9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: गुप्त साम्राज्य gupt samrajya

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मंगलवार, 14 मार्च 2023

गुप्त साम्राज्य gupt samrajya

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गुप्त साम्राज्य

कुषाण साम्राज्य के विघटन के पश्चात् जिस विकेंद्रीकरण के युग का प्रारम्भ हुआ वह चतुर्थ शताब्दी ईस्वी के परम्भ तक चलता रहा। गुप्ता साम्राज्य के प्रमुख शासक इस प्रकार है।1.श्री गुप्त 2.घटोत्कच गुप्त 3.चंद्रगुप्त प्रथम 4.समुद्रगुप्त 5.चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य 6.कुमारगुप्त प्रथम 7.स्कंदगुप्त स्कंद गुप्त के उत्तराधिकारी 8.पुरुगुप्त 9.कुमार गुप्त द्वितीय 10.बुद्धगुप्त 11.नरसिंहगुप्त बालादित्य 12.भानुगुप्त 13.कुमार गुप्त तृतीया 14.विष्णुगुप्त।.

1.श्री गुप्त 240-280 ई0
एक जातक कथा अनुसार बनारस के एक राजा के पुत्र का नाम गुप्त था। और गुप्त वंश के प्रथम राजा का नाम गुप्त था। श्री की उपाधि उसने राजा बनने के बाद धारण की थी। पूना स्थित ताम्रपत्र अभिलेख से यह पता चला की श्री गुप्त का उल्लेख गुप्त वंश के आदिराज के रूप में किया गया है। लेखो में उसका गोत्र शरण बताया गया है। श्री गुप्त ने महाराजा की उपाधि धारण की। इत्सिंग के अनुसार श्री गुप्त ने मगध में एक मंदिर का निर्माण करवाया तथा मंदिर के लिए 24 गांव दान में दिए थे। नोट- कहा जाता हैं की श्री गुप्त स्वतंत्र शासन नहीं चलता था। वे किसी के अधीन रहकर शासन करता था।.

2.घटोत्कच गुप्त 280-318 ई0
यह श्री गुप्त का उत्तराधिकारी था। इसने भी महाराज की उपाधि धारण की थी। रिध्दपुर ताम्रपत्र अभिलेख में  घटोत्कच को गुप्त वंश का प्रथम राजा बताया गया है। इसका राज्य संभवत- मगध के सीमावर्ती क्षेत्र तक ही सीमित था उसने लगभग 319 ई0 तक शासन किया।.

3.चंद्रगुप्त l319-350 ई0
इसे गुप्त वंश का प्रथम वास्तविक संस्थापक माना जाता है। गुप्त वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक जिसने महाराजा धीराज की उपाधि धारण की। इन्होने पाटिलपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। चंद्र गुप्त प्रथम ने 319 ई 0 में गुप्त संवत की स्थापना की जिसका उल्लेख मथुरा अभिलेख में मिलता है। चंद्रगुप्त प्रथम पहला शासक था जिसने सोने का सिक्का चलवाया जिसके एक और चंद्रगुप्त और कुमारदेवी का चित्र था और दूसरी ओर लक्ष्मी का चित्र था। चन्द्र गुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया। चंद्र गुप्ता प्रथम के पश्चात् उसका पुत्र समुद्र गुप्त शासक बना।.

4.समुद्र गुप्त 350-375 ई0
समुद्र गुप्त,गुप्त वंश का एक महान योद्धा। तथा कुशल सेनापति था। समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ,प्राक्रमांक,अप्रतिरथ,व्याघ्र पराक्रम की उपाधियां धारण कर रखी थी। इन्ही कारणों से विंसेंट आर्थर स्मिथ ने अपनी अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया में समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन फ्रांस का शासक कहा था।.सम्राट अशोक शांति व अन आक्रमण नीति में विश्वास करता था तो समुद्र गुप्त हिंसा और विजय में विश्वास करता था। समुद्रगुप्त का साम्राज्य पूर्व में ब्रह्मपुत्र,दक्षिण में नर्मदा तथा उत्तर में कश्मीर की तलहटी तक विस्तृत था। प्रयाग प्रशस्ति की 19वी व 20वी पंक्तियो में दक्षिणापथ विजय का उल्लेख है। इन्होंने ने कुल 12 शासकों को हराया था। अंतिम शासक दक्षिण के कांची का पल्लव वंश का विष्णु गुप्त था।.

समुद्र गुप्त की प्रमुख 3नीतियां उसके समय काल में प्रचलित थी1.ग्रहण: यानी शत्रु पर अधिकार 2.मोक्ष: शत्रु को मुक्त कराना 3.अनुग्रह: राज्य लौटा कर शत्रु पर दया करना।.समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद रामगुप्त बहुत ही अय्याश शासक बना उसके समय काल में शकों ने हमला किया और विजय प्राप्त की ओर संधि के रूप में उन्होंने ध्रुव स्वामिनी यानी रामगुप्त की पत्नी की मांग की ओर राम गुप्त सहमत भी हो गया । जिसके परिणाम स्वरूप चंद्र गुप्त द्वितीय (रामगुप्त का  भाई) ने शकों को हरा कर अपने साम्राज्य की स्थापना की। और गुप्त वंश का नया शासक बना।.

5.चंद्रगुप्त ll विक्रमादित्य 375-451 ई0

चंद्रगुप्त द्वितीय के समय काल में गुप्त साम्राज्य ने अपना उच्चतम शिखर प्राप्त किया। चंद्रगुप्त द्वितीय का साम्राज्य पश्चिम में ग्रेट से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक विस्तृत था। चंद्र गुप्ता काल  साहित्य और कला का स्वर्ण युग था।इसने सिल्वर coin का सर्वप्रथम प्रचलन करवाया। चंद्र गुप्त के दरबार में 9 रत्न थे। चंद्र गुप्त द्वितीय ने,विक्रमादित्य,परमभागवत नाम की उपाधियां धारण कर रखी थी। इसके साथ ही उसके अन्य नाम देवगुप्त,देवराज,देवश्री थे।.चीनी यात्री (फहान) जिसके बचपन का नाम कुड था। राजा चंद्र गुप्ता द्वितीय के समय काल में ही भारत यात्रा पर आया था। 

उस समय काल में भारतीय सांस्कृतिक दशा का सुन्दर वर्णन फहान अथवा कुड़ के भ्रमण वृतांत में मिलता है। यद्धपि उसने समकालीन शासक का नाम उल्लेख नहीं किया है।(फाहांन ने बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन तथा इसकी यात्रा प्रारम्भ करने का मुख्य लक्ष्य भारतीय बौद्ध मंदिरों को देखना था। कुमार गुप्त (चंद्र गुप्त का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी था। कुमार गुप्त के गद्दी पर बैठने से पहले चंद्र गुप्त द्वितीय ने विवाह तथा युद्धों द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।.

i.नागवंश यह राजवंश मथुरा,अहिच्छन पद्मावती क्षेत्र में स्थित है। विक्रमादित्य ने नागवंश की राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह किया ।उससे एक कन्या बेभावती पैदा हुई।.
ii.वाकटक वंश यह लोग महाराष्ट्र प्रान्त में शासन करते थे। वाकटको का सहयोग प्राप्त करने के लिए चंद्रगुप्त ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का(वाक टक राजा रुद्रसेन से विवाह कर दिया। ) गुप्त वंश तथा  वाकटक वंश के एक दूसरे से जुड़ जाने से इनकी शक्ति बढ़ गई।.परिणाम स्वरूप इन्होने शको को जड़ से समाप्त कर दिया।.
iii.कदंब राजवंश कदंब राजवंश के लोग कर्नाटक में शासन करते थे। तालगुंड अभिलेख से पता चलता हैं की इस वंश के शासक ककुत्स वर्मन ने अपनी एक पुत्री का विवाह चंद्र गुप्त द्वतिया के पुत्र कुमार गुप्त प्रथम से कर दिया।.

6.कुमारगुप्त l415-455ई0
कुमारगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ किया तथा अश्वमेघ प्रकार की कुदराए चलाई। कुमारगुप्त के शासन काल में नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना की गई। कुमारगुप्त द्वारा जारी की गई मुद्राओं में गरुड़ के स्थान पर मयूर की आकृति अंकित की गई। कुमार गुप्त ने महेंद्रा दित्य की उपाधि धारण की।इसके अतिरिक्त मुद्राओं पे अंकित उसकी उपाधियां निम्नवत है। श्री महेंद्र, महेंद्रदित्या, महेंद्र सिंह,अश्वमेध महेंद्र आदि।.

7.स्कन्द गुप्त 455-467ई0
स्कन्दगुप्त,गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी शासक था। हूणो का गुप्त साम्राज्य पर अक्रमण इसके हि शासन काल में हुआ था जोकि एक महत्वपूर्ण घटना थी। श्वेत हूणो को पूर्वी हूण भी कहा जाता है। जिन्होंने हिंदू कुश पार कर गांधार प्रदेश पर कब्जा कर गुप्त साम्राज्य का अभियान पूरा किया । सकंदगुप्त पुत्र चक्रपति ने सुदर्शन झील के तट पर विष्णु मूर्ति स्थापित करवाई थी।.सकंद गुप्त की माता के बारे में कई अवधारणाएं है कुछ इतिहास कारको का माना है की स्कंद गुप्त की माता किसी छोटी जाति की थी। जिसकी वजह से भिटारी शिला लेख में उसकी दादी और परदादी का उल्लेख मिलता है मगर उसकी मां का अभिलेख नही मिलता। ii.इसके साथ ही कुछ इतिहासकार कहते है की यह सब बाते गलत है क्युकी सकंद गुप्त हुणो पर विजय हासिल करने के बाद अपनी मां से मिलने गया था। जिसके परिणाम तह खुशी के कारण उसकी मां की आंखें भर आई थी।.

दोस्तो इस घटना की तुलना भगवान कृष्ण और देवकी से की गई है। क्युकी श्री कृष्ण भी युद्ध विजय प्राप्त करने के बाद अपनी माता देवकी से मिलने गए थे। अतः यह घटना सकंद गुप्त की माता के विशेष प्रभाव को प्रदर्शित करती है।.बताते चले की रामगुप्त के शासन काल में गुप्त साम्राज्य के कुछ भाग पर हूणो ने शासन कर लिया जिसके परिणाम स्वरूप सकंद गुप्त को अपने प्रारंभिक समय में बड़ी लड़ाईयां लड़नी पड़ी थी। हूणो पे जीत हासिल करने के लिए सकंद गुप्त एक रात नग्न धरती पर  सोया और दूसरे दिन युद्ध हुआ। जीत के बाद अपनी माता से मिलने गया था।.

स्कन्द गुप्त द्वारा किए गए कार्य

i.हूणो पर विजय प्राप्त करने के बाद सभी राज्यों पर गवर्नर बिठाए गए। वर्तमान गुजरात के क्षेत्र से हुणो का  विद्रोह प्रारंभ हुआ था। जिसके कारण सकंद गुप्त ने सर्वप्रथम अपने विशेष गवर्नर प्राणदत्ता को वहा भेजा।.ii.गिरि नगर शहर (वर्तमान जीना गढ़ क्षेत्र) में अपने पुत्र चक्रपालित को मजिस्ट्रेट बनाया। चक्रपलित ने ही सुदर्शन झिल पर बने बांध का पुनः निर्माण करवाया और विष्णु मंदिर की स्थापना करवाई। यह बांध सर्वप्रथम चंद्र गुप्त द्वारा बनाया गया था।.iii. स्कंद गुप्त ने 5 प्रकार के सोने के सिक्के और 4 प्रकार के चांदी के सिक्को को चलाया था।.
सोने के सिक्के (iधनुर्धारी iiराजाकी रानी iii.छत्र iv.शेर का कातिल v घुड़सवार आदि चित्र अंकित थे।)
चांदी के सिक्के (i गरुण ii.सांड iii.अल्तार iv.मध्य देश आदि चित्र अंकित थे।)सिक्को का वजन 9.2 ग्राo था जबकि उसके पिता के समय काल के सिक्को का वजन 8.4ग्राo था।.

सकंद गुप्त के उतराधिकारी

8.iपुरुगुप्त 467- 476 ई0
यह कुमार गुप्त का प्रथम पुत्र था। और स्कन्द गुप्त का सौतेला भाई। स्कंद गुप्त की संतान न होने के कारण और उसकी मृत्यु के परिणाम स्वरूप उसकी संपूर्ण सत्ता पुरु गुप्त को मिली। क्युकी पुरुगुप्त वृद्ध अवस्था में गद्दी पर बैठा था जिसके वजह से उसका प्रभाव कम होने लगा और गुप्त साम्राज्य का पतन प्रारम्भ हुआ।.(परमार्थ कृत वसुबंधु जीवनवृत) के अनुसार पुरुगुप्त बौद्ध अनुयायी था।.
9.ii कुमार गुप्त द्वितीय
पुरुगुप्त का उतराधिकारी कुमार गुप्त हुआ। सारनाथ में गुप्त संवत् 154 अर्थात 473 ई0 में उसका अभिलेख मिला जो बौद्ध प्रतिमा पर खुदा हुआ था।.यह प्रमाणित करना मुश्किल है कि कुमार गुप्त किस्का पुत्र है।.
10.iii बुद्ध गुप्त
कुमार गुप्त की मृत्यु के बाद बुद्ध गुप्त शासक बना।

11.नरसिंह गुप्त (बालादित्य)
यह बुद्ध गुप्त का छोटा भाई था। 

12.भानु गुप्त 
नरसिंह गुप्त के बाद भानुगुप्त ने शासन संभाला।

13.वेन्या गुप्त
नालंदा में उसकी मोहर मिली है,जिस पर महाराजा धीराज अंकित है। इस जानकारी का मुख्य स्रोत गणैधर (बंगलादेश के कोमिल्ल्या से मिला ताम्र पत्र है) जोकि गुप्त संवत् 188 अर्थात 507 ईo का है।.

14.कुमार गुप्त तृतीय
यह नरसिंह गुप्त का पुत्र था  और यह गुप्त साम्राज्य का अंतिम शासक भी था।गुप्त साम्राज्य के पतन के मुख्य कारको की बात करे तो इनमे मुख्य तोर पर निम्नवत है।.
1. अयोग्य और निर्बल अधिकारी 
2. शासन व्यवस्था का संघात्मक स्वरूप 
3. उच्च पदों के अनुवांशिक होना 
4. परंतिया शासकों का विशेष अधिकार 
5. बाह्य आक्रमण
6. बौद्ध धर्म का प्रभाव  

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