9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: बादामी या कर्नाटक के चालुक्य वंश

सोमवार, 27 मार्च 2023

बादामी या कर्नाटक के चालुक्य वंश

badami-chalukya

परिचय

इनकी उत्पत्ति कर्नाटक के बीजापुर जिले का वातापी(आधुनिक बादामी स्थान)माना जाता है।.महाकुट अभिलेख से पता चलता है कि पुलकेशिन प्रथम के पहले जयसिंह और रणराग के नाम मिलते है।.मगर अन्य कोई जानकारी या उपाधि नही हासिल की थी।.जिससे पता चला की वह अपने शासन को सर्वप्रथम कदम्ब शासकों के अधीन शासन चलाते थे।.कर्नाटक का चालुक्य राजवंश एक मध्ययुगीन भारतीय राजवंश था।.जिसने 6वीं से 12वीं शताब्दी तक कर्नाटक क्षेत्र और आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। वे कला,वास्तुकला,साहित्य और धर्म के संरक्षण के लिए जाने जाते थे। प्रारंभिक चालुक्य-चालुक्य वंश की स्थापना 6वीं शताब्दी में पुलकेशिन प्रथम ने की थी।.प्रारंभिक चालुक्य मुख्य रूप से हिंदू धर्म,विशेषकर शैव धर्म के अनुयायी थे,जिनके संरक्षक देवता भगवान शिव थे। उन्होंने भगवान शिव को समर्पित कई मंदिरों का निर्माण किया,जैसे पट्टाडकल में प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर और बादामी में मल्लिकार्जुन मंदिर।.

1.पुलकेशिन प्रथम
पुलकेशिन प्रथम को ही चालुक्य वंश का संस्थापक माना गया है। इसने बादामी के दुर्ग का निर्माण करवाया और अज्ञैर को अपनी राजधानी बनाया।.पुलकेशिन प्रथम ने श्री पृथ्वीवल्लभ,श्री वल्लभ,सत्यश्रय,रण विक्रम जैसी उपाधियां धारण कर रखी थी।.

2.कीर्ति वर्मन प्रथम 
यह पुलकेशीन प्रथम का पुत्र और कोंकण के मौर्य,बेल्लारी कर्नुल क्षेत्र के नलवंशी,बनवासी के कदम्ब शासक अजय वर्मा को हराकर इसने पुरु-रण पराक्रम, सत्याश्रय की उपाधियां धारण की।.महाकूट स्तंभ अभिलेख में उसे बहु सुवर्ण,अग्निशोष्टम यज्ञ करने वाला कहा गया है।.

3.मंगलेश
चूंकि कीर्ति वर्मन की मृत्यु के समय उसके तीनों पुत्र नाबालिग थे जिसके परिणाम स्वरूप उसके भाई मंगलेश को उत्तराधिकारी बनाया गया।.इसने कल्चुरी नरेश बुद्ध राज को पराजित किया और स्वयं वल्लभ नरेश द्वारा पराजित हुआ।.इसने परम भागवत की उपाधि धारण की क्युकी यह वैष्णव धर्म को मानता था।.इसने बादामी के गुहा मन्दिर का निर्माण करवाया जो की पुलकेशिन प्रथम के समय काल में प्रारम्भ हुआ था।.यह मंदिर विष्णु देव को समर्पित था।.

4.पुलकेशिन द्वितीय
यह पुलकेशीन प्रथम का पौत्र और कीर्ति वर्मन प्रथम का पुत्र था।.पुलकेशीन द्वितीय की जानकारी उसके दरबारी कवि रवि कीर्ति द्वारा रचित उसकी प्रशस्ति गुण वर्णन से मिलती है।.जो की उसके ऐहोल प्रशस्ति लेख में उसके कवि ने लिखी थी।.इसके साथ ही उसने पृथ्वी वल्लभ महाराज की उपाधि भी धारण की।.इसके समय काल में गृह युद्ध हुआ जो की इसके और मंगलेश के मध्य में हुआ।.जिसके कारण चालुक्यियो के अनेक राज्य स्वतंत्र हो गए।.जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य को देखते हुए उसने अपने साम्राज्य को दो भागो में विभाजित कर दिया।.1.दूसरा भाग उसने अपने भाई विष्णु वर्धन को दे दिया जो आगे चलकर वेंगी के चालुक्य कहलाए। पुलकेशिन द्वितीय के समय काल में चीनी यात्री हेनसांग इसकी राजसभा में आया,कन्नौज का सम्राट इसका समकालीन था जिसने अपने साम्राज्य को उत्तर भारत तक ही सीमित रखा।.

5.विक्रमादित्य प्रथम
यह पुलकेशीन द्वितीय का पुत्र था 13 वर्षो के बाद राजनीतिक दबाव कम होने पर शासक बना।.इसने अपने भाई जयसिंह को लाट का गवर्नर बना दिया जो की आगे चलकर दक्षिणी गुजरात के चालुक्य शाखा का संस्थापक बना।.दिए गए(गुजरात के चालुक्य शासक)के लिंक पर जाकर आप इनके बारे में विस्तार से पढ़ सकते है।.

6.विनया दित्य
इसने अपने समय काल में चोलो,पांड्या,एवं केरल के साथ युद्ध में विजय हासिल की और पल्लवो से संघर्ष जारी रखा।.

7.विजया दित्य 
इसने पल्लवो की राजधानी कांची पर आक्रमण कर धन की लूटपाट की। विजया दित्य का शासन काल सबसे लम्बा रहा।.

8.विक्रमा दित्य द्वितीय 
यह वास्तव में चालुक्य वंश का एक महत्वपूर्ण शासक था। उन्होंने लगभग 733 ई. से 746 ई.तक शासन किया। विक्रमादित्य द्वितीय विजयादित्य का पुत्र और पुलकेशिन द्वितीय का पोता था। वह अपने पिता की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठे और अपने राजवंश की विरासत को जारी रखा।
अपने शासनकाल के दौरान,विक्रमादित्य द्वितीय कई सैन्य अभियानों में शामिल हुए और सफलतापूर्वक चालुक्य साम्राज्य का विस्तार किया। विक्रमादित्य द्वितीय की उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक पल्लव राजवंश पर उनकी जीत थी। उन्होंने पल्लव राजा नंदिवर्मन द्वितीय को हराया और वर्तमान तमिलनाडु के क्षेत्रों पर अपना प्रभाव बढ़ाते हुए,इस क्षेत्र में चालुक्य वर्चस्व स्थापित किया।.

विक्रमादित्य द्वितीय ने कला,संस्कृति और धर्म के प्रचार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विभिन्न धार्मिक संस्थाओं का समर्थन किया और कई मंदिरों का निर्माण कराया। एलोरा में कैलासनाथ मंदिर और पट्टाडकल में पातालेश्वर मंदिर उनके शासनकाल से जुड़ी कुछ उल्लेखनीय वास्तुशिल्प उपलब्धियाँ हैं।
इसके अतिरिक्त,विक्रमादित्य द्वितीय को कन्नड़ साहित्य के संरक्षण के लिए जाना जाता है। उन्होंने लेखकों और कवियों को सहायता प्रदान की और उनके दरबार में महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों की रचना देखी गई। विक्रमादित्य द्वितीय का शासनकाल चालुक्य वंश के लिए सांस्कृतिक और राजनीतिक समृद्धि का काल था। उनकी सैन्य जीत,स्थापत्य संरक्षण और साहित्य में योगदान ने चालुक्य राजवंश और पूरे क्षेत्र के इतिहास पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।
उन्होंने गंग सामंत श्री पुरुष की सहायता से पल्लव नरेश नन्दी वर्मन को पराजित किया।.इसके साथ ही उन्होंने केरल,कालभ्रो,पंड्यो,और चोल शासकों को पराजित किया।.अरब शासक के आक्रमण को इसके भतीजे पुलकेशीन ने विफल कर दिया,जिससे प्रसन्न हो कर विक्रमा नित्य ने उसे अवनिजनारय(पृथ्वी के स्वामी) की उपाधि से सम्मानित किया।.कुछ समय बाद दक्षिणी गुजरात पर राष्ट्र कूटो ने अधिकार कर लिया।.इसकी प्रथम पत्नी ने लोक महादेवी ने लोकेश्वर नाथ मन्दिर (शिवमन्दिर) का निर्माण करवाया। और दूसरी पत्नी त्रलोक्य महादेवी ने त्रिलोकेश्वर मन्दिर का निर्माण करवाया।.

9.कीर्ति वर्मन
राष्ट्र कूट राजा दांति दुर्ग ने इसे 753 ई.में इस पर विजय हासिल की।.ये बादामी के चालुक्य का अंतिम शासक था।.जानकारी का अभाव।.

चालुक्य वंश के महत्वपुर्ण तथ्य

1.वास्तुकला-चालुक्य अपने मंदिर वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने एक विशिष्ट शैली विकसित की जिसे "चालुक्य शैली" या "बादामी चालुक्य वास्तुकला" के नाम से जाना जाता है। इस स्थापत्य शैली में नागर और द्रविड़ शैलियों सहित विभिन्न परंपराओं के तत्वों को शामिल किया गया,जिसके परिणामस्वरूप स्थापत्य सुविधाओं का एक अनूठा मिश्रण तैयार हुआ। उनके मंदिरों में अक्सर जटिल नक्काशीदार मूर्तियाँ और बाहरी भाग बड़े पैमाने पर सजाए गए होते थे।.

2.साहित्य और भाषा-चालुक्य काल में कन्नड़ साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान देखा गया। इस समय के दौरान कन्नड़ भाषा में उल्लेखनीय साहित्यिक रचनाएँ हुईं, जिनमें पम्पा की महाकाव्य कविता "विक्रमार्जुन विजया"(जिसे "पम्पाभारत" या "पम्पा रामायण"भी कहा जाता है) और आदिकवि पम्पा की "जैन रामायण" शामिल हैं। इन कार्यों ने कर्नाटक के साहित्यिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।.

3.धर्म और संप्रदाय-जबकि शैववाद प्रमुख धार्मिक परंपरा थी,चालुक्यों ने अन्य संप्रदायों और विश्वासों का भी समर्थन किया। उन्होंने जैन धर्म को संरक्षण दिया और वहाँ जैन मंदिर और राजवंश से जुड़े शिलालेख थे। पुलकेशिन द्वितीय और विनयादित्य जैसे चालुक्य शासक अपनी जैन संबद्धता के लिए जाने जाते थे।.

4.शिलालेख और अनुदान-चालुक्यों ने बड़ी संख्या में शिलालेख और अनुदान जारी किए जिनमें उनकी उपलब्धियां,धार्मिक बंदोबस्ती,भूमि अनुदान और मंदिरों और धार्मिक संस्थानों को दान दर्ज थे।ये शिलालेख चालुक्य काल के बारे में बहुमूल्य ऐतिहासिक और धार्मिक जानकारी प्रदान करते हैं। कर्नाटक के चालुक्य राजवंश ने कला,वास्तुकला,साहित्य और धर्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके वास्तुशिल्प चमत्कार,साहित्यिक कार्य और धार्मिक संरक्षण ने कर्नाटक और आसपास के क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।.

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