9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: कांची का पल्लव वंश

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मंगलवार, 28 मार्च 2023

कांची का पल्लव वंश

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कांची का पल्लव वंश

परिचय

प्रारम्भ में पल्लव सात वाहन वंश के अधिनस्त शासन करते थें।.लेकिन छठी सदी में सातवाहन वंश के विघटन के साथ ही कदंब,अभिर,वाकटक,वंशों की भांति पल्ल्वो ने भी अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली।.

1.सिंह विष्णु

यह पल्लव वंश का प्रमुख शासक एवं संस्थापक था।.सिंह वर्मन इसके पिता थे।.लेकिन इसके पिता सात वाहन वंश के सामंत थे जिसके कारण उन्हें पल्लव वंश का संस्थापक कहना उचित नहीं होगा।.इसने मम्मलपुरम नगर में आदि वराह गुहा मन्दिर का निर्माण करवाया।.इस मन्दिर में सिंह विष्णु और उसकी दो रानियों को मूर्तिया भी स्थापित है।.सिंह विष्णु एक शक्ति शाली राजा था।इसने चेर,चोल,पांड्या,मलय,मालवा,कलभ्र, और सिंघल के राजा को युद्ध में पराजित किया।.इसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इसके साम्राज्य का विस्तार कावेरी नदी के किनारे तक विस्तृत था।.लगभग पूरे तमिल पर इसका शासन था।.अपने पराक्रम के चलते इसने अवनि सिंह जैसी उपाधियां भी धारण की।.सिंह विष्णु ने लगभग 575 से 600 ईस्वी तक शासन किया।.

2.महेंद्र वर्मन

यह सिंह वर्मन का उत्तराधिकारी था और बहुमुखी प्रतिभा का धनी था।.इसके समय काल में बादामी चालुक्य पुलकेशीन द्वितीय ने पल्ल्वों पर आक्रमण किया।.इसके समय काल से प्रारम्भ यह युद्ध संघर्ष कई पीढ़ियों तक चलता रहा।.अपनी प्रतिभा शक्ति के कारण महेंद्र वर्मन ने i.विवित्रचित,ii.मत्त विलास,iii.गुणभर,iv.चैत्याकारी,v. शत्रुमल्ल,vi.ललितांकुर, vii.अवनि भाजन, viii.संकीर्ण जाति की उपाधियां धारण की।.इसका समय काल 600से 630 ईस्वी तक का था।.

3.नरसिंह वर्मनप्रथम

यह महेंद्र वर्मन का पुत्र था।.यह अपने समय काल का सर्वाधिक शक्ति शाली शासक था।.क्युकी इसने चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय को युद्ध में तीन बार पराजित किया था।.तीनों युद्ध का नामकरण इस प्रकार है,i.परियाल ka युद्ध,ii.शुरमार का युद्ध,iii.मणि मगंगलम का युद्ध।.इसके साथ ही इसने वातापि कोण्ड, महामल्ल या माम्मल की उपाधियां भी धारण की।.वातापी कोण्ड का अर्थ यानी वातापि को जीतने वाला है।.इसके समय काल में लगभग 641 ईस्वी में चीनी यात्री हेनसांग कांची आया। उसने कांची के राजा और प्रजा के साथ -साथ पल्लव प्रदेश के भी प्रशंसा करते हुए कांची को रत्नों का शहर कहा।.

1.इसने कई सारे मंदिरो का निर्माण करवाया जिनमें से धर्मराज मन्दिर अब भी वहां विद्ममान है। इसके साथ ही नरसिंह वर्मा ने महामल्लपुरम अथवा महाबलिपुरम नामक नए नगर की स्थापना भी करवाई।.2.इसने द्रविड़ शैली के जिस रूप का आरम्भ किया उसे माम्म्मल शैली कहते है।.जोकि उसके नाम के आधार पर ही रखा गया है।.इसने लगभग 630 से 668 ईस्वी तक शासन किया।.

4.महेन्द्र वर्मन द्वितीय

यह मात्र दो वर्ष तक ही शासन कर सका। क्युकी पल्लव शासक पुलकेशिन द्वितीय के पुत्र विक्रमादित्य प्रथम ने युद्ध में इसकी हत्या कर दी। जोकि पल्लव और चालुक्य शासकों की पुश्तैनी दुश्मनी का नतीजा था।.इसने लगभग 668 से 670 ईस्वी तक शासन किया।.

5.परमेश्वर वर्मन प्रथम

यह महेंद्र वर्मन का उतराधिकारी था क्युकी इसने महेंद्र वर्मन की मृत्यु के बाद राजगद्दी हासिल की।.इसका समकालीन शासक चालुक्य नरेश विक्रमादित्य प्रथम था।.जिसने महेंद्र वर्मन द्वितीय की हत्या की थी।.परमेश्वर वर्मन प्रथम एक ज्ञानि और विद्या प्रेमी और एक वीर शासक था।.इसने कांची को चालुक्य नरेश विक्रमादित्य प्रथम की अधिनस्तता से मुक्त करवाया।.इसके साथ ही इस ने मम्म्मलपुरम नगर में गणेश मन्दिर का निर्माण करवाया।.विद्या प्रेमी होने के कारण परमेश्वर वर्मन प्रथम ने विद्याविनित और पल्लव महेश्वर की उपाधियां धारण की।.परमेश्वर वर्मन प्रथम ने 670 से 700 ईस्वी तक शासन किया।.

6.नरसिंह वर्मन द्वितीय

परमेश्वर वर्मन प्रथम के समय काल में पल्लव साम्राज्य की शक्ति काफी बढ़ गई थी। अतः सातवी सदी के अंत में परमेश्वर वर्मन की मृत्यु के बाद नरसिंह वर्मन द्वितीय गद्दी पर बैठा।. इसका समय काल शांति अवस्था का समय काल था जिसके परिणामस्वरूप इसने महत्वपूर्ण मन्दिर और विश्व विद्यालय का निर्माण करवाया।.कांची का कैलाश नाथ मन्दिर,राज सिंह इश्वर मन्दिर,व इरावतेश्वर के विशाल मन्दिर और माम्म्लपुरम के कई प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया।.1.इसके साथ ही नरसिंह वर्मन द्वितीय ने कांची में घटिका संस्कृत विश्व विद्यालय की स्थापना भी करवाई।.720 ईस्वी के समय काल के मध्य नरसिंह वर्मन ने एक दूत मण्डल को चीन भेजा ।.और सर्वप्रिय,आगम प्रिय, शंकभक्त,राजसिंह की उपाधियां धारण की।.700 से 728 ईस्वी तक उपरोक्त शासक ने शासन किया।.

7.परमेश्वर वर्मन द्वितीय

इसे चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय से न चाहते हुए भी संधि करनी पड़ी।. विरोध करने पर गंग शासक जो की चालिक्यो के सामंत थे,ने परमेश्वर वर्मन की युद्ध में हराकर हत्या कर दी।.इस प्रकार परमेश्वर वर्मन ने मात्र तो वर्ष शासन करते हुए 728 से 730 ईस्वी तक शासन किया।.

8.नन्दी वर्मन द्वितीय

यह मात्र 12 वर्ष की अल्प आयु में शासक बना।. दरअसल परमेश्वर वर्मन द्वितीय की मृत्यु के साथ ही कांची राज्य में गृह युद्ध प्रारम्भ हो गया।. राज्य में गृह युद्ध की समाप्ति में लिए लिए ही इसे 12 वर्ष की अल्प आयु में राजा बनना पड़ा।. नन्दी वर्मन पल्लवो की दूसरी शाखा (यानी सिंह विष्णु के भाई भीम वर्मन का वंशज था।) और हिरण्य वर्मन का पुत्र था।.एक बालक होने के बावजूद भी इसके शासन काल ने कांची को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त कराया।.750 ईस्वी में राष्ट्रकूट शासक दांति दुर्ग ने कांची पर आक्रमण कर के अपना आधिपत्य स्थापित किया, लेकिन शांति समझौते के बाद दांति दुर्ग ने अपनी पुत्री रेवा का विवाह,नन्दी वर्मन द्वितीय के साथ करके अपने साम्राज्य वापिस लौट गया।.विवाह के बावजूद भी पल्लवो और राष्ट्रकुटो के बीच संघर्ष जारी रहा।.अतः730 से 800 ईस्वी तक नन्दी वर्मन द्वितीय ने शासन किया।.

9.दांति वर्मन

राष्ट्र कूट राजकुमारी रेवा का यह पुत्र था। जो आगे चलकर पल्लव नरेश की गद्दी पर बैठा। इसे राष्ट्र कूट नरेश दांति दुर्ग का महासमान्ताधिपति कहा गया।.इसके समय काल में पांड्या नरेश वर गुण प्रथम ने तथा उसके पुत्र श्री मार ने कांची पर आक्रमण किया और कावेरी क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया। यह वैष्णव धर्म का अनुयायी था।.इसे वैलूर पाल्यम अभिलेख में इसे विष्णु का अवतार कहा गया हैं।.तमिल अभिलेख के अनुसार इसने पल्लव कुलभूषण तथा भारद्वाज गोत्रिय की उपाधियां धारण कर रखी थी।. दांति वर्मन का समय काल 800 से 846 ईस्वी तक रहा।.

10.नन्दी वर्मन द्वितीय

यह दांति वर्मन का पुत्र था। नन्दी वर्मन द्वितीय ने अपने वंश की पुरानी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त किया।.इसने कावेरी क्षेत्र पर पुनः अपना अधिकार सुदृढ़ कर लिया।. गंग शासकों ने इसकी अधीनता स्वीकार की।.राष्ट्रकुटो के साथ इसका पुनः मैत्री सम्बंध स्थापित हुआ।.इसने 846 से 869 ईस्वी तक शासन किया।.
11.इसके बाद इसका पुत्र नन्दी वर्मन का पुत्र तृतीय शासक बना।.(जानकारी का अभाव) इसका शासन काल 869 तक ही सीमित रहा।.

12.नृपतुंग

यह नन्दी वर्मन तृतीय का पुत्र था। यह एक विद्याप्रेमी और दानी शासक था।.इसके कार्य काल के आठवें वर्ष में बहुर दान पत्र अभिलेख अनुसार इसके मंत्री ने एक विद्या स्थान को तीन गांव ही दान में दे दिए थे। इस विद्या स्थान पर वेद-वेदांग,मीमांसा,न्याय पुराण,तथा धर्म शास्त्रों के अध्ययन की समुचित व्यवस्था थी।.इसने पांड्यो को आरचित नदी के तट पर हराया।.वाड़ राज वंश के लोग इसकी अधीनता स्वीकार करते थे।.नृपतुंग ने लगभग 869 से 880 ईस्वी तक शासन किया।.


13.अपराजित यह कांची के पल्लवो का अंतिम प्रमुख शासक था। इसने गंग नरेश पृथ्वी पति की तथा चोल नरेश आदित्य प्रथम की सहायता से पांड्या वंशी शासक वरगुण द्वितीय को श्री पुरंबियम के युद्ध में पराजित किया।.930 ईस्वी के समय काल में चोल नरेश आदित्य प्रथम जोकि इसका मित्र था ने इसकी हत्या कर दी।.
14.इसके बाद नन्दी वर्मा चतुर्थ शासक बना जो की चोलो का सामंत था।
15.नन्दी वर्मा बाद कम्प वर्मा शासक बना।.अंत में चोल शासकों ने इसे भी पराजित कर दक्षिण भारत में अपनी सम्पूर्ण सत्ता स्थापित की।.

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