9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: मालवा का परमार वंश (उत्तर भारत राजवंश भाग 4)

बुधवार, 15 मार्च 2023

मालवा का परमार वंश (उत्तर भारत राजवंश भाग 4)

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प्रस्तावना

परमार राजवंश भारत में एक महत्वपूर्ण मध्ययुगीन राजवंश था जिसने विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी और मध्य भागों में। परमार वंश,जिसे प्रतिहार वंश के नाम से भी जाना जाता है,राजपूत मूल का था और उसने 8वीं से 11वीं शताब्दी तक भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मालवा क्षेत्र पर शासन किया,जो वर्तमान मध्य भारत में स्थित है और इसमें मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों के कुछ हिस्से शामिल हैं। परमार शासक कला, संस्कृति और वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाने जाते थे और उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान क्षेत्रीय संस्कृति के विकास में योगदान दिया।.

सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली परमार शासक राजा भोज थे,जिन्होंने 11वीं शताब्दी में शासन किया था। उन्हें शिक्षा और संस्कृति के प्रति उनके समर्थन और साहित्य,कविता और वास्तुकला सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए माना जाता है। प्रमारवंशी शासक संभवत: राष्ट्रकुटो या पुन: प्रतिहारो के सामंत थे। परमार वंश की स्थापना 10 शताब्दी के प्रथम चरण में उपेंद्र अथवा कृष्णराज नामक व्यक्ति ने की। धारा नामक नगरी परमार वंश की राजधानी थी। उपेंद्र के बाद कई छोटे छोटे शासक हुए इनमे वैरीसिंह प्रथम,सियक प्रथम,वक्पती प्रथम तथा वैरिसिंह द्वितीय के नाम मिलते है जिन्होंने 790-945 ई0 तक शासन किया।.

प्रमुख शासक

1.हर्ष अथवा सीयक -II (945-972) ई.
इस वंश का प्रथम एवं शक्तिशाली शासक सीयक या श्री हर्ष था। राष्ट्रकुटो से इसका संघर्ष हुआ और खोट्टीटग को हराकर सीयक ने उसकी संपत्ति को लूटा। मंजुधारा ने अपने नाम पर मंजू सागर नामक तालाब का निर्माण करवाया था। परमारों की प्रारंभिक राजधानी उज्जैन थी। जो बाद में धारा यानी मध्य प्रदेश स्थानांतरित की गई। राजा सियाक को परमार वंश के सबसे शुरुआती शासकों में से एक माना जाता है। कुछ प्राचीन शिलालेखों और ऐतिहासिक ग्रंथों में उनका उल्लेख है,लेकिन उनके शासनकाल और उपलब्धियों के बारे में विस्तृत जानकारी दुर्लभ है। ऐसा माना जाता है कि राजा सियाक का शासनकाल 9वीं शताब्दी में शुरू हुआ था,

संभवतः 9वीं शताब्दी के मध्य के आसपास।.परमार कला,संस्कृति और वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाने जाते थे। उन्होंने मध्य भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने शासन के दौरान क्षेत्रीय संस्कृति के विकास में योगदान दिया। जबकि राजा सियाक को परमार राजवंश के प्रारंभिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में पहचाना जाता है,उनके शासनकाल की सीमा और विशिष्ट उपलब्धियों को अच्छी तरह से प्रलेखित नहीं किया गया है। जैसे-जैसे अधिक ऐतिहासिक शोध किए जाते हैं और नए निष्कर्ष सामने आते हैं,तो हम राजा सियाक के शासनकाल और परमार राजवंश के व्यापक संदर्भ में उनके महत्व की बेहतर समझ प्राप्त कर सकेंगे।.

2.वाक्पति मुंज(992-998ई.)
सीयक के दो पुत्र मुंज और सिंधुराज थे। इनमे प्रथम उनका दत्तक पुत्र था। लेकिन सीयक के बाद वही गद्दी पर बैठा। इतिहास में वाक्पति मुंज उत्प्लराज राज के नाम से भी प्रसिद्ध है। सीयक को कोई पुत्र नहीं था। संयोगवश उसे एक मुंज घास में पड़ा एक नवजात शिशु मिला। सीयक उसे उठाकर घर लाया तथा पालन पोषण करके बड़ा किया। उसकी अपनी पत्नी से सिंधुराज नामक पुत्र उत्पन्न हो गया। किंतु वह अपने दत्तक पुत्र से सबसे ज्यादा प्रेम करता था जिसके कारण वश सीयक ने स्वयं के पुत्र को उतराधिकारी न बना कर उसे बनाया। 

मुंज में पड़े मिले होने के कारण उसका नाम मुंज पड़ा।.मुंज ने कल्चुरी शासक युवराज द्वितीय को हराकर उसकी राजधानी त्रिपुरी को लुटा। मुंज राष्ट्रकुट सेनाओं द्वारा पराजित किया गया तथा बंदी बना लिया गया। तैल ने नर्मदा नदी तक परमार राज्य के दक्षिण भाग पर अधिकार कर लिया। उसने कारागार में परमार नरेश मुंज का वध करवा दिया। अपनी राजधानी में उसने मुंजसागर नामक एक तालाब बनवाया तथा गुजरात में मुंजपुर नामक नए नगर की स्थापना करवाई। इसकी प्रमुख उपाधियां श्री वल्लभ,पृथ्वी वल्लभ,अमोघवर्ष थी।.

3.सिंधुराज(998-1000ई.)
मुंज के पुत्र नही थे। अतः उसकी मृत्यु के बाद उनका छोटा भाई सिंधुराज शासक बना । उसने कुमारनारायण तथा साहसाण्ड उपाधियां धारण की। उसका समकालीन शासक चालुक्य नरेश स्त्याश्रय था। अनुग्रहित नागशासक ने सिंधुराज के साथ अपनी कन्या शशिप्रभा का विवाह कर दिया। सिंधुराज ने हुण्नो का दमन कर दिया। गुजरात के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम के पुत्र चामुण्डा राज के द्वारा सिंधुराज पराजित हुआ।.

4.राजा भोज (1010-1055ई.)
राजा भोज या भोज राजा के नाम से भी जाना जाता है,एक महान शासक थे वह एक प्रमुख राजा थे जिन्होंने 11वीं शताब्दी के दौरान मालवा क्षेत्र में शासन किया था,जो वर्तमान मध्य भारत में स्थित है। राजा भोज को शिक्षा,साहित्य और कला के संरक्षण के लिए महत्वपुर्ण माना जाता है।वह न केवल एक कुशल शासक और योद्धा थे बल्कि एक महान विद्वान और कवि भी थे।अपने शासनकाल के दौरान,उन्होंने क्षेत्रीय संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया और विभिन्न बौद्धिक गतिविधियों का समर्थन किया।.अन्य नाम भोजपरमार यह सिंधु राज का पुत्र था। एक अभिलेख के अनुसार उसने स्वयं को सार्वभौम कहा है।

 उदेपुर प्रशस्ति में उसे कैलाश से मलय पर्वत का स्वामी बताया गया है। भोज अपनी विद्वता के कारण कविराज उपाधि से भी प्रख्यात है। उसने द्वारा लिखित चिकित्सा शास्त्र पर आयुर्वेद सर्वस्व एवं स्थापत्यशास्त्र पर समरांगन सूत्रधार विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन सभी का अतिरिक्त सरस्वती कंठाभरण सिद्धांत संग्रह योगसूत्रवृंति राजमातृणड विद्याविनोद,युक्तिकल्पतरु,चारुचर्चा आदित्य प्रताप सिद्धांत प्रमुख है।.

राजा भोज के कुछ महत्वपूर्ण योगदानों में शामिल हैं

1.साहित्यिक संरक्षण राजा भोज स्वयं एक महान विद्वान माने जाते थे और अपने दरबार में कवियों,लेखकों और विद्वानों का समर्थन करते थे।उन्होंने साहित्यिक कृतियों के निर्माण को प्रोत्साहित किया और संस्कृत साहित्य के विकास में योगदान दिया।.
2.सांस्कृतिक योगदान उनके शासन के तहत,मालवा में सांस्कृतिक पुनर्जागरण हुआ और उनका दरबार कला और बौद्धिक गतिविधि का केंद्र बन गया।
3.वास्तुकला राजा भोज को अपने शासनकाल के दौरान कई मंदिरों और अन्य वास्तुशिल्प चमत्कारों के निर्माण या नवीनीकरण का श्रेय भी दिया जाता है।

4.कानूनी और प्रशासनिक सुधार कहा जाता है कि राजा भोज एक न्यायप्रिय और योग्य प्रशासक थे। उन्होंने अपनी प्रजा का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कानूनी व्यवस्था और शासन में सुधार लागू किए।भोज ने धारा नगरी का विस्तार किया और वंहा भोजशाला के रूप में प्रसिद्ध एक विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई और उसमे वाग्य देवी की प्रतिमा की स्थापना करवाई। इस भोज शाला की दीवारों के प्रस्तर खण्डो पर आज भी संस्कृत श्लोक अभिलिखित है।.अपने नाम पर उसने भोजपुर नगर बसाया और एक बड़े भोजसर नामक तालाब को निर्मित करवाया। चितौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर की स्थापना करवाई। आईने अकबरी के वर्णन के आधार पर माना जाता है की उसके राजदरबार में 500 विद्वान थे। भोज के दरबारी कवियों में भास्कर भट्ट,दामोदर मित्र,धनपाल आदि प्रमुख कवि थे।.

2 टिप्‍पणियां:

RAJPUTANA​ ITIHAS VANSHAVALLI ने कहा…

बहुत सुंदर ऐतिहासिक जानकारी खूब खूब आभार। ।नेतसिह सोढा राजपूत कच्छ

RAJPUTANA​ ITIHAS VANSHAVALLI ने कहा…

बहुत सुंदर ऐतिहासिक जानकारी खूब खूब आभार। ।नेतसिह सोढा राजपूत कच्छ

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