9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: कन्नौज का गढ़वाल वंश (उत्तर भारत) भाग-2

मंगलवार, 14 मार्च 2023

कन्नौज का गढ़वाल वंश (उत्तर भारत) भाग-2

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1.कन्नौज का गढ़वाल वंश

प्रतिहार वंश के पतन के बाद कन्नौज और बनारस गहड़वाल वंश की स्थापना हुई।.इस वंश के शासक हिंदू धर्म को मानते थे।.गहड़वालो का प्रमुख निवास स्थान विंध्याचल का वन प्रान्त माना जाता है।इस वंश के प्रमुख शासकों की बात करे तो वे निम्नवत है।1.चंद्र देव 2.मदनपाल 3.गोविंद चंद्र 5.विजय चंद्रा6.जयचंद्र।.
 
2.चंद्रदेव 1080-110ई.
चंद्रदेव ने महाराजाधी राज की उपाधि धारण की। चंद्रदेव ने गहडवाल वंश की स्थापना की। गाहड़वाल शासकों को काशी नरेश के रूप में भी जाना था।क्युकी बनरास इनके राज्य के पूर्वी सीमा के निकट था। अभिलेखों में चंद्रदेव को परमभट्टरक,महाराजाधिराज,परमेश्वर उपाधियों से संबोधित किया।.

3.मदन पाल 1104-1114ई.

चंद्रदेव का पुत्र मदनपाल को तुर्क आक्रमणकारियो ने कन्नौज पर आक्रमण करके उसे बंदी बना लिया।उसके पुत्र गोविंद चंद्र ने काफी संघर्ष के बाद अपने पिता को मुक्त कराया।.

4.गोविंद चंद्र 1114-1155 ई.
इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसने आधुनिक पश्चिमी बिहार से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक का समस्त भाग अपने अधीन करके कन्नौज के प्राचीन गौरव को पुन:स्थापित किया।.उसने पालो को हरा कर मगध पे अपना शासन स्थापित किया,और मालवा पर भी अधिकार कर लिया। गोविंद चंद्र स्वयं बहुत बड़ा विद्वान था। गोविन्द चंद्र को उसके लेखों में विद्या विचार वनस्पति कहा गया है। गोविंद चंद्र की रानी के कुमार देवी के सारनाथ अभिलेख में(गोविंद चंद्र को बनारस को तुर्की अकर्मणकारियो से बचाने के कारण हारी का अवतार कहा गया है)।.

5.विजय चंद्रा 1155-1168ई.
गोविंद चंद्र का उतराधिकारी उसका पुत्र विजय चंद्रा था। इसके शासन काल में सेनवंश का शासक लक्ष्मण सेन ने आक्रमण किया था। किंतु वह विजय चंद्रा से पराजित ही गया। विजय चंद्र के ही शासन काल में गहड़वालो की स्थिति कमजोर होना प्रारम्भ हो गई थी।

6.जयचंद्र 1170-1194ई.
विजय चंद्र का पुत्र जयचंद्र गहडवाल वंश का अंतिम शासक था। भारतीय लोक साहित्य तथा कथाओं में वह राजा जयचंद्र के नाम से विख्यात है।उसका समकालीन दिल्ली तथा अजमेर का चौहान नरेश पृथ्वीराज तृतीय था। मुहम्मद गौरी को पृथ्वी राज पर आक्रमण करने के लिए जयचंद्र ने ही भड़काया था। मगर 1194 ई o में मुहम्मद गौरी ने जयचंद्र के राज्य पे आक्रमण किया तब जा कर जयचंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ। अंतिम युद्ध चंदावर(वर्तमान एटा जिला)में हुआ। जहां कुतुबुद्दीन ऐबक के नेतृत्व में 5 हजार सैनिकों का जयचंद्र की विशाल सेना से सामना हुआ। दुर्भाग्य वश हाथी पे सवार जयचंद्र की आंख में तीर लग जाने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई।.

2.दिल्ली का चौहान वंश

प्रमुख शासकों में दो से तीन लोगो का ही नाम आता है। चौहान वंश की अनेक शाखाएं है। जिनमें 7वी शताब्दी में वासुदेव द्वारा स्थापित शाकम्भारी के चौहान राज्य का इतिहास में विशेष महत्व है। 1अजयराज 2वाक्यपतिराज प्रथम 3 सिद्धराज 4 विग्रह राज द्वितीय अथवा विसलदेव 5 पृथ्वी राज तृतीय आदि।.

1.चाहन मान
चाहन मान नामक व्यक्ति द्वारा इस वंश की स्थापना की गई। इसी कारण इस वंश को चाहमान या चौहान कहा गया है। साहित्य ग्रंथों में पृथ्वी राज विजय तथा सुरजन चरित्र से पता चलता है चौहान शाकम्भरी नामक स्थानीय देवी की उपासना करते थे। शाकम्भरी नामक स्थान सांभर व अजमेर के निकट स्थित है।.1.इस वंश का प्रारंभिक इतिहास व वंश का ज्ञान विग्रह राज द्वितीय के हर्ष प्रस्तर अभिलेख तथा सोमेश्वर के समय के बिजौलिया प्रस्तर लेख से प्राप्त होती है। शासक अजय राज ने अजमेर नगर को बसाया था।.2.इसी वंश के प्रारंभिक नरेश कन्नौज के प्रतिहार शासकों के सामंत थे।10 शताब्दी के प्रारंभ में वाक्य पतिराज प्रथम ने प्रतिहारो से अपने को स्वतंत्र कर लिया। उसके पुत्र सिद्धराज ने अपने राज्य का विस्तार करके महाराजा धीराज की उपाधि धारण कर ली।.

2.विग्रह राज द्वितीय/विसलदेव
इनका समय काल 1153 से 1163 ई.तक रहा। हर्ष के लेख में लिखा हुआ है की उसने अपनी राज लक्ष्मी का उद्धार किया। उसने चालुक्य शासक मूलराज को पराजित किया। साथ ही भर्गूकच्छ  में आशापुरी देवी मंदिर का निर्माण कराया।.विग्रह राज ने परमारो के साथ मित्रता स्थापित करने के लिए परमार वंश की कन्या राजदेवी से विवाह किया।.

पृथ्वीराज तृतीय
इसका समय काल 1178 से 1192 ई.तक का रहा। इनके पिता का नाम सोमेश्वर था। पृथ्वी राज तृतीय दिल्ली की गद्दी पर बैठा।.
1.1182 ई. पृथ्वी राज का मुकाबला गुजरात के भीम द्वितीय से हुआ,युद्ध की समाप्ति शांति समझौते के साथ हुई।.1182 ई.में ही उसने चंदेल शासक प्रमादिदेव को अपने अधीन कर लिया।.2.पृथ्वी राज के समय में ही मोहम्मद गोरी ने कई आक्रमण भारत पे किए। 1178ई.में मोहम्मद गोरी को चालुक्य वंश के नरेश मूलराज ने परास्त किया।.3.1191 ई.में तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वी राज तृतीय ने मोहम्मद गोरी को पराजित किया।लेकिन तराईन के द्वितीय युद्ध 1192 ई.में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वी राज को हराकर उसकी हत्या कर दी।.तराईन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास के निर्णायक युद्धों में गिना जाता है। इसने भारतीय भूमि पर मुस्लिम सत्ता स्थापित होने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।.5.चंद्रबरदाई उसका राजकावी था जिसका ग्रंथ पृथ्वीराज रासो हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।.पृथ्वी राज के बाद उसका भाई हरिराज कुछ समय के लिए राजा बना। लेकिन मोहम्मद गोरी के अधीन।.जिसे पुनः हासिल करने के लिए अजमेर पर चौहानो ने पुन:आक्रमण किया मगर मोहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे पराजित किया और इसके साथ ही 1194 ई.में मुस्लिमो का अजमेर पर स्वतंत्र अधिकार स्थापित हुआ।.

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