विदेशी उत्तराधिकारी
मौर्य काल के पतन के बाद मध्य एशिया से शक,पहलव व कुषाणौं ने भारत पर आक्रमण किया तथा एक बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।.1.डेमोट्रियस इसके राजवंश की दी मुख्य शाखाएं थी i.डेमोट्रियस वंश ii.युक्रेटाइड्रस वंश।.2.शक इनकी भी दो शाखाएं थी i.मथुरा के शक ii.नासिक के शक।.
3.पहलव वंश ।.4.कुषाण वंश।.
डेमोट्रियस वंश
1.डिमेट्रियस-I (189- 171 ई. पू.)
2.मिनाड़र (165-145 ई. पू.)
3.युक्रेटाइड्स वंश
4.शक वंश
नहपान (119-124 ई.)
मालवा उज्जैन के शक
रुद्रदामन(130-150 ई.)
यह उज्जैयिनी के शकों का सबसे प्रसिद्ध शासक था। ऐसा जूनागढ़ अभिलेख से (150ई.)मिली जानकारी से प्राप्त हुआ है।अभिलेख से यह भी पता लगा की उस समय काल के अनुसार सुविशाख वहां का राज्यपाल था जिसने सुदर्शन झील के बांध का पुनः निर्माण कराया था।.iरुद्रदामन व्याकरण,राजनीति,संगीत,व तर्कशास्त्र का पंडित था। मालवा के शकों में अंतिम शासक रुद्रसिंहIII त्रित्या था जिसे गुप्त शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने मारकर प्रथम बार मालवा क्षेत्र में व्याघ्र शैली में चांदी के सिक्के चलवाए।.
पहलव वंश
पार्थियन मध्य एशिया में ईरान से आए थे। भारत के प्रथम पार्थियन शासक माउस था इसका उल्लेख खरोष्ठी लिपि में मोय में मिलता है। भारत में पार्थियन साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मिथ्रोडेट्स-1 (171-130ई.पू.)था। परंतु इस वंश का प्रमुख शासक गौडोफर्निज था।.
गौडोफर्निज(20-41 ई.)
गौडोफर्निज के शासन काल का अभिलेख तख्त-ए-बाही(पेशेवार) से प्राप्त हुआ है। जिससे पता चला की इनकी राजधानी तक्षशीला थी। इनके शासन काल की सबसे प्रमुख घटना सेंट थामस नामक ईसाई द्वारा भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करना था। बाद में वह दक्षिण चला गया और मार डाला गया।.इस प्रकार भारत में ईसाई धर्म पहली सदी में आया।.
कुषाण वंश
कुषाण वंश के लोग मध्य एशिया के पश्चिमी चीन के युची जाति के लोग थे। 165 ई.पू.में इसके पड़ोसी कबीले हींग नू ने युचियो के नेता को मारकर उन्हें पश्चिमी चीन का क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इस प्रकार यह कबीला 2 शाखाओं में विभाजित हो गया 1.कनिष्क यूची 2.जेष्ठ युचि। कनिष्क यूची तिब्बत के एरिया किंटार्फ चले गए। और जेष्ठ युचि पश्चिम की ओर जहां इन्होंने बैक्ट्रिया,पार्थियो के शासकों को पराजित किया।.
i.कुजूल कड़फिसेस(15-65 ई.)
भारत पर प्रथम कुषाण शासक कुजुल कडफिसेस आक्रमण किया और पश्चिम और उत्तर के एरिया पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। उसने केवल तांबे के सिक्के चलवाए। इसे कुषाण वंश का संस्थापक माना जाता है।
ii.विम कडफिसेस(65-78 ई.)
कुजुल कडफिसेस Iके मृत्यु के बाद विम कडफिसेसII गद्दी पर बैठा। चीनी ग्रंथ हाऊ-हान-शू से पता चलता है की उसने तिएन चू की विजय हासिल की ।इसने तक्षशिला और पंजाब पर अधिकार कर लिया। ये भारत में कुषाण शक्ति का वास्तविक संस्थापक माने जाते है। इसने सोने और चांदी के सिक्के चलवाए। इसके द्वारा चलवाए गए सिक्के पर एक तरफ यूनानी लिपि है और दूसरी तरफ खारोष्ठी लिपि थी।.उसके सिक्को पर शिव की आकृति,नंदी बैल,त्रिशूल अंकित था। जो उसके शैव धर्म में आस्था को प्रदर्शित करता है। भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलाने का श्रेय विम कड़फिसेस को जाता है।.
iii.कनिष्क प्रथम(78-105ई.)
कनिष्क के राज्य रोहण की तिथि 78ई.भारत में शक संवत का सूचक है। कैनेड़ी के मतानुसार 58ई.पू.में ही चौथी बौद्ध संगिति हुई थी,कनिष्क के साम्राज्य की राजधानी पेशावर तथा मथुरा थी। बौद्ध संगति के अवसर पर ही कनिष्क ने विक्रम संवत् को प्रारंभ किया। चीन के शासक पान चाओ से युद्ध हुआ जिसमे पहले कनिष्क की पराजय हुई परन्तु बाद में कनिष्क की विजय हुई।.iv वासिष्क(102-106ई.)यह कनिष्क का पुत्र था। राजतरंगी में इन्हे जुष्क कहा गया है।v.हुविष्क (106-140 ई.)इसने कश्मीर में हुष्कपुर नामक नगर बारामुला के निकट स्थापना करवाई थी। यह शिव और विष्णु का उपासक था। इसके क्षेत्र से चतुर्भुजी विष्णु के सिक्के प्राप्त हुए है।vi.कनिष्क द्वितीय (140-145ई.)यह वासिष्ठ का पुत्र था इसने महाराजा धीराज और देवपुत्र की उपाधि धारण की। vii.वासुदेव ये कनिष्क वंश का अंतिम शासक था। यह विष्णु और शिव का उपासक था। ईरान के ससानीयन वंश के तथा पूर्व में नागभारशिव वंश का (कुषाण वंश) के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुषाण काल में सोने,तांबे के ही नहीं और चांदी के सिक्के भी चलाए थे।.
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