वरूप इनके कार्यों के महत्व नही दिया गया।.सर्वप्रथम शासकों में 1.दांति दुर्ग प्रथम का नाम सामने आता है। इतिहासकारों की जानकारी के अनुसार एक समय काल 650 से 670 ईस्वी का रहा होगा।.2.शासक इन्द्रपृच्छकराज का नाम आता है समय काल 670 से 690 ईस्वी तक था। 3.गोविन्द राज 670 से 690 ईस्वी तक का माना जाता है।.4.कर्क राज का समय काल 700 से 715 ईस्वी तक।.कर्क राज के तीन पुत्र थे।.जिसके कारण राष्ट्र कूट वंश दो भागो में विभाजित हो गया।.पहला भाग इन्द्र द्वितीय को मिला जिसका शासनकाल 715 से 735 ईस्वी तक का था।.शायद यह आगे चल कर किसी अन्य शासक द्वारा मारा दिया गया होगा।.

1.दांति दुर्ग
उपरोक्त सभी शासक किसी न किसी अन्य वंश के शासक का सामंत था।.मगर दांति दुर्ग ने स्वतंत्र राष्ट्र कूट शासन की नीव रखी।.नोट-यह इन्द्र की पत्नी तथा भावनागा नामक चालुक्य कन्या से उत्पन्न पुत्र था।.उसकी उपलब्धियों के विषय में,उसके समय काल में लिखित दशावतार 742 ईस्वी तथा समनगड़ का लेख 753 ईस्वी से जानकारी मिलती हैं। प्रारंभ में यह भी चालुक्य शासकों का सामंत था। इसका प्रमाण अरबों से लड़ा गया युद्ध है।.जिसका आदेश चालुक्य शासक राजा जनाश्रय पुलकेशीन ने दिया था।.तथा राजा जनश्रय पुलकेशिन के उत्तराधिकारी विक्रमादित्या ने ही अरबों से युद्ध में विजय हासिल करने के बाद दांति दुर्ग प्रथम को पृथ्वीवल्लभ और खड़वलोक की उपाधियों से सम्मानित किया था।.इसका शासन काल 735 से 756 ईस्वी तक का था।.

2.कृष्ण प्रथम
यह दांति दुर्ग का चाचा था।.क्युकी दांति दुर्ग को कोई संतान न थी।.जिसके परिणाम स्वरूप यह राजा बना।.यह एक साम्राज्य वादी शासक था और एक महान निर्माता भी था। राज्य रोहण के उपरांत ही इसने अपने साम्राज्य का विस्तार करना प्रारम्भ कर दिया।.इसने वेंगीय राज्य के शासक राहप्प को पराजित किया और उसकी पालि ध्वज पताका को छीन लिया।.इस विजय के उपरान्त कृष्ण प्रथम ने राजाधिराज की उपाधि धारण की।.और राजा राहप्प ने अपनी इस पराजय के बाद अपनी पुत्री शील भट्टारिका का विवाह कर्क प्रथम के छोटे पुत्र ध्रुव(धारा वर्ष) से किया,साथ में अपने साम्राज्य का बड़ा हिस्सा और जुर्माना दिया।1.कृष्ण प्रथम ने एलोरा नामक पहाड़ी पर विश्व प्रसिद्ध कैलाश मन्दिर का निर्माण करवाया।.यह प्राचीन भारतीय वास्तु एवं तक्षण कला का सर्वोच्च उदाहरण है। बताया जाता है कि यह मन्दिर एक ही पत्थर को काट कर बनाया गया है। पत्थर के बीच के भाग पर मंदिर का निर्माण किया गया।.इसकी शैली मामल्लपुरम के अनु प्रेरित द्रविड़ प्रकार की है।.अतः कृष्ण प्रथम का शासन काल 756 से 773 ईस्वी तक का था।.

3.गोविंद द्वितीय
यह कृष्ण प्रथम का बड़ा वाला पुत्र था। इसने अपने छोटे भाई ध्रुव को नासिक का राज्यपाल नियुक्त किया।.यह अपने पिता के सामान शक्तिशाली शासक था।.इसने अनेकों युद्ध लड़े।.परंतु इसका शासन काल ज्यादा समय तक नहीं चल पाया।.इसका समय काल 773 ईस्वी से 780 ईस्वी तक रहा।.

4.ध्रुव अथवा धारावर्ष
यह एक षड्यंत्र कारी शासक था।.दरअसल इसने अपने भाई गोविंद द्वितीय को मरवाया था।. राजधानी में अपनी शक्ति मजबूत करने के बाद इसने अपने भाइयों के सहयोगियों को मारना और दण्ड देना प्रारंभ किया।सर्वप्रथम धरावर्ष ने गड़गवाड़ के शासक राजा शिवमार द्वितीय पर आक्रमण किया तथा विजय हासिल करने के उपरान्त संपूर्ण सत्ता को राष्ट्रकूट साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया और अपने पुत्र स्तम्भ को वहां का शासक नियुक्ति किया।.इस प्रकार राष्ट्रकूट राज्य की दक्षिणी सीमा कावेरी नदी तक जा पहुंची।.1.इसके बाद ध्रुव ने कांची के पल्लव राज्य पर आक्रमण किया। उस समय वहां का शासक दन्ती वर्मा के हाथो में था। ध्रुव द्वारा पराजित होने के पश्चात पल्लव नरेश ने उसे हाथियों का उपहार दिया।.चालुक्य नरेश विष्णु वर्धन चतुर्थ ने उसके भाई गोविन्द द्वितीय की सहायता की थी।.जिसके परिणाम स्वरूप ध्रुव ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसे पराजित किया। इस युद्ध में उसे चालुक्य सामंत वेमुल वाड़ के राजा आश्केसार प्रथम ने ध्रुव को सहायता की थी।.ध्रुव ने कलिंग पर अधिकार कर लिया वहां के चालुक्य शासक ने ध्रुव की अधीनता स्वीकार काल ली।धारा वर्ष ने 780 से 793 ईस्वी तक शासन किया।.

5.गोविन्द तृतीय
यह ध्रुव के चार पुत्रो में से एक था। उसके चारा पुत्र1.कर्क 2.स्तम्भ 3.गोविन्द 4.इन्द्र आदि थे। कर्क अपने पिता के ही जीवन काल में मारा गया। ध्रुव अपने तीसरे पुत्र गोविन्द तृतीय की योग्यता और कर्मठता पर मुग्द था।.जिसके परिणाम स्वरूप अपना उत्तराधिकारी उसने अपने पुत्र गोविन्द तृतीय को ही बनाया। तथा स्तम्भ को गंगवाडी का और इन्द्र को गुजरात और मालवा का राज्यपाल नियुक्त किया।.गोविन्द तृतिया का समय काल 793 ईस्वी से 814 ईस्वी तक का था।.

6.अमोघ वर्ष प्रथम
यह गोविन्द तृतीय का पुत्र था। उसकी मृत्यु के बाद यह गद्दी पर बैठा।.गद्दी पर बैठने के दौरान वह अवयस्क था। अतः गोविन्द तृतिया को दिया गए वचन अनुसार गुजरात के वायसराय कर्क ने उसके संरक्षक के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया।.उसने मान्यखेट(हैदराबाद के समीप) एक नया नगर बसाया तथा अपनी राजधानी वहीं ले गया।.इसने कविराज मार्ग नामक कन्नड ग्रंथ की रचना करवाई।.आदि पुराण नामक ग्रंथ की भी इसके द्वारा करवाई गई।.यह अपने समय काल का विद्या और कला का सम्मान एवं संरक्षण कर्ता शासक था। कला संरक्षण रूप में अपने समय काल के सहशासक चंद्र गुप्त द्वितीय से भी आगे था अमोघ वर्ष। अमोघ वर्ष का शासन काल 872 से पहले 814 तक का रहा होगा।.

7.कृष्ण द्वितीय
यह अमोघ वर्ष प्रथम का पुत्र था। इसका युद्ध दक्षिण के चोलो के साथ हुआ। पहले चोलो से इसके संबंध मधुर थे। चोल नरेश आदित्य प्रथम के साथ कृष्ण द्वितीय की पुत्री का विवाह हुआ था। कन्नर नाम था आदित्य प्रथम के पुत्र का। इसका समय काल 914 से पहले 878 ईo तक का रहा होगा।

8.इन्द्र तृतीय
यह कृष्ण द्वितीय का पुत्र था।.इसका एक भाई जगतुंग था जिसकी मृत्यु पहले ही हो गई थी।

9.अमोघ वर्ष द्वितीय
जानकारी का अभाव अज्ञात कारणों से मृत्यु को प्राप्त हुआ।.यह इन्द्र तृतीय का पुत्र था और गोविंद चतुर्थ का भाई था।.यह मात्र 1 वर्ष ही शासन कर सका।.929 से 930 ईस्वी तक।.

10.गोविन्द तृतीय
ये एक दुष्ट एवं अत्याचारी शासक था इसने 939 से पहले 930 के प्रारंभ से शासन प्रारंभ किया। इस भीम द्वितीय चालुक्य शासक ने पराजीत किया।.

11.अमोघ वर्ष तृतिया
इसका वास्तविक नाम पडेग था। पहले वह त्रिपुरा में निवास करता था। यही से उसने मान्याखेट में प्रस्थान किया और मंत्रियों और सामंतो के सहयोग से936 ईस्वी में राष्ट्रकूट सिंहासन पर अधिकार कर लिया। इसने केवल तीन वर्षो तक शासन किया। अमोघ वर्ष तृतीय धार्मिक प्रवृत्ति का शासक था।अपने सेल भुतुग को वहां का राजा बनाया इस से पहले गंगवाड़ी के राजा राजमल को युद्ध में हराया। भूतुग कलांजर का तीसरा शासक बना।.युवराज के समय में ही इसने बुंदेलखंड में सैनिक अभियान प्रारंभ कर दिया था। इसका समय काल 939 से पहले 938 तक का रहा होगा।.

12.कृष्ण तृतीय
यह एक कुशल सैनिक और साम्राज्यवादी शासक था। राजा बनने के बाद कुछ वर्षों तक इसने अपनी आंतरिक स्थिति सुदृढ़ की। उसके बाद सर्वप्रथम चोलो के विरुद्ध सैनिक अभियान चलाया। 943 ईस्वी में अपने साले गंग नरेश भुतुग के साथ मिलकर चोलशासक प्रांतक पर विजय हासिल की और कांची और तंजोर पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।.कुछ समय बाद प्रांतक ने सैनिक संरक्षण करके फिर से युद्ध किया और उसका सहयोग युवराज राजा दित्य ने किया। चोल और राष्ट्र कूट के बीच युद्ध हुआ लगभग 949 ईoमें। शुरआत में चोल जीते,मगर बाद में गंगराज भूतुग और सेनापति माणलेर के मरने के बाद कृष्ण तृतिय ने चोलो को हराया ही नहीं जान से भी मार डाला। चोल राज्य को जीतने के बाद कृष्ण तृतीय रामे श्वरम तक जा पहुंचा। यहां उसने विजय स्तम्भ स्थापित किया। जिसके चलते उसका चोल राज्य उत्तरी भाग पर भी अधिकार हो गया। इसके साथ ही उसने पंडया,केरल तथा लंका के शासकों को भी पराजित किया।.1.इन सभी विजयो के उपरांत उसने उत्तरी भारत की ओर मुख किया। 10 वी सदी के मध्य तक इन्होंने कलंजर तथा चित्रकूट के दुर्ग के ऊपर अपना आधिपत्य स्थापित किया। जिस पर अमोघ वर्ष के समय काल में राष्ट्र कूटो का अधिकार था। इन दुर्गों में नियंत्रण करने में कृष्ण तृतीय का सहयोग चेदी नरेश मार सिंह ने किया था। यह भूतुग का उत्तराधिकारी था। इसके उपरांत कृष्ण ने मालवा के परमार शासक शियक को परास्त कर उज्जयिनी पर अपना अधिकार स्थापित किया।.

2.वेंगी राजा ताल द्वितीय राजा बना।.अम्म ने उसे मारकर पुनः राजगद्दी हासिल की। कृष्ण ने उसके सौतेले भाई दानार्ण का समर्थन किया और वेंगी में एक सेना भेजी 956 ईस्वी में इस सेना ने अम्म को पराजित किया। अतह कृष्ण तृतीय अपने वंश के योग्यतम शासकों में से एक था। कृष्ण तृतीय ने यद्धपि कांची के जीता था वे द्रविड़ राजाओं को नही हरा पाया और रामेश्वरम पर भी उसका अधिकार न था। वेंगि के कुछ क्षेत्रों पर उसका अधिकार था मगर संपूर्ण पर न था। वे केवल खेट एवं पल्लव राज्यो पर ही अपना नियंत्रण रख पाया और चोल राज्य पर भी अपना नियंत्रण रखने में सफल रहा।.3.रामेश्वरम में उसने कृष्णवेरर तथा गण्ड़मार्तण्ड़आदित्य के मंदिर का बनवाए जो सुदूर दक्षिण में उसकी विजय के प्रमाण है। इसके दरबार में कन्नड़ भाषा के कवि पोन्न निवास करते थे इसने की शांति पुराण की रचना की थी उसकी सभा का दूसरा विद्वान पुष्प दत्त था जिसकी रचना ज्वाला मालिनी कल्प है। उसने 967 ईस्वी तक शासन किया। इसने अकाल वर्ष,बल्ल नरेंद्र,पृथ्वी वल्लभ,कांचियुम तंजयमकोड(कांची तथा तंजोर का विजेता)की उपाधियां धारण कर रखी थी। इसने लगभग 939 से 967 ईस्वी तक शासन किया।.

13.खोट्टग
कृष्ण तृतीय का भाई शासक बना क्युकी इसको कोई संतान न थी। इसी की समयावधि में परमार नरेश सियक ने आक्रमण किया। 972 में सियाक ने खोट्टग को हराया.और मान्यखेट पर अपना अधिकार कर लिया। परमार नरेश सियक अपने साथ ढेर सारी कीमती संपत्ति लूट कर ले गया। 972 में ही इसके द्वारा खोट्टग की हत्या कर दी गई थी।.

14.कर्क द्वितीय
यह खोट्टग का उत्तराधिकारी और उसका भतीजा था। यह भी एक अयोग्य शासक था।.यह मात्र 2 वर्षो तक शासन कर सका। इसके समय काल में राष्ट्रकूट सामंतो ने विद्रोह किया। और विजापुर के सामंत तैलक द्वितीय ने उसके ऊपर आक्रमण कर इसे मार डाला। 975 ईस्वी के लगभग तैलक द्वितीय ने राष्ट्रकूट शासकों के सामंतो को समाप्त कर कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य वंश की स्थापना की। यह इस वंश का अंतिम शासक था।.

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